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विद्या

April 11, 2014 By Amit Leave a Comment

vidya

किसी विषय या वस्तु की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करके उसे उचित प्रकार से संचालित करने का तरीका जान लेने को विद्या कहते हैं । संसार में असंख्य विषय एंव वस्तुएं हैं तथा सभी को जानने की अपनी विभिन्न प्रकार की विद्याएँ हैं जिस भी विषय की जानकारी प्राप्त करनी हो उसकी अपनी पृथक पुस्तक उपलब्ध होती है । इन्सान को संसार में जीवन यापन के लिए किसी विद्या का सीखना अनिवार्य होता है क्योंकि विद्या के बल पर ही इन्सान जिस विषय में पारंगत होता है उस विषय में कार्यरत होकर धन प्राप्त कर सकता है तथा धन के द्वारा ही जीवन जीने के संसाधन प्राप्त हो सकते हैं ।

जीवन में जितना आनन्द प्राप्त करने की कामना होती है उतना अधिक धन प्राप्त करना भी आवश्यक होता है घर, वाहन, संसाधन, साजो सामान सभी धन के द्वारा ही प्राप्त किये जा सकते हैं तथा धन प्राप्ति के दो प्रकार के साधन होते हैं । पहला साधन बुद्धि बल के द्वारा जिसे शिक्षा अर्थात विद्या प्राप्त करके उपार्जन किया जा सकता है तथा दूसरा शरीरिक बल द्वारा जो शरीरिक परिश्रम करके एकत्रित किया जा सकता है । शरीरिक बल के द्वारा मजदूरी करके सीमित आय प्राप्त होती है जो जीवन को व्यतीत करने में सीमित सुख ही प्रदान कर सकती है । परन्तु बुद्धि बल से आय प्राप्त करने की कोई निश्चित सीमा नहीं होती जितना अधिक बुद्धि का प्रयोग करो धन भी उतना ही अधिक प्राप्त होता है जो जीवन को आनन्द मय बना देता है ।

बुद्धि के विकास के लिए विद्याएँ प्राप्त करना आवश्यक है क्योंकि बिना विद्या बुद्धि विकास नहीं करती है । सिर्फ किसी पुस्तक को पढकर प्राप्त की गई विद्या से जीवन में उन्नति नहीं होती जब तक विषय की जड़ तक पहुंच कर उसकी पूर्ण जानकारी व उसका पूर्ण अनुभव प्राप्त न हो जाए तब तक कोई भी इन्सान उस विषय का विद्वान् नहीं कहलाता एंव उसे धन भी सीमित ही प्राप्त होता है । किसी भी विषय में महारथ हासिल करने पर उसका विशेषज्ञ बनकर बहुत अधिक मात्रा में सम्मान व धन प्राप्त होता है जो इन्सान विद्या प्राप्त कर कार्यरत होकर अपना जीवन सुचारू रूप से चला रहे हैं वें सभी साधारण मनुष्य की श्रेणी में आते हैं।

कुछ इंसानों ने एक से अधिक विद्याएँ प्राप्त कर उनके द्वारा विषयों की कार्यशैली में बदलाव कर उन्हें अग्रणी बनाया जिससे समाज ने उन्हें सम्मानित किया तथा वें संसार के लिए महत्वपूर्ण कहलाए । जो इन्सान विद्या को महत्वपूर्ण ना समझकर उसकी अनदेखी करते हैं उन्हें कुछ तथ्यों को जानना बहुत आवश्यक है । विद्या प्राप्त करने की समय सीमा होती है जिसकी अनदेखी करने पर जीवन भर पछताना पड़ता है क्योंकि समय व उम्र के पश्चात समाजिक शर्म भी विद्या प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है । विद्या प्राप्त के समय करी गई मस्ती इन्सान को सम्पूर्ण जीवन तडपाती है क्योंकि विद्या हीनता के कारण जीवन में आय और सम्मान दोनों ही अल्प मात्रा में प्राप्त होते हैं और जीवन यापन में कठिनाई उत्पन्न होती है ।

जीवन भर इन्सान विद्यार्थी रहता है उसे संसार में सीखने के लिए हमेशा कुछ नया प्राप्त होता है । आदिकाल से जितनी भी वस्तुएं हैं उनका निर्माण इन्सान द्वारा ही हुआ है तथा उन्ही वस्तुओं एंव उनसे सम्बन्धित विषयों की जानकारी व उनके अनुभव सविस्तार पुस्तकों से प्राप्त होते हैं जिन्हें विद्या के रूप में हम ग्रहण करते हैं । जिन पुस्तकों व वस्तुओं का निर्माण इंसानों ने किया उन्हें पढने और सीखने में हम क्यों पिछड़ रहे हैं इसका कारण ज्ञात करना आवश्यक है । विद्या प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होने का सबसे बड़ा कारण मन का भटकना है अर्थात एकाग्रता की कमी । जैसे पसंदीदा वार्तालाप या कोई कहानी या पसंद आने वाला चलचित्र सुनकर या देखकर याद रहता है उसी प्रकार विद्या प्राप्त करते समय यदि ध्यानपूर्वक पढ़ा जाए या सीखा जाए तो हमेशा के लिए याद हो जाता है ।

मन को शांत करके तथा विद्या का महत्व समझकर बुद्धि का प्रयोग किया जाए तो मस्तिक प्राप्त जानकारियों को सदा संभाल कर तथा एकत्रित करके रखता है । विद्या किसी भी प्रकार की हो सदा महत्वपूर्ण होती है उसको धन की कीमत से आंकना मूर्खता है । संसार में अनेकों प्रकार की विद्याएँ हैं जहाँ पर भी एंव जैसे भी प्राप्त हो विद्या ग्रहण करना सबसे उचित निर्णय होता है । जिन इंसानों ने विद्या को सम्मान दिया संसार ने उन इसानों को सदा सम्मान दिया है । वर्तमान समय में विद्या व्यापार की तरह मूल्य देकर प्राप्त होती है इसलिए जो विद्यार्थी शिक्षा प्राप्ति के समय आलस्य अथवा आनाकानी करता है वह उस मूर्ख की तरह है जो बाजार से मूल्य देकर भी सामान लेकर नहीं आता ।

ज्ञान

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

gyan

मन की प्रेरणा से किसी विषय या वस्तु की सत्यता को परखने की अभिलाषा में बुद्धि की प्राप्त जानकारीयों को एकत्रित कर विचारों का मंथन करने से मानसिकता विवेक के रूप में उस विषय या वस्तु की गहराई से जांच करके उसकी सत्यता को प्रकट करती है वह ज्ञान है । ज्ञान की उत्पत्ति विवेक के द्वारा होती है परन्तु ज्ञान को सरलता पूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता उसके लिए बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की क्षमता व मन पर अधिकार करके इन्द्रीओं को वश में करना और दृढ इच्छा शक्ति एंव भरपूर आत्म विश्वास का होना आवश्यक है । कमजोर मन प्रेरणा या कामना का श्रोत हो सकता है परन्तु इन्द्रीओं के वशीभूत होकर उन्हें आनन्द प्राप्त करवाने की सोच उसे किसी भी कार्य करने में बाधा उत्पन्न करती है यह चंचलता त्याग करने पर ही मन स्थिर होता है तथा विवेक से सहयोग के लिए कार्य करता है ।

आत्म विश्वास की कमी होने पर इन्सान किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकता क्योंकि कमजोर इच्छा शक्ति उसे अपने कार्यों की सफलता में बाधक होती है । बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की भावना से ही इन्सान विद्या के पीछे भागता है जिससे बौधिक स्तर विकास करता है जिसके लिए इच्छा शक्ति का दृढ होना अनिवार्य है जिससे ज्ञान प्राप्त करना सरल हो जाता है । संसार का निर्माण और उसकी साज सज्जा एंव सभी प्रकार की सुख सुविधाएं इन्सान के ज्ञान द्वारा ही उपलब्ध हुई हैं । संसार को आदिकाल से निकाल कर उसे आधुनिक बनाने का कार्य इन्सान के ज्ञान से ही संभव हुआ है ।

इन्सान ने प्रथ्वी का सीना चीर कर उसमे से अनेक धातुओं को प्राप्त किया तथा सभी प्रकार के पदार्थ एंव रसायन प्राप्त किए जिनके द्वारा वह विभिन्न प्रकार के अविष्कार करके इस संसार को नया रूप दे सका । एक सदी पूर्व ही इलैक्ट्रानिक उपकरण तथा मोबाईल फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वायुयान, टी वी, वाहन वगैरह सभी परीलोक की कथाओं से अधिक नहीं थे । जिन वस्तुओं का साधारण जीवन में उपयोग करते हैं वे सभी पहले इन्सान की सोच से बाहर थी । इन सभी उपकरणों व संसाधनों को इन्सान ने अपने ज्ञान से प्राप्त किया है । इन वस्तुओं एंव उपकरणों व संसाधनों का प्रकृति से कोई लेना देना नहीं है । इन्सान ने संसार में अपने ज्ञान द्वारा असंभव को संभव कर दिखाया इसलिए इन्सान को संसार का निर्माता कहना गलत नहीं होगा ।

जिस ज्ञान के द्वारा इन्सान सभी कार्यों को अंजाम देता है वह सभी इन्सान प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति ने मस्तिक के निर्माण में किसी भी इन्सान में अंतर नहीं किया । जब दूसरे इन्सान अपने ज्ञान का विस्तार करके आविष्कारों को अंजाम दे सकते हैं तो जो सिर्फ बैठ कर उनकी उपलब्धिओं को देखते हैं या उनका वर्णन करते हैं उन्हें यह ज्ञान प्राप्त क्यों नहीं हो सकता । इसका कारण लाचारी से देख कर खुद को असहाय समझने वाले इंसानों की सोच का है जो ज्ञान को पुस्तकों या शिक्षकों के पास तलाश करते हैं क्योंकि ज्ञान सिर्फ पुस्तक से प्राप्त होने वाला विषय नहीं है यदि पुस्तकों के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता जिसे पढ़कर नए अविष्कार किए जा सकते तो लेखक स्वयं अविष्कार करके संसार में सम्मान प्राप्त कर लेता । पुस्तक अविष्कार के बाद लिखी जाती है तथा पुस्तकों से सिर्फ विद्या प्राप्त होती है जो ज्ञान प्राप्त करने में सहायक की भूमिका निभाती है । ज्ञान प्राप्त करने के लिए मन की प्रेरणा, बुद्धि की जानकारियाँ एंव विवेक का मंथन आवश्यक होता है जितना विश्वास शिक्षकों पर करके ज्ञान की खोज में इन्सान भटकता है यदि अपने विवेक पर विश्वास करे तो परिणाम अच्छे निकलते हैं ।

धर्म शास्त्री या ईश्वर भक्ति से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता विवेक द्वारा विचारों के मंथन से ज्ञान की प्राप्ति होती है ज्ञान किसी भी प्रकार का हो वह सदा निर्माता होता है फिर वह चाहे मशीनों पर हो या जीवों, ग्रहों, ईश्वर या रसायनों वगैरह पर हो । सभी प्रकार का ज्ञान संसार को नई रोशनी प्रदान करता है । ज्ञानी इंसानों ने सृष्टि की खोज करके उसके रहस्यों का पता लगाया । ज्ञान के द्वारा इन्सान सृष्टि के कण कण की खोज में लगा हुआ है तथा उससे प्राप्त पदार्थों का प्रयोग करके नए रास्ते तलाश कर रहा है । इस तलाश और नव निर्माण में सहायक होने वालों को संसार सदा सम्मान देता है यदि कोई अपने ज्ञान से संसार की सेवा करेगा तो इंसानियत उसका सम्मान करेगी और उसे प्रणाम करेगी ।

सीख

July 26, 2014 By Amit Leave a Comment

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जीवन की किसी महत्वपूर्ण घटना के घटित होने पर उसके अनुभव से प्राप्त तथा किसी इन्सान के ज्ञान से उत्पन्न अनुभव से जीवन में होने वाली मुश्किलों एंव अपराधिक घटनाओं के प्रति सावधान करने की अग्रिम चेतावनी पूर्ण जानकारी को सीख कहा जाता है । सीख इन्सान के लिए ऐसी शिक्षा है जिसे पुस्तकों में पढकर प्राप्त किया जा सकता है तथा यह प्रतिपल समाज के दूसरे इंसानों, परिवार के सदस्यों, सम्बन्धियों और मित्र गणों के द्वारा सरलता पूर्वक मुहावरों, दोहे और कहावतों के रूप में भी प्राप्त हो जाती है । सीख से प्राप्त होने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों के बल पर कोई भी इन्सान जीवन की मुश्किलों तथा अपराधिक गतिविधियों से सावधान रहकर सफलता पूर्वक अपना बचाव कर सकता है तथा अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सकता है ।

इन्सान के जीवन के लिए इतना महत्वपूर्ण होने के पश्चात भी यदि कोई इन्सान सीख को पढकर, देखकर, सुनकर भी उसका उपयोग नहीं कर पाता तो उसे कुछ तथ्यों को समझना आवश्यक होता है । कोई भी शिक्षा सर्व प्रथम देखी , सुनी तथा पढ़ी जाती है उसके पश्चात उसे समझना आवश्यक होता है क्योंकि समझने पर ही शिक्षा का सही अर्थ प्राप्त होता है परन्तु उसका फायदा उठाने के लिए सिर्फ समझना ही सम्पूर्ण कार्य नहीं होता उसको गुणना भी आवश्यक होता है । गुणना अर्थात अपने जीवन में धारण करके उसे किर्या शील करना । गुणने पर सीख इन्सान के जीवन की राहों में मार्गदर्शक का कार्य करती है एंव इन्सान के जीवन में सुरक्षा कवच की तरह उसकी रक्षा करती है तथा शातिर इंसानों के फरेब से पूर्ण रक्षा करती है ।

किसी इन्सान के द्वारा किसी पदार्थ से होने वाले नुकसान के कारण उसे खाने से मना करने की सीख ना मानकर जो इन्सान उस पदार्थ को खाकर पेट दर्द की तकलीफ तथा बीमारी से गुजरता है वह यदि सीख मान लेता तो उसे कोई कष्ट नहीं होता । सिगरेट की डब्बी पर लिखी उसके बारे में चेतावनी व शराब की बोतल पर लिखी चेतावनी तथा इसी प्रकार खाने की वस्तुओं और पदार्थों से होने वाले नुकसान को ना मानकर इन्सान बिमारियों का आलिंगन करके अपने जीवन को संकट में डाल लेता है । यदि इन्सान भोजन के पदार्थों के बारे में लिखी गई अथवा कही गई सीख मान लें तो संसार से अधिकतर बीमारियाँ समाप्त हो सकती हैं एंव इन्सान स्वास्थ्य पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है ।

समाज में कोई इन्सान अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने से पूर्व अपराध के अंजाम को देखकर या समझकर तथा समाजिक सीख एंव अपराध के दंड से उसपर तथा उसके परिवार पर होने वाले प्रभाव को भली भांति समझ ले तो संसार से अपराध करने की घटनाएँ लगभग समाप्त हो सकती हैं ।  परन्तु सभी अपराधी अपनी बुद्धि को कानून तथा समाज से महत्वपूर्ण मान कर अपने अपराधों को अंजाम देते हैं जो उनका अहंकार और अल्प बुद्धि का परिचय होता है ।

इन्सान के स्वभाव के अनुसार किसी भी विषय या वस्तु की प्राप्ति सरलता पूर्वक होने एंव मुफ्त या सस्ते में प्राप्त होने से वह उसे घटिया तथा व्यर्थ की वस्तु समझकर उसका त्याग कर देता है । इन्सान की दृष्टि में कठिनाई से प्राप्त होने वाली एंव कीमती वस्तु या विषय महत्वपूर्ण होता है चाहे वह विष ही क्यों ना हो । इसलिए मुफ्त में प्राप्त होने वाली सीख का मुल्यांकन वह अपने इसी दृष्टिकोण से करता है तथा सीख को इंसानी कहावत मानकर उसपर हंसकर उसका अनादर करता है । संसार में जितनी भी सीख प्राप्त होती हैं वें इन्सान को जीवन का मूल्य समझाती हैं एंव उन्हें जीवन में दूसरे इंसानों से मिलने वाले धोखे से सावधान करने से लेकर समय की कीमत तथा समाज से व्यहवार, परिवार व मित्रों से सम्बन्ध व प्रेम और इन्सान को फर्ज, कर्म, धर्म वगैरह सभी समझती है ।

संसार की सभी सीख वह चाहे मुहावरे के रूप में हो या दोहे या कहावत के रूप में हों इन सबको इन्सान एंव इंसानियत के कल्याण के लिए एकत्रित किया गया जिसके लिए संसार के महान संत तथा महान दार्शनिक एंव समाज सेवी बुद्धिजीवी महापुरुषों ने अपने ज्ञान का उपयोग करके अपना समय गवांकर इंसानों को जीवन का अर्थ समझाने की पुरजोर कोशिश करी है जिससे संसार में शांति तथा सम्पन्नता सलामत रहे । जिन इंसानों ने सीख की महत्वता को समझकर ग्रहण कर लिया वे अपना जीवन शांति एंव सुखपूर्वक व्यतीत करते हैं परन्तु जिन्हें यह व्यर्थ का विषय लगा तथा उन्होंने इसका त्याग किया या इसे अनदेखा किया वह सदा समस्याओं में घिरे रहते हैं । कोई भी सीख या अनुभव सदैव ठोकरें खाकर प्राप्त होती हैं यदि अन्य इंसानों द्वारा प्राप्त अनुभव या सीख को समझ लिया जाए तो ठोकरें खाने से बचा जा सकता है ।

विचार

December 11, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

vichar

किसी भी विषय पर अपनी मानसिकता के आधार पर कथन या निर्णय प्रस्तुत करना इन्सान के विचार कहलाते हैं। विचार संसार का सबसे महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि इन्सान के विचारों द्वारा ही संसार के सभी कार्य सम्पन्न होते हैं। किसी भी प्रकार की शिक्षा, तकनीक अथवा अविष्कार इंसानों के विचारों द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं। संसार की सभी पुस्तकें वास्तव में बुद्धिमान एंव महान इंसानों के विचारों का संग्रह होती हैं। संसार का आदिकाल से वर्तमान आधुनिक युग तक की प्रगति का सफर इंसानों के विचारों द्वारा ही सम्पन्न ही सका है। विषय अथवा वस्तु की उत्पत्ति, प्रगति तथा भविष्य सभी इंसानों के विचारों पर निर्भर करते हैं। इन्सान के विचार ही उसकी महानता अथवा ओछापन प्रस्तुत करते हैं।

विचार मुख्य सकारात्मक, साधारण एंव नकारात्मक होते हैं। किसी भी विषय, वस्तु या प्राणी के विषय की अच्छाईयों एंव महानता तथा उनके कार्यों की समीक्षा एंव उनसे होने वाले लाभ का वर्णन करने वाले विचार सकारात्मक होते हैं। सकारात्मक विचार इन्सान का मार्गदर्शन करने तथा प्रगति एंव लक्ष्य पूर्ति करने का कार्य करते हैं। इन्सान के दैनिक जीवन को संचालित करने वाले विचार साधारण होते हैं। किसी विषय, वस्तु या प्राणी की त्रुटियों को तलाशते एंव उनसे अपना स्वार्थ पूर्ति करने वाले विचार नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचार इन्सान की बुरी मानसिकता का परिणाम होते हैं जो अपने लाभ के लिए समाज में अपराधिक कार्यों को अंजाम देते हैं। विचार सकारात्मक, साधारण अथवा नकारात्मक कोई भी हो सभी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सकारात्मक प्रगति के मार्गदर्शक हैं तो साधारण जीवन निर्वाह के मार्गदर्शक हैं। नकारात्मक विचारों के विषय में जानकारी होना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बुराईयों एंव बुरे इंसानों से सावधान नकारात्मक विचारों का ज्ञान ही करवाता है।

एक पुरानी कहावत है ( बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए ) अर्थात बिना विचार किए कोई भी कार्य करने से बाद में पछताना पड़ता है क्योंकि बिना विचार किए गए कार्य करने से परिणाम हानिकारक होते हैं। किसी भी कार्य अथवा समस्या का समाधान करने के लिए सर्वप्रथम विचार करना आवश्यक है ताकि समाधान के सरल तरीके प्राप्त हो सकें अन्यथा कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। विचार करने से अनेक प्रकार के लक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं तथा उन लक्ष्यों की प्राप्ति के साधन भी उपलब्ध हो जाते हैं। विचारों द्वारा किसी भी प्रकार के आपसी मतभेद सरलता पूर्वक समाप्त किए जा सकते हैं। जीवन में उन्नति के मार्ग विचार करके ही तलाशे जाते हैं बिना विचार के सिर्फ मुसीबतें प्राप्त होती हैं। जो इन्सान विचारवान नहीं होते अथवा विचार नहीं करते वह सिर्फ परिश्रम से जीवन निर्वाह अवश्य करते हैं परन्तु उन्नति नहीं कर पाते क्योंकि नई राहें बिना विचार किए तलाश करना संभव नहीं है।

idea

विचारों की उत्पत्ति इन्सान की मानसिकता पर निर्भर करती है क्योंकि मानसिकता जितनी अधिक सशक्त होगी इन्सान विचार भी उतने ही अधिक एंव श्रेष्ठ उत्पन्न कर सकता है। विचारों के निर्माण के लिए सक्रिय बुद्धि, उत्तम स्मरण शक्ति एंव विवेकशील होना आवश्यक है। भावनाओं से उत्पन्न विचार जीवन एंव रिश्तों से सबंधित होते हैं। नये आविष्कार एंव नये विषयों पर आधारित विचार करने की क्षमता इन्सान की कल्पना शक्ति में होती है। अप्रत्यक्ष को साकार करने एंव बिना आकार की वस्तु को आकार देकर नई रुपरेखा तैयार करने की क्षमता सिर्फ इन्सान की कल्पना शक्ति पर निर्भर करती है। विचार करने के लिए इन्सान का अपने मन पर अधिकार होना भी आवश्यक है क्योंकि चंचल मन इन्सान को सदैव लक्ष्य से भटकाता है। जब तक मन शांत होकर इन्सान को विचार करने के लिए प्रेरित नहीं करता वह सिर्फ बहस, आलोचनाओं, तानाकशी, मनोरंजन अथवा चिन्ताओं में उलझा रहता है।

नकारात्मक एंव साधारण विचार समय के साथ समाप्त होते रहते हैं परन्तु सकारात्मक विचार जो इन्सान के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं सदैव अमर रहते हैं। संसार के महान दार्शनिकों के श्रेष्ठ विचार सदियों एंव हजारों वर्ष पश्चात भी अमर हैं। संसार के जितने भी धर्म हैं सभी महान संतों के विचारों पर ही आधारित हैं अर्थात इन्सान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है परन्तु उसके विचार यदि श्रेष्ठ हैं जो दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं सदैव अमर रहते हैं। ज्ञान जीवन का मार्गदर्शक है एंव ज्ञान इन्सान के विचारों से उत्पन्न होता है इसलिए विचार यदि शत्रु के भी हों उन्हें सुनना तथा समझना आवश्यक एंव उत्तम होता है ताकि अच्छे विचारों के ज्ञान को ग्रहण करके अपना जीवन संवारा जा सके।

उत्तम विचारों के लिए इन्सान की आयु सीमा निर्धारित नहीं होती बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक किसी भी आयु के इन्सान के विचार श्रेष्ठ हो सकते हैं। विचारों का जाति अथवा धर्म से कोई सबंध नहीं होता इसलिए उत्तम विचारों को ग्रहण करने में आयु, जाति या धर्म का भेदभाव करना अपने जीवन से शत्रुता है। अपने विचारों को श्रेष्ठ मानकर उनके आधार पर जीवन निर्वाह करने वाला इन्सान ईर्षालू एंव अहंकारी होता है जिसका जीवन किस्मत के भरोसे चलता है वह विचारों के आधार पर उन्नति नहीं कर सकता। उत्तम विचारों को अपने तक सीमित रखना ईर्षा एंव अहंकार है उत्तम विचारों को दूसरों में बाँटना ही श्रेष्ठ होता है। दूसरों के उत्तम विचार ग्रहण करना ही श्रेष्ठता है तथा ग्रहण करने में पक्षपात करना भी ईर्षा एंव अहंकार ही होता है। जीवन में उन्नति करने के लिए यदि अपनी बौद्धिक क्षमता से अच्छे विचार उत्पन्न नहीं होते तो दूसरों के श्रेष्ठ विचारों द्वारा उन्नति करना ही उचित निर्णय एंव बुद्धिमानी होती है।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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