जीवन का सत्य

जीवन सत्यार्थ

  • दैनिक सुविचार
  • जीवन सत्यार्थ
  • Youtube
  • संपर्क करें

प्रशंसा

May 21, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

उत्तम कार्यों, प्रतिभा एवं महत्त्व का सकारात्मक अलंकृत वर्णन करना प्रशंसा कहलाती है । प्रशंसा श्रेष्ठता एवं प्रसन्नता का प्रतिक होती है क्योंकि प्रशंसा जिसके भी विषय में हो उसे श्रेष्ठ प्रमाणित करती है तथा उसको प्रसन्न करने का कार्य भी करती है । प्रशंसा वार्तालाप के वातावरण को खुशनुमा एवं सम्बन्धित इंसानों को खुशियाँ प्रदान करने का सबसे सरल साधन होता है । प्रशंसा करने के कई प्रकार होते हैं जैसे सामान्य प्रशंसा, अधिक प्रशंसा, वास्तविक प्रशंसा, झूटी प्रशंसा वगैरह । प्रशंसा का विशेष रूप भी होता है जिसे चापलूसी कहा जाता है ।

सामान्य प्रशंसा किसी के भी उत्तम कार्यों से प्रभावित होकर स्वयं इन्सान के मुँह से निकलने वाले प्रभावित मानसिकता के शब्द होते हैं । सामान्य प्रशंसा दैनिक जीवन की दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग है । धन्यवाद, वाह-वाह, बहुत अच्छे, अति सुंदर जैसे शब्द सामान्य प्रशंसा के सूचक होते हैं । अपने समीप के इंसानों एवं अपनों तथा मित्रों को प्रोत्साहित करने के लिए सामान्य प्रशंसा अत्यंत आवश्यक कार्य है इससे अच्छे कार्यों के प्रति उत्साह में वृद्धि होती है । इन्सान अपने उत्तम कार्यों की प्रशंसा सुनकर और अधिक उत्तम कार्य करने के लिए प्रेरित होता है । सामान्य प्रशंसा करना इन्सान के व्यवहार की श्रेष्ठता को भी प्रमाणित करती है क्योंकि अव्यवहारिक इन्सान कभी किसी की प्रशंसा नहीं करते ।

अधिक प्रशंसा उत्तम कार्यों एवं प्रतिभा तथा महत्व को अलंकृत करने का विषय है । अलंकृत अर्थात किसी भी वस्तु या विषय का श्रंगार करके अर्थात उसकी व्याख्या बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना होता है । अधिक प्रशंसा किसी को प्रसन्न करने के लिए करी जाती है ताकि उससे किसी प्रकार का कार्य सिद्ध करवाया जा सके अथवा उसे अपने पक्ष में किया जा सके । अधिक प्रशंसा प्रसन्न करके कार्य सिद्ध करने अर्थात स्वार्थ पूर्ति का सबसे सरल साधन होता है इसलिए अधिक प्रशंसा पर सचेत होकर समझ लेना आवश्यक होता है कि प्रशंसक किसी प्रकार का स्वार्थ सिद्ध करने का इच्छुक है ।

कार्य सम्पन्न होने के पश्चात ही वास्तविक होते हैं क्योंकि उनका परिणाम निर्धारित होता है जिसमे किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता । जिनका परिणाम निश्चित ना हो अथवा उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन किया जा सके उसे वास्तविक की श्रेणी में रखना नादानी होती है । वास्तविक प्रशंसा अर्थात किए हुए सराहनीय कार्यों की प्रशंसा करना। परीक्षा में उत्तीर्ण होना, प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करना, कोई महत्वपूर्ण कार्य करना, कोई सामाजिक कार्य करना, किसी की भलाई या सेवा करना वगैरह वास्तविक प्रशंसा के कार्य होते हैं । जो भी कार्य वास्तविक हो उसकी प्रशंसा करना वास्तविक प्रशंसा होती है । इन्सान के विचारों में सदैव परिवर्तन होता रहता है परन्तु श्रेष्ठ विचारों की प्रशंसा वास्तविक प्रशंसा ही होती है क्योंकि विचारों की श्रेष्ठता सत्य होती है जो कभी समाप्त नहीं होती चाहे विचार व्यक्त करने वाला इन्सान स्वयं भी उन विचारों पर किर्याशील ना हो ।

जिसका परिणाम अनिश्चित हो अथवा उसके परिणाम में किसी प्रकार का परिवर्तन किया जा सकता हो वह भ्रमित श्रेणी के विषय होते हैं । भ्रमित श्रेणी के विषय पर निर्णय लेकर विचार व्यक्त करना भ्रम या अफवाह फ़ैलाने अथवा झूट बोलने के समान होता है । अनिश्चित या भ्रमित विषय पर प्रशंसा करना झूटी प्रशंसा होती है तथा प्रशंसक सदैव झूटा कहलाता है । परीक्षा परिणाम घोषित होने से पूर्व परीक्षार्थी की प्रशंसा करना, प्रतियोगिता में विजय से पूर्व प्रतियोगी की प्रशंसा करना, भविष्य में होने वाले कार्यों प्रशंसा करना जैसी प्रशंसा झूटी प्रशंसा की श्रेणी में आती है । किसी के स्वभाव, व्यवहार, कार्यों, आचरण वगैरह की प्रशंसा करना भी झूटी प्रशंसा प्रमाणित हो सकती है क्योंकि इनमे सदैव परिवर्तन होता रहता है ।

प्रशंसा सदैव समय पर तथा आवश्यकता अनुसार करी जाती है जिसका कोई ना कोई कारण अवश्य होता है । किसी की अकारण या असमय बहुत अधिक तथा वास्तविक हो या झूटी प्रशंसा निरंतर करी जाती है वह चापलूसी कहलाती है । चापलूसी करने का कारण कभी स्पष्ट दिखाई नहीं देता परन्तु वास्तव में चापलूसी मूर्ख बनाकर कोई बड़ा स्वार्थ सिद्ध करने अथवा धोखा देने का प्रयास होता है । अपनी प्रशंसा सुनना सभी इंसानों को पसंद होता है परन्तु जो चापलूसों को पसंद करते हैं वह जीवन में धोखा अवश्य खाते हैं क्योंकि चापलूस की प्रशंसा से उनका विवेक कार्य करना बंद कर देता है जिसके कारण उनका अच्छाई-बुराई को समझने का ज्ञान प्रभावित हो जाता है ।

प्रशंसा सुनना एवं करना जीवन की आवश्यक किर्या है परन्तु कुछ तथ्यों को समझना आवश्यक है । सामान्य प्रशंसा इन्सान में उत्साह वृद्धि करने का कार्य करती है एवं महत्वपूर्ण कार्यों तथा प्रतिभा का विकास करने के लिए प्रेरित करती है । अपनों एवं मित्रों को प्रोत्साहित करने के लिए सामान्य प्रशंसा समय-समय पर करना आवश्यक है । अधिक प्रशंसा करने वाले का कार्य सिद्ध करवाने में सहायक होती है परन्तु सुनने वाले के लिए हानिकारक हो सकती है । प्रशंसा वास्तविक होने से प्रेरणादायक होती है एवं झूटी प्रशंसा मन को प्रसन्न अवश्य करती है परन्तु इन्सान को भ्रमित करके उसकी बुद्धि को प्रभावित करती है । चापलूसी करना शातिरों का प्रिय अस्त्र है जिसके प्रहार से इन्सान की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । प्रशंसा करने वाले से सुनने वाले को समझना अधिक आवश्यक है कि इस प्रशंसा का कारण क्या है क्योंकि प्रशंसा का प्रभाव करने वाले से अधिक सुनने वाले पर होता है । प्रशंसा सकारात्मक होने से लाभदायक तथा नकारात्मक होने से हानिकारक होती है ।

इन्सान सदैव दूसरों की प्रशंसा करता है जैसे धर्म के विषय में, साधू-संतों के विषय में, नेताओं, फ़िल्मी सितारों, खिलाडियों, प्रवक्ताओं, मित्रों एवं अनेक अन्य इंसानों के विषय में परन्तु अपने परिवार के सदस्यों से उनकी प्रशंसा करने में संकोच करता है । पति-पत्नी एक दूसरे की, सन्तान माँ बाप की, माँ बाप सन्तान की, भाई बहनें आपस में एक दूसरे की प्रशंसा करने से प्रेम एवं सेवा भाव में वृद्धि होती है तथा अच्छे कार्य करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है इसलिए आपसी ताल-मेल बनाए रखने के लिए आपस में प्रशंसा करना आवश्यक होता है ।

ख़ुशी

September 25, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

जब इन्सान किसी भी कारण वश सभी चिंताओं को त्यागकर मानसिक शांति एवं आनन्द का अनुभव करता है तथा आनन्द विभोर होकर मुस्कराता या हंसता है उसे ख़ुशी कहा जाता है । ख़ुशी ऐसा मानसिक अहसास है जो इन्सान के मन को प्रुफ्फलित कर देता है । ख़ुशी इन्सान के जीवन का सबसे सुखद पहलू है जिसकी तलाश में वह सम्पूर्ण जीवन प्रयासरत रहता है । ख़ुशी के कुछ पल भी जीवन के अनेक दुःख एवं समस्याओं की पीड़ा को भुलाने में सक्षम होते हैं अर्थात ख़ुशी इन्सान के जीवन में अमृत समान संजीवनी होती है । इन्सान अपने जीवन का प्रत्येक कर्म अधिक से अधिक खुशियाँ बटोरने के लिए करता है । अपनी ख़ुशी के लिए इन्सान किसी भी प्रकार का बुरा एवं अपराधिक कार्य करने से भी नहीं चूकते हैं । अपनी खुशियों के लिए दूसरों को सताना या उनका शोषण करना अथवा उन्हें धन या जीवन की हानि पहुँचाना इन्सान का सामान्य कर्म बन चुका है ।

ख़ुशी मुख्य दो प्रकार की होती है सांसारिक एवं मानसिक । सांसारिक अर्थात जो ख़ुशी इन्सान की जीवन शैली से संबधित होती है उन्हें सांसारिक ख़ुशी कहा जाता है । सांसारिक ख़ुशी संसार के सभी इंसानों की अभिलाषा में एक समान होती है जैसे धन, मकान, जायदाद, समृद्धि पाना एवं आमदनी के साधन बनाना तथा परिवार एवं समाज में सम्मान प्राप्त करना वगैरह । मानसिक ख़ुशी अधिकांश इंसानों में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है इनमें समानता होना कठिन है । इंसानों की भिन्न मानसिकता के कारण उनकी मानसिक शांति एवं आनन्द के आधार भी भिन्न होते हैं इसी कारण मानसिक ख़ुशी में विभिन्नता होना सामान्य कार्य है ।

इन्सान के भौतिक जीवन की आवश्यकताएँ अर्थात भोजन, वस्त्र, घर एवं घरेलू वस्तुएँ जमा करना सभी इंसानों के जीवन का लक्ष्य होता है । जब यह संसाधन आवश्यकता पूर्ति से अधिक जमा हो जाते हैं तो इन्सान अभिमान वश ख़ुशी का अनुभव करता है । संसार में इन्सान के जीवन निर्वाह से संबधित होने के कारण यह सांसारिक ख़ुशी कहलाती है । सांसारिक खुशियों का संबध इन्सान के कर्म से जुड़ा हुआ है इसलिए इन्सान कर्म एवं परिश्रम द्वारा इन्हें सफलता से प्राप्त कर सकता है । कभी-कभी इन्सान बहुत अधिक संसाधन जमा करने के पश्चात भी ख़ुशी का अनुभव नहीं कर पाता क्योंकि उसकी बेसब्र दृष्टि में सभी संसाधन अल्प दिखाई देते हैं । ऐसी स्थिति होने का कारण दूसरों के संसाधनों से अपनी तुलना करना है । सांसारिक ख़ुशी प्राप्त करने का मूलमंत्र सब्र करना है । जब तक अपनी वस्तुओं एवं संसाधनों को श्रेष्ठ ना समझा जाए तथा उनपर सब्र ना किया जाए वह सदा अल्प दिखाई देते रहेंगे एवं इन्सान अतृप्त रहेगा । अतृप्त इन्सान जीवन में कभी ख़ुशी का अनुभव नहीं कर सकता यह ही जीवन की वास्तविकता है ।

किसी भी कार्य से जब इन्सान मानसिक शांति एवं आनन्द का अनुभव करता है वह मानसिक ख़ुशी कहलाती है । मानसिक ख़ुशी प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार के संसाधन अथवा धन की आवश्यकता नहीं होती इन्सान अभाव में भी इस ख़ुशी का अनुभव कर सकता है । मानसिक ख़ुशी का मुख्य आधार मनोरंजन है जो किसी भी प्रकार के मनोरंजन के साधन द्वारा प्राप्त हो सकती है । मनोरंजन के अतिरिक्त मनोहर दृश्य, रमणीक स्थल, कोई सुंदर वस्तु अथवा किसी प्राणी की भाव भंगिमा भी मानसिक ख़ुशी प्रदान कर सकती है । कभी-कभी किसी इन्सान का सानिध्य अथवा उसकी वार्ता भी मानसिक ख़ुशी का श्रोत बन जाते हैं । इन्सान की मानसिकता जिस प्रकार की होती है उसे मानसिक ख़ुशी भी उसी प्रकार के कार्यों द्वारा प्राप्त होती है । शांत प्राकृति का इन्सान शांत वातावरण में, चंचल प्राकृति का इन्सान परिहास में तथा क्रूर प्रकृति का इन्सान क्रूरता के कार्यों से मानसिक ख़ुशी का अनुभव करता है ।

ख़ुशी प्राप्त करने के लिए उनका आधार एवं प्रकार समझना भी आवश्यक है क्योंकि कभी-कभी खुशियाँ हमारे समीप होती हैं परन्तु हम इन खुशियों से अनजान होते हैं । हम जीवन में अधिक से अधिक खुशियाँ अपने लिए एवं अपनों के लिए प्राप्त करना चाहते हैं परन्तु बड़ी ख़ुशी प्राप्त करने की चाह में छोटी-छोटी खुशियों को अनदेखा कर देते हैं । छोटी-छोटी खुशियों का आनन्द लेने से बड़ी ख़ुशी जैसी तृप्ति का अनुभव होता है । खुशियाँ समेटने में समय का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि कभी-कभी इन्सान बहुत सा धन जमा करने के चक्कर में इतनी आयु व्यतीत कर देता है कि उस धन का उपयोग ही समाप्त हो जाता है । अपनों को खुशियाँ प्रदान करने के प्रयास में कभी-कभी अपनों से इतना दूर हो जाते हैं कि अपने भी पराये समान हो जाते हैं । अपनों के साथ समय बिताने से वह अपने होते हैं परन्तु अपनों के साथ समय व्यतीत ना करने अथवा उनसे वार्तालाप ना करने या सिर्फ आवश्यक बातें करने से वह धीरे-धीरे अपनत्व खोकर पराये समान हो जाते हैं ।

ख़ुशी जिस प्रकार प्राप्त करी जाती है वह आनन्द भी उसी प्रकार का देती है । जो खुशियाँ अपने कर्म एवं परिश्रम द्वारा प्राप्त होती हैं वह सबसे श्रेष्ठ एवं स्थिर होती हैं । जो खुशियाँ विरासत में अथवा बिना परिश्रम भाग्य द्वारा प्राप्त होती हैं वह साधारण तथा अस्थिर होती हैं जो समय के साथ फीकी पड़ जाती हैं । दूसरों से छीनकर अथवा किसी प्रकार के अनुचित कार्य द्वारा प्राप्त ख़ुशी क्षणिक एवं भ्रमित करने वाली होती हैं । इन्सान जब किसी प्रकार के भ्रष्ट अथवा अपराधिक कार्यों द्वारा अपने लिए खुशियाँ समेटता है उन खुशियों के साथ भय भी चला आता है जो ख़ुशी से अधिक इन्सान को भयभीत रखता है । स्वयं खुश रहने के लिए दूसरों को खुश रखना आवश्यक है क्योंकि हम जो भी दूसरों को देते हैं वह ही हमें वापस प्राप्त होता है यही संसार का नियम है । सम्मान के बदले में सम्मान एवं गाली के बदले में गाली की वापसी करना इन्सान की मानसिकता है इसलिए अपने लिए जैसी वापसी चाहिए वैसा ही बाँटना श्रेष्ठ होता है । संसार में वास्तविक ख़ुशी वह है जो शुभ एवं श्रेष्ठ कार्यों द्वारा प्राप्त होती है क्योंकि इन्सान सबसे अधिक खुश उस समय होता है जब दूसरे उसके कार्यों की प्रशंसा करते हैं । संसार में श्रेष्ठ ख़ुशी वह है जो दूसरों को खुश रखकर प्राप्त होती है अन्यथा दूसरों से छुपाकर या उन्हें दुखी करके खुशियाँ मनाना ख़ुशी नहीं भ्रम होता है।

सद उपयोग

October 1, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी कार्य में स्वयं संलिप्त होना अथवा किसी वस्तु, विषय या प्राणी को कार्य में लगाना अथवा कार्य करवाना उसका उपयोग कहलाता है । जब किसी की पूर्ण क्षमता एवं प्रतिभा का उपयोग किया जाए अथवा जिस कार्य के लिए वह निर्मित हो या उपयुक्त हो उस कार्य में उपयोग किया जाए अथवा उसका किसी प्रकार से बेहतर उपयोग किया जाए तो वह सद उपयोग कहलाता है । उपयोग करना संसार का सामान्य कार्य है परन्तु सदुपयोग करना श्रेष्ठ कार्य होता है । सामान्य कार्य के परिणाम भी सामान्य होते हैं तथा जब कार्य श्रेष्ठ होता है तो परिणाम भी श्रेष्ठ ही होते हैं अर्थात सदुपयोग के परिणाम सदैव उत्तम एवं अतिरिक्त लाभकारी होते हैं । किसी वस्तु, विषय, प्राणी तथा स्वयं अपना भी उपयोग करना सभी साधारण इंसानों का कार्य है परन्तु महत्वाकांक्षी एवं बुद्धिमान सदैव सदुपयोग  द्वारा अतिरिक्त लाभ लेते हैं तथा अपने कार्यों की श्रेष्ठता के कारण सम्मान भी प्राप्त करते हैं ।

जीवन में उन्नति एवं सफलता प्राप्त करने के लिए सदुपयोग करने के तरीकों एवं उसके विषयों का ज्ञान होना भी आवश्यक है । सर्वप्रथम इन्सान को स्वयं अपना सदुपयोग करना आवश्यक है क्योंकि अपना सदुपयोग करना महत्वपूर्ण एवं सबसे सरल होता है । अपना सदुपयोग करने में मुख्य हैं अपना मानसिक सदुपयोग करना, अपने समय का सदुपयोग करना, अपनी शारीरिक क्षमता का सदुपयोग करना । स्वयं अपने सदुपयोग के साथ अपने धन, संसाधन एवं अपनी वस्तुओं का सदुपयोग करना भी आवश्यक होता है । अपना सदुपयोग करने के पश्चात इन्सान जब अपनों एवं मित्रों से किसी प्रकार की सहायता की अपेक्षा करता है तो वह अवश्य सफल होता है क्योंकि अपना सदुपयोग करने वाले इन्सान से प्रभावित होकर सभी उसका साथ देने के लिए तत्पर रहते हैं । संसार में कोई भी इन्सान किसी आलसी, नाकारा अथवा असफल इन्सान की सहायता करना कदापि पसंद नहीं करता ।

इन्सान के लिए सर्वाधिक श्रेष्ठ सदुपयोग मानसिक सदुपयोग होता है क्योंकि मानसिकता के बल पर इन्सान संसार का कोई भी कार्य करने में सक्षम होता है । मानसिक सदुपयोग करने के लिए बौद्धिक विकास होना भी आवश्यक है क्योंकि जितनी अधिक विकसित मानसिकता होगी उससे कार्य भी उतना ही श्रेष्ठ लिया जा सकता है । इन्सान जिस भी विषय में शिक्षित हो एवं कार्यरत हो उस विषय की ताजा जानकारियों को समय-समय पर ग्रहण करते रहने से ही विषय में अग्रणी बना जा सकता है । जानकारियां एकत्रित करके विवेक मंथन द्वारा गहराई ज्ञात करने एवं शोध करने से ही उन्नति संभव होती  है । मनोरंजन मानसिक एवं शारीरिक स्फूर्ति के लिए आवश्यक है परन्तु अधिक मनोरंजन बौद्धिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है इसलिए अवकाश में ही सीमित मनोरंजन करना उचित है । अन्य विषयों पर बहस करने से उत्तम अपने विषय पर जानकारियां जुटाने में बुद्धि का सदुपयोग करना ही सफलता प्रदान करता है ।

मानसिक सदुपयोग के साथ समय का सदुपयोग करना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि समय की बर्बादी जीवन की बर्बादी के समान होती है । जो समय व्यर्थ के विषयों पर बहस करके अथवा टेलीविजन या मोबाईल पर मनोरंजन करके बर्बाद किया जाता है उस समय का सदुपयोग अपने संबधित कार्य पर करने से अतिरिक्त लाभ एवं सफलता प्राप्त हो जाती है । अवकाश या रिक्त समय में अपने घरेलू कार्य निपटने से कार्य के समय बाधा उत्पन्न नहीं होती तथा समय का सदुपयोग भी हो जाता है । अन्य विषयों पर वार्तालाप करने से जानकारियां अवश्य प्राप्त होती हैं परन्तु उनका लाभ ना के बराबर होता है इसलिए अन्य विषयों पर अधिक समय बर्बाद करना नादानी होती है । समय का सदुपयोग करना समय का सम्मान करना है समय भी ऐसे इंसानों को कभी निराश नहीं करता उनका सम्मान एवं भविष्य सदैव उज्ज्वल रखता है ।

मानसिक एवं समय के साथ शारीरिक क्षमता का सदुपयोग करना भी आवश्यक है । शारीरिक क्षमता का अर्थ बलवान होना नहीं होता क्योंकि शारीरिक बल के कार्य बुद्धि द्वारा सरलता से निपट जाते हैं । शारीरिक क्षमता के लिए चुस्ती एवं फुर्ती होना आवश्यक है क्योंकि इन्सान जितना अधिक चुस्त एवं फुर्तीला होता है वह अपने कार्य उतनी ही शीघ्रता से सम्पूर्ण कर सकता है । आलसी या लापरवाह इन्सान अपने जीवन में कभी सफल नहीं होता क्योंकि वह अपनी बुद्धि, समय एवं शारीरिक क्षमता का सदुपयोग नहीं कर सकता । शारीरिक क्षमता में वृद्धि करने के लिए समय पर सोना, प्रातः जागना, टहलना, कसरत करना जैसे कार्य आवश्यक हैं तथा भोजन स्वाद अनुसार त्याग कर स्वास्थ्य अनुसार ग्रहण करने से शारीरिक क्षमताओं में सरलता से वृद्धि करी जा सकती है ।

संसार की किसी भी वस्तु का सदुपयोग करना कठिन नहीं है सिर्फ इच्छाशक्ति एवं बौद्धिक क्षमता होना आवश्यक है । सुई से लेकर हवाई जहाज तक अविष्कार करके श्रेष्ठ इंसानों ने सदुपयोग कैसे किया जाता है प्रमाणित किया है । घर के आंगन में फूल व घास लगाकर आंगन का उपयोग करने वाला यदि फल के वृक्ष एवं सब्जी की बेल लगा ले तो ताजे फल एवं सब्जी मुफ्त प्राप्त हो सकते हैं यह आंगन का सदुपयोग है । कूड़े कचरे का सदुपयोग करके बुद्धिमानों ने खाद बनाकर प्रमाणित किया है कि कचरे का भी सदुपयोग हो सकता है । कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं होती आवश्यकता सिर्फ सदुपयोग करने की है । धन की बर्बादी हानिकारक है तो कंजूसी भी अनुचित है धन का सदुपयोग करना ही सुखी एवं सम्मानित जीवन देता है ।

जीवन में अपना एवं अपनी वस्तुओं तथा धन का सदुपयोग करके साधारण इंसानों की श्रेणी से बाहर आकर जो इन्सान सदुपयोग का महत्व समझकर सदुपयोग करता है वह संसार में सुखी एवं सम्मानित जीवन निर्वाह करता है तथा श्रेष्ठ कहलाता है । अपने जीवन की कमियों पर अफ़सोस करने से उत्तम विचारों एवं समय का सदुपयोग करके उन कमियों को समाप्त करना है । जो कार्य दूसरे इन्सान कर सकते हैं वह कार्य हम भी कर सकते हैं यह इच्छाशक्ति रखने पर सभी कार्य सरल हो जाते हैं तथा इन्सान सफल भी अवश्य हो जाता है ।

अनुभव

October 9, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार 2 Comments

किसी समस्या या कार्य का सफल समाधान करने की प्रकिर्या की प्राप्त जानकारी को अनुभव कहा जाता है । अनुभव ऐसा ज्ञान है जिससे भविष्य में अनुभव से संबधित कोई समस्या या कार्य का समाधान करना हो तो उसका प्राप्त अनुभव द्वारा सरलता से निवारण किया जा सकता है । सभी इंसानों के जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याएँ समय-समय पर उत्पन्न होकर पीड़ित करती हैं जिनका अनुभव द्वारा समाधान करना सरल हो जाता है । कर्म के विषय से संबधित अनुभव इन्सान के जीवन में सर्वाधिक सहायक सिद्ध होते हैं क्योंकि अनुभवशाली इन्सान के अनुभव उसके जीवन निर्वाह को सरल एवं खुशहाल बना देते हैं ।

अनुभव एकत्रित करने के लिए उनके विषय में जानकारी होना भी आवश्यक है । अनुभवों की उत्पत्ति मुख्य दो प्रकार से होती है समस्याओं के समाधान करने पर तथा कर्म करने पर । अनुभव मुख्य दो प्रकार के होते हैं सामान्य अनुभव एवं महत्वपूर्ण अनुभव । अनुभव की प्राप्ति मुख्य तीन प्रकार से होती है = पुस्तकों एवं शिक्षा द्वारा, स्वयं किए गए संघर्षों द्वारा तथा समाज के अन्य अनुभवशाली इंसानों द्वारा समझाए जाने से ।

समस्या एवं कर्म दोनों ही अनुभव उत्पत्ति के आधार हैं परन्तु दोनों से उत्पन्न अनुभवों में बहुत अंतर होता है । जो अनुभव कर्म करने से उत्पन्न होते हैं वह शिक्षा के निरंतर अभ्यास एवं अपने विषय पर निरंतर कार्य करने अथवा कार्यों में कोई अतिरिक्त विशेषता उत्पन्न करने से प्राप्त होते हैं । कर्म से प्राप्त अनुभव अभ्यास करने से प्राप्त हों अथवा विशेषता या कोई अविष्कार करने से प्राप्त हों सभी जीवन में उन्नति एवं सम्मान प्रदान करते हैं । जो अनुभव समस्या निवारण से उत्पन्न होते हैं वह जीवन में किसी प्रकार की उन्नति नहीं करते परन्तु दोबारा वैसी समस्या उत्पन्न होने पर शीघ्र समाधान करने का कार्य करते हैं । जिस प्रकार की समस्या से अनुभव उत्पन्न होता है वह अनुभव दुबारा ऐसी समस्या उत्पन्न हो उसके लिए सतर्क भी करते हैं ।

जो अनुभव दैनिक कार्यों अथवा समस्याओं की घटनाओं से प्राप्त होते हैं वह सामान्य अनुभव होते हैं । सामान्य अनुभव दैनिक जीवन को सरल बनाने एवं सामान्य समस्याओं से संघर्ष करने के लिए आवश्यक होते हैं । महत्वपूर्ण घटना अथवा महत्वपूर्ण कार्यों द्वारा प्राप्त अनुभव महत्वपूर्ण अनुभव कहलाते हैं । महत्वपूर्ण अनुभव विशेष समस्याओं का निवारण करने तथा कर्म करने की विशेषता से प्राप्त अनुभव जीवन को प्रगतिशील करने में सक्षम होते हैं । सामान्य हों या महत्वपूर्ण अनुभव इनका सभी इंसानों के जीवन में महत्व होता है क्योंकि अनुभव इन्सान के लिए सदैव लाभदायक होते हैं इनसे हानि का कोई आधार नहीं होता ।

इन्सान के लिए अनुभव प्राप्त करने का प्रथम आधार पुस्तकें एवं शिक्षा है । पुस्तकें एवं शिक्षा इन्सान के बचपन से ही उसे अनुभव प्रदान करना आरम्भ कर देते हैं । महान दार्शनिकों एवं बुद्धिमानों के असंख्य अनुभव दोहे, मुहावरे एवं कहावतों के रूप में पुस्तकों द्वारा पढाए जाते हैं । पुस्तकों से प्राप्त अनुभव व्यर्थ की शिक्षा समझकर भुला दिए जाते हैं क्योंकि जिस आयु में यह अनुभव पढाए जाते हैं उस समय समस्या तथा कर्म से संघर्ष करने की आवश्यकता ही नहीं होती । अनुभव प्राप्ति का दूसरा आधार परिवार एवं समाज के बुजुर्ग एवं अनुभवशाली इन्सान होते हैं परन्तु उनके अनुभव व्यर्थ के प्रवचन समझकर ग्रहण नहीं किए जाते । अनुभव प्राप्ति का तीसरा एवं मुख्य आधार इन्सान स्वयं होता है जब वह संघर्ष करता है तो उसे जो भी अनुभव प्राप्त होते हैं वह सदैव स्मरण रखे जाते हैं इसीलिए उन्हें मुख्य माना जाता है ।

अनुभव इन्सान के जीवन की अमूल्य निधि है क्योंकि जिस समय अपने, मित्र, धन एवं समाज भी साथ नहीं देते केवल अपने अनुभव काम आते हैं । अनुभव अच्छाई एवं बुराई दोनों प्रकार के होते हैं तथा दोनों ही आवश्यक होते हैं । अच्छाई के अनुभव जीवन की प्रगति एवं समाज से जोड़ने का कार्य करते हैं तथा बुराई के अनुभव बुराई एवं बुरे इंसानों से रक्षा करने का कार्य करते हैं । अनुभव जीवन में समस्याओं से बचने एवं समाधान करने तथा धूर्त एवं शातिर इंसानों से रक्षा करने सभी के लिए आवश्यक होते हैं । धूर्त एवं शातिरों को पहचानने का अनुभव होने पर ही उनसे बचा जा सकता है । अनुभवशाली इन्सान किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने में पूर्ण सक्षम होता है ।

जीवन के लिए इतने उपयोगी होने पर भी अनुभव ग्रहण ना करना अथवा उन्हें व्यर्थ के दृष्टांत समझना मूर्खता होती है । कर्म एवं अपने कार्यों के विषय में अनुभव ना हों या कम हों तो अभाव एवं तिरस्कार का कारण बनते हैं । समस्याओं से रक्षा करने के अनुभव ना हों तो समस्याएँ घेर लेती हैं । इंसानों की परख करने के अनुभव अच्छे एवं बुरे इन्सान की परख करने के साथ धोखे एवं लूट से रक्षा करते हैं । जीवन समस्याग्रस्त होने पर मुसीबत सहन करने अथवा दूसरों से सलाह लेने से उत्तम अनुभव जब भी एवं जहाँ भी तथा जैसे भी प्राप्त हों ग्रहण करना एवं स्मरण रखना सुरक्षित तथा खुशहाल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं ।

« Previous Page
Next Page »

Recent Posts

  • बनावटी पर सुविचार
  • मन भटकने पर सुविचार
  • बोलने पर सुविचार
  • वृद्ध इंसानों पर सुविचार
  • प्रेम व गृहस्थी पर सुविचार

जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

Copyright © 2021 jeevankasatya.com