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बुद्धि

April 8, 2014 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

buddhi

   संसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण जीवन है तथा जीवन संचालन के लिए अनेकों प्रकार के कार्यों को करना आवश्यक होता है जिसके लिए पृथ्वी पर उपलब्ध प्रत्येक प्राणी आवश्यकता अनुसार कार्य करता है वह चाहे उदर पूर्ति हो अथवा सन्तान उत्पन्न करना सभी प्रकार के प्राणियों में इन्सान के अतिरिक्त यह कार्य करने से उनका जीवन निर्वाह हो जाता है । इन्सान संसार में एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसे अपने जीवन निर्वाह के लिए अनेकों प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं क्योंकि इन्सान स्वयं उपार्जन करके ही अपनी उदर पूर्ति करता है वह दूसरे प्राणियों की तरह प्राप्त भोजन से संतुष्ट नहीं हो सकता । सभी प्राणी अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करते हैं तथा कार्य संचालन सभी प्राणियों का मस्तिक करता है जिसमे उनका मानसिक तंत्र सक्रिय होकर उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करता है तथा कार्य सम्पन्न करवाता है । मानसिक तंत्र में विभिन्न प्रकार की किर्याएं होती हैं जिनको पृथक नामों से पुकारा जाता है जिनमे मस्तिक तंत्र की सर्व प्रथम तथा सर्वाधिक आवश्यक किर्या बुद्धि कहलाती है ।

संसार में इन्सान तथा अन्य प्राणियों के मानसिक तंत्र में अंतर होता है क्योंकि इन्सान का मानसिक तंत्र सात प्रकार की किर्याएँ करता है परन्तु अन्य प्राणियों का मानसिक तंत्र सिर्फ तीन प्रकार की किर्याएँ करता है । इन्सान के मानसिक तंत्र की सातों किर्याएं इस प्रकार हैं बुद्धि, मन, विवेक, कल्पना शक्ति, भावना शक्ति, इच्छा शक्ति तथा स्मरण शक्ति एंव अन्य प्राणियों के मस्तिक की तीन किर्याएं बुद्धि, मन तथा स्मरण शक्ति होती है क्योंकि अन्य प्राणियों का कल्पना, भावना, इच्छा शक्ति तथा विवेक से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिए उनका जीवन सीमित दायरे में व्यतीत होता है । इन्सान के अतिरिक्त सभी प्राणियों का मानसिक तंत्र जन्म के समय से ही पूर्ण विकसित होता है परन्तु इन्सान जन्म के समय अल्प बुद्धि तथा विकासशील मानसिक तंत्र वाला प्राणी है ।

इन्सान के जन्म के समय उसका मानसिक तंत्र अत्यंत अल्प कार्यरत होता है तथा उसमे सर्वप्रथम सक्रिय होने वाली किर्या बुद्धि होती है जिसका कार्य संसार की सभी जानकारियों को एकत्रित करना है । इन्सान का मस्तिक बुद्धि के द्वारा ही सभी प्रकार की जानकारियों को एकत्रित करता है तथा जानकारियां प्राप्त होने से ही मस्तिक का विकास आरम्भ होता है । बाल्यावस्था में बुद्धि तीव्रता से आस पास की सभी जानकारियों को एकत्रित करती है तथा समय के साथ बुद्धि की तीव्रता में गतिरोध उत्पन्न होने लगते हैं एंव बुद्धि द्वारा जानकारियों को एकत्रित करने की गति धीमी होने लगती है क्योंकि जानकारियां एकत्रित होने पर अन्य मानसिक शक्तियाँ सक्रिय होकर अपना अपना प्रभाव प्रदर्शित करने लगती हैं जिनसे प्रभावित होकर बुद्धि के कार्य में गतिरोध उत्पन्न होते हैं । मानसिक तंत्र की अन्य शक्तियों का उचित प्रकार से उपयोग ना किया जाए अथवा उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाए तो वें इन्सान की बुद्धि का कार्य लगभग समाप्त करके उसे भ्रष्ट कर देती हैं ।

आदिकाल में संसार सिर्फ वनस्पति तथा प्राणियों की शरण स्थली मात्र था उसे आधुनिक काल तक पहुँचाने एंव संवारने का श्रेय इन्सान को जाता है क्योंकि संसार की प्रत्येक वस्तु इन्सान द्वारा निर्मित है जिसे इन्सान ने समय समय पर आवश्यकता अनुसार अपने बुद्धि कौशल द्वारा प्राप्त किया है । इस ब्रह्मांड में इन्सान ने जल, थल तथा वायु मंडल सभी स्थानों पर अपना प्रभाव तथा अधिपत्य स्थापित करके स्वयं को संसार का निर्माण कर्ता प्रमाणित किया है संसार के सभी कार्य इन्सान के मस्तिक द्वारा ही सम्पन्न हो सके हैं । संसार में इन्सान ने आवश्यकता तथा अपनी कामनाओं के आधार पर नित्य नए से नए आविष्कारों को जन्म दिया है तथा पृथ्वी पर असंख्य प्रकार की वस्तुओं का निर्माण कर भौतिक सुखों का अम्बार लगा दिया है ।

किसी भी नये तथा अद्भुत कार्य को करने से पूर्व उसकी सभी प्रकार की जानकारियां एकत्रित करना अनिवार्य होता है तथा व्यतीत समय की जानकारियों में संशोधन करके भविष्य की आधुनिक वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है । प्रत्येक इन्सान सभी प्रकार की आनन्द प्रदान करने वाली वस्तुओं का आलिंगन प्राप्त करने की कामना करता है परन्तु किसी भी नवनिर्माण में सहायक बनने का साहस नही जुटा पाता । संसार में मात्र कुछ इंसानों के प्रयासों के कारण ही आधुनिक उपकरणों का निर्माण हुआ है तथा समय समय पर होता रहता है आविष्कारकों के अतिरिक्त सभी इन्सान सिर्फ उपकरणों का उपयोग करते हैं । आविष्कारक इन्सान भी साधारण श्रेणी से ही उत्पन्न होते हैं तथा इसी संसार में शिक्षा ग्रहण करके अपनी बुद्धि के बल पर चमत्कार करते हैं क्योंकि वें अपनी बुद्धि के विकास के समय किसी प्रकार की अन्य बातों पर ध्यान नहीं देते एंव अपनी मंजिल प्राप्ति के प्रयास में मग्न रहते हैं ।

जीवन निर्वाह के लिए आजीविका उपार्जन करना आवश्यक है तथा उपार्जन के लिए तीव्र बुद्धि की आवश्यकता होती है क्योंकि बुद्धि द्वारा जितनी अधिक जानकारियां एकत्रित होंगी मस्तिक उतनी ही तीव्र गति से कार्य करता है जिससे जीवन निर्वाह के कार्यों में सरलता उत्पन्न होती है परन्तु बुद्धि विकास के लिए शिक्षा प्राप्ति आवश्यक है । प्रत्येक कार्य का समय निर्धारित होता है जिस प्रकार भोजन, आराधना, निद्रा वगैरह सभी का समय निश्चित है उसी प्रकार बुद्धि विकास के लिए शिक्षा ग्रहण करने का समय बाल्यावस्था से यौवन अवस्था तक निर्धारित होता है वैसे इन्सान जीवन भर जानकारियां जुटाता है परन्तु सर्वाधिक बुद्धि विकास का उचित समय यही होता है । समय व्यतीत होने पर जीवन भर पश्चाताप से उचित होता है कि प्रत्येक समय बुद्धि के विकास का ध्यान रखना तथा नित्य नई जानकारियां एकत्रित करके संसार के निर्माण में सहायक बनने का प्रयास करना ।

बुद्धि मानसिक विकास एवं जीवन संचालन का मुख्य आधार है इसलिए जीवन सरल बनाने के लिए बुद्धि का सदैव किर्याशील होना अनिवार्य है । मानसिक विकास के कार्य में अवरोध उत्पन्न होने का कारण इन्सान का ध्यान भटकना होता है क्योंकि किसी जानकारी को प्राप्त करते समय एकाग्रचित ना होने से वह जानकारी स्मरण शक्ति द्वारा एकत्रित नहीं करी जाती क्योंकि स्मरण शक्ति एक समय पर एक ही कार्य करती है तथा अन्य किसी विघ्न के कारण स्मरण शक्ति कार्य करना बंद कर देती है इसलिए बुद्धि द्वारा जानकारी प्राप्त करते समय एकाग्रचित होना अत्यंत आवश्यक है । एक सशक्त बुद्धिमान इन्सान ही जीवन में अपनी अभिलाषाएँ पूर्ण करने में सक्षम होता है ।

मन

April 11, 2014 By Amit 2 Comments

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इन्सान के शरीर में मुख्य अंगों के संग पाँच मुख्य इन्द्रियां भी हैं जिनके द्वारा इन्सान को विभिन्न प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है तथा इन सभी को इंसानी मस्तिक के तंत्रिका तंत्र द्वारा संचालित किया जाता है एवं जब इन्सान का मानसिक तंत्र शरीर के अंगों तथा इन्द्रियों के आनन्द प्राप्ति अथवा इनसे प्रेरित होकर सक्रिय होता है वह मानसिक किर्या इन्सान का मन कहलाती है । मन मानसिक तंत्र की दूसरी किर्या है तथा मन के रूप में कार्य करते समय मानसिक तन्त्र बुद्धि द्वारा जानकारियां एकत्रित करने के स्थान पर इन्द्रियों तथा शरीर के लिए आनन्द प्राप्ति की किर्या में लिप्त रहता है । मन इन्सान के जीवन की सबसे जटिल पहेली होती है क्योंकि इन्सान को जीवन में सफलता एंव असफलता प्राप्त होने में मन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा मन की कार्यशैली को समझकर व उसपर अधिकार करके उचित संचालन द्वारा ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है ।

मन बाल्यावस्था में धीमी गति से किर्याशील होता है तथा समय के साथ मन की गति में तीव्रता उत्पन्न होती रहती है इसलिए अधिक तीव्र गति होने पर मन की गति को चंचलता का नाम दिया जाता है । मन की किर्या बुद्धि के विपरीत होती है क्योंकि बुद्धि का आरम्भ तीव्रता से होता है तथा समय के साथ गति धीमी होती रहती है क्योंकि मन की गति बुद्धि की तीव्र गति को मुख्य रूप से प्रभावित करती है अर्थात मन जितना अधिक तीव्र गति से दौड़ता है बुद्धि उतनी ही धीमी गति प्राप्त कर लेती है तथा मन की गति शांत होने पर बुद्धि की गति तीव्र हो जाती है । बुद्धि को गतिशील रखने के लिए मन पर अधिकार करके उसे शांत रखना आवश्यक है जिसे आरम्भ से ही अधिकार में करने से सफलता प्राप्त होती है यदि आरम्भ में ना रोका जाए व गति प्राप्त होने पर रोकने का प्रयास किया जाए तो मन पर अधिकार नहीं किया जा सकता अथवा मन हमेशा के लिए कुंठित अवस्था में पहुंच जाता है ।

मन सदैव एक जैसा प्रभाव नहीं रखता एवं सदा एक जैसा कार्य नहीं करता क्योंकि मन की अन्य किसी मानसिक शक्ति से युति होने पर मन का कार्य तथा प्रभाव दोनों में अंतर आ जाता है किसी भी मानसिक शक्ति की सकारात्मक तथा नकारात्मकता का प्रभाव भी मन के कार्यों में विभिन्न परिवर्तन उत्पन्न कर देता है । मन की स्थिति इन्द्रियों के साथ कार्यरत होने पर भी सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है जिनका परिणाम भी पृथक होता है । सकारात्मक प्रभाव में मन इन्द्रियों का उपयोग इस प्रकार करता है कानों द्वारा सत्संग सुनना, नासा द्वारा सुगंध, नेत्रों द्वारा मनोहर दृश्य, मुख द्वारा धार्मिक कथन तथा काम इन्द्रियों के वशीभूत किसी से प्रेम प्रदर्शित करना । मन का नकारात्मक प्रभाव कानों से अश्लील वाक्य सुनना पसंद करता है तथा नासा द्वारा नशे की दुर्गन्ध, नेत्रों द्वारा अश्लील दृश्य, मुख द्वारा अपशब्द तथा काम इंद्री के लिए बलात्कार जैसा घृणित कार्य होता है ।

मन का कल्पना शक्ति से सम्बन्ध यदि नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है तो इन्सान अन्य इंसानों को लूटने तथा भयंकर अपराधिक षडयंत्र की रुपरेखा अपनी कल्पनाओं द्वारा सक्रिय करता है । मन का प्रभाव सकारात्मक होने पर किसी अध्यात्मिक कार्य अथवा किसी अविष्कार को उत्पन्न करने की कल्पना को साकार करके समाज की भलाई करके समाज में प्रतिष्ठित होकर सम्मानित होने के कार्य करता है । भावना से नकारात्मक होने पर मन किसी के प्रति द्वेष रखना तथा उसका सर्वनाश करना एंव अपने प्रति भी किसी प्रकार का सम्मान प्राप्त करने के स्थान पर सदैव गलत कार्यों को अंजाम देता है । मन का भावना से सकारात्मक सम्बन्ध किसी को सुख प्रदान करने के लिए तन, मन, धन से उसपर न्यौछावर हो जाना जैसे कार्य करता है जिसका प्रमाण देश पर शहीद होने वाले जवानों ने प्रस्तुत किया है ।

बुद्धि से मन का सकारात्मक सम्बन्ध इन्सान को उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है तथा जीवन में बुलंदी प्राप्त करके समाज में सम्मानित तथा प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना तथा अपने परिवार को सम्मान प्राप्त करवाता है । नकारात्मक प्रभाव बुद्धि को भ्रमित करना मन का सर्वप्रथम कार्य है तथा मन के वशीभूत इन्सान अपना जीवन बर्बाद कर लेता है क्योंकि बुद्धि जीवन में प्रगति का द्वार है जिसके बंद होने पर जीवन का सर्वनाश निश्चित है । स्मरण शक्ति बुद्धि की जानकारियों को एकत्रित करती है जिस पर मन का नकारात्मक प्रभाव कोई भी जानकारी एकत्रित करने से वंचित करता है तथा सकारात्मक प्रभाव स्मरण शक्ति को एकाग्रचित होकर भंडारण में सहयोग प्रस्तुत करता है ।

मन का सबसे अधिक प्रभाव विवेक पर होता है क्योंकि मन के नकारात्मक प्रभाव में इन्सान अहंकारी हो जाता है तथा उसका विवेक जागृत नहीं होता व इन्सान अज्ञान के अँधेरे में जीवन व्यतीत करता है । मन की सकारात्मक उर्जा तथा एकाग्रता विवेक को जागृत करके उससे ज्ञान प्राप्ति का कार्य करवाती है । विवेक का मन के साथ सार्थक सम्बन्ध रखने वाले इंसानों ने ही संसार का निर्माण किया है जिसमे मन का इच्छा शक्ति के साथ सकारात्मक सम्बन्ध होना आवश्यक है क्योंकि इच्छा शक्ति कमजोर हो तो इन्सान ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लेता है परन्तु ज्ञान से उत्पन्न अविष्कारों को सार्थक करने के प्रयास नहीं कर सकता ।

मन इन्सान के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानसिक तंत्र है जिसके द्वारा इन्सान किसी भी प्रकार का कार्य करने में सक्षम हो सकता है क्योंकि मन यदि चंचल हो तो सम्पूर्ण मानसिक तंत्र किसी भी प्रकार के कार्य नहीं कर सकता तथा मन प्रेरणा श्रोत बनकर इन्सान से किसी भी प्रकार का तथा कैसा भी कार्य करवाने की क्षमता रखता है । जिन इंसानों ने संसार के महत्वपूर्ण अविष्कार किए वें सभी मन की प्रेरणा द्वारा ही सम्पन्न कर सके इसलिए मन को अधिकार में करके सार्थक प्रयास किये जा सकते हैं इसके लिए एकाग्रचित होना आवश्यक है । एक संतुलित तथा सकारात्मक किर्या का मन इन्सान को किसी भी बुलंदी पर पहुंचा सकता है ।

विवेक

April 11, 2014 By Amit Leave a Comment

vivek

इन्सान का मन किसी विषय अथवा वस्तु के रहस्य या सत्य को ज्ञात करने अथवा उसमे संशोधन करने या आवश्यकता वश किसी प्रकार का अविष्कार करने से प्रेरित होकर मानसिक तंत्र को सक्रिय करता है तब मानसिक तंत्र बुद्धि द्वारा एकत्रित जानकारियों से मंथन करके प्रेरित विषय पर किर्याशील होकर उसका समाधान करने का प्रयास करता है इस किर्या को इन्सान का विवेक कहा जाता है । विवेक मानसिक तंत्र की ऐसी किर्या है जिसमे किसी भी विषय की सत्यता ज्ञात करने तथा किसी प्रकार की वस्तु अथवा विषय की खोज का कार्य करने की क्षमता होती है । पृथ्वी पर आदिकाल से वर्तमान समय तक उपलब्ध सभी वस्तुओं के जो भी अविष्कार किए गए हैं तथा प्राप्त सम्पूर्ण ज्ञान संतों तथा दार्शनिक एंव महान विद्वानों द्वारा इन्सान को दिया गया तथा मानवता का मार्गदर्शन किया गया है सभी इन्सान के विवेक द्वारा संभव हो सका है ।

विवेक इन्सान को प्राकृति द्वारा प्राप्त अनुपम तथा अद्भुत उपहार है जिसके द्वारा किसी भी कठिन से कठिन कार्य का समाधान सरलता पूर्वक किया जा सकता है परन्तु विवेक का उचित प्रकार से प्रयोग करना भी आवश्यक है जिसके लिए विवेक की कार्यशैली की समीक्षा करना अनिवार्य है । मानसिक तंत्र द्वारा विवेक की किर्या अनेक प्रकार से कार्यरत होती है जिसमे मुख्य सकारात्मक तथा नकारात्मक एंव सुप्त अवस्था होती है । अन्य मानसिक शक्तियों के सम्पर्क से तथा उनके सम्बन्धों से प्रभाव में विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है एंव परिणाम भी सर्वदा पृथक ही प्रदर्शित होते हैं । अन्य इंसानों का सम्पर्क भी विवेक के कार्यों में अवरोध उत्पन्न कर सकता है अथवा विवेक की कार्यशैली में सुधार तथा कार्य क्षमता में वृद्धि कर सकता है ।

अधिकांश इन्सान अपने विवेक का कोई उपयोग नहीं करते जिसके कारण उनका विवेक सुप्त अवस्था में रहता है क्योंकि मानसिक तंत्र द्वारा गहन मंथन से ही विवेक किर्याशील होता है तथा जब तक विचारों का मंथन ना किया जाए विवेक सक्रिय नहीं होता । जो इन्सान सिर्फ उदर पूर्ति करने तथा जीवन निर्वाह के साधारण कार्यों के अतिरिक्त किसी प्रकार की अन्य सक्रियता समाज तथा जीवन के प्रति प्रदर्शित नहीं करते उनके विवेक में जागृति उत्पन्न होने की कोई आवश्यकता भी नहीं होती ऐसे इन्सान संसार में दरिद्र अथवा अत्याधिक मजबूर होते हैं तथा विवेक की सुप्त अवस्था के कारण इन्सान को अपने मान अपमान का भी ध्यान नहीं होता । विवेकहीन इंसानों की संकीर्ण मानसिकता का समाज का प्रत्येक इन्सान लाभ उठाता है तथा उन्हें अभाव पूर्ण जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर देता है ।

इन्सान की मानसिकता में विवेक की सकारात्मक भूमिका होने से वह शिक्षा प्राप्त करके विवेक द्वारा ज्ञान उत्पन्न करने का सार्थक प्रयास करता है यदि विवेक अल्प अवस्था में सक्रिय हो तो भी इन्सान समाज में सम्मान पूर्वक अपना जीवन सुख एंव शांति पूर्वक निर्वाह करता है । जिन इंसानों का विवेक सशक्त रूप से सकारात्मक किर्याशील होता है वें इन्सान अपने जीवन में किसी भी प्रकार की नई वस्तु का आविष्कार करते हैं अथवा समाज में अग्रणी रहकर समाज का मार्गदर्शन करते हैं तथा उचित प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं । सकारात्मक विवेक इन्सान में ज्ञान उत्पन्न करता है जिसको समाज द्वारा विद्वान, ज्ञानी अथवा बुद्धिमान माना जाता है तथा पूर्ण सशक्त विवेकशील इंसानों के कारण ही समाज विकास करता है ।

मानसिक तंत्र में नकारात्मक विवेक उत्पन्न होने से इन्सान बुद्धि की अल्प अवस्था में भी स्वयं को बुद्धिमान समझने लगता है तथा अहंकार वश अन्य इंसानों को मूर्ख समझकर उनसे बहस करना तथा उनका अपमान करना उसका स्वभाविक कार्य हो जाता है । इन्सान के विवेक की नकारात्मक किर्या सशक्त होने से वह अपराधिक कार्यों में लिप्त हो जाता है तथा नकारात्मकता जितनी अधिक सशक्त होती है वह उतना ही भयंकर अपराध करता है जिसमें साइबर क्राईम जैसे अपराध प्रमाण प्रस्तुत करते हैं जो शिक्षित तथा बुद्धिमान इंसानों द्वारा किए जाते हैं । विवेक की नकारात्मकता के प्रभाव से इन्सान सदैव अवैध प्रकार से अधिक से अधिक प्राप्त करने की कामना करता है तथा ऐसे अपराधी अपने विवेक का भरपूर प्रयोग करके किसी भी भयंकर अपराध को अंजाम दे सकते हैं तथा समाज को किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सकते हैं ।

विवेक का मन व बुद्धि के साथ सकारात्मक सम्बन्ध इन्सान में ज्ञान उत्पन्न करके उसे समाज का मार्गदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है तथा उसमे विषयों पर तर्क प्रस्तुत करने एंव अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की क्षमता उत्पन्न करता है । विवेक का मन व बुद्धि से नकारात्मक सम्बन्ध उसे खुदगर्ज एंव लोभी तथा तथा अहंकार वश बहस करने का स्वभाव उत्पन्न करता है । विवेक के साथ सभी मानसिक शक्तियाँ सकारात्मक होने से इन्सान प्रेम तथा त्याग की मूर्ति समान बन जाता है क्योंकि उसकी भावनाएँ तथा कल्पनाएँ उसे किसी के प्रति समर्पित होने पर बाध्य करती हैं । सभी मानसिक शक्तियाँ नकारात्मक होने पर इन्सान जालिम तथा दरिंदा बन जाता है एवं उसके मन में जिसके प्रति नफरत उत्पन्न हो जाए वह उसकी हत्या तक कर देता है जिसका प्रमाण आंतकवादी हैं जो अपना जीवन समाप्त करके भी मानवता का सर्वनाश करने का कार्य करते हैं ।

इन्सान का विवेक मानसिक तंत्र में विचारिक क्षमता में वृद्धि करके किसी भी विषय की गहराई से जाँच करने तथा उसकी समस्या का समाधान करने की शक्ति रखता है वह ज्ञान का विषय हो अथवा अज्ञान का । विवेक का उपयोग सभी प्रकार से किया जा सकता है परन्तु जीवन का उचित मार्गदर्शन करना विवेक द्वारा ही संभव हो सकता है । संसार में यदि मानवता के विकास के लिए अविष्कार हुए हैं तो विध्वंशक सामग्री का अविष्कार भी समय समय पर होता रहता है । इन्सान का विवेक उसे उचित मार्ग अवश्य दिखा सकता है परन्तु विवेक के उचित मार्गदर्शन हेतु किसी मार्गदर्शक विषय अथवा गुरु का होना भी आवश्यक है ।

कल्पना

July 20, 2014 By Amit Leave a Comment

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मानसिक तन्त्र जब किसी अप्रत्यक्ष एंव उपलब्ध ना हो सकने वाली वस्तु या किसी विषय का स्वयं चित्रण करके उसमे भ्रमण करता है और उसमे किर्या शील हो जाता है तो उसे इन्सान की कल्पना कहते हैं । कल्पना शक्ति इन्सान के मानसिक तन्त्र की सबसे अद्भुत एंव आलोकिक शक्ति है जो संसार के सभी जीव जन्तुओं से इन्सान को पृथक करती है । संसार के सभी जीव जन्तु किसी प्रत्यक्ष वस्तु को देख व समझ सकते हैं परन्तु उनकी बुद्धि किसी अप्रत्यक्ष वस्तु के विषय में समझने एवं कार्य करने की क्षमता नहीं रखती है । इन्सान कल्पना शक्ति के बल पर किसी भी प्रकार की वस्तु का चित्र अपने मस्तिक में तैयार कर सकता है तथा वह चाहे तो अपनी कल्पनाओं में परीलोक बना कर उसमे भ्रमण कर सकता है । इन्सान अपनी कल्पनाओं में संसार की किसी भी वस्तु को पल भर में बना व मिटा सकता है ।

इन्सान में कल्पना शक्ति दो प्रकार से कार्यरत होती है प्रथम = इन्सान अपनी इच्छा अनुसार कल्पनाएँ करके उनमे रंग भरता है तथा अपने मन की कामनाएँ अपनी कल्पनाओं में साकार करके शांति का अनुभव करता है परन्तु करी गई कल्पनाओं को जीवन में साकार करने का प्रयास नहीं करता । द्वितीय = इन्सान अपनी कल्पनाओं में किसी प्रकार का जीवन चित्र तैयार करता है तथा उसे जीवन में प्रत्यक्ष साकार करने का पूर्ण प्रयास करता है जिससे वह संसार में अपने लिए मन की कामनाओं के अनुसार अपना जीवन सक्रिय करने में सफल हो सके । यदि इन्सान की कल्पना किसी परीलोक में भ्रमण करने जैसी ना हो तो कल्पनाओं को साकार करने के प्रयास अधिकतर सफल होते हैं क्योंकि कल्पना इन्सान को प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करती है । बहुत से इंसानों ने अपनी कल्पनाओं को साकार करने के प्रयास में संसार को नये से नये अविष्कार प्रदान किए जिससे यह संसार आदिकाल से अपना सफर तय करते हुए वर्तमान आधुनिक काल में पहुंच सका है ।

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संसार को आधुनिक काल में लाने का श्रेय इन्सान की कल्पना को जाता है जिसमे बुद्धि, मन और विवेक का पूर्ण सहयोग भी शामिल है । बुद्धि, मन और विवेक किसी प्रत्यक्ष वस्तु को देख कर उसपर अपनी प्रकिर्या जाहिर कर सकते हैं तथा उसपर कार्य कर सकते हैं परन्तु किसी अप्रत्यक्ष तथा संसार में ना उपलब्ध हो सकने वाली वस्तु का चित्रण एंव उसका उपयोग कल्पना शक्ति द्वारा ही संभव है जिसे इन्सान ने आदिकाल में प्रयोग करना शुरू किया था । इन्सान आदिकाल में जंगलों में भटकने वाला प्राणी था जब उसे सबसे पहले अग्नि की प्राप्ति हुई और इन्सान ने अग्नि का उपयोग भोजन की वस्तुओं को भूनकर खाने के लिए किया तब उसे अनोखे स्वाद का अनुभव प्राप्त हुआ । स्वाद प्राप्ति की अभिलाषा ने इन्सान में कल्पना शक्ति को जन्म दिया तथा इन्सान ने स्वादिष्ट भोजन प्राप्ति की कल्पना को अंजाम देना आरम्भ किया । भोजन की वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए इन्सान द्वारा खेती करने की शुरुआत हुई तथा इन्सान ने अपनी कल्पनाओं से खेती के औजार के रूप में कुल्हाड़ी का अविष्कार किया। फसल ढ़ोने के लिए इन्सान द्वारा करी गई कल्पना से उसने पहिए बनाने और फसल रखने के लिए घर बनाने जैसे कार्य साकार करे तथा इंसानी कल्पनाओं को नए पंख लगते गए तत:पश्चात उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा एंव परिणाम में वह आधुनिक काल तक पहुंच सका ।

जैसे इन्सान की आकाश में उडान भरने की कल्पना को साकार करने का प्रमाण वायु यान है । घर बैठे संसार भ्रमण तथा पलभर में कहीं की जानकारी प्राप्त करने एंव किसी से पलभर में वार्तालाप जैसी कल्पनाओं का परिणाम टी वी, कम्प्यूटर, मोबाईल फोन, इंटरनेट जैसे उपकरण की प्राप्ति इन्सान की कल्पनाओं द्वारा संभव हो सकी है । उसी प्रकार इन्सान की दुष्टता पूर्ण कल्पनाओं का परिणाम भयंकर तथा जघन्य अपराध हैं जो इन्सान को किसी दरिन्दे के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनमे इन्सान चोरी, लूट, अपहरण, हत्या, बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम देता है । इन्सान की सबसे घिनौनी कल्पना समलैंगिक सम्बन्ध हैं जो प्राकृति के नियमों के विरुद्ध है तथा जिसे इन्सान समाज में नियमित करना चाहता है । बलात्कार एंव समलैंगिक सम्बन्ध इन्सान को संसार में सबसे नीच प्राणी होने का प्रमाण पत्र प्रदान करते हैं क्योंकि संसार के किसी भी जीव द्वारा यह कार्य नहीं किया जाता ।

इन्सान की कल्पना शक्ति इन्सान के जीवन को सभी प्रकार के रास्ते तय करने में सहायक होती है वह किसी भी ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है और जीवन को नर्क समान भी बना सकता है क्योंकि कल्पना किसी भी प्रकार की करी जा सकती है तथा उसे साकार भी किया जा सकता है । इन्सान कल्पना साकार करते समय अपने विवेक का प्रयोग करे तो वह उसे ऊंचाईयों को छूने में सहायता करता है तथा विवेक का त्याग कर सिर्फ मन पर आधारित होने से जीवन भटक कर कहीं भी जा सकता है । कल्पना करने में कोई खतरा नहीं होता साकार करने में सभी प्रकार की हानि या लाभ हो सकते हैं इसलिए साकार करने में विवेक की सबसे अधिक आवश्यकता होती है । कल्पनाओं में खोकर जीवन व्यतीत करना जीवन का सर्वनाश करना है क्योंकि कल्पना असत्य है और यथार्थ सत्य है । संतुलन होने से कल्पना इन्सान को कामयाब जीवन प्रदान करती है परन्तु जो इन्सान कल्पना नहीं करते या अपनी कल्पना को साकार करने का प्रयास नहीं करते वें संसार में पिछड़ कर रह जाते हैं ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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