अलंकृत = अलंकारों द्वारा सुसज्जित वर्णन।
रुढ़िवादी = अत्याधिक प्राचीन शैली के आधार पर जीवन निर्वाह करना।
आधुनिकता = वर्तमान में उत्पन्न व उपलब्ध संसाधनों व शैली का उपयोग करना।
प्रथा = समाज द्वारा निर्धारित कार्यों की पद्धति तथा नियम।
जीवन सत्यार्थ
सुन्दरता दर्शाने के लिए श्रंगार करने की वस्तुओं को अलंकार कहा जाता है तथा अलंकारों से सुसज्जित होकर प्रदर्शित होने को अलंकृत कहा जाता है । जिस प्रकार कोई स्त्री अपनी सुन्दरता प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न प्रकार के आकर्षित करने वाले वस्त्र, आभूषण एवं श्रंगार की अन्य वस्तुओं का उपयोग करके अलंकृत होती है उसी प्रकार किसी विषय के वर्णन को महत्वपूर्ण दर्शाने के लिए उसमे वर्णन करने वालों की तरफ से जोड़े गए प्रभावशाली शब्दों को अलंकार लगाना एंव उस वर्णन को अलंकृत करना कहा जाता है । अलंकृत करने के उपरांत वह विषय तथा उससे सम्बन्धित व्यक्ति को सरलता पूर्वक महत्वपूर्ण घोषित किया जा सकता है ।
अपने विषय की व्याख्या करते समय उसमे विभिन्न प्रकार के प्रभावशाली शब्दों के अलंकार लगाकर विषय को प्रभावशाली तथा खुद को महत्वपूर्ण दर्शाने के लिए विषय अलंकृत करना भारतीय समाज की सदियों पुरानी परम्परा है । भारतीय मनुष्य वह चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी अपने परिवार व उसके सदस्य तथा रिश्तेदार एवं मित्रों से लेकर अपने पड़ोसी व जानकारों तक को महत्वपूर्ण प्रमाणित करने के लिए उनके विषय अलंकृत करते हैं कभी कभी तो अपने पालतू जानवरों व पेड़ पौधों तक के विषय में वार्ता करते समय अलंकृत करना भारत वासियों का परम कर्तव्य हो जाता है । अलंकृत करने के कारण ज्ञात करना तथा उससे होने वाले प्रभाव का परिणाम ज्ञात करना भी आवश्यक है क्योंकि अलंकृत विषय के दुष्परिणाम समाज के लिए कितने हानिकारक हो सकते हैं इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है ।
भारतीय समाज में यह धारणा है कि हमसे सम्बन्धित इन्सान यदि किसी महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हो या वह कोई महत्वपूर्ण कार्य करने में सक्षम हो तो हमारी भी महत्वता समाज में बढ़ जाएगी तथा हमे सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा । इस कारण भारतीय समाज में अपने सम्बन्धितों की अलंकृत व्याख्याएँ करी जाती हैं तथा महत्वपूर्ण इंसानों से अपने सम्बन्धों की अलंकृत कहानियां प्रस्तुत करी जाती हैं । किसी वार्तालाप में होने वाले महत्वपूर्ण या अद्भुत वर्णन के समय उपलब्ध इंसानों द्वारा जानकारियों के अभाव में अपनी बुद्धि हीनता का अहसास करके अहंकार वश अलंकृत कहानियां बखान करना साधारण कार्य है जिसे बखान करने वाला रस्सी को सांप प्रमाणित करने का भरपूर प्रयास करता है जो कभी कभी हास्यप्रद स्थिति उत्पन्न कर देता है ।
किसी अच्छे प्रवक्ता को कुछ इंसानों द्वारा उसे प्रवक्ता से अलंकृत करके ज्ञानी बखान करना तथा ज्ञानी होने की चर्चा सुनने वालों द्वारा अपने वर्णन में उसे ब्रह्मज्ञानी घोषित करना इसी प्रकार ब्रह्मज्ञानी सुनने वालों द्वारा प्रवक्ता को साधू व संत की उपाधि देना तथा साधू संत का वर्णन सुनने वालों द्वारा उसे ईश्वर का अवतार घोषित करना भारतीय समाज द्वारा ही संभव हो सकता है । इसी प्रकार किसी की छोटी सी बुराई को बदनाम करके उसको लुटेरा, डाकू या स्मगलर तक बनाने का श्रेय भारतीय समाज का साधारण सा कार्य है । किसी परछाई को भूत बना देना तथा भूतों की अलंकृत कहानियां चटकारे लेकर मनोरंजन के तोर पर प्रस्तुत करना भारतीय समाज की नादान सोच का परिणाम है । वार्तालाप गोष्ठी में किसी स्त्री के चरित्र का बखान करते हुए विभिन्न अलंकारों द्वारा उसे कलंकित घोषित करना व किसी व्यक्ति के कार्यों पर उसकी बुद्धि हीनता दर्शाने के लिए अलंकारों द्वारा निर्मित वर्णन से उसे मूर्ख प्रमाणित करना भारतीय समाज का दैनिक कार्य है ।
अलंकृत करने की मानसिकता के कारण सच्चाई ज्ञात किए बगैर किसी को साधू संत घोषित करने पर साधारण इन्सान ढोंगी साधू संतों के चंगुल में फंस जाते हैं जहाँ पर उनका भरपूर शोषण होता है । धर्म की अलंकृत कहानियाँ समाज को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोडती जिसका लाभ चंद शातिर इन्सान उठा रहे हैं । भूत प्रेतों की झूटी अलंकृत कहानियों की दहशत का लाभ उठाकर तांत्रिकों के भेष में लुटेरे आम जनता को दोनों हाथों से लूट रहे हैं । अलंकार प्रथा के कारण ही समाज में रुढ़िवादी प्रथाओं के चलन को आश्रय प्राप्त है क्योंकि मनघडन्त कहानियों की दहशत के कारण किसी अनिष्ट की आशंका से घबराया इन्सान रुढ़िवादी प्रथाओं को मानने पर मजबूर हो जाता है ।
सदियों पुरानी मनघडन्त अलंकृत कहानियों को सत्य मान लेना व किसी के वर्णन को सत्य मान लेना तथा उस पर अमल करना मूर्खता की निशानी है । किसी विषय पर अमल करने से पूर्व उसकी सत्यता का आकलन करना आवश्यक है सत्यता ज्ञात करने के लिए बुद्धि तथा विवेक का मंथन करने से ही सत्य प्रमाणित होगा जो उचित मार्गदर्शन करेगा । किसी कहानी के पात्र अथवा कोई अदृश्य शक्ति हमारा अनिष्ट नहीं कर सकती परन्तु हम अपनी बुद्धि एंव विवेक का उपयोग ना करके किसी अलंकृत कहानी पर विश्वास करके अपनी मूर्खता के कारण अपना अनिष्ट व नुकसान अवश्य कर लेते हैं ।
जीवन जीने की निर्धारित शैली व उसके नियमों को धर्म कहा जाता है जो नियम समाजिक होते हैं वें प्रथा कहलाते हैं यदि आवश्यकता होने पर भी समाजिक नियमों में परिवर्तन न किया जाए तो वह रूढ़ीवाद होता है । रूढ़ीवाद इन्सान की संकीर्ण मानसिकता की निशानी है क्योंकि वर्तमान संसाधनों का उपयोग करते हुए भी अपना जीवन प्राचीन प्रथाओं की घिसीपिटी शैली के आधार पर निर्वाह करना जीवन में अनेकों समस्याएँ उत्पन्न करता है जिसके कारण जीवन निर्वाह करना कठिन हो जाता है । समस्याओं से जूझने पर भी रूढ़िवादी परम्परा का त्याग नहीं करना इन्सान की संकीर्ण मानसिकता होती है । भारत में रूढ़िवादी परम्परा एंव प्रथाएँ अत्याधिक प्रचिलित हैं या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारतीय समाज रूढ़िवादी परम्पराओं का समाज है तथा भारत के पिछड़ेपन का कारण भी भारत वासियों का अत्याधिक रूढ़िवादी होना है ।
भारत वासियों के जन्म से लेकर मृत्यु होने तक के सभी कार्य रूढ़िवादी परम्पराओं के अनुसार ही होते हैं । खुद को आधुनिक समझने व कहने वाला शिक्षित नौजवान वर्ग भी समय पर अपनी रूढ़िवादी सोच प्रकट कर देता है । रूढ़िवादी प्रथाओं के प्रचलन को जीवित रखने का श्रेय सबसे अधिक भारत के मध्यम वर्गीय परिवारों को जाता है तथा इन प्रथाओं से होने वाली हानि का प्रभाव भी इन मध्यम वर्गीय परिवारों पर ही होता है । शिशु जन्म के समय इलाज के खर्च में बचत करने वाला परिवार नामकरण के समय अधिक से अधिक खर्च करना चाहता है परिवार को चिकित्सक की फ़ीस से अधिक पंडित जी की दक्षिणा की चिंता रहती है कि कहीं पंडित जी के आशीर्वाद में कमी ना होने पाए जिसके कारण शिशु का अनिष्ट ना हो जाए । शिक्षा प्राप्ति के समय बच्चों के मानसिक विकास की आवश्यकता की वस्तुओं का ध्यान ना करके मन्दिरों के प्रसाद द्वारा उच्च शिक्षा की कामनाएँ करी जाती हैं ।
त्योहारों के नाम पर रूढ़िवादी प्रथाओं की लकीर पीटना भारतीय समाज की कमजोरी है जो मनोरंजन के नाम पर नये विकल्प तलाश ना करके प्राचीन रूढ़िवादी प्रथाओं के आधार पर अपने त्यौहार मनाता है । होली पर लकड़ी का ढेर जलाने व रंग, वस्त्र तथा पानी की बर्बादी करने से लेकर लड़ाई करने तक का कार्य होता है । दशहरे पर रावण जलाने तथा दीवाली पर पटाखे चलाने से उत्पन्न होने वाला प्रदुषण कितनी बिमारियों को फ़ैलाने में सहायक होता है उसका हिसाब लगाना समाज का कार्य नहीं है । शिव की कांवड़ यात्रा के दौरान होने वाले दंगे व जान लेवा हादसे भी रोक लगाने में असमर्थ हैं । रक्षा बंधन पर भाई बहन एक दूसरे को रिश्तों का प्रमाण पत्र देकर समय व धन की बर्बादी के सिवाय कुछ प्राप्त नहीं करते । भारत में ऐसे अनेकों त्यौहार हैं जिनकी सत्यता व आवश्यकता व प्रभाव के बारे में सोचना भारतीय आवश्यक नहीं समझते ।
भारत की कमजोर व लडखडाती आर्थिक व्यवस्था को देखकर भी सरकार एंव जनता को अवकाश प्राप्त करने के नित नये बहानों की तलाश रहती है । संसार के किसी भी देश में भारत की तरह इतने अधिक अवकाश घोषित नहीं हैं तथा भारत में अधिक अवकाशों का असर शिक्षा, उद्धोग, चिकित्सा, न्याय प्रणाली व सरकारी कार्यों वगैरह सभी पर होता है । साप्ताहिक अवकाश के अतिरिक्त त्योहारों के नाम पर, आजादी तथा शहीदों के नाम पर, महापुरुषों के जन्म दिवस तथा धर्म व जातियों को खुश करने के लिए सभी जाति व धर्म के महत्वपूर्ण इंसानों के जन्म दिवस अवकाश के लिए घोषित हैं । यह रूढ़िवादी परम्परा देश के विकास में कितनी बड़ी बाधक है इसका निवारण करने पर ही भारत का विकास संभव है ।
स्त्री को समान हक व दर्जा देने का दम भरने वाला समाज उसका सम्पूर्ण जीवन भरपूर शोषण रूढ़िवादी प्रथाओं के नाम पर करता है तथा दहेज जैसी रूढ़िवादी प्रथाओं के कारण परिवार भी नारी को घृणा की दृष्टि से देखता है । विवाह के समय वर पक्ष वधु के परिवार से अपने सम्मान की दुहाई देकर व प्रथाओं के नाम पर सभी प्रकार की सौदेबाजी करता है एवं वधु के परिवार के धन को फालतू की वस्तु समझकर उसकी बर्बादी करना अपना कर्तव्य समझता है । विवाह के नाम पर सबसे गलत रूढ़िवादी प्रथाएँ प्रचलित हैं जिनमे सजावट, दावत, घोड़ी, बाजा के लिए जीवन भर की कमाई को बर्बाद किया जाता है जो की वर व वधु के किसी काम नहीं आते जिनके ना होने पर भी दोनों शांति पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।
वृद्ध अवस्था के समय सुविधाओं तथा इलाज की अनदेखी करने एवं समय समय पर प्रताड़ित करने वाला परिवार मृत्यु के समय अंतिम संस्कार के नाम पर भरपूर खर्च करके अपनी रूढ़िवादी सोच का प्रमाण प्रस्तुत करता है । मरनोपरांत किर्या करने तथा मरने वाले के नाम पर दान करने में खर्च होने वाला धन जीवित रहते समय सुविधा प्रदान नहीं कर सकता क्योंकि मरनोपरांत मरने वाले के लिए सुखों का प्रबंध करना भी आवश्यक है यह हमारी हजारों वर्ष पुरानी रूढ़िवादी प्रथा है जिसे वर्तमान में भी मान्यता प्राप्त है । भारतीय समाज जीवित इन्सान से नहीं डरता परन्तु मरनोपरांत भूत बनकर सताने का डर उसे सभी प्रथाओं को मानने पर बाध्य कर देता है ।
घिसीपिटी रूढ़िवादी प्रथाओं के कारण साधारण इन्सान भी अपने जीवन में आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा गवां देता है जिसके कारण उसका जीवन अभावपूर्ण हो जाता है । प्राचीन प्रथाएँ उस समय की देन हैं जिस समय इन्सान को सिर्फ रोटी कपड़ा तथा मकान की आवश्यकता होती थी और वह अपना समय व्यर्थ के कार्यों अथवा वार्तालाप में व्यतीत करता था । वर्तमान में इन्सान की आवश्यकताओं में तेजी से वृद्धि हुई है जिससे वह अधिकतर समय धन प्राप्ति करने में व्यस्त रहता है । अपने धन व समय का सद उपयोग करने में ही समझदारी है किसी को रूढ़िवादी प्रथाओं पर धन व समय बर्बाद करते देखकर नकल करना मूर्खता है ।
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प्राचीन परम्पराओं तथा रूढ़िवादिता का त्याग करके वर्तमान समय में उत्पन्न संसाधन एंव जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक शैली व विचार धाराओं पर आधारित जीवन शैली अपनाना आधुनिकता कहलाता है । विश्व के विकसित देशों की आधुनिक चकाचोंध से आकर्षित होकर भारतीय भी उनकी जीवन शैली को अपना कर अपने आप को आधुनिकता की दौड़ में शामिल करके आधुनिक दर्शाना चाहते हैं । किसी कार्य के होने अथवा कह देने में बहुत अंतर होता है इसलिए भारत वासियों की आधुनिकता की शैली कितनी सफल हो पायी है इसका आकलन करने पर ही समझा जा सकता है ।
सर्व प्रथम भारतियों द्वारा विदेशी वेशभूषा को अपनाया गया जिसे अपनाने से पूर्व भारतीय समाज में सूती व शालीन वस्त्रों का प्रचलन था । पुरुष हल्के व ढीले वस्त्र धारण करते थे तथा स्त्री समस्त शरीर को ढापने वाले सूती व आकर्षक वस्त्र धारण करती थी । विदेशी वेशभूषा शैली अपनाने के उपरांत पुरुष समस्त शरीर पर जकड़े हुए वस्त्रों को पहनता है तथा स्त्री ढीले एंव छोटे वस्त्र पहनना पसंद करती है । आधुनिक स्त्रीयों के वस्त्रों की लम्बाई समय के साथ कम होती जा रही है एवं उसमें आधुनिकता की पूर्ण झलक प्राप्त होती है । आधुनिक वस्त्र कितने रसायनों द्वारा निर्मित हैं तथा उनका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा यह सोचकर आधुनिकता का अपमान करना आधुनिक भारतीय गवारा नहीं करते ।
भोजन बनाने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए भारतियों द्वारा विदेशी पद्धति अपनाई गई जिसमे फास्टफूड व जंकफ़ूड कहलाने वाली अनेकों प्रकार की खाने की वस्तुएं तथा तरह तरह के पेय पदार्थों का सेवन करना दैनिक कार्य होता जा रहा है । फास्टफूड व जंकफ़ूड तथा पेय पदार्थों के निरंतर सेवन से अनेकों प्रकार की आधुनिक बीमारियाँ भारतीय समाज में तेजी से फ़ैल रही हैं जिसके कारण चिकित्सालयों में होने वाली भीड़ भारतीय आधुनिकता का प्रमाण प्रस्तुत करती है । अपनी आधुनिकता दर्शाने की होड़ में मातृभाषा का त्याग कर अंग्रेजी भाषा को अपनाया गया जिसके कारण भारतीय सभ्यता व संस्कृति पूर्णतया घायल अवस्था में साँस ले रही हैं क्योंकि जो आदर सम्मान व प्रेम प्रदर्शित मातृभाषा द्वारा किया जा सकता है वह अंग्रेजी जैसी अवैज्ञानिक भाषा से प्राप्त नहीं होता । अपनी पहचान खोती जा रही भारतीय सभ्यता व संस्कृति का सर्वनाश करने पर उतारू यह आधुनिकता का दम भरने वाला समाज अपनी पहचान कितनी रख पाएगा यह असंभव सा प्रश्न है क्योंकि इन्सान की असली पहचान उसकी सभ्यता व संस्कृति होती है ।
वर्तमान समय में आधुनिक उपकरणों का पूर्णतया उपयोग भारतीय समाज द्वारा किया जाता है परन्तु आधुनिकता का प्रदर्शन करने वाले खोखले इन्सान अपनी संकीर्ण मानसिकता से आगे नहीं सोच पाते । आधुनिक कहलाने वाला समाज वर्तमान में भी हजारों वर्ष पुरानी रुढ़िवादी प्रथाओं से आगे नहीं बढ़ सका है विवाह जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी रूढ़िवादिता की हजारों वर्ष पुरानी प्रथाएँ चल रही हैं दहेज एंव शगुन जैसी प्रथाएँ इसका प्रमाण है जिसके कारण बेटी को जन्म से पूर्व गर्भ में ही मार दिया जाता है किसी विवाह या उत्सव के मौखिक निमन्त्रण को अस्वीकार करके लिखित निमन्त्रण पत्र द्वारा ही स्वीकार किया जाना निमन्त्रण देने वाले के वाक्यों पर अविश्वास प्रकट करना है । फोन पर वार्तालाप व निमन्त्रण देने के उपरांत भी लिखित निमन्त्रण पत्र भेजने पर ही निमन्त्रण स्वीकार किया जाता है अन्यथा अपने सम्मान का प्रश्न बताकर आने की मनाही कर दी जाती है जिससे प्रमाणित होता है कि भारतीय समाज में इन्सान के वाक्यों का क्या मूल्य है ।
आधुनिक भारत की संकीर्ण मानसिकता की सबसे बड़ी पहचान यह है कि कोई भी भारत वासी अपनी पहचान प्रस्तुत करते समय खुद को भारतीय नहीं कहता तथा किसी दूसरे इन्सान के भारतीय कहने पर भी उसकी असली पहचान प्रकट करने का प्रश्न करता है । भारत वासी इन्सान को इन्सान के रूप में न पहचान कर जाति व धर्म के आधार पर उसकी पहचान करते हैं इसके अतिरिक्त भारतीय की पहचान उसके प्रदेश व शहर के आधार पर भी करी जाती है । भारत वासी भारत में भारतीय ना होकर बंगाली, पंजाबी, मराठी, तमिल, बिहारी, राजस्थानी, कश्मीरी, हिमाचली, गढवाली, गुजराती वगैरह नामों से पहचाने जाते हैं अपने प्रदेश में शहरों के आधार पर व शहर में जाति व धर्म के आधार पर पहचान होती है यह भारतियों की आधुनिकता का प्रमाण पत्र है ।
आधुनिकता के ऐसे अनेकों तथ्य हैं जिनके प्रमाणित करने पर सभी खोखले ही दिखाई देते हैं आधुनिकता कोई भोजन, वस्त्र, वस्तु या उपकरण नहीं है । आधुनिकता इन्सान की मानसिकता है जिसमे इन्सान को इन्सान के रूप में देखा जाता है तथा उसके द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर ही उसको सम्मान प्रदान किया जाता है । किसी की जाति, धर्म, भाषा अथवा उसके रहने के स्थान पर कटाक्ष करने वाला खुद को ईश्वरीय प्रतिनिधि समझता है जो संसार उसकी सोच के आधार पर कार्य करेगा । किसी पर कटाक्ष करने से पूर्व अपनी औकात समझना भी आवश्यक है क्योंकि इन्सान संसार में सिर्फ अपने स्वभाव, व्यहवार, आचरण तथा कर्मों के द्वारा ही पहचाना जाता है एवं जिसने अपनी औकात पहचान ली वह असली आधुनिक इन्सान होता है ।