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June 14, 2014 By Amit Leave a Comment

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भारतीय संस्कृति विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखती है तथा पश्चिमी देश भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान करते हैं। कोई संस्कृति सिर्फ कह देने भर से महान नहीं हो जाती यदि भारतीय संस्कृति को महान माना जाता है तो उसके कारण भी हैं । भारतीय नागरिक जिस शैली में अपना जीवन व्यतीत करते हैं वह ही संस्कृति कहलाती है तथा भारतीयों का आपस में आदर सम्मान करना, प्रेम पूर्वक दूसरों के काम आना व सुख दुःख बाँटना, अतिथि का आदर सत्कार करना, सम्मिलित परिवार में रहना, बड़ों का आदर करना व झुककर प्रणाम करना तथा आपसी सद्भावना जैसे बहुत से कारण हैं जो इस शैली को उच्चकोटि में शामिल करते हैं । संस्कृति को महान बनाने में एक बड़ा कारण भाषा होती है क्योंकि विचार व्यक्त करने की शैली को भाषा कहते हैं और भाषा से मनुष्य के विचारों एवं मानसिकता की जानकारी प्राप्त होती है । भाषा वह श्रेष्ठ होती है जिसके वक्तव्यों का अर्थ स्पष्ट समझ आता हो तथा जो शब्दों के मर्म अर्थात गहराई को सरलता से समझा सकती हो । संसार में एकमात्र ऐसी भाषा होने का गर्व हिन्दी भाषा को प्राप्त है क्योंकि हिंदी भाषा जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है तथा जैसे लिखी जाती है वैसे ही पढ़ी भी जाती है । हिन्दी भाषा में शब्दों को पूर्णतया स्पष्ट किया गया है ।

वैसे सभी भाषाएँ अपनी स्थान पर महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि अपनी आवश्यकता एंव अपने विचारों की आवश्यकता अनुसार भाषा का निर्माण होता है तथा किसी भाषा की महत्वता उसके अनुयायिओं की आवश्यकता की पूर्ति करना है । परन्तु प्रत्यक्ष समय में भारतीय संस्कृति को नष्ट करने वाले स्वयं भारतीय हैं जो इस संस्कृति को तुच्छ द्रष्टि से देखते हैं तथा अपनी मूर्खता पूर्ण हरकतों से इस सभ्यता का अनादर करते हैं । भारतीय भाषा अर्थात हिन्दी को प्रयोग करने में भारत का शिक्षित वर्ग शर्मिंदगी का अहसास करता है । इस दौर में भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी में अपनी पकड़ बना रहा है तथा भारतीय परिवार हिन्दी माध्यम से पढाने में अपना अपमान समझने लगे हैं । उन्हें लगता है कि हिन्दी भाषा पिछड़े वर्ग की भाषा है जबकि हिन्दी के शब्दों का उच्चारण भी उचित प्रकार से करना उनके वश का कार्य नहीं है ।

संस्कृत अर्थात संस्कार की भाषा को सरल बना कर हिन्दी में परिवर्तित किया गया था एंव शुद्ध हिन्दी को भी सरल बना कर देवनागरी लिपि में परिवर्तित कर प्रयोग में लाया जाता है । हिन्दी के उच्चारण किये गये शब्दों से मनुष्य के विचार व मानसिकता का पूर्ण आभाष होता है जिसके वाक्यों में आदर व प्रेम की पूर्ण झलक दिखाई देती है । किसी से मिलने पर सीने से लगाना, बुजुर्गों का चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेना अब अंग्रेजी शिक्षितों द्वारा सिर्फ हैलो, हाउ आर यू जैसे शब्दों में समाप्त हो गया है । (आप) एवं (जी) जैसे आदरपूर्ण वाक्य अंग्रेजी भाषा में कोई अर्थ नहीं रखते । माताजी व पिताजी को मम्मीजी व पापाजी बनाया गया और अब मम डैड में समाप्त कर दिया गया यह हमारी सभ्यता तथा सम्मान की शैली रह गयी है । माँ बाप के प्रति आदर भाव के वाक्यों का मर्म ही पता न हो तो उनका सम्मान व उनकी महत्वता का अहसास ही कैसे हो पाएगा । संसार में सबसे महत्वपूर्ण व आदरणीय माने जाने वाले माँ बाप को जैसे वाक्यों से पुकारा जाता है उस भाषा व पुकारने वाले की मानसिकता का इससे अधिक और क्या पता चल सकता है ।

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हिन्दी भाषा में किसी को पुकारे जाने पर उसके वाक्यों से सम्बन्धों का पूर्ण ज्ञान हो जाता है ताऊ, चाचा, मामा, मौसा, फूफा, या ताई, चाची, मामी, मौसी, बुआ जैसे शब्द पुकारने पर ही सभी रिश्तों की पूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं परन्तु अंग्रेजी में अंकल या आंटी में सभी रिश्ते आ जाते हैं अर्थात रिश्तों की जानकारी एंव महत्वता का ज्ञान जिस भाषा से पता न चले वह संस्कार क्या सिखा सकती है ? माँ की ममता जो संसार में सभी जीवों के लिए प्राकृति का अनोखा उपहार है जिसका मुकाबला संसार का कोई भी प्यार नहीं कर सकता क्योंकि यह निस्वार्थ और निश्छल होता है तथा घर के बुजुर्गों का दुलार, पिता व परिवार के सदस्यों का लाड, पत्नी का प्यार, मित्रों का स्नेह , प्रेमिका की प्रीत सभी अंग्रेजी में सिर्फ लव बनकर रह जाते हैं । पत्नी या बहन अथवा माँ सभी से सिर्फ लव ही होता है ऐसे वाक्य का प्रयोग संस्कार व संस्कृति का सत्यानाश करने के लिए बहुत है । ब्रदर इन ला से पता नहीं चलता की यह जीजा है या साला ऐसे अनोखे वाक्यों की अवैज्ञानिक भाषा का प्रयोग करके खुद को विद्वान् समझने वाले इंसानों को यह समझना आवश्यक है कि हिन्दी को ग्लानी भाव से देखना उनकी मूर्खता है ।

बहुत से इन्सान हिन्दी भाषा के ज्ञाता होते हुए भी हिन्दी में पूछे गये प्रश्न का अंग्रेजी में उत्तर देकर यह जतलाना चाहते हैं कि वह बहुत विद्वान् है उनकी हास्यप्रद व मूर्खतापूर्ण हरकत से यह पता चलता है कि उनकी मानसिकता ऐसी है जैसे धोती पहने अपनी माँ को त्यागकर किसी स्कर्ट पहने स्त्री को माँ माँ कह कर चिल्लाना । अंग्रेजी भाषा से भारतीय संस्कृति का किसी भी प्रकार से मिलान नहीं हो सकता अंग्रेजी में भारतीय संस्कृति को तलाशना इस प्रकार है जैसे अंग्रेजी की पुस्तक में श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक तलाश करना । इसलिए भारतीय संस्कृति जिस पर सभी भारतीय नाज करते हैं उसे जिन्दा रखना हो तो हिन्दी को सम्मान देना आवश्यक है । हिन्दी संस्कार देने वाली भाषा है हीनभावना से असंस्कारी ही इसे देख सकता है । हिन्दी हमारी मातृभाषा है तथा मातृ भाषा का अपमान माँ के अपमान के समान होता है । शिक्षा किसी भी भाषा में प्राप्त हो परन्तु मातृ भाषा सर्वोपरी होती है ।

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प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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