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व्यवहार

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

vyavahar

कोई इन्सान किसी दूसरे इन्सान के प्रति अपने विचार प्रकट करता है तथा अपना भाव दर्शाता है एवं जिस प्रकार उसका आदर सत्कार करता है वह उसके द्वारा किया गया व्यवहार कहलाता है । व्यवहार इन्सान के मन का दर्पण है जिसमे उसकी मानसिकता तथा स्वभाव की स्थिति का ज्ञान होता है तथा इन्सान के व्यक्तित्व की पूरी झलक उसके द्वारा किये गए व्यवहार से ही स्पष्ट हो जाती है । इन्सान के पारिवारिक आचरणों एंव समृद्धि की भरपूर झलक भी उसके द्वारा किए गए व्यवहार से प्रदर्शित होती है तथा इन्सान के व्यवहार के आधार पर ही उसे समाज में सम्मान प्राप्त होता है और समाज द्वारा प्राप्त सम्मान ही उसके जीवन निर्वाह की बुलंदियां तय करता है । इन सभी कारणों से ज्ञात होता है कि इन्सान के लिए उसका दूसरे इंसानों व समाज के प्रति किया हुआ व्यवहार कितना मूल्यवान होता है ।

दूसरे इन्सान से किए गए व्यवहार के आधार पर ही उनके द्वारा व्यवहार किया जाता है इसलिए अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार करना उचित निर्णय है । अभद्रता के बदले अभद्रता होगी तथा सम्मान करने से सम्मान प्राप्त होगा । इन्सान अपने स्वभाव को संसार में सबसे उच्च कोटि का सभ्य स्वभाव समझकर व्यहवार करता है जिसको भली भांति आकलन करने पर ही अपने स्वभाव की त्रुटियाँ ज्ञात होती हैं जिनके निवारण करने पर हम आकर्षक व्यक्तित्व के इन्सान बन सकते हैं । इन्सान के व्यवहार में अनेकों प्रकार की स्वभाविक त्रुटियाँ होती हैं जिनमे सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता होती है क्योंकि ना महसूस होने वाली यें त्रुटियाँ इन्सान के सामाजिक पतन का कारण बन जाती हैं ।

किसी की आलोचना करना इन्सान का ऐसा स्वभाव है जिसमें उसे किसी प्रकार की त्रुटी का अहसास नहीं होता और वह कहीं पर भी तथा कभी भी व किसी की भी आलोचना करना आरम्भ कर देता है । करी हुई आलोचना की जानकारी प्राप्त होने पर किस प्रकार का प्रभाव होगा तथा कितनी हानि हो सकती है इसका मंथन करने पर ही आलोचना करना उचित है । किसी पर भी तथा कहीं पर भी और किसी भी प्रकार की टिप्पणी करना कभी कभी बहुत हानिप्रद साबित होता है इसलिए टिप्पणी करने की आदत का त्याग करना ही इन्सान के लिए अत्यंत लाभकारी है । किसी पर तथा किसी भी प्रकार का कटाक्ष उसे बुद्धिहीन होने का अहसास कराता है जो अव्यह्वारिक होने के साथ लड़ाई का कारण भी बन सकता है ।

इन्सान का विनोदी स्वभाव सभी को पसंद आता है परन्तु किसी के शोकग्रस्त होने पर उससे विनोदी वार्ता अथवा उस पर व्यंग करना उसके मन को आघात पहुंचाना है जिससे मन में वैस्म्न्य उत्पन्न होता है इसलिए व्यंग करने से पूर्व दूसरे इंसानों की मनोदशा ज्ञात करना भी आवश्यक है । व्यंग की तरह चापलूसी भी सभी को पसंद आती है परन्तु अत्याधिक चापलूसी करने वाले इन्सान को समाज में कभी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता इसलिए सम्मान का बलिदान करके चापलूसी द्वारा कार्य सिद्ध करना नादानी है । बात बात पर सलाह देना दूसरों की बुद्धिमानी पर आघात करना है जिसके कारण प्रत्यक्षी सलाह देने वाले को अहंकारी समझकर त्याग करने लगते हैं ऐसी स्थिति से बचने के लिए मांगने पर ही सलाह देना उचित है ।

किसी के वार्तालाप में लम्बे लम्बे भाषण देने से वार्तालाप गोष्ठी में बोरियत उत्पन्न हो जाती है जिसे वार्तालाप ना कहकर बकवास करना अधिक बेहतर होता है । वार्ता को लम्बा करके भाषण देने वाला इन्सान सभी को नापसंद होता है अत: भाषण जैसी स्थिति उत्पन्न होने से बचना उचित है । अधिकतर इन्सान वार्ता के समय अभद्र वाक्यों का प्रयोग करते हैं जिसके कारण उनकी समाजिक प्रतिष्ठा में हानि उत्पन्न होती है अत: वार्तालाप में अभद्र वाक्यों का प्रयोग होने का ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है । अपनी समस्याओं पर सभी से सलाह लेना अपनी कमजोर मानसिकता का प्रदर्शन करना है जिसका लाभ कोई भी शातिर इन्सान उठा सकता है इसलिए सलाह सोच समझकर बुद्धिमान तथा सभ्य इन्सान से ही करनी उचित होती है ।

किसी के पास जाकर उसके साथ अधिक समय व्यतीत करने के साथ यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि हम उसके कार्यों में अवरोध उत्पन्न ना कर रहे हों । अपना समय व्यतीत करने के लिए किसी से चिपक जाना व्यहवार नहीं चिपकूपन कहलाता है इसलिए दूसरों के समय का भी सम्मान करना आवश्यक है । किसी के द्वारा सहायता मांगने पर ही सहायता करनी उचित होती है बिना मांगे सहायता करना उसके कार्यों में दखल देना है तथा दूसरों के कार्यों में दखल देना उसकी दृष्टि में शत्रुता का कार्य करने के समान है । बातों में किसी को डांटना अथवा झिडक देना उसके मन को आघात पहुंचाना है जिसका परिणाम सदा अलगाव की स्थिति उत्पन्न करता है । उधार माँगना या मुफ्त माँगना अपनी सीमा में ही अच्छा रहता है प्रत्येक समय माँगने पर इन्सान को भिखारी की दृष्टि से देखा जाता है ।

व्यवहार इन्सान को सफलता प्राप्त करवाने अथवा उसके पतन का कारण बन जाता है इसलिए किसी से व्यवहार करते समय सभी प्रकार की संभावनाओं पर विचारिक मंथन करना बुद्धिमानी का परिचय है । अच्छा व्यहवारिक इन्सान समाज में अपनी जगह स्थापित करके सरलता से बुलंदियां प्राप्त कर लेता है । व्यहवार को दर्पण की भांति स्वच्छ रखने पर ही अपनी छवि साफ नजर आती है इसलिए जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यहवार करने का गुण सीखना आवश्यक है । मुख्य बात यह है कि जैसा व्यवहार अपने लिए पसंद हो वैसा ही व्यवहार दूसरों से करना उत्तम होता है ।

मित्रता

May 22, 2014 By Amit Leave a Comment

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परिवार के सदस्यों तथा सम्बन्धियों के अतिरिक्त यदि समाज में किसी बाहरी इन्सान की समीपता का मन पर प्रभाव सुख व शांति प्रदान करे तथा आपसी सहायता करने की इच्छाएँ जाग्रित हों तो ऐसे मानसिक तथा भावनात्मक रिश्ते को समाज ने मित्रता का नाम दिया है । समाज में मित्रता के रिश्ते को सबसे अधिक महत्वपूर्ण एंव महान माना जाता है क्योंकि किसी से मित्रता स्थापित इन्सान अपनी स्वेच्छा से करता है जिस पर किसी प्रकार का प्रभाव अथवा दबाव कार्य नहीं करता तथा किसी की सलाह की आवश्यकता भी नहीं होती । मित्रता में मन मुटाव होने अथवा मित्र द्वारा विश्वासघात करने पर सम्बन्ध विच्छेद की किसी से चर्चा करना भी व्यंग बाणों का शिकार होना है एवं समाज द्वारा किए गए कटाक्षों को सहन करना पड़ता है इसलिए मित्रता के कारणों की समीक्षा करना आवश्यक है ।

मित्रता के दो मुख्य आधार हैं जिनमें प्रथम आधार स्वाभाविक एवं भावनात्मक होता है जिसमें मित्र से किसी भी प्रकार की सहायता की अपेक्षा नहीं होती सिर्फ उसकी समीपता मन को प्रसन्नता प्रदान करती है । प्रथम आधार में तीन प्रकार की मित्रता होती है एक = (प्राकृतिक मित्र) जो बचपन में बिना किसी स्वार्थ के बनाए जाते हैं । दो = (स्वाभाविक मित्र) जिनका स्वभाव एक समान होता है । तीन = (वैचारिक मित्र) जिनके विचार आपस में मेल खाते हों अथवा विचारों से प्रभावित होकर मित्रता करना । दूसरे आधार की मित्रता समय की आवश्यकता के अनुसार होती है जिसमे किसी कारण वश सहायता की आवश्यकता होती है तथा जिस इन्सान द्वारा सहायता करने पर कार्य सफल हो जाए उसे मित्र बना लिया जाता है । दूसरे आधार की मित्रता में दो प्रकार की मित्रता होती है एक = (व्यापारिक मित्र) व्यापार के सम्बन्धों के कारण मित्रता होना जो व्यापार सलामत रहने तक अवश्य चलती है और व्यापार की आवश्यकता के समाप्त होने पर स्वयं समाप्त भी हो जाती है । दो = (स्वार्थी मित्र) किसी स्वार्थ की पूर्ति हेतु मित्रता करना तथा स्वार्थ पूर्ण होते ही ऐसे मित्र सदैव स्वयं ही नदारद हो जाते हैं । इन दोनों आधारों के अतिरिक्त जो भी मित्रता होती है वह धोखा देने के लिए करी जाती है जिसमें मित्रता के नाम पर धोखा करने का प्रयास किया जाता है ।

प्रथम आधार की मित्रता इन्सान की साफ़ व स्वच्छ मानसिकता एंव भावनाओं का प्रमाण है जिसमें किसी भी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता सिर्फ मित्र के प्रति सहानभूति तथा उसकी सहायता व बलिदान की भावना होती है । ऐसी मित्रता प्राक्रतिक आकर्षण, स्वाभाविक आकर्षण विचारों के आकर्षण के कारण होती है ऐसी निस्वार्थ मित्रता संसार में अत्यंत महान रिश्ता माना जाता है ऐसे मित्र आर्थिक सहायता करने में सक्षम ना हों परन्तु उचित मार्गदर्शन एवं सलाह देना व आवश्यकता होने पर तन मन से मित्र की सेवा करना अपना कर्तव्य समझते हैं । निस्वार्थ मित्र उत्सव पर ना आए परन्तु कष्ट के समय अवश्य पधार कर भरसक सहायता करते हैं इसलिए निस्वार्थ मित्रता को सदा वेश कीमती रत्नों की तरह सभाल कर उपयोग करना आवश्यक है ।

वर्तमान समय में अधिकतर दूसरे आधार की मित्रता समाज में प्रचिलित है क्योंकि वर्तमान में इन्सान के जीवन में समस्याओं के अम्बार लगे हुए हैं जिनका समाधान किसी की सहायता के बगैर करना अत्यंत कठिन हो गया है । दूसरे आधार की मित्रता में किसी प्रकार की सहायता पाने की भावना होना कोई आश्चर्यजनक कार्य नहीं है क्योंकि समाज के अधिकतर कार्य आपसी सहयोग पर ही निर्भर करते हैं जिसमें मित्र से सहायता की अपेक्षा करना स्वभाविक है । आपसी सहयोग पर आधारित मित्रता में सीमित सहायता माँगना अथवा सीमित सहायता करना ही मित्रता को बनाए रखता है यदि मित्र पर अतिरिक्त बोझ डाला जाए तो मित्रता का संतुलन डगमगा जाता है तथा सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं ।

समाज में इन्सान की जीवन निर्वाह की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इन्सान को अत्यधिक स्वार्थी बना दिया है एवं स्वार्थ वश विश्वासघात करने की घटनाओं में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हो रही है । स्वार्थ वश किसी के मित्र बन कर उसे लूटना तथा मित्र की हत्या तक करने की घटना को अंजाम देना ऐसे कार्यों के होते मित्र पर विश्वास करना तो उचित है परन्तु अन्धविश्वास करना खुद को समस्या में डालना है । चापलूस प्रवृति के मित्र से सदा सावधान रहना ही उचित है क्योंकि चापलूस सदा लालची एंव स्वार्थी होते हैं जो किसी की भी झूटी प्रशंसा करते हैं क्योंकि सत्य सदा कटु होता है तथा सत्यवादी किसी की प्रशंसा नहीं करते बल्कि उसकी गलतियों की आलोचना करते हैं । सच्चे मित्र आलोचना करके सच्चाई से अवगत कराते हैं तथा मार्गदर्शन करते हैं चापलूसी नहीं करते ।

चोर, ठग, बलात्कारी, धूर्त व असमाजिक तत्व कभी किसी का मित्र नहीं होता वह सिर्फ मौका परस्त स्वार्थी होता है तथा बुरी दृष्टि वाला, पतित, आचारहीन, बुरे स्थान का निवासी, दुष्ट व दुर्जन सदा दुःख का कारण ही बनते हैं ऐसे इन्सान की मित्रता किस समय कष्टदायक बन जाए तथा किस प्रकार की विपत्ति टूट पड़े यह निर्धारित नहीं होता । जो इन्सान मित्रता में झूट का सहारा लेते हैं ऐसे इन्सान की बात पर विश्वास करना मूर्खता होती है क्योंकि जो इन्सान एक बार झूट बोल सकता है वह दोबारा झूट नहीं बोलेगा इसका कोई प्रमाण नहीं है । अनैतिक स्वभाव का इन्सान सदा बुरे कर्मों को प्राथमिकता देता है ऐसे इन्सान की मित्रता से बचना ही उचित होता है ।

मित्र कितना ही प्रिय क्यों ना हो उसपर जीवन के उन रहस्यों को उजागर करना अनुचित होता है जिनके प्रत्यक्ष होने से समाज में सम्मान की हानि हो सकती हो क्योंकि कभी मित्र से मन मुटाव हो जाए अथवा मित्र के मन में स्वार्थ जाग जाए तो वह रहस्यों के बल पर नुकसान पहुंचा सकता है तथा समाज में रहस्यों को उजागर करके जीबन बर्बाद कर सकता है । जीवन में कितना भी प्रिय मित्र हो उस पर अंधविश्वास करना बहुत बुरा एवं मूर्खता पूर्ण कार्य है क्योंकि अंधविश्वास से ही विश्वासघात का रास्ता आरम्भ होता है ।

विवाह

May 31, 2014 By Amit Leave a Comment

आदिकाल से इन्सान ने समाज स्थापना के समय इंसानों के आपसी सम्बन्ध भी निर्धारित किए तथा स्त्री पुरुष द्वारा ग्रहस्थी बसा कर परिवार संचालन करने के लिए विवाह प्रथा का निर्माण किया जिसमे दो अपरिचित स्त्री पुरुष को जीवन भर साथ रहने के लिए नियम निर्धारित किए गए । संसार में वर्तमान में भी विवाह प्रथा द्वारा ही अपरिचित स्त्री पुरुष को ग्रहस्थ जीवन के लिए एक सूत्र में बाँधा जाता है तथा विवाह पश्चात विवाहित स्त्री पुरुष अपना सम्पूर्ण जीवन एक दूसरे के संग व्यतीत करते हैं । अपरिचित होने के कारण स्त्री पुरुष में अनेकों प्रकार की विभिन्नताएं होती हैं जिसके कारण उनमे मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं तथा उनके परिवार भी आपसी मतभेद के कारण टकराव की स्थिति तक पहुंच जाते हैं । विवाह पूर्व यदि आवश्यक विषयों का ध्यान रखकर विवाह सम्पन्न किया जाए तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से बचा जा सकता है एंव विवाहित जीवन सुख व शांति पूर्वक निर्वाह होता है ।

vivah

विवाह से पूर्व स्त्री तथा पुरुष दोनों के परिवार उत्साह तथा हर्ष की लहर में अनेकों विषयों पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझते तथा कुछ त्रुटियों को जानबूझकर अनदेखा कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि विवाह के पश्चात आपस में समझोता हो जाएगा । स्त्री पुरुष भी शरीरिक आकर्षण एंव कामवासना तथा परिवार के दबाव के कारण कोई विद्रोह नहीं करते परन्तु विवाह का ज्वार भाटा शांत होने पर अनेकों त्रुटियों का ध्यान करके आपस में मतभेद उत्पन्न कर लेते हैं । एक संतुलित विवाहित ग्रहस्थ जीवन निर्वाह करने के लिए सभी प्रकार के संतुलित विषयों पर विचार करना आवश्यक है जिसमे सर्व प्रथम कोई भी कार्य झूट बोल कर करना व्यर्थ होता है क्योंकि विवाह पश्चात झूट प्रत्यक्ष होने पर आक्रोश उत्पन्न होना तथा शर्मिंदगी होना स्वभाविक है एंव झूट की बुनियाद पर बसाई गई ग्रहस्थी सदैव अस्थिर रहती है तथा परिणाम भयंकर निकलते हैं ।

विवाह के लिए जन्म पत्री मिलाप के समय स्त्री पुरुष की आपसी समानताओं का मिलान भी आवश्यक होता है क्योंकि समानता से संतुलन होता है तथा जितनी अधिक समानता होगी उतनी ही संतुलित ग्रहस्थी बसती है । सर्व प्रथम स्त्री पुरुष में बौद्धिक समानता होनी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि बुद्धि से जीवन संचालित होता है तथा बुद्धि की असमानता हीनभावना एंव घृणा उत्पन्न करती है जिससे स्त्री पुरुष की बुद्धि व सोच की असमानता के कारण आपसी मतभेद उत्पन्न होकर टकराव की स्थिति बन जाती है । ग्रहस्थ में स्वभाविक समानता भी महत्वपूर्ण होती है अन्यथा तनाव की स्थिति अवश्य बनती है क्रोधी अथवा शंकालु स्वभाव व खर्चीली या कंजूस प्रवृति तथा टोकाटाकी, तानाकशी, कटाक्ष करना ऐसा स्वभाव है जिसमे आपस में तकरार उत्पन्न अवश्य होती है ।

शरीरक समानता भी विवाह के लिए अत्यंत आवश्यक होती है कद, सेहत व रंगरूप भी समान या लगभग एक समान हों तो कुंठा उत्पन्न नहीं होती । लोक कहावत है कि सूरत नहीं सीरत देखकर विवाह करना चाहिए इसलिए आचरण तथा व्यहवार की समानता अनिवार्य होती है क्योंकि इन्सान अपने आचरण व व्यहवार द्वारा ही समाज में सम्मान प्राप्त करता है तथा इन्सान का आचरण व व्यहवार उसकी पहचान होते हैं इनमे विभिन्नता होने से ग्रहस्थ जीवन नर्क समान हो जाता है । परिवारिक समानता का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है क्योंकि छोटे परिवार का सदस्य अधिक सदस्यों वाले परिवार में खुद को असहज अनुभव करता है जिससे ग्रहस्थी में कलह उत्पन्न होती है । आधुनिक तथा रुढ़िवादी विचारों की असमानता भी ग्रहस्थी में विवाद उत्पन्न करती है इसलिए इसका भी ध्यान रखना आवश्यक होता है ।

इस प्रकार की साधारण सी समानताओं पर विचार करके किया हुआ निर्णय ग्रहस्थ जीवन को सुख व शांतिपूर्ण निर्वाह प्रदान करता है परन्तु विवाह की रुढ़िवादी प्रथाएँ वर्तमान में कुप्रथाएँ बनकर रह गई हैं जिनके कारण ग्रहस्थ जैसा प्रगाढ़ रिश्ता परेशानी का कारण बन जाता है । सर्व प्रथम दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा जो समाज का सबसे बड़ा कलंक बनकर रह गई है जिसमे जीवन साथी का मूल्य आंकना या उसके परिवार से आर्थिक सौदेबाजी करना जो भविष्य में दोनों पक्षों में कलह उत्पन्न करता है तथा असम्मान का कारण बनता है तथा जीवन साथी के मन में सदा के लिए कटुता उत्पन्न हो जाती है । विवाह के लिए अत्याधिक आडम्बर करके दोनों पक्षों द्वारा धन का सर्वनाश करना जिसका किसी भी प्रकार का किसी भी पक्ष को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता तथा नवदम्पत्ति को भी किसी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता ऐसी कुप्रथाओं से मुक्ति पाने पर ही समाज संतुलित तथा खुशहाल हो सकता है ।

विवाह जैसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध के लिए कुप्रथाओं को त्यागने में ही लाभ है क्योंकि प्रथाएँ इंसानों द्वारा निर्धारित करी हुई हैं जिनमे समय के अनुसार संशोधन की आवश्यकता होती है परन्तु संशोधन ना होने के कारण प्रथाएँ समाज का कलंक तथा कुप्रथाएँ बन जाती हैं । इस आधुनिक तथा रफ्तार भरी जिन्दगी में सदियों पुरानी प्रथाओं के पीछे भागने से उचित है कि विवेक का प्रयोग करके अपने ग्रहस्थ जीवन को संवारना तथा जीवन साथी की भावनाओं का ध्यान रखना तथा ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना जिससे ग्रहस्थ जीवन में तनाव उत्पन हो जाए ।

शिक्षा

June 7, 2014 By Amit Leave a Comment

shiksha

किसी भी प्रकार की ऐसी जानकारी जिसे प्राप्त करने से जीवन में कभी भी लाभ अवश्य होता है उसे शिक्षा कहा जाता है । ब्रह्मांड की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का सर्वाधिक सरल साधन शिक्षा होती है क्योंकि संसार में अनगिनत विषय हैं तथा कोई भी इन्सान सभी विषयों की जानकारी एकत्रित नहीं कर सकता इसलिए किसी भी विषय की जानकारी प्राप्त करनी हो तो उसकी पुस्तकों द्वारा सरलता पूर्वक जानकारियां एकत्रित करी जा सकती हैं । किसी विषय में पूर्ण पारांगत होने से उस विषय को आजीविका का साधन बनाया जा सकता है जिससे जीवन निर्वाह में कठिनाई उत्पन्न नहीं होती इसलिए शिक्षित होना जीवन का अनिवार्य विषय है । शिक्षित होना समाज में सम्मान की प्राप्ति का साधन भी है तथा शातिर इंसानों से सुरक्षा का हथियार भी है ।

कुछ दशक पूर्व तक शिक्षा समाज में दान के रूप में समर्पित थी जिसे शिक्षकों एंव आचार्यों द्वारा विद्या दान कहा जाता था तथा विद्यार्थीयों से अल्प मात्रा में शुल्क लिया जाता था परन्तु वर्तमान समय में शिक्षा को व्यवसायिक रूप दे दिया गया है जिसमे शिक्षा धन के आधार पर निर्धारित होती है अर्थात उचित शिक्षा प्राप्ति के लिए शुल्क निर्धारित होता है जिसे शिक्षा संस्थानों द्वारा सुविधाओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है । अपने शिक्षा संस्थान को अन्य शिक्षा संस्थानों से बेहतर प्रमाणित करने के लिए संस्थान का प्रशासन विभाग शिक्षा को जटिल बनाने के प्रयास करता रहता है जिसके कारण प्रत्येक विषय की पुस्तकों की मोटाई जबरन बढाई जा रही है तथा बेहतर शिक्षा के नाम पर भरी भरकम शुल्क वसूला जाता है ।

शिक्षा संस्थानों द्वारा बेहतर परिणाम प्रस्तुत करने की प्राथमिकता के कारण विद्यार्थी को एंव अभिभावकों को ट्यूशन पढ़ने का अतिरिक्त दबाव देता है एंव भरी शुल्क अदा करने वाला अभिभावक सन्तान को बेहतर शिक्षा देने के प्रयास में ट्यूशन पर भी धन वर्षा कर देता है । विद्यार्थी पर मोटी पुस्तकें एंव जटिल शिक्षा उत्पीडन का कारण बन जाती हैं जिस पर अतिरिक्त ट्यूशन तथा अभिभावकों द्वारा बेहतर परिणाम का दबाव उनकी मानसिकता पर भरपूर प्रहार होता है । शिक्षकों की प्रताड़ना एंव अभिभावकों का दबाव विद्यार्थी के लिए मानसिक शोषण का कार्य करते हैं जिसके कारण उनमे कुंठा उत्पन्न हो जाती है सभी तरफ से आक्रांतित विद्यार्थी का विवेक कार्य करना बंद कर देता है तथा उसका मानसिक विकास लगभग समाप्त हो जाता है । अधिक धन खर्च के कारण अभिभावक सन्तान से अन्य विद्यार्थीयों से महत्वपूर्ण प्रमाणित होने एंव अधिक अंक प्राप्त करके उच्च स्तर प्राप्त करने का दबाव देते हैं जिससे भयभीत बच्चे शिक्षा द्वारा ज्ञान वृद्धि के स्थान पर पुस्तकें रटना सीख जाते हैं । अत्याधिक पुस्तकें रटने से मस्तिक में सिर्फ पुस्तकों की सामग्री एकत्रित हो जाती है जिसके कारण बच्चों में आक्रोश एंव चिडचिडापन उत्पन्न होकर बढ़ता जाता है ।

इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली इन्सान के मस्तिक को कुंठित एंव स्वार्थी बनाती है जिससे वह मशीनी मानव की तरह कार्य करता है जो शिक्षित होकर आजीविका उपार्जन करने में सक्षम अवश्य हो जाते हैं परन्तु भावनात्मक सम्बन्धों का अभाव एंव नैतिकता, प्रेम, सद्भावना जैसी किर्याएँ समाप्त हो जाती हैं । जो विद्यार्थी किसी प्रकार सफलता प्राप्त नहीं कर पाते वें कभी कभी आत्महत्या जैसे घृणित कार्यों को अंजाम दे बैठते हैं जिसका कारण शिक्षक की प्रताड़ना अथवा अभिभावक का दबाव होता है ऐसे शिक्षक एंव अभिभावकों को यह समझना आवश्यक है कि शिक्षा जीवन के लिए अनिवार्य है परन्तु शिक्षा जीवन नहीं है क्योंकि जब जीवन ही नहीं रहेगा तो शिक्षा का अर्थ भी समाप्त हो जाता है ।

व्यतीत समय में कुछ दशक पूर्व तक शिक्षा संस्थान को विद्या का मन्दिर एंव शिक्षक को गुरु का स्थान प्राप्त था जिसे माँ बाप से भी उच्च स्तर पर माना जाता था परन्तु वर्तमान समय में शिक्षक तथा शिक्षा से सम्बन्धित इंसानों को ठग एंव लुटेरे की दृष्टि से देखा जाता है जिसका कारण है शिक्षा का पूर्ण व्यवसायिक होना । जो अभिभावक उच्च स्तरीय कहे जाने वाले शिक्षा संस्थानों का अत्याधिक शुल्क देने में असमर्थ होते हैं उनकी सन्तान में हीनभावना उत्पन्न हो जाती है कि वह समाज में सदैव पिछड़ते रहेंगे यह भावना शत प्रतिशत मिथ्या होती है क्योंकि शिक्षा किसी संस्थान अथवा शिक्षक द्वारा पढाने से प्राप्त नहीं होती ना ही ट्यूशन द्वारा प्राप्त होती है । शिक्षा पुस्तकों में उपलब्ध है जिसे प्राप्त इन्सान का मस्तिक करता है जिसमे शिक्षक सिर्फ माध्यम मात्र है यदि शिक्षा प्राप्त करने वाले की इच्छा शक्ति दृढ हो एंव उसका मन प्रेरणा श्रोत हो तथा बुद्धि जागृत व एकाग्र हो तो उसका विवेक शिक्षक का कार्य करता है जो किसी भी शिक्षक से अधिक ज्ञान उत्पन्न करने में सक्षम होता है ।

पुस्तकें इन्सान की सर्वाधिक सफल मित्र होती हैं जो कभी उससे विश्वासघात नहीं करती तथा जिस इन्सान ने पुस्तकों से उचित मित्रता कर ली वह संसार में ज्ञान प्राप्त करके सदैव अग्रणी रहता है । शिक्षा प्राप्ति के लिए संस्थान उच्च होना आवश्यक नहीं होता मानसिकता सकारात्मक होनी आवश्यक होती है तथा शिक्षक प्रभावशाली होना आवश्यक नहीं होता मन प्रभावशाली होना आवश्यक है । शिक्षा प्राप्त करने से पूर्व शिक्षा से जीवन में होने वाले प्रभाव तथा शिक्षा का मुल्यांकण करना आवश्यक है क्योंकि इन्सान मूल्यवान वस्तुओं को ही सभाल कर रखता है तथा शिक्षा जीवन निर्वाह के लिए सर्वाधिक मूल्यवान है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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