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आकर्षण

July 20, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

    किसी के प्रति मानसिकता प्रभावित होकर जब जिज्ञासा उत्पन्न करती है तो वह आकर्षण होता है । आकर्षण एक प्रकार का गुण है जो किसी भी वस्तु, विषय अथवा इन्सान को महत्वपूर्ण बना सकता है । कोई इन्सान कितना भी प्रतिभाशाली या श्रेष्ठ हो तथा कोई वस्तु अथवा विषय कितना भी उत्तम हो वह जब तक दूसरों की दृष्टि में अपने लिए आकर्षण उत्पन्न नहीं करता महत्वहीन होता है । जो किसी को भी आकर्षित करके उसे प्रभावित कर देता है उसकी दृष्टि में महत्वपूर्ण हो जाता है अर्थात आकर्षित करने वाला आकर्षित होने वाले के लिए मूल्यवान बन जाता है । इन्सान की सफलता या असफलता सदैव उसके आकर्षण पर निर्भर करती है कि वह किसी को कितना अधिक आकर्षित कर सकता है ।

    जब कोई इन्सान बाजार में किसी भी वस्तु की तरफ आकर्षित होता है तब ही वह उसके लिए उपयोगी होती है । बिना आकर्षित हुए इन्सान किसी भी वस्तु की तरफ देखना भी पसंद नहीं करता । वस्तु का प्रथम आकर्षण उसका आवरण (पैकिंग) होता है । आवरण उतारने के पश्चात वस्तु की चमक एवं उसका सौन्दर्य इन्सान को आकर्षित करता है । वस्तु की बनावट तथा उसे उपयोग के लिए उपयुक्त समझकर ही इन्सान उसका मूल्य पूछता है । इन्सान वस्तु के लिए जितना अधिक आकर्षित होता है उसका उतना ही अधिक मूल्य देकर भी उसे प्राप्त कर लेता है । आकर्षित ना होने पर कोई भी इन्सान किसी भी वस्तु को खरीदना पसंद नहीं करता । इन्सान सब्जी लेते समय भी उसकी ताजगी, बनावट एवं चमक से आकर्षित होकर ही उसे खरीदता है ।

    इन्सान जब किसी के समक्ष प्रस्तुत होता है तब सर्वप्रथम उसका व्यवहार उसे आकर्षित करता है । व्यवहार एक प्रकार से इन्सान का आवरण होता है जिसमें उसका व्यक्तित्व छुपा होता है । आवरण का आकर्षण अर्थात इन्सान का व्यवहार जितना अधिक आकर्षक होता है उतना ही अधिक वह दूसरों को प्रभावित करता है । इन्सान की भाषा, उसके शब्द, उसकी वाणी की मधुरता तथा स्वागत की गर्मजोशी सभी उसके व्यवहार का आकर्षण होता है जिससे दूसरे प्रभावित होते हैं । जब कोई इन्सान हमारे व्यवहार से आकर्षित होता है तब वह हमसे वार्तालाप करना एवं हमारे विचार समझना पसंद करता है ।

    विचार इन्सान की मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं इसलिए विचार सदैव सोच समझकर प्रस्तुत करना श्रेष्ठ होता है । विचार प्रस्तुत करना भी एक कला है क्योंकि इन्सान के विचार कितने भी श्रेष्ठ हों यदि उन्हें अनुचित प्रकार से प्रस्तुत किया जाए तो वह दूसरों को प्रभावित नहीं करते जिसके कारण वह महत्वहीन हो जाते हैं । जो विचार किसी को सरलता से समझ आ जाएँ तथा उसे अपने लिए उपयोगी लगते हों तब ही वह उन विचारों की तरफ आकर्षित होता है । इन्सान के विचार उसकी मानसिकता का सौन्दर्य होते हैं जिनसे प्रभावित होकर दूसरे इन्सान सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करते हैं ।

    इन्सान का स्वभाव उसके व्यक्तित्व का दर्पण होता है यदि स्वभाव में आकर्षण ना हो तो इन्सान का व्यवहार एवं विचार तथा उसकी प्रतिभा सभी महत्वहीन हो जाते हैं । स्वभाव की छोटी-छोटी त्रुटियाँ जैसे वार्तालाप के मध्य टोकना, एक ही बात को बार-बार दोहराना, बिना पूछे बतलाने का प्रयास करना, बहस करने का प्रयास करना, किसी प्रकार की आलोचना करना इन्सान को महत्वहीन बनाते हैं । इधर-उधर ताक-झांक करना, किसी सामान को उल्ट-पलट कर देखना या किसी प्रकार की छेड़खानी करना सभी ऐसे छोटे-छोटे कार्य इन्सान के स्वभाव को ओछा बनाते हैं ।

    इन्सान के व्यवहार का आकर्षण, उसके आकर्षक विचारों का सौन्दर्य एवं आकर्षक स्वभाव के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही उसे उपयोगी समझा जाता है । आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही दूसरे इन्सान सरलता से प्रतिभाशाली इन्सान की प्रतिभा को देखना एवं उसका लाभ उठाना पसंद करते हैं तब इन्सान को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होता है । एक बार इन्सान को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का उचित अवसर प्राप्त हो जाए तो वह अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके खुद को प्रमाणित कर सकता है तथा सफलता प्राप्त कर सकता है । एक बार सफल होने के पश्चात इन्सान सदा के लिए संसार में प्रतिभाशाली बन जाता है परन्तु उसे अवसर सदैव उसके व्यवहार, विचार एवं स्वभाव का आकर्षण ही प्रदान करवा सकता है ।     आकर्षण स्वयं एक प्रतिभा है जो किसी भी इन्सान को प्रभावित करने की क्षमता रखता है । इन्सान को प्रतिभाशाली होने के साथ प्रभावशाली होना भी आवश्यक है क्योंकि प्रभाव के बगैर प्रतिभा व्यर्थ होकर रह जाती है और प्रभाव आकर्षण से उत्पन्न होता है । इन्सान जितना अधिक खुद को आकर्षक बना लेता है वह उतना ही शीघ्र सफलता भी प्राप्त कर लेता है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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