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अलंकृत

August 23, 2014 By Amit Leave a Comment

सुन्दरता दर्शाने के लिए श्रंगार करने की वस्तुओं को अलंकार कहा जाता है तथा अलंकारों से सुसज्जित होकर प्रदर्शित होने को अलंकृत कहा जाता है । जिस प्रकार कोई स्त्री अपनी सुन्दरता प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न प्रकार के आकर्षित करने वाले वस्त्र, आभूषण एवं श्रंगार की अन्य वस्तुओं का उपयोग करके अलंकृत होती है उसी प्रकार किसी विषय के वर्णन को महत्वपूर्ण दर्शाने के लिए उसमे वर्णन करने वालों की तरफ से जोड़े गए प्रभावशाली शब्दों को अलंकार लगाना एंव उस वर्णन को अलंकृत करना कहा जाता है । अलंकृत करने के उपरांत वह विषय तथा उससे सम्बन्धित व्यक्ति को सरलता पूर्वक महत्वपूर्ण घोषित किया जा सकता है ।

अपने विषय की व्याख्या करते समय उसमे विभिन्न प्रकार के प्रभावशाली शब्दों के अलंकार लगाकर विषय को प्रभावशाली तथा खुद को महत्वपूर्ण दर्शाने के लिए विषय अलंकृत करना भारतीय समाज की सदियों पुरानी परम्परा है । भारतीय मनुष्य वह चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी अपने परिवार व उसके सदस्य तथा रिश्तेदार एवं मित्रों से लेकर अपने पड़ोसी व जानकारों तक को महत्वपूर्ण प्रमाणित करने के लिए उनके विषय अलंकृत करते हैं कभी कभी तो अपने पालतू जानवरों व पेड़ पौधों तक के विषय में वार्ता करते समय अलंकृत करना भारत वासियों का परम कर्तव्य हो जाता है । अलंकृत करने के कारण ज्ञात करना तथा उससे होने वाले प्रभाव का परिणाम ज्ञात करना भी आवश्यक है क्योंकि अलंकृत विषय के दुष्परिणाम समाज के लिए कितने हानिकारक हो सकते हैं इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है ।

भारतीय समाज में यह धारणा है कि हमसे सम्बन्धित इन्सान यदि किसी महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हो या वह कोई महत्वपूर्ण कार्य करने में सक्षम हो तो हमारी भी महत्वता समाज में बढ़ जाएगी तथा हमे सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा । इस कारण भारतीय समाज में अपने सम्बन्धितों की अलंकृत व्याख्याएँ करी जाती हैं तथा महत्वपूर्ण इंसानों से अपने सम्बन्धों की अलंकृत कहानियां प्रस्तुत करी जाती हैं । किसी वार्तालाप में होने वाले महत्वपूर्ण या अद्भुत वर्णन के समय उपलब्ध इंसानों द्वारा जानकारियों के अभाव में अपनी बुद्धि हीनता का अहसास करके अहंकार वश अलंकृत कहानियां बखान करना साधारण कार्य है जिसे बखान करने वाला रस्सी को सांप प्रमाणित करने का भरपूर प्रयास करता है जो कभी कभी हास्यप्रद स्थिति उत्पन्न कर देता है ।

किसी अच्छे प्रवक्ता को कुछ इंसानों द्वारा उसे प्रवक्ता से अलंकृत करके ज्ञानी बखान करना तथा ज्ञानी होने की चर्चा सुनने वालों द्वारा अपने वर्णन में उसे ब्रह्मज्ञानी घोषित करना इसी प्रकार ब्रह्मज्ञानी सुनने वालों द्वारा प्रवक्ता को साधू व संत की उपाधि देना तथा साधू संत का वर्णन सुनने वालों द्वारा उसे ईश्वर का अवतार घोषित करना भारतीय समाज द्वारा ही संभव हो सकता है । इसी प्रकार किसी की छोटी सी बुराई को बदनाम करके उसको लुटेरा, डाकू या स्मगलर तक बनाने का श्रेय भारतीय समाज का साधारण सा कार्य है । किसी परछाई को भूत बना देना तथा भूतों की अलंकृत कहानियां चटकारे लेकर मनोरंजन के तोर पर प्रस्तुत करना भारतीय समाज की नादान सोच का परिणाम है । वार्तालाप गोष्ठी में किसी स्त्री के चरित्र का बखान करते हुए विभिन्न अलंकारों द्वारा उसे कलंकित घोषित करना व किसी व्यक्ति के कार्यों पर उसकी बुद्धि हीनता दर्शाने के लिए अलंकारों द्वारा निर्मित वर्णन से उसे मूर्ख प्रमाणित करना भारतीय समाज का दैनिक कार्य है ।

अलंकृत करने की मानसिकता के कारण सच्चाई ज्ञात किए बगैर किसी को साधू संत घोषित करने पर साधारण इन्सान ढोंगी साधू संतों के चंगुल में फंस जाते हैं जहाँ पर उनका भरपूर शोषण होता है । धर्म की अलंकृत कहानियाँ समाज को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोडती जिसका लाभ चंद शातिर इन्सान उठा रहे हैं । भूत प्रेतों की झूटी अलंकृत कहानियों की दहशत का लाभ उठाकर तांत्रिकों के भेष में लुटेरे आम जनता को दोनों हाथों से लूट रहे हैं । अलंकार प्रथा के कारण ही समाज में रुढ़िवादी प्रथाओं के चलन को आश्रय प्राप्त है क्योंकि मनघडन्त कहानियों की दहशत के कारण किसी अनिष्ट की आशंका से घबराया इन्सान रुढ़िवादी प्रथाओं को मानने पर मजबूर हो जाता है ।

सदियों पुरानी मनघडन्त अलंकृत कहानियों को सत्य मान लेना व किसी के वर्णन को सत्य मान लेना तथा उस पर अमल करना मूर्खता की निशानी है । किसी विषय पर अमल करने से पूर्व उसकी सत्यता का आकलन करना आवश्यक है सत्यता ज्ञात करने के लिए बुद्धि तथा विवेक का मंथन करने से ही सत्य प्रमाणित होगा जो उचित मार्गदर्शन करेगा । किसी कहानी के पात्र अथवा कोई अदृश्य शक्ति हमारा अनिष्ट नहीं कर सकती परन्तु हम अपनी बुद्धि एंव विवेक का उपयोग ना करके किसी अलंकृत कहानी पर विश्वास करके अपनी मूर्खता के कारण अपना अनिष्ट व नुकसान अवश्य कर लेते हैं ।

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Filed Under: संकीर्ण मानसिकता Tagged With: alankrit, अलंकृत, encrusted, ornate

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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