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वनस्पति

April 25, 2014 By Amit Leave a Comment

vanaspati

पृथ्वी पर उपलब्ध जीवन में सर्व प्रथम स्थान पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी प्रकार के पौधे, वृक्ष, फल, फूल और घास वगैरह के रूप में उपलब्ध वनस्पति का होता है । पृथ्वी पर उपलब्ध जीवन धारा के अन्य सदस्य जानवर, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, और इन्सान के रूप में जीवों की श्रेणी में आते हैं । पृथ्वी पर जीवित रहने के चार मूल आधार हैं वायु, जल, उर्जा और भोजन जिनमे वायु, जल और उर्जा जीवन धारा के सभी सदस्यों को एक जैसी ही चाहिए परन्तु भोजन सभी सदस्यों का पृथक प्रकार का होने से ही उनका जीवन सुरक्षित रह पाता है । वनस्पति और सभी जीवों में एक अंतर सबसे अधिक है कि वनस्पति पृथ्वी पर अचल रहकर जीवित है परन्तु जीव चल प्रकृति के पृथ्वी पर इधर उधर भ्रमण कर अपनी जीविका हेतु भोजन तलाश करके प्राप्त करते हैं जिसके कारण वह जीवित रह पाते हैं ।

वनस्पति अपने आप में सम्पूर्ण जीवन है उसे जीवों की तरह संसार में उपलब्ध रहने के लिए नर व मादा द्वारा मैथुन करके सन्तान उत्पन्न करने की आवश्यकता नहीं होती । वनस्पति बीज रूप में पृथ्वी की गोद में उत्पन्न होकर पोषण प्राप्त करके बढती है और समय समय पर अपने फलों द्वारा या अपनी मृत्यु से पूर्व बीज रूप में परिवर्तित हो जाती है जिससे वह वापस पृथ्वी की गोद में समाकर उत्पन्न हो सके । इस कार्य के लिए वनस्पति को किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती । इसलिए वनस्पति पृथ्वी पर अमर है ।

पृथ्वी पर जीवन उपलब्ध रहने के लिए वनस्पति वो मुख्य श्रोत है जिसके कारण संसार में जीवन धारा के दूसरे सदस्यों अर्थात जीवों को जीवन प्राप्त होता है । वैसे संसार के सभी जीवों का जीवन वनस्पति पर निर्भर नहीं होता परन्तु संसार के जीवन चक्र में वह वनस्पति के कारण ही जीवित रह पाते हैं । पृथ्वी पर वनस्पति जहाँ पर भी उत्पन्न होती है वह वायु, जल व उर्जा के अतिरिक्त मिटटी से कुछ पोषक तत्वों को प्राप्त करके अपना भोजन स्वयं उत्पादन करती है और अपने उत्पाद किए हुए भोजन से ही वनस्पति पोषित होकर बढती जाती है ।

वनस्पति को प्रथम उपभोक्ता के रूप में शाकाहारी जीव अपना आहार बनाते हैं जो उन्हें जीवन प्रदान करता है । द्वितीय उपभोक्ता वे माँसाहारी जीव होते हैं जो शाकाहारी जीवों को खाकर अपना जीवन चलते हैं तृतीय उपभोक्ता के रूप में विशाल भक्षणकारी जीव सभी जीवों को अपना आहार बनाते हैं यही संसार का जीवन चक्र है जिसमे यदि वनस्पति पृथ्वी पर समाप्त हो जाए तो शाकाहारी जीव भूख से मर जाएगें तो छोटे माँसाहारी और बड़े भक्षणकारी जीवों को भोजन प्राप्त नहीं होगा और वें सभी समाप्त हो जाएगें । इस जीवन चक्र से स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी पर यदि जीवन उपलब्ध रखना है तो वनस्पति का होना अनिवार्य है ।

इन्सान के अतिरिक्त संसार के सभी शाकाहारी जीव वनस्पति को अलग अलग प्रकार से अपना आहार बनाते हैं । कोई जीव पत्ते खाकर जीवित है तो कोई वनस्पति के फलों को अपना आहार बनाता है कोई फूलों से अपना जीवन चला रहा है कोई वृक्षों की लकड़ी को खा रहा है परन्तु सभी शाकाहारी जीव वनस्पति को प्राकृतिक रूप में ही अपना आहार बनाते हैं । इन्सान संसार का एकमात्र ऐसा प्राणी है जो वनस्पति से अपनी पसंद का आहार तलाश कर उसको अग्नि पर सेककर, भूनकर व तलकर और उसमे अन्य पदार्थों का मिश्रण करके अपने स्वाद के अनुसार भोज्य पदार्थों को प्राकृतिक रूप से विकृत करके भोजन करता है । भोजन को प्राकृतिक रूप से विकृत करके स्वादनुसार बनाने में पोषक तत्वों का नष्ट होकर नुकसान दायक बनने की क्रिया को इन्सान जान बूझकर अनदेखा करता है यही इन्सान की प्रवृति है ।

इन्सान द्वारा जिव्हा के स्वाद प्राप्ति के लिए भोजन में विकार उत्पन्न करके अपने शरीर में विभिन्न प्रकार की बिमारियों को उत्पन्न करके अपने जीवन को संकट में डालने की किर्या से बचाव करने का कार्य भी वनस्पति के द्वारा ही सम्पन्न होता है । वनस्पति से विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां प्राप्त करके उनसे इन्सान ने अपनी शरीरिक बिमारियों के निवारण हेतु दवाइयाँ तैयार करके अपना इलाज संभव कराया जिससे इन्सान के जीवन को संकट से उबरने में सहायता प्राप्त हुई । वनस्पति रहित भूमि और मरुस्थल भूमि पर अल्प वर्षा या वर्षा ना होने से प्रमाणित होता है कि पृथ्वी पर वर्षा होने का कारण भी वनस्पति ही है जिसके कारण संसार में समुद्री जल शोद्धित होकर जीवों के पीने के लिए उपलब्ध होता है । अधिक वृक्षों के कारण मिटटी कटाव और बाढ़ जैसी आपदाओं में भी राहत मिलना वनस्पति के द्वारा जीवों को जीवन प्रदान करना है ।

जिस वनस्पति के कारण पृथ्वी पर जीवन उपलब्ध है और सभी प्रकार के जीवों को भोजन और सुरक्षा प्राप्त होती है एंव जिस वनस्पति के समाप्त होने पर पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं करी जा सकती उस वनस्पति का इन्सान द्वारा शोषण करना और वनस्पति की उपेक्षा करना संसार के सभी जीवों के प्राण संकट में डालना है । पृथ्वी पर बढने वाली प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी वनस्पति को इन्सान द्वारा तहस नहस करना है , वृक्षों की अत्याधिक कटाई और उनको दोबारा उत्पन्न ना करना इन्सान को समय के साथ सबक सिखा सकता है। प्राकृति का अधिक शोषण उसे बदला लेने पर मजबूर करना है जिसका परिणाम भयंकर हो सकता है । इन्सान को यदि जीवन के प्रति एवं प्राकृति के प्रति अपनी वफादारी निभानी है तो उसे वनस्पति का सम्मान करना आवश्यक है तथा वनस्पति का पोषण करना भी आवश्यक है यदि कोई इन्सान वनस्पति का पोषण करने में असमर्थ है तो वह वनस्पति की रक्षा करके भी अपना कर्तव्य निभा सकता है  ।

जानवर

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

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वनस्पति के उपरांत जीवन धारा के दूसरे सदस्य प्राणी के रूप में इन्सान के अतिरिक्त जितने भी जीव हैं जानवर कहलाते हैं । प्राकृति की गोद में स्वयं पोषित निरीह प्राणी असंख्य प्रकार व आकार तथा भिन्न भिन्न जाति प्रजाति के सभी जानवर पृथ्वी को जीवन से शोभायमान करने वाले जिन्हें प्राकृति से उपहार स्वरूप भिन्न भिन्न प्रकार के गुण प्राप्त हैं । प्राकृति से प्राप्त गुणों के बलपर सभी जानवर सरलता पूर्वक संसार में अपना जीवन निर्वाह करने में सक्षम होते हैं । जन्म के उपरांत बगैर किसी प्रकार की सहायता के अपना कार्य भली भांति करने की क्षमता एंव मित्र व शत्रु की पहचान करना और अपनी रक्षा करना जानवरों की विकसित बुद्धि का परिचय पत्र है ।

स्तनपान से शुरू सभी कार्य जैसे भोजन प्राप्ति, चलना, दौड़ना, कूदना, तैरना, उड़ना व आक्रमण करना तथा आक्रमण से रक्षा करना जैसे कार्यों में सक्षमता एंव सन्तान उत्पन्न करके भली भांति सन्तान का पोषण करने तक के कार्यों को सफलता पूर्वक अंजाम देना जानवरों की विकसित बुद्धि का प्रमाण है । जानवर विकसित बुद्धि होने के पश्चात भी इन्सान जैसा बुद्धिमान नहीं हो सकता क्योंकि जानवर का मानसिक तंत्र सीमित कार्य कर सकता है । जानवर के मानसिक तंत्र में बुद्धि, मन तथा स्मरण शक्ति के अतिरिक्त इन्सान की तरह विवेक, कल्पना शक्ति, भवनाएँ और इच्छा शक्ति कार्यरत नहीं होते जिसके कारण जानवर इन्सान से पिछड़े हुए ही रहते हैं और इन्सान की तरह सभी प्रकार के कार्यों को अंजाम नहीं दे सकते । किसी प्रकार के निरंतर अभ्यास से कभी कभी कुछ जानवर सिखाए गए कार्य करने की कला में प्रवीणता प्राप्त कर लेते हैं ।

जानवरों को अपने गुणों तथा प्राकृति की समीपता के कारण होने वाली किसी भी प्रकार की प्राकृतिक दुर्घटनाओं का पूर्व आभाष सरलता से हो जाता है जिनका आभाष इन्सान को कदापि नहीं हो पाता । प्राकृति का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण जानवर में इन्सान की तरह विकारों का असंतुलन नहीं होता । पाँचों मुख्य विकार जानवरों में मौजूद होने के उपरांत भी संतुलित होते हैं जैसे जानवर सन्तान का मोह उसके विकसित होने तक करता है और सन्तान के पूर्ण विकास कर लेने के पश्चात वह स्वयं अपनी सन्तान का त्याग कर देता है ।

जानवरों में लोभ की सीमा निर्धारित होती है जैसे वह भोजन के समय किसी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करता तथा उदर पूर्ति के पश्चात किसी भी प्रकार के भोजन पर अपनी कोई प्रतिकिर्या प्रकट नहीं करता चाहे वह भोजन उसके कितना भी पसंदीदा प्रकार का हो । जानवर सन्तान उत्पन्न करने के लिए सम्भोग करता है परन्तु जानवर काम वासना की अग्नि से पीड़ित होकर इन्सान की तरह बलात्कार करने जैसे घिनौने कार्यों को नहीं करता तथा कोई भी जानवर इन्सान की तरह अप्राकृतिक सम्भोग करना और समलैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने जैसे घिनौने कार्यों को अंजाम नहीं देता ।

जानवर किसी खास गुण होने तथा शारीरिक बलिष्ठता होने के पश्चात भी अहंकार वश दूसरे प्राणियों को सताने अथवा उन्हें भयभीत करने जैसे मूर्खता पूर्ण कार्य नहीं करते । भयंकर से भयंकर जीव भी किसी कमजोर पर अपना शक्ति बल प्रदर्शित नहीं करता उसका आक्रमण तभी होता है जब वह भूखा हो । जानवर क्रोध वश किसी की हत्या करने जैसे कार्य नहीं करते वें किसी के सताने अथवा भयभीत करने पर ही अपना क्रोध दर्शाते हैं । जानवरों में संतुलित पांचों विकार मोह, लोभ, काम, क्रोध व अहंकार उनके जीवन निर्वाह के लिए निर्धारित प्राकृति की तरफ से प्राप्त हैं जिसका जानवर कोई अतिरिक्त उपयोग नहीं करते ।

समय के प्रति जागरूकता तथा प्राकृति के नियम पालन करना प्रत्येक जानवर का स्वभाविक गुण है जिसके कारण सभी जानवर समय पर सोना और भोर की अमृत बेला के निर्धारित समय पर जागना जैसे नियम का अनवरत पालन करते हैं । जानवर द्वारा अपने निर्धारित मौसम तथा समय पर सन्तान उत्पन्न करना उनके द्वारा प्राकृति के नियम पालन करने की जागरूकता को दर्शाते हैं । जानवरों के द्वारा प्राकृति के नियम पालन करना ही उनके स्वस्थ रहने का प्रमाण पत्र है जिन नियमों को इन्सान द्वारा अपेक्षा करने पर उन्हें विभिन्न प्रकार की बिमारियों की पीड़ा से गुजरना पड़ता है ।

जानवरों में प्यार व नफरत को पहचानने की अद्भुत शक्ति है सभी जानवर प्यार का बदला प्यार जताकर ही देते हैं और नफरत दिखाने पर दूर हट जाते हैं परन्तु इन्सान की तरह विश्वासघात करना जानवरों के स्वभाव में नहीं है जानवर ने इन्सान का बोझ उठाया और उसे अपनी सेवा से सभी प्रकार के सक्षम कार्यों में सहायता करके सुख प्रदान किया परन्तु इन्सान जानवर को गाली के रूप में प्रयोग करता है यही जानवर और इन्सान के मध्य अंतर है ।

इंसान

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

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पृथ्वी पर वनस्पति तथा जानवरों के उपरांत संसार का सबसे अद्भुत एंव महत्वपूर्ण एकमात्र प्राणी जिसने अपनी मानसिक शक्तियों के बल पर प्राकृति को अपनी इच्छा अनुसार रूप प्रदान किया उस प्राणी को इन्सान की संज्ञा दी जाती है । इन्सान पृथ्वी पर एकमात्र ऐसा प्राणी है जो जन्म के समय अत्यंत अल्प बुद्धि प्राणी है परन्तु इन्सान की बुद्धि में विकासशीलता की गति बहुत अधिक तीव्र होती है और इन्सान की बुद्धि के विकास करने की कोई अंतिम सीमा निर्धारित नहीं होती । इंसान का आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक का विकास करने का सफर अत्यंत रोचक है क्योंकि इन्सान ने इस संसार को ऐसा अद्भुत रूप प्रदान किया जिसकी कल्पना करना भी आश्चर्यजनक कार्य है ।

पृथ्वी पर आदिकाल के समय प्राकृति द्वारा प्रदान किये गए जीवन और जीवित रहने के मुख्य आधार वायु, जल, उर्जा तथा भोजन के अतिरिक्त कोई भी वस्तु उपलब्ध नहीं थी तब से लेकर वर्तमान समय तक इन्सान निरंतर प्रयास रत रहकर पृथ्वी को आधुनिक रूप प्रदान करने में लगा हुआ है । इन्सान द्वारा किये गए अनगिनत अविष्कार संसार का आधुनिकीकरण करने में इन्सान की सफलताओं की कहानियां प्रस्तुत करते हैं जिन्हें इन्सान ने अपने बुद्धि कोशल द्वारा प्राप्त किया । इन्सान का मानसिक तंत्र ऐसा अनोखा तंत्र है जिसके बल पर इन्सान किसी भी प्रकार के तथा कैसे भी कार्य को सफलता पूर्वक एवं सरलता से अंजाम दे सकता है ।

सर्व प्रथम इन्सान द्वारा अन्न उपजाने के कार्य करने से आरम्भ करते हुए घर बनाकर बस्तियों का निर्माण किया गया उसके पश्चात इन्सान ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भिन्न भिन्न प्रकार के साजो सामान एंव संसाधनों का निर्माण किया । पृथ्वी का सीना चीर कर उसमे से अनेकों प्रकार की धातुओं का खनन करना और प्राप्त धातुओं से वस्तुओं का निर्माण करना तथा पृथ्वी से भांति भांति के रसायनों को प्राप्त करना एवं उन रसायनों के द्वारा अपनी आवश्यकता अनुसार कार्य लेना इन्सान की मानसिक शक्ति का प्रमाण है । भौतिक संसाधनों के अतिरिक्त प्राकृति के रहस्यों की खोज करना भी इन्सान का आवश्यक कार्य रहा है ।

इन्सान द्वारा किये गए विभिन्न वस्तुओं के आविष्कारों के अतिरिक्त समाज बनाना तथा समाज के नियम बनाना एवं वार्तालाप के लिए भाषा निर्माण व शिक्षा पद्धति का निर्माण करने तथा प्राणियों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त करने और शरीरिक बिमारियों पर विजय प्राप्त करने जैसे महान एंव कठिन कार्यों को सफलता पूर्वक किया गया । ब्रह्मांड की रचना तथा उसके रहस्यों को खोजना एवं अन्य ग्रहों तक पहुंचना इन्सान द्वारा किये गए आश्चर्यजनक कार्य हैं । परन्तु जब एक वर्ग संसार को आधुनिक सामान से सजाने का कार्य कर रहा था तो कुछ इंसानों का वर्ग अन्य इंसानों को सताने व उन्हें भयभीत करके लूटने और उनपर अधिकार करके उन्हें अपनी शक्ति का अहसास कराने जैसे मूर्खतापूर्ण और अपराधिक कार्यों को अंजाम देने में लगा हुआ था ।

इंसान

इन्सान के अत्याचारों व अपराधों की कहानी भी आदिकाल से वर्तमान समय तक सफर करते हुए साथ साथ आधुनिकता ग्रहण किए हुए उपलब्ध है । बीते समय में अपराधिक प्रवृति के इन्सान सभ्य व भोले इंसानों को ढीटता पूर्वक सताते व लूटते थे उसका आधुनिकीकरण अवश्य हुआ है परन्तु वर्तमान में सताना व लूटना जारी है । चोरी जैसे कार्यों का नवीनीकरण करके साइबर क्राइम जैसे कार्य करना तथा झूठे वायदों से सामूहिक लूट को अंजाम देने के लिए कम्पनी बनाकर फंसाना आधुनिक प्रकार की लूट है ।

सभ्य समाज का ढोंग करने वाले इन्सान वर्तमान में भी कितने असभ्य तथा जंगली हैं इसका प्रमाण इन्सान द्वारा किये गए बलात्कार जैसे घिनौने व जघन्य अपराधों से प्रमाणित होता है जहाँ छोटी शिशु जैसी बालिकाओं से भी बलात्कार करने जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है । अप्राकृतिक सम्भोग व समलैंगिक सम्भोग करना और उसे कानूनी मान्यता प्रदान करने की वकालत करना इन्सान की मानसिकता दर्शाता है । जिस बलात्कार जैसे कार्य तथा अप्राकृतिक व समलैंगिक सम्भोग जैसे कृत्य को संसार के किसी भी जानवर द्वारा नहीं किया जाता ऐसे कृत्य करके इन्सान खुद को सभ्य साबित करने की कोशिश करता है । नशा करना और नशे के विभिन्न प्रकार के पदार्थों का निर्माण करना इन्सान की सभ्यता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं ।

कुछ इन्सान प्राकृति के सहारे लक्ष्य रहित जीवन व्यतीत करते हैं उनका जीवन शांति पूर्ण और संतोषी होता है । कुछ इन्सान जीवन में लक्ष्य निर्धारित करके लक्ष्य प्राप्ति के लिए पुरजोर कोशिश को अंजाम देते हैं उनका जीवन संघर्ष पूर्ण होता है । लक्ष्य प्राप्त हो अथवा ना हो संघर्ष करना ही लक्ष्य प्राप्ति का आधार है । कुछ इन्सान अपने जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते परन्तु प्राप्ति अधिक से अधिक करना चाहते हैं उनकी कामना संसार पर अधिकार करने के समान होती है ऐसे इंसानों का जीवन भटकाव के अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकता । इन्सान को सब्र ही शन्ति प्रदान करता है अथवा जीवन सिर्फ भटकने के लिए रह जाता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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