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पाखंड

June 18, 2014 By Amit Leave a Comment

pakhand

किसी निर्माण का आधार जिस पर वह स्थिर होता है पांव कहलाता है जैसे इन्सान का पैर जिस पर वह खड़ा होता है पांव यदि खंडित हो तो निर्माण का भविष्य निश्चित नहीं होता कि वह कब गिर जाएगा मात्र धोखा रह जाता है ऐसे विषय को पाखंड का नाम दिया गया है । पाखंड अर्थात जिसका पांव खंडित हो अर्थात झूट व धोखे की नींव पर विषय का निर्माण करना । समाज ने धर्म के विषय में या धर्म से सम्बन्धित विषय के झूटे, बेबुनियादी एवं धोखाधड़ी के प्रपंचों को पाखंड का नाम दिया है । धोखेबाजी का कार्य तो अनेक विषयों पर होता है जैसे रिश्तों में, मित्रता में, व्यापार वगैरह में परन्तु अनजानों से सर्वाधिक धोखा खाने का कारण धार्मिक विषयों में ही होता है । धर्म इन्सान की भावनाओं से सम्बन्धित विषय है जिसे इन्सान श्रद्धा व भक्ति से मानता है तथा भावनाओं से सम्बन्धित विषयों में इन्सान अधिकतर अपने विवेक का उपयोग नहीं करता सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लेता है जिसके कारण उसे धोखा देना सरल हो जाता है ।

संसार में शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा जिसके जीवन में कोई समस्या न हो । इन्सान के जीवन में अधिकतर समस्याओं के अम्बार लगे होते हैं । तरह तरह की समस्याएँ जैसे धन दौलत, शिक्षा, नौकरी, शादी, मकान, व्यापार, बीमारी, निसंतान होना, झगड़े, मुकदमे, वाहन तथा न जाने कितने प्रकार की समस्या इन्सान को घेर कर रखती हैं । समस्या निवारण के लिए कुछ इन्सान भरपूर संघर्ष करते हैं तथा अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त करते हैं । परन्तु कुछ इन्सान अपनी समस्याओं को हल करने का सरल व अद्भुत तरीका खोज लेते हैं जो उन्हें सीधा पाखंड की दुनिया में ले जाता है । जहाँ उपलब्ध पाखंडी दिव्य एवं चमत्कारिक मनघडंत किस्से सुनाकर तथा अपने चेलों द्वारा प्रमाणित करवाकर सरलता से मूर्ख बना लेते हैं । साधू संतों एवं तांत्रिकों के वेश में अद्भुत वस्तुओं एवं हाथ की सफाई द्वारा पाखंड रचने का कार्य धूर्त करते हैं ।

इन्सान सर्व प्रथम ईश्वर से सम्पर्क साध कर उसके आशीर्वाद द्वारा अपनी समस्याओं का निवारण करने का प्रयास करता है क्योंकि इन्सान अपनी समस्याओं का कारण भी ईश्वर को ही समझता है जिसके लिए वह मन्दिरों में पहुंचता है जहाँ ईश्वर के विभिन्न विभागों के अध्यक्ष मूर्ति के रूप में उपस्थित होते हैं । कोई धन का तो कोई शक्ति का तथा कोई वरदान देने का ईश्वरीय अध्यक्ष भिन्न भिन्न प्रकार के तथा अनोखे प्रकार के कार्य करने वाले होते हैं । जहाँ पर उन्हें पटाने के लिए दीपक जलाना, धूपबत्ती व अगरबत्ती जलाना, फूल चढ़ाना, भोग के लिए मीठा पदार्थ मुहं को लगाना, एवं कुछ रूपये या पैसे भी ब्याने के तौर पर देना तथा मन में अपनी समस्या का वर्णन कर उसके निवारण के लिए प्रार्थना करना । वैसे तो मन्दिरों में जाने से किसी की समस्याओं का समाधान नहीं होता यदि किसी की समस्या का अकस्मात कोई निवारण हो गया तो वह समाज में बखान करके आत्म विभोर होता है एवं अपनी बहुत सी दूसरी समस्याओं का बयाना अपने प्रिय देव के चरणों में समर्पित कर देता है तथा ईश्वरीय गुण गान कर पटाने में लग जाता है । पाखंड का आरम्भ धर्म स्थलों से ही होता है जहाँ धर्म शास्त्रियों के मध्य अनेकों धूर्त शिकार की ताक में घात लगाए बैठे रहते हैं । उसकी इस नादानी का वहाँ मौजूद धूर्त पूरा लाभ उठाते हैं एवं उसे भरपूर लूटते हैं ।

मन्दिरों में समस्या का समाधान ना होने पर इन्सान सीधा ईश्वर के दूत कहे जाने वाले तथा खुद को सिद्ध पुरुष बताने वाले पाखंडी इंसानों के पास पहुंच जाता है । महान व सिद्ध पुरुष कहलवाने वाले अपने चारों ओर के वातावरण में अपने खास साथियों के साथ मिल कर इस प्रकार का जाल बुनते हैं जिसमे आने वाला इन्सान फंसता चला जाता है और उसके निकलने की राह सरल नहीं होती । ये पाखंडी समस्याओं का समाधान करने के नाम पर उसका व उसके परिवार का पूर्ण शोषण करते हैं तथा उसकी बुद्धि के कपाट बंद करके उस पर अपनी छाप लगा देते हैं जिससे वह इन्सान उन पाखंडियों का गुण गान करता रहे । ईश्वरीय शक्ति एवं देवी देवताओं के प्रकोप का भय दिखाकर किसी भी साधारण एवं नादान इन्सान को लूटना सबसे सरल कार्य है । ईश्वरीय शक्ति एवं देवी देवताओं के प्रकोप से इन्सान सदैव आक्रांतित एवं भ्रमित रहा है इसलिए वह ऐसे प्रकोपों का भय दिखाकर यह पाखंडी सरलता से लूट लेते हैं । पाखंड की दुकान चलाने वाले लूट लूट कर इतने धनवान हो चुके हैं कि उनके विरुद्ध समाज में कोई जाने की हिम्मत नहीं करता । ये इन्सान को अजीब प्रकार से ईश्वरीय अफसाने सुना कर अलग अलग प्रकार के तंत्र मंत्र के चक्कर में उलझा देते हैं । ऐसे-ऐसे प्रलोभन शिकार को दिए जाते हैं ताकि लुटने वाले इन्सान को धैर्य बना रहे कि उसका कार्य सम्पन्न हने वाला है । इनके आशीर्वाद देने के तरीके भी अनोखे होते हैं जैसे कोई फूंक मार कर, कोई पीठ पर धोल जमा कर, कोई सिर पर चपत लगाकर तथा कोई सिर्फ हाथ उठा कर आशीर्वाद देता है । ये अपने मुख से कभी किसी से धन की मांग नहीं करते इनके चमचे गोदान, गौ ग्रास दान, भंडारा, सत्संग का सामान और भवन निर्माण के नाम पर चंदे के रूप में बहुत सा धन ऐंठ लेते हैं । यदि कोई इन्सान इनके चंगुल से बच निकलता है तो भी वह अपनी मूर्खता का वर्णन कभी समाज में नहीं करता ।

कुछ इन्सान ज्योतिष के चक्कर में पड जाते हैं टी वी चैनलों पर सुबह ज्योतिषी जी आकर बारह राशियों में करोड़ों इंसानों का भविष्य तय कर देते हैं जिनसे प्रभावित मनुष्य ज्योतिषियों के चक्कर लगाता है तथा नक्षत्र ज्ञान की जानकारी न होते हुए भी पाखंडी अच्छी प्रकार लूटते हैं । इन्सान के भविष्य वक्ता अपने भविष्य को सुधार कर मजे करते हैं और प्रार्थी हिसाब लगाता रहता है कि कब उसकी समस्याओं का निवारण होगा । कुछ इन्सान तांत्रिकों के चक्कर में उलझकर अपना समय एंव धन बर्बाद कर देते हैं इस विषय पर कुछ बाते इन्सान को समझनी अति आवश्यक हैं ।

१ = पाखंड का मूल आधार लोभ एवं स्वार्थ होता है क्योंकि पाखंड की रचना करने वाले लोभ एवं स्वार्थ वश पाखंड की व्यूह रचना करते हैं तथा पाखंड के शिकार भी सर्वाधिक लोभ एवं स्वार्थ के कारण फंसते हैं । दोनों पक्षों के लोभ एवं स्वार्थ में मात्र मानसिकता का अंतर होता है पाखंड रचने वाले धूर्त मानसिकता के होते हैं तथा पाखंड में फंसने वाले मूर्ख मानसिकता के होते हैं परन्तु लोभी एवं स्वार्थी दोनों पक्ष होते हैं । श्रद्धा एवं विश्वास इन्सान की धार्मिक प्रवृति का मूल आधार है परन्तु जब श्रद्धा अंधश्रद्धा एवं विश्वास अन्धविश्वास बन जाता है तो इन्सान सरलता से पाखंड का शिकार बन जाता है । अंधश्रद्धा एवं अन्धविश्वास इन्सान के विवेक को शून्य बना देते हैं जिसके कारण इन्सान पूर्ण रूप से असावधान हो जाता है तथा असावधानी सदैव धोखा खाने का कारण ही बनती है ।

२ = ईश्वर संसार में जीवन निर्माण तथा उसका पोषण व जीवन की समाप्ति के अतिरिक्त किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता तथा किसी का कार्य करना या बिगाड़ना एवं किसी को सताना यह ईश्वर के कार्य नहीं हैं । जिसका प्रमाण है कि संसार में इतना अनर्थ और पाप हो रहा है जिसमे प्राणियों की हत्या भी शामिल है यदि ईश्वर संसार के कार्य में हस्तक्षेप करता तो सर्वप्रथम हत्या पर रोक लगाता क्योंकि यह उसके दिए हुए जीवन को खंडित करना है जो ईश्वर से बगावत व उसका अपमान है । ईश्वर के अधिकार क्षेत्र से बाहर की वस्तुओं को माँगना व्यर्थ है क्योंकि धन, नौकरी, मकान, वाहन, संसाधन, मुकदमे, शिक्षा वगेरह ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है जो ईश्वर उन्हें प्रदान करेगा । ईश्वर से सद्बुद्धि मांगने से शायद लाभ हो सकता है ।

३ = निसंतान यह समझ कर ईश्वर की आराधना करता है कि उसके आशीर्वाद से संतान उत्पन्न होगी तो गलत सोच है क्योंकि यदि ईश्वर प्रसन्न होकर आशीर्वाद से सन्तान देता है तो दरिद्र पर कुछ अधिक प्रसन्न होता है । दरिद्र के घर में सन्तान की लाइन लगी होती है परन्तु खाने के लिए मासूम बच्चे तरसते हैं । यह कैसी ईश्वरीय प्रसन्नता व आशीर्वाद है जो जन्म का आशीर्वाद देगा परन्तु भोजन नहीं देगा ? खा-खाकर बढाई गई चर्बी के कारण सन्तान उत्पन्न नहीं होती इसका ईश्वर से कोई लेना देना नहीं है ।

४= महान व सिद्ध पुरुष कहलाने वालों के पास यदि कोई अद्भुत शक्ति होती तो वह नन्ही मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार होने और भूख से तरसते बच्चों को भोजन की प्राप्ति के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करता व आशीर्वाद देता । यदि यें सिद्ध पुरुष सामने पेश होकर गिडगिडाने से ही कार्य करते हैं तो यें अति अहंकारी हैं और अहंकारी कभी महान व सिद्ध पुरुष नहीं होता ।

५= तांत्रिकों के वेश में सिर्फ शातिर एंव कपटी इन्सान धूमते हैं जो अल्प शिक्षित तथा निष्कर्म व निक्कमे होते हैं जिनका कार्य नादान इंसानों को मूर्ख बना कर लूटना होता है किसी भी प्रकार की तांत्रिक विदध्या किसी भी इन्सान का कोई लाभ नहीं कर सकती अन्यथा तांत्रिक समाज में सबसे समृद्ध होते ।

संसार में अपनी समस्याओं को अपनी बुद्धि और बाहूबल से ही समाप्त किया जा सकता है । इन्सान को पाखंड में फंस कर अपने समय और धन का नाश करने से उचित है कि खुद पर विश्वास करना चाहिए । इन्सान का साहस, लगन और आत्म विस्वास ही सभी समस्याओं का निवारण है ।

भूत

June 22, 2014 By Amit Leave a Comment

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भूत अर्थात बीता हुआ जो समाप्त हो चुका हो यह संसार का सबसे अपवाद वाला विषय है क्योंकि किसी भी इन्सान के सामने इस विषय पर वार्ता शुरू होते ही उसने कभी भूत नहीं देखा फिर भी वह भूतों के विषय में ऐसे किस्से बखान करेगा कि लगेगा जैसे अभी भूत यहाँ आकर उनके बीच बैठने वाला है । संसार में इन्सान के रहने की जगह कम पड़ने के कारण इन्सान बहुमंजिला इमारतों में बस कर मुश्किल से गुजारा कर रहा है वहाँ भूत प्रेत जैसी चीजों के लिए रहने का स्थान तथा उनकी शरारतों के लिए सोचना किसी मजाक से कम नहीं होता । विज्ञान द्वारा भूत प्रेतों के अस्तित्व को नकारने के बाद भी समाज में इनके विषय को अलंकृत करके इनकी कहानियां बखान की जाती हैं यहाँ तक कि विदेशों में भी इनका वर्णन सुनने को मिलता है ।

भूतों पर सिनेमा उधोग कुछ अधिक ही मेहरबान है जो भूतों की शक्तियों का ऐसा रूप चित्रित कर पेश करता है कि देखने वालों के होश उड़ जाएँ । भूत प्रेत जैसी चीजों का संसार में अस्तित्व न होते हुए भी उन्हें इन्सान के दिमाग में वजूद मिलने का कारण इन्सान की मानसिक तंत्र की अद्भुत काल्पनिक शक्ति का होना है । इन्सान की सभी शक्तियों में कल्पना शक्ति वह अद्भुत शक्ति है जो अपने बल पर दूसरी दुनिया बसाने की ताकत रखती है क्योंकि कल्पना करते ही इन्सान का मानसिक तंत्र सभी इन्द्रियों को निषक्रिय कर उसके समक्ष ऐसी तस्वीर पेश करता है जैसे काल्पनिक विषय का दृश्य सामने प्रस्तुत हो एवं उसमें कल्पना करने वाले की सक्रिय भूमिका हो ।

बहुत से मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति का निरंतर एवं अधिक प्रयोग करते हैं जिसके कारण कल्पनाओं की वस्तु भी उन्हें यथार्थ में दिखाई देती हुई महसूस होती है तथा उनके इसी प्रयास के कारण मस्तिक में नकारात्मक उर्जाओं का संचालन अधिक मात्रा में होने लगता है जिससे इन्सान का आत्म विश्वास कमजोर पड़ने लगता है । ऐसे इन्सान का कभी किसी ऐसे स्थान पर जाना हो जाए जहाँ किसी नकारात्मक उर्जा का घनत्व अधिक हो तथा वह उर्जा उसके मस्तिक पर अपनी पकड़ बना ले तो शत प्रतिशत मानसिक संतुलन में गडबडी उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण मस्तिक का इन्द्रियों पर संतुलन नहीं रहता और वह अजीब प्रकार से हरकतें करने लगता है । पैरों पर संतुलन ना होने से लडखडाना, हाथों पर संतुलन ना होने से हाथापाई करना, जिव्हा पर संतुलन ना होने से बडबडाना, आँखों पर संतुलन ना होने से घूरना या दृष्टि घुमाना जैसे कारणों को देख कर परिवार व आस पास के इन्सान उसे भूत प्रेत की चपेट में आया जानकर विभिन्न प्रकार के उलटे सीधे उपचार शुरू कर देते हैं जिससे कभी कभी मरीज की मानसिक व्यवस्था भयंकर रूप से खराब हो जाती है । ऐसे मरीजों के उपचार हेतु बहुत से पंडित, मौलवी, तांत्रिक ताक लगा कर बैठे रहते हैं जो उनके उपचार के नाम पर अच्छी प्रकार मूर्ख बना कर लूटते हैं ।

कभी कभी नकारात्मक उर्जा से पीड़ित इन्सान किसी पंडित, मौलवी, तांत्रिक या किसी मन्दिर पर जाकर अकस्मात ठीक होने लगता है इसका कारण वहाँ उपलब्ध होने वाली सकारात्मक उर्जा होती है क्योंकि हवन सामग्री व अगरबत्ती, धूपबत्ती, लोबान, फूल, घी, वगैरह पदार्थों के अधिक उपयोग से वहाँ के वातावरण में सकारात्मक उर्जाओं का घनत्व अधिक मात्रा में बढ़ जाता है तथा ऐसी ही किसी उर्जा के प्रभाव से मरीज की नकारात्मक उर्जा का प्रभाव कम होने पर उसका मानसिक संतुलन सुधरने लगता है । मरीज के ठीक होने पर उसे भूत प्रेत से मुक्ति जानकर वहाँ पर मौजूद पंडित, मौलवी, तांत्रिक या उस मन्दिर को श्रेय दिया जाता है एंव उसके गुणगान कर समाज में भ्रान्ति फैलाई जाती है । समाज में फैली इन भ्रांतियों के कारण ही भूत प्रेत का अस्तित्व संसार में है ।

बचपन से ही भूतों के किस्से सुना कर तथा भूत के नाम से डराकर इन्सान को भ्रम में डाल दिया जाता है । बच्चे के दूध ना पीने या किसी वस्तु को ना खाने पर माँ उसे भूत के नाम से डराकर मनाती है । शरारत करने पर बच्चों को भूत के नाम से डराया जाता है जिसके कारण बच्चों के मन में भूत नाम की किसी वस्तु का होना व उन्हें नुकसान पहुंचाना जैसे विषय पनपते हैं जो उम्र के साथ बढकर डरावने हो जाते हैं तथा बकाया कार्य सिनेमा, समाज, मित्र व परिवार पूरा कर देता है जिससे भूत का डरावना आकार मस्तिक में बन जाता है । इन्सान सदैव भूतों को इंसानी भूत के रूप में ही देखता है उसे जानवरों का भूत कभी नहीं सताता तथा ईश्वर को सर्वव्यापक अर्थात सभी जगह मौजूद मानने वाला इन्सान भूत को ईश्वर से शक्तिशाली समझ कर अपनी नादानी का परिचय देता है ।

भूतों की पनाहगार समझे जाने वाले श्मशान में वहां के कार्य कर्ता व उनके परिवार तथा उनके बच्चों को यदि भूत नहीं सताते तो भूतों का कौन सा नुकसान हमने किया है जो हमे सताएगें । भूत एक भ्रम है जो इन्सान के कमजोर आत्म विश्वास व गलत धारणा का परिणाम है तथा किसी के मानसिक संतुलन में आए विकार को भूत समझना नादानी है । जैसे डर व कल्पना और नकारात्मक उर्जा से मानसिक संतुलन पर प्रभाव पड़ता है वैसे ही दृढ इच्छा शक्ति व रसायनों से प्राप्त सकारात्मक उर्जा द्वारा इलाज संभव होता है इसके लिए पाखंड से बचना आवश्यक है ।

शगुन अपशगुन

June 28, 2014 By Amit Leave a Comment

shagun apshagun

किसी कार्य हेतू जाने व उस कार्य के सफल अथवा असफल होने का कारण ज्ञात न करके यह हिसाब लगाया जाना कि किसका चेहरा देख कर कार्य पर निकल पड़े थे या किस चेहरे को देख कर कार्य की शुरुआत की थी जो यह कार्य सफल या असफल हुआ । यह सदियों पुरानी भारतीय परम्परा है जो हमेशा इन्सान को शगुन अपशगुन से जोडती है । भारत में शगुन-अपशगुन की इस रुढ़िवादी प्रथा को आधुनिक युग में भी खास स्थान प्राप्त है जो किसी भी कार्य की शुरुआत से लेकर समाप्ति तक मान्य होता है । घर से प्रस्थान करते समय किसी कार्य की विशेषता को ध्यान में रखकर उसके शुभ फल प्राप्ति के लिए दही व चीनी का चम्मच खाना यह समझा जाता है जैसे युद्ध में प्रलयकारी तोप दाग दी गई हो तथा अब इस कार्य को सफल होने में कोई शक्ति अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती यह तय माना जाता है ।

किसी इन्सान को प्रस्थान करते समय उसके पीठ पीछे से की गई पुकार अर्थात टोकना बहुत अशुभ समझा जाता है क्योंकि यह मान्यता है कि टोकने से कार्य सफल नहीं होते । व्यापारी अक्सर अपने व्यापार की सलामती के लिए तथा अपना व्यापार बुरी दृष्टि से बचाने के लिए अपनी दुकान अथवा कार्यालय के द्वार पर नींबू और मिर्ची धागे में बांध कर लटका देते हैं जिसमे उनकी यह मान्यता है कि इससे उनका व्यापार सुचारू रूप से संचालित रहेगा । इस नादानी वाली प्रथा से व्यापार चाहे चले अथवा ना चले परन्तु नींबू व मिर्ची के भाव अवश्य बढ़ जाते हैं तथा उनकी आपूर्ति में बाधा अवश्य उत्पन्न होती है क्योंकि प्रत्येक सप्ताह लाखों की तादाद में नींबू मिर्च सूखने के लिए द्वार पर लटका दिए जाते हैं जो किसी कार्य में नहीं आते ।

रास्ते में जाते समय यदि बिल्ली सामने से गुजर जाए तो उसे बिल्ली द्वारा रास्ता काटना माना जाता है एवं यह मान्यता है कि बिल्ली के द्वारा रास्ता काटने से कार्य तो असफल होंगे ही साथ में किसी दुर्घटना होने की आशंका भी प्रकट करी जाती है । इसलिए बहुत से इन्सान इसे अपशगुन मान कर रूक जाते हैं तथा किसी दूसरे इन्सान के वहां से गुजरने का इंतजार करते हैं जिससे उनपर आने वाली मुसीबत दूसरे पर टल जाए । भारतीय मान्यता के अनुसार दीपावली की रात्री में बिल्ली द्वारा गृह प्रवेश बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि लक्ष्मी बिल्ली के रूप में गृह प्रवेश करती है । क्या यह सोच मूर्खता पूर्ण है या बिल्ली के रास्ता काटने की सोच मूर्खता है ? दीपावली को शुभ होने वाली बिल्ली बाकि दिनों में मनहूस क्यों समझी जाती है ?

किसी इन्सान के द्वारा छींक मारने से दूसरे इन्सान का कार्य कैसे असफल हो जाता है यह रुढ़िवादी परम्परा को मानने वाले खुद भी नहीं जानते । किसी व्यापार के सफल ना होने व किसी बिमारी को अपशगुन वाली दृष्टि अर्थात बुरी नजर लगना माना जाता है एवं ख़ास तोर पर बच्चों के बीमार होने को किसी की बुरी नजर लगना समझ कर उसकी नजर उतारने के लिए विभिन्न प्रकार के टोटके आजमाए जाते हैं । अधिकतर बुरी नजर के लिए साबुत लाल मिर्च को बीमार के उपर से घुमा कर जलाया जाता है और मिर्च के जलने से होने वाली खांसी के हिसाब से नजर का प्रभाव हटने का हिसाब लगाया जाता है । तेल या घी में तड़का लगाने से मिर्च का खांसी करना असल में वसा के कणों का वातावरण में फैलने से खांसी होना है परन्तु सूखी मिर्च जलकर खांसी ना होने से ,नजर लगना, की सोच नादानी है।

ऐसे कितने ही प्रकार के शगुन अपशगुन के चक्करों से इन्सान घनचक्कर बन कर रह जाता है । यदि किसी इन्सान व उसके व्यापार अथवा कार्यों को बुरा देखने, सोचने, कहने से नुकसान पहुंचाया जा सकता तो राज नेता तो हस्पताल में ही बीमार पड़े रहते या उनकी श्मशान यात्रा निकल जाती क्योंकि प्रतिदिन लांखों जनता उन्हें व उनके बारे में बुरा बोलती, सोचती व देखती है । किसी का चेहरा देखकर कार्य असफल होना तथा उसे मनहूस समझना महा मूर्खता है क्योंकि उसका चेहरा मनहूस होता तो उसका परिवार कब का बर्बाद हो जाता । शगुन-अपशगुन के चक्कर में पड कर समय और धन का नाश करना नादानी है क्योंकि किसी के छींकने या टोकने व बुरी दृष्टि तथा बिल्ली से किसी कार्य की असफलता जुडी होती तो सभी इन्सान दुश्मनी निकालने के लिए बिल्ली पालते और छींकने, टोकने एवं घूरने की शिक्षा ग्रहण करते तथा दुश्मनों पर आजमाते ।

सफलता इन्सान की सकारात्मक सोच का परिणाम है तथा सफल होने के लिए आत्म विश्वास और दृढ इच्छा शक्ति का होना अनिवार्य है । शगुन अपशगुन को मानने वाले इंसानों की इच्छा शक्ति कमजोर व आत्म विश्वास सदा डगमगाता रहता है जिससे उनके विचारों में नकारात्मकता की अधिकता होती है । सफलता प्राप्त करने के लिए अपने मस्तिक को शांत व संतुलित करके नकारात्मक सोच को त्याग कर विचारों को दृढ बनाना तथा शगुन अपशगुन से पीछा छुड़ाना ही बुद्धिमानी है ।

तांत्रिक

July 5, 2014 By Amit Leave a Comment

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अपने कार्यों की असफलता एंव किसी विशेष समस्या से पीड़ित इन्सान जब ईश्वर एवं उसके प्रतिनिधियों व साधू संतों के कार्यों तथा आशीर्वादों से संतुष्ट नहीं हो पाता तो वह तांत्रिकों की शरण में पहुंचता है । हाथों में अजीब प्रकार की अनेक अंगूठियाँ व हाथ में लपेटी हुई कोई माला तथा गले में रुद्राक्ष व अनेक प्रकार की मालाएं एवं काले धागे में बंधे ताबीजों से शोभित इन्सान पहली दृष्टि में ही तांत्रिक के रूप में पहचाने जाते हैं । एक या अनेक नशा करने के कारण उनकी आखों में लालिमा छाई रहती है तथा ये सभी अल्प शिक्षित या अनपढ़ होते हैं जो पहले किसी अन्य तांत्रिक की शागिर्दी करते हुए उनकी कारगुजारियों को सीख कर पीड़ितों पर आजमाते हैं ।

आने वाले इन्सान को कुछ ऐसी बातें बताकर या कोई ऐसा कार्य दिखाकर आकर्षित करना इनका व्यवसाय है जिसके कारण आने वाले इन्हें चमत्कारी समझकर इनके जाल में फंस जाते हैं । इस कार्यवाही के लिए इनका जाल बहुत सुदृढ़ होता है जो किसी को भी मूर्ख बनाने के लिए काफी सशक्त होता है तथा भूत प्रेतों पर अधिकार करके उनसे कार्य करवाने वाली झूटी मन घडन्त कहानियाँ सुनकर आने वाला इन्सान सहमा हुआ एंव अंदर ही अंदर मन में भयभीत होते हुए चुपचाप उनकी कार्य शैली को ताकता रहता है । तांत्रिक जिस प्रकार भी मूर्ख बनाए उस पर टिप्पणी करने का साहस पीड़ित में कदापि नहीं होता ।

ईश्वरीय प्रतिनिधि व साधू संत साधारण मनुष्य को शास्त्रों की तथा धर्म की व्याख्या द्वारा फंसाते हैं इसके विपरीत तांत्रिक कुछ पदार्थों और रसायनों को अपनी धूनी में जला कर एवं ना समझ आने वाले वाक्यों के मंत्रों से हवन करके फंसाते हैं । पदार्थों तथा रसायनों के जलने की महक एवं वहां पर रखी हुई हड्डी या खोपड़ी व जानवरों के नाख़ून और खाल उसपर तांत्रिक की भयंकर आवाज वातावरण को रहस्यमय तथा डरावना बना देती है जिसका सीधा प्रभाव पीड़ित को कुंठित करने के लिए पूर्ण होता है । तांत्रिकों के पास आने वालों की समस्याएँ भी अजीब प्रकार की व मूर्खता पूर्ण होती हैं । जैसे किसी भूत प्रेत द्वारा सताए जाना, किसी जादू टोने की आशंका, किसी को टोने टोटके द्वारा नुकसान पहुंचाना, स्वप्न में भूतों से डरना, संतान प्राप्ति में बाधा, पुत्र रत्न की प्राप्ति, किसी मुकदमे से छुटकारा, किसी को मुकदमे में फंसाना, गवाहों को वश में करना, विवाह ना होने की समस्या, किसी अपने या पराए इन्सान के मस्तिक पर अधिकार प्राप्त करना वगैरह जैसी अद्भुत समस्याओं का निवारण इन तांत्रिकों के पास तलाशा जाता है ।

यथा राजा तथा प्रजा अर्थात जैसी समस्याएँ वैसा ही निवारण इन तांत्रिकों द्वारा होता है । किसी कागज के टुकड़े पर कुछ शब्द लिख कर उसका ताबीज बना कर धारण करने या उसे पानी में घोलकर पीने के लिए दिया जाता है, धूनी की राख को कागज में लपेट कर उसका ताबीज धारण करने या उस राख को शरीर पर लगाने अथवा चाटने को दी जाती है, किसी को लड्डू व कुछ पूजा की वस्तुओं तथा पैसों को चौराहे पर रखकर पूजने को कहा जाता है, किसी को श्मशान में चिताओं पर किसी वस्तु को चढ़ाने या दीपक जलाने जैसे उपाय बताए जाते हैं । किसी से पशु पक्षी या मुर्गे की बली या उनका लहू व शराब मंगाई जाती है, किसी से बच्चों या किसी स्त्री के बाल काटकर या कोई वस्त्र चुराकर लाने का फरमान सुनाया जाता है । कभी कभी कोई तांत्रिक तो किसी बच्चे की हत्या करने जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने से भी नहीं चूकते ।

तांत्रिक किसी भी प्रकार के घिनौने कार्य को अंजाम दे सकता है तथा इंसानियत को शर्मसार करने वाले कार्यों में समस्या का निवारण करवाने वाला चुपचाप इनका साथ देता है । तांत्रिकों के डरावने किस्सों और उनकी भयानक छवि से मन व बुद्धि इतनी प्रभावित हो जाती है की उनको मना करने या उनके विरुद्ध जाने का साहस पीड़ित में नहीं होता । तांत्रिकों के रकम ऐंठने या उनके द्वारा शोषण करने पर भी किसी को बताने का साहस भी पीड़ित में नहीं होती । तांत्रिक द्वारा वश में किए गए किसी भूत द्वारा उनके परिवार तथा उन्हें किसी प्रकार का अनिष्ट करने की आशंका सत्य बोलने से रोकती है । ऐसी कमजोरियों को जानते हुए ही तांत्रिक बने असमाजिक तत्व समाज का शोषण कर रहे हैं । हमारा सभ्य समाज इनकी करतूतों को जानते हुए भी इनके विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाता तथा इनके लिए कानून में भी कोई ख़ास पाबंदी नहीं है सिर्फ आवाज उठाने पर ही कार्यवाही करी जा सकती है । जबकि तांत्रिक अख़बारों में विज्ञापन द्वारा व पोस्टर एवं प्रचार द्वारा अपना व्यापार धडल्ले से चला रहे हैं ।

तांत्रिकों के पास फंसने वालों को यह समझना आवश्यक है कि संसार में भूत प्रेत जैसी कोई चीज नहीं होती यह सिर्फ मन का भ्रम मात्र है तथा तांत्रिक के पास अद्भुत शक्ति का होना या उसे ईश्वर से अधिक शक्तिशाली समझना नादानी है । तांत्रिक कुछ पाने की ललक में तंत्र साधना द्वारा ईश्वर को मनाने की कोशिश करता है तथा विफ़ल होने पर दूसरों को मूर्ख बनाकर लूटता है । यदि तांत्रिक के पास कोई शक्ति होती जिससे वह दूसरों की समस्या का निवारण कर सकता तो वह सबसे पहले अपना जीवन संवारता तथा अपने परिवार को सुखी व सम्मानित जीवन प्रदान करता । ईश्वर का भरोसा छोडकर ऐसे इंसानों द्वारा लुटना इन्सान में आत्म विस्वास की कमी व विवेक का अभाव होता है ऐसे इंसानों को तंत्रिकों से सचेत करना एंव तांत्रिकों के जाल फैलने से रोकना समाजिक कर्तव्य है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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