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योग

July 16, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

योग अर्थात जोड़ । योग एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ जोड़ना या जमा करना अथवा एकत्रित करना होता है । योग स्वास्थ्य सम्बन्धित विषय है एवं ऐसी किर्या है जिसके द्वारा इन्सान अपनी शारीरिक उर्जा एकत्रित कर सकता है तथा अपने शरीर के प्रत्येक अंग में पुनः सक्रियता उत्पन्न कर सकता है । योग शारीरिक कसरत करने के विभिन्न तरीकों का उत्कर्ष्ठ साधन है जिसके निश्चित नियम एवं उचित प्रकार के तरीकों को आसन कहा जाता है जिनका अभ्यास करना योग कहलाता है । शारीरिक स्वास्थ्य के अन्य विषयों में लाभ व हानि कम या अधिक दोनों पक्ष होते हैं परन्तु योग की किर्या में हानि ना के बराबर तथा लाभ शत-प्रतिशत होता है । योग से हानि ना हो एवं पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके इसलिए योग करने से पूर्व योग के आसन एवं नियमों तथा किर्या को समझना आवश्यक है । योग द्वारा निरंतर अभ्यास से किसी भी मामूली हो या भयंकर बीमारी अपने शरीर से दूर रखा जा सकता है अथवा छुटकारा पाया जा सकता है ।

योग द्वारा उर्जा एकत्रित करने का अर्थ बाहर से किसी प्रकार की उर्जा संचय करना कदापि नहीं होता । इन्सान के आलस्य के कारण शरीर में जो कोशिकाएँ मृत होकर शरीर में ही जमा हो जाती हैं तथा वसा एवं कार्बोहाइड्रेट की परतें जमा होकर शारीरक शक्ति एवं ऊर्जा को क्षीण कर देती हैं । योग द्वारा निरंतर अभ्यास से जमीं हुई परतें समाप्त करके उर्जा संचित करना ही योग द्वारा उर्जा एकत्रित करना होता है । शरीर में जम गई सुप्त ऊर्जा को यदि समय-समय पर जाग्रित एवं एकत्रित ना किया जाए तो उसके दुष्परिनाम कुछ समय बाद प्रकट होने लगते हैं । जो उर्जा मृत कोशिकाओं, वसा एवं कार्बोहाइड्रेट की परतों में समाकर सुप्त हो जाती है अधिक समय व्यतीत होने पर विषैला रूप धारण कर लेती  है जिसके कारण शरीर अनेक बिमारियों से ग्रसित होने लगता है । शरीर में दर्द, गठिया बाय, दमा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, लकवा, कैंसर, हृदयघात जैसी अनेक भयंकर बीमारियाँ उर्जा के विषैलेपन का दुष्परिनाम होते हैं जिनका समाधान योग द्वारा संभव है ।

सक्रियता इन्सान के जीवन में महत्वपूर्ण किर्या है जिसके बगैर जीवन की प्रगति बधित होती है क्योंकि शरीर में सक्रियता ना हो तो इन्सान आलसी एवं शिथिल होकर कर्म विहीन हो जाता है । योग शरीर को उर्जावान के साथ सक्रिय एवं फुर्तीला भी बनाता है । इन्सान के दो हाथ होने पर भी मात्र एक हाथ सक्रिय होता है जो वार्ता करते समय भी किर्या अनुसार इंगित करता रहता है । इन्सान चाहकर भी दोनों हाथों से एक समान कार्य करने में निपुण नहीं हो सकता क्योंकि आरम्भ से सभी इन्सान जिस हाथ का उपयोग करते हैं वह हाथ ही पूर्ण सक्रिय होता है अर्थात सक्रियता के लिए अभ्यास आवश्यक होता है । योग के निरंतर अभ्यास द्वारा अपने सुप्त अंगों को पुनः सक्रिय अवस्था में लाया जा सकता है ।

योग की आरम्भिक एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण किर्या प्राणायाम होती है जो कई प्रकार से करी जा सकती है तथा जिनके भिन्न-भिन्न परिणाम भी होते हैं । प्राणायाम अर्थात प्राण + याम । प्राण = जीवन व याम = वायु अर्थात जीवन दायनी वायु । इन्सान का जीवन तीन प्रकार की वस्तुओं पर आधारित है भोजन, जल एवं वायु । भोजन के बगैर इन्सान एक माह भी जीवित रह सकता है तथा जल के बगैर दो दिन जीवित रह सकता है परन्तु वायु के बगैर कुछ पलों में जीवन समाप्त हो जाता है । इन्सान वायु से प्राप्त आक्सीजन से जीवित रहता है जो जीवन की सबसे अधिक आवश्यकता है जिसकी किर्या अनुसार प्रतिदिन 8600 लीटर वायु का उपयोग करके उसमें से प्राप्त 350 लिटर आक्सीजन को प्रतिदिन ग्रहण करके इन्सान का जीवन किर्याशील रहता है । प्राणायाम द्वारा अधिक आक्सीजन प्राप्त करके कोशिकाओं को जीवन प्रदान करने एवं उन्हें सशक्त बनाने तथा उर्जा संचय करने से शरीर स्वस्थ्य एवं सक्रिय रहता है ।

योग की प्रत्येक किर्या एवं आसन लाभदायक होते हैं जिनके द्वारा विभिन्न बिमारियों से सरलता से एवं मुफ्त छुटकारा मिल जाता है । योग करने के लिए उचित समय एवं उचित स्थान होना भी आवश्यक है क्योंकि गलत समय या गलत स्थान लाभदायक नहीं होते । प्रभात का समय योग के लिए सर्वोतम होता है क्योंकि प्रभात के समय वायु प्रदुषण रहित स्वच्छ होती है जिसका पूर्ण लाभ प्राप्त होता है । योग के लिए स्थान खुला एवं धूल रहित होना आवश्यक है क्योंकि बंद कमरों में वायु का दबाव कम होता है तथा सीलन की घुटन एवं साँस लेने से बना प्रदुषण भी स्वास्थ्य लाभ लेने में बाधक होता है ।

योग में जल्दबाजी हानिकारक होती है धैर्य एवं शांतिपूर्ण तरीके से निरंतर अभ्यास करना सर्वाधिक लाभदायक रहता है । प्राणायाम के अतिरिक्त कोई भी आसन आवश्यकता अनुसार चुनकर ही करना श्रेष्ठ होता है क्योंकि प्रत्येक आसन अलग प्रकार से तथा निश्चित अंग को हो लाभ प्रदान करता है । निरर्थक आसन अथवा उलजलूल आसन करके समय बर्बाद करना एवं लाभ ना होने पर योग को बदनाम करना नादानी होती है । योग करें एवं स्वस्थ्य रहें परन्तु धैर्य एवं नियमानुसार ।

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