जीवन का सत्य

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बुद्धि = इससे ही जीवन क्रियाशील है। यह ही जीवन का मूल आधार है। यह कई प्रकार से कार्यरत है…..

विद्या = मस्तिष्क के लिए जानकारी जुटाने व जीवन क्रिया शील करने का साधन जो कई प्रकार से कार्य करता है…..

विकार = विकार जीवन को नरक बना देता है, यह पांच भागों में कार्य करता है…..

धर्म = जीवन जीने की विशेष शैली को धर्म कहते है जो निम्न प्रकार है…..

जीवन = शरीर का किर्याशील होना जीवन है इसका निर्माण चार तत्वों द्वारा होता है…..

जीवन धारा =पृथ्वी पर उपलब्ध जीवन और उसके सदस्य…..

कर्म = भौतिक सुखों की प्राप्ति एवं जीवन सुचारू रूप से चलाने के लिए अनिवार्य…..

परिवार = संसार में मनुष्य का पहचान पत्र…..

अंतःकरण बोध = मन के विषयों की सत्यता की परख…..

आत्मिक मंथन = जीवन सम्बन्धित विषयों पर विवेक मंथन…..

समाज = आसपास रहने वाले मनुष्यों का समूह जिनके साथ रहने के कुछ नियम होते हैं…..

बुद्धि भ्रम = किसी विषय की सही जानकारी ज्ञात ना होने पर बुद्धि की स्थिति…..

स्वयं निर्मित समस्याएं = अपनी नादानी से जीवन को कष्टदायक स्थिति में पहुँचाना…..

अध्यात्मिक चिन्तन = इंसानियत की प्रगति के लिए मानसिक मंथन…..

संकीर्ण मानसिकता = बौद्धिक शक्तिओं का अल्प एंव सिमित उपयोग करना……

नैतिक बोध = उत्कृष्ट जीवन के नैतिक नियमों की जानकारीयां…..

नीति निवारण = योजना बद्ध तरीके से समाधान करना…..

नारी मुक्ति = समाज में संतुलन के लिए नारी को प्रथाओं से मुक्त करना एवं सम्मान प्रदान करना आवश्यक है…..

अंतरिम ज्ञान = विषय की गहराई और मर्म की जानकारी…..

संशोधन = गलती और कमियों में सुधर करना…..

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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