जीवन का सत्य

जीवन सत्यार्थ

  • दैनिक सुविचार
  • जीवन सत्यार्थ
  • Youtube
  • संपर्क करें

अकाल जन्म

June 1, 2014 By Amit Leave a Comment

akaal janm

इन्सान इक्कीसवीं सदी में जहाँ चाँद व मंगल पर बसने की सोच रहा है तथा आधुनिक तकनीक की सहायता से हजारों मील दूर बैठे इन्सान से पलभर में प्रत्यक्ष वार्तालाप कर रहा है । आसमान की सैर इन्सान के अधिकार में है । इंटरनेट की सहायता से संसार की किसी भी जानकारी को प्राप्त करना चुटकी बजाने जैसा कार्य रह गया है । इन्सान ने कुछ समय से एक नई तकनीक के चश्मे का अविष्कार किया है जिसकी सहायता से सुनहरे भविष्य के स्वप्न देखे जा सकते हैं अर्थात अंधविश्वास का चश्मा । इस अंधविश्वास के चश्मे को लगा कर संतान को डाक्टर , इंजीनियर , आविष्कारक , प्रशासक , न्यायाधीश , कलाकार , राजनीतीज्ञ जो चाहे बना हुआ देख सकते हैं । कुछ नक्षत्र ज्ञानियों ने कुछ समय पूर्व से अपने लाभ तथा अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए समाज में यह अफवाह फैलाई कि संतान की पैदाइश का नक्षत्रों की परस्थिति के अनुसार समय निर्धारित करके जन्म कराया जाए तो वह नक्षत्र बली होंगे तथा उनकी पसंद के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर पदासीन होंगे और जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकेंगे । इस झांसे में फंसकर बहुत से इन्सान यहाँ तक कि हमारा शिक्षित वर्ग भी नक्षत्र समय अनुसार प्राकर्तिक समय से पूर्व शल्य चिकित्सा द्वारा संतान उत्पन्न करवा रहे हैं अर्थात (अकाल जन्म)

नक्षत्रों की उर्जा के बल को अस्वीकार नहीं किया जा सकता तथा ज्योतिष ज्ञान की भी अनदेखी नहीं की जा सकती परन्तु कुछ तथ्य महत्व पूर्ण हैं जैसे ज्योतिषी भविष्य के बारे में अवश्य भविष्यवाणी कर सकता है कि ऐसी घटना हो सकती है परन्तु यह नहीं कह सकता कि ऐसा ही घटित होगा । यदि कोई ज्योतिषी बखान करता है कि उसके कहे अनुसार ही भविष्य घटित होगा तो वह नादान स्वंय को ईश्वर समझने की भूल कर रहा है क्योंकि आगे भविष्य में क्या होना है क्या नहीं होना यह भविष्य के गर्भ में सुरक्षित है जिसे इन्सान कभी नहीं जान सकता । यदि इन्सान इतना बड़ा ज्ञानी होता तो सर्वप्रथम अपनी मृत्यु का समय व कारण ज्ञात करके अपना जीवन सुरक्षित करता ।

अत्यंत महत्व पूर्ण सच्चाई यह है कि गर्भ धारण करने से जन्म होने तक जो पोषण शिशु को प्राप्त होता है यदि उसमे क्षीणता होगी तो वह पूर्ण पोषक व सशक्त नहीं होगा । गर्भ धारण प्रकृति का उपहार है जो अपने समय पर ही होता है । इन्सान की कोशिश से अगर गर्भ धारण हो सकता तो बहुत से इन्सान पूर्ण स्वस्थ होने पर भी गर्भ धारण से वंचित रह जाते हैं उन्हें विज्ञान तथा ज्योतिषी गर्भ धारण नहीं करवा सकते । प्राकृति पूर्ण पोषण के उपरांत ही जन्म देती है तथा गर्भ धारण से जन्म तक सभी उर्जाओं से पोषित करती है । अकाल जन्म से पूर्ण पोषण ना होने से उसके जीवन में कुछ क्षीणता अवश्य आएगी । उचित प्राकृतिक समय ज्ञात ना होने के कारण ज्योतिषी उल्टी सीधी भविष्यवाणी कर जीवन भर लूटते रहते हैं । अल्प पोषण प्राप्त फल कच्चा होता है तथा पोषण पूर्ण होने पर शाख से अलग ना किया जाए तो वह सड़ने लगता है ।

akaal janm

जुड़वां बच्चे भी एक समान जीवन व्यतीत नहीं कर पाते तथा समान समय पर होने वाले बच्चे भी समान बुद्धिमान व समान व्यहवार वाले नहीं होते । जीवन में जन्म समय नहीं परवरिश महत्वपूर्ण होती है । परवरिश में तीन प्रभाव मुख्य हैं पहला प्रभाव माँ बाप की कार्य शैली व व्यहवार जो सन्तान को सबसे अधिक प्रभावित करता है । बच्चा अपने माँ बाप की प्रत्येक हरकत व वार्तालाप को ध्यान पूर्वक देखता व ग्रहण करता है । बच्चों के सामने अपने कार्यों , व्यहवार व वार्तालाप का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है क्योंकि वार्तालाप के आधार पर हो उनका दृष्टिकोण निर्भर करता है । दूसरा मुख्य प्रभाव वातावरण का होता है । परिवार में होने वाली शरारतें , हुडदंग व मनोरंजन और परिवार के सभी सदस्यों का सीधा प्रभाव बच्चों पर होता है । तीसरा मुख्य प्रभाव बच्चों को मिलने वाली बाहरी सोहबत। जिसमे जैसे मित्र होंगे तथा जिनके साथ खेलकूद व पढ़ाई करेंगे व जिनसे उनका प्रतिदिन सम्बन्ध रहेगा उनका व्यहवार तथा वार्तालाप का प्रभाव भी अत्याधिक असर कारक होता है इसलिए संतान की सोहबत पर पैनी दृष्टि रखना आवश्यक है ।

संतान को बुंलदियों पर देखना हो तो अंधविश्वास के चश्में से नहीं अक्ल की दृष्टि से देखना अधिक उचित होता है । बुलंदी वह इन्सान प्राप्त करते हैं जिनमें लक्ष्य प्राप्त करने का उत्साह व लगन हो । उन्हें ना तो नक्षत्र बल की आवयश्कता होती है और ना किसी ज्योतिषी द्वारा करी गई भविष्यवाणी की । बहुत से महापुरुषों ने आर्थिक तंगी के होते हुए भी जीवन में बहुत से महान कार्य किए हैं तथा जीवन में बुलंदियों को प्राप्त किया है । इसलिए माँ बाप को नक्षत्रों का पीछा त्याग कर संतान के लक्ष्य निर्धारित करके उसे प्राप्त करने की लगन व उत्साह वृद्धि करनी आवश्यक है । अकाल जन्म शातिर इंसानों द्वारा साधारण इंसानों को मूर्ख बनाने की पद्धति मात्र है जिसके जाल में फंसकर बहुत से इन्सान शल्यचिकित्सा द्वारा सन्तान उत्पन्न करवाने में लग जाते हैं उन्हें इस सच्चाई को समझना होगा की यह मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है ।

नशा

June 8, 2014 By Amit Leave a Comment

nasha

इन्सान आदिकाल से जिज्ञासा प्रवृति का रहा है । प्रत्येक वस्तु के बारे में गहराई से जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा ने नई खोज करने की कोशिश को जन्म दिया है जिससे नये नये अविष्कार इन्सान के जीवन में आए । इन्सान की करी हुई खोज में अच्छी व बुरी सभी प्रकार की वस्तुएं हैं जहाँ इन्सान चाँद व मंगल पर घूम रहा है वहीं संसार के विनाश के लिए तरह तरह के हथियार भी बनाये गये तथा उन्हीं आविष्कारों में से इन्सान ने अपने जीवन को नुकसान पहुँचाने का फार्मूला खोजा (नशा) । नशे को तरह तरह के अंजाम दिए गये खाकर, पी कर, सूंघकर, सुई द्वारा शरीर में प्रवेश कराकर तरह तरह की वस्तुओं द्वारा जैसे तम्बाकू, भाँग, चरस, अफीम, गांजा, सुलफा, धतूरा, कोकीन, स्मैक और शराब आदी नये से नये तरीके नशे में चूर होकर जीने के ।

सिर्फ सुनी हुई बातों पर विश्वास करना इन्सान का स्वभाव है जैसे ईश्वर, साधू, संत, भूत, प्रेत पर विश्वास करके अमल में लाता है । किसी की झूटी बातों में आकर लड़ाई करता है परन्तु सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करता वही इन्सान पढ़कर, सुनकर, व उससे होने वाले नुकसान को देखकर भी नशा करता है । यह इन्सान की स्वंय को धोखा देने की प्रवृति है जिसे सदियों से समझाने पर भी आज तक समझ नहीं आया । सभी प्रकार की नशे की वस्तुएं शरीरिक, मानसिक व आर्थिक नुकसान ही करती हैं जैसे धूम्रपान करने से खांसी आती है और इन्सान खांसते हुए जीवन व्यतीत करता है । शराब से जायका कडवा तथा उल्टियाँ करता एंव डगमगाता हुआ इंसान समाजिक प्रतिष्ठा भी गवाँ देता है तम्बाकू व गुटखे मुहं का कैंसर जैसी भयंकर बीमारयाँ उत्पन्न करते है तथा दूसरे नशे तो इससे भी बुरे परिणाम देते हैं ।

इन सभी की पूर्ण जानकारी होने के पश्चात भी इसका सबसे ज्यादा उपयोग शिक्षित वर्ग करता है । नशे को समाज का एक वर्ग सोसायटी की शान समझता है सिगरेट के सुट्टे ना लगाने एवं शराब के जाम ना टकराने वालों को पिछड़ा व छोटी सोच माना जाता हैं । नशा धीमे जहर की तरह कार्य करता है तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे धीरे समाप्त कर देता है जिससे इन्सान किसी भयंकर बिमारी की चपेट में आ जाता है । नशे की लत वाला इन्सान बिमारी में अपना जीवन समय से पूर्व ही गवाँ देता है तथा धन भी अवश्य ही गँवाएगा । नशे की लत पर आरम्भ में ही अधिकार प्राप्त किया जा सकता है या दृढ इच्छा शक्ति से काबू किया जा सकता है ।

नशा सबसे अधिक मस्तिक पर असर कारक है जिससे याद रखने की क्षमता, सोचने की क्षमता व तर्क करने की शक्ति प्रभावित होती है तथा जीवन में तरक्की करने के आधार समाप्त हो जाते हैं । इन्सान के जीवन में नशे का आरम्भ बीस वर्ष की आयु से हो जाता है तथा मृत्यु होने तक संचालित रहता है । वैसे इन्सान साठ वर्ष की उम्र तक ही सक्रिय रहता है । चालीस वर्ष अर्थात १४६१० दिन होते हैं कम व सस्ता नशा धुम्रपान ही है जो एक बंडल बीडी व माचिस जिसकी कीमत ११ रुपये प्रतिदिन होती है जो जीवन में चालीस वर्ष प्रयोग करने से (एक लाख साठ हजार)रूपये होते हैं जो ब्याज सहित कितने लाख होंगे इसका हिसाब अल्प बचत योजना ही बता सकती है । शराब धुम्रपान से ५ से १० गुना अधिक महंगा नशा है जो ८ से १६ लाख तक की कीमत का होगा तथा बचत योजना में २० से ४० लाख या अधिक होगा जो मनुष्य यह तर्क देते हैं कि पहले शराब,सिगरेट सस्ती थी तो यह जानना भी जरूरी है कि समय के अनुसार रूपये की कीमत का अंतर ही भाव में वृद्धि करता है पहले यदि शराब सस्ती थी तो आमदनी भी कम थी और रूपये की कीमत अधिक थी ।

नशे की लत आर्थिक रूप से बुद्धि का प्रयोग नहीं करने देती । हमारा कानून व सरकारी तंत्र नशे की वस्तुओं पर उनसे होने वाली बीमारयों के प्रति सावधान करना अपना कर्तव्य समझ कर लिख देते हैं जैसे धुम्रपान से फेफड़ों में कैंसर होता है, तम्बाखू व गुटखे से मुंह का कैंसर होता है और शराब मौत का सामान है वगैरह परन्तु इन नशे की वस्तुओं के उत्पादन को बंद नहीं करते । नशे की वस्तुओं से सरकार को बहुत अधिक आमदनी (कर) के रूप में प्राप्त होती है तथा कारखानों व इससे जुड़े व्यवसायियों को मोटा मुनाफा होता है , नशे को समाज व धर्मशास्त्री और बुद्धिजीवी वर्ग भी बंद करवाने के प्रति जागरूक नहीं है । नशा करने वाले इन्सान जब तक इससे होने वाले शरीरिक, मानसिक, आर्थिक, व समाजिक सम्मान की हानि के परिणाम पर ध्यान नहीं देगा तथा स्वंय को धोखा देना बंद नहीं करेगा तब तक नशा उसका पीछा नहीं छोड़ेगा यदि कोई इन्सान किसी को नशे की लत लगाने की कोशिश करता है तो वह अपना कोई स्वार्थ उससे पूर्ण करना चाहता है अथवा उसका जीवन बर्बाद करना चाहता है ऐसा मनुष्य मित्र तो हो ही नहीं सकता इसलिए ऐसे इंसानों से सावधान रहना आवश्यक है ।

दिखावा

June 8, 2014 By Amit Leave a Comment

dikhawa

इस दौर में प्रत्येक इन्सान स्वयं को एंव अपनी वस्तुओं को, अपनी पसंद को, अपने द्वारा किये गए कार्यों को समाज में महत्वपूर्ण प्रमाणित करने की दौड़ में लगा हुआ है । प्रत्येक इन्सान अपनी बुद्धि, अपना परिवार, अपनी जाति, अपना धर्म, अपना कर्म सभी को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा समाज में मनवाना चाहता है और इन सभी को प्रमाणित करने के लिए हर तरह के आडम्बर अर्थात दिखावा करता है । इस दिखावे के लिए श्रेष्ठतम भोजन व उसका बखान, श्रेष्ठतम वस्त्र, श्रेष्ठतम वाहन, श्रेष्ठतम आभूषन, व श्रेष्ठतम घरेलू साजो सामान सभी उपयोग में लाया जाता है । इस महत्वता प्रमाणित करने की दौड़ में खर्च होने वाली धन राशि या तो पैत्रिक सम्पत्ति को खा जाती है अथवा प्राप्त आमदनी को समेट देती है । कभी कभी तो उधार व बैंक लोन जैसी समस्याओं से भी गुजरना पड़ता है ।

अधिकतर इन्सान अधिक दिखावे के कारण बर्बादी के रास्ते पर चल पड़ते हैं म्ह्त्वाक्षाओं को पूर्ण करने के लिए बेईमानी व भ्रष्टाचार का रास्ता अपना लेते हैं तथा परिणाम स्वरूप परेशानी की हालत में पहुंच जाते हैं और अपराध में पकड़े जाने पर समाज में अपमानित होते हैं । जिस समाज में सम्मान पाने के लिए आडम्बर किया जाता है वही समाज उनके सम्मान की धज्जियां बिखेर देता है । जिनके पास आवश्यकता से अधिक धन हो वह अपने रुतबे को कायम रखने के लिए महंगे संसाधनों का उपयोग करते हैं तो उनकी रीस में अपने आप को बर्बाद करना अक्लमंदी नहीं होती । मध्यम वर्गीय परिवार सबसे अधिक इस दौड़ में शामिल हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी कार्यों में दिखावा ही दिखावा समाज की प्राथमिकता है ।

खाना, शिक्षा, वस्त्र, त्यौहार, शादी, घरेलू साजो सामान, वाहन, आभूषण वगैरह सभी कार्य दिखावे के आधार पर किये जाते हैं । भोजन स्वास्थ के लिए आवश्यक है परन्तु इन्सान स्वास्थ को त्याग कर स्वाद व दिखावे के आधार पर प्रयोग कर रहा है । ज्ञात होने पर भी की फास्ट फ़ूड कहे जाने वाले पदार्थ स्वास्थ के लिए हानिकारक हैं परन्तु जब दूसरे मनुष्य प्रयोग कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते । वस्त्र शरीर की धूल व धूप से रक्षा के लिए पहने जाते थे परन्तु अब दिखावे के तरीके से पहने जाते हैं जो ना तो शरीर को सही प्रकार से ढंक पाते हैं या शरीर पर इतने जकड़े हुए होते हैं कि शरीर की कमजोर नसों को नुकसान पहुंचाते हैं एवं महंगे वस्त्र प्राक्रतिक कपास के धागों से नहीं बने होते वे रसायन से बने धागे से बने हुए होते हैं जो स्वास्थ के लिए हानिकारक होते हैं ।

शिक्षा उस स्कूल में कराई जाती है जहाँ फ़ीस व फैशन अधिक होता है शिक्षा की प्रणाली व श्रेष्ठता देखना अनिवार्य नहीं होता । त्योहारों पर दिखावे की इतनी अधिक धूल जमी हुई है कि त्यौहार मुसीबत नजर आने लगे हैं । शादी, विवाह के मौके पर दिखावे के कारण समाज में कन्या को हीनभावना की द्रष्टि से देखा जाता है । समाज में जननी होने के पश्चात भी स्त्री को पुरुष से तुच्छ समझा जाता है । यदि विवाह के समय होने वाला आडम्बर बंद कर दिया जाये तो स्त्री का स्थान समाज में महत्वपूर्ण होगा । वाहन, आभूषण, घरेलू साजो सामान देखकर समाज में स्वयं को महत्वपूर्ण समझना नादानी है । हमारे संसाधनों से किसी दूसरे का कोई लाभ नहीं होता तो उसके लिए हमारे संसाधन व हमारा धन कबाड़े के समान है फिर वह क्यों हमें महत्वपूर्ण समझेगा । यदि कीमती सामान को देख कर कोई हमारी तरफ आकर्षित होता है तो वह चोर या लुटेरा हो सकता है ।

समाज में यदि खुद को महत्वपूर्ण बनाना है तो समाज व इंसानियत के लिए निस्वार्थ सेवा भाव से महत्वपूर्ण कार्य करने आवश्यक होते हैं तभी समाज महत्वता प्रदान करता है । समाज किसी धनवान को देखकर सम्मान नहीं देता वह समाज सेवी, सभ्य व भद्र मनुष्य, ईमानदार व कर्मठ, उच्च व्यहवारिक इंसानों को सम्मान की द्रष्टि से देखता है । धर्म व जाति के आधार पर स्वयं को श्रेष्ठ समझने वाला कभी अपने अंतःकरण में झांक कर यह नहीं देखता कि वह सिर्फ एक प्राणी है जो संसार में ईश्वर की दया पर जीवित है और उसने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जिससे वह श्रेष्ठ इंसानों की लाइन में खड़ा हो सके । अपनी बुद्धि को श्रेष्ठ समझकर बहस करने वाला मनुष्य स्वयं बुद्धिहीनता का परिचय देता है क्योंकि संसार की सम्पूर्ण जानकारी व ज्ञान सिर्फ ईश्वर के पास है । ज्ञानी मनुष्य बहस नहीं करते वे तर्क प्रस्तुत करते हैं ।

बीमारी

July 10, 2014 By Amit Leave a Comment

bimari

शरीर की क्षमता में अवरोध उत्पन्न होने एंव शरीर में पीड़ा उत्पन्न होने को बीमारी का नाम दिया गया है । बीमारियाँ दो प्रकार से इन्सान के जीवन को प्रभावित करती हैं अनियमित तथा नियमित । अनियमित बीमारी स्वस्थ शरीर को कभी भी प्रभावशाली होकर परेशान करती है एंव कुछ समय बाद सही इलाज होने पर दूर हो जाती है । अनियमित बीमारियाँ बदलते मौसम तथा इन्सान की लापरवाही का परिणाम होती हैं जिसका स्वास्थ पर अधिक प्रभाव नहीं होता । नियमित बीमारी इन्सान को जीवन भर परेशान करती है वह चाहे साधारण बीमारी हो या असाधारण । नियमित बीमारी का इन्सान पर समय के साथ प्रभाव बढ़ता जाता है तथा बढ़ते प्रभाव के साथ बीमारी अपना भयंकर रूप लेकर इन्सान की जीवन लीला समाप्त होने तक उसे तडपाती है कभी कभी तो इन्सान अपनी बीमारी से इतनी बुरी तरह त्रस्त हो जाता है कि आत्म हत्या करने पर भी उतारू हो जाता है ।

किसी भी बीमारी का होना अधिकांश इन्सान की अपनी गलती का परिणाम होता है वह चाहे साधारण हो या असाधारण बीमारी । उसके इलाज में होने वाली लापरवाही उसे भयंकर रूप देती है । अनियमित बीमारी के इलाज की लापरवाही या मरीज का चिकित्सक द्वारा गलत मार्ग दर्शन भी उसे नियमित बना देता है जो भयंकर रूप लेकर मरीज का जीवन बर्बाद कर देती है । अधिकतर भयंकर बीमारियाँ जैसे हृदय घात, मस्तिक घात, लकवा आदि जो रक्त से सम्बन्धित हैं वें सभी साधारण रूप से आरम्भ होती हैं जो सर्व प्रथम उच्च रक्तचाप के रूप में उजागर होती है । उच्च रक्तचाप को इन्सान साधारण सी बीमारी समझकर लापरवाही करता है जिसके भयंकर नतीजे उसकी बर्बादी का कारण बनते हैं जबकि उच्च रक्तचाप इन्सान के लिए बिमारियों का सूचक होता है । शरीर की नसों में वसा का जमाव बढकर नसों में रक्त बहाव के कार्य में बाधा उत्पन्न करता है जिसका परिणाम उच्च रक्तचाप होता है जो आगे चलकर हृदय घात के रूप में प्रकट होता है तथा वही मस्तिक घात एंव लकवा जैसी बीमारी का कारण होता है ।

किसी भी प्रकार की बीमारी जब तक किसी इन्सान को नहीं होती वह खुद को पूर्णतया स्वस्थ समझकर लापरवाह जीवन व्यतीत करता है । किसी बीमारी के आरम्भ में ही इन्सान की यह मानसिकता कि अच्छे से अच्छा चिकित्सक उपलब्ध है वह भ्रमित होता है क्योंकि चिकित्सक वर्तमान में व्यापारी बन कर रह गए हैं जो बीमारी के इलाज से अधिक इन्सान के धन को ठिकाने लगाते हैं । वैसे भी जब तक इन्सान अपनी बीमारी को लेकर स्वयं संवेदनशील नहीं होता उसका पूर्णतया इलाज संभव नहीं होता । जैसे किसी मशीन की खराबी दूर करने से पहले उसकी खराबी का कारण जानना आवश्यक होता है क्योंकि ज्ञात होने पर तथा उसका निवारण होने पर उसमे दोबारा वह खराबी उत्पन्न नहीं होती है । उसी प्रकार इंसानी बीमारी का कारण ज्ञात होने पर उसका निवारण उचित प्रकार होता है तथा उस बीमारी के दोबारा होने का खतरा भी समाप्त हो जाता है ।

bimari

इन्सान की सभी बिमारियों में से कुछ बीमारी जैसे बदलते मौसम या मच्छरों के काटने था चोट लगने को छोडकर सभी बीमारी इन्सान की स्वयं उत्पन्न करी हुई होती हैं । इन्सान चार पदार्थों पर जीवित है वायु, जल, भोजन व उर्जा इनके गलत प्रयोग से ही सभी बिमारियो का आरम्भ होता है । प्रदूषित वायु या प्रदूषित जल व नकारात्मक उर्जा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है एंव भोजन के द्वारा बिमारियों का शरीर में प्रवेश होता है । रक्त से सम्बन्धित तथा पेट की सभी बीमारियाँ अधिक वसा युक्त, तला हुआ, फास्टफूड तथा अधिक मात्रा में भोजन करने से आरम्भ होती हैं । अधिक मात्रा में तथा अनुचित तरीके से बनाई हुई चाय, काफी एवं आधुनिक पेय पदार्थों का सेवन तथा नशीले पदार्थों जैसे शराब, सिगरेट, तम्बाखू, गुटखे वगैरह का सेवन भी बिमारियों की जड है जिनसे बीमारी पोषण प्राप्त कर अपना भयंकर रूप प्रकट करती है ।

इन्सान को बिमारियों से दूरी बनाए रखने के लिए समय पर सोना तथा भोर में जागना कुछ समय खुले वातावरण में घूमना तथा अधिक पानी का प्रयोग करना एंव प्राणायाम द्वारा शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाना व संतुलित मात्रा में एवं स्वास्थ्य के लिए वसा रहित भोजन करना जैसे उपाय करे तो बेहतर परिणाम आता है । लेखक स्वयं ग्यारह वर्ष पूर्व हृदय घात का शिकार होकर बगैर किसी चिकित्सक द्वारा इलाज करे इन्ही उपायों द्वारा स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहा है तथा दावा करता है कि हृदय घात जैसी बीमारी उसे छू भी नहीं सकती । बीमारी होने पर मानसिक तौर पर घबराने से उसमे बढ़ोतरी हो जाती है इसलिए घबराहट त्याग कर स्वयं प्रयास करने से बीमारी दूर हो जाती है तथा किसी चिकित्सक की आवश्यकता भी नहीं होती ।

Next Page »

Recent Posts

  • वफादारी पर सुविचार – vafadari par suvichar
  • धोखे के कारणों पर सुविचार – dhokhe ke karno par suvichar
  • sukh or dukh par suvichar – सुख व दुःख पर सुविचार
  • sukh or shiksha par suvichar – सुख व शिक्षा पर सुविचार
  • अभिलाषाओं पर सुविचार – abhilashao par suvichar

जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

Copyright © 2021 jeevankasatya.com