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neeti – नीति

May 12, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

जब किसी भी कार्य का उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए योजना बद्ध तरीके से कार्य किया जाता है | वह योजना पद्धति नीति (neeti) कहलाती है | नीति (neeti) इन्सान के जीवन का सबसे अनिवार्य विषय हैं | क्योंकि कार्य में परिश्रम से planning (neeti) अधिक महत्वपूर्ण होती है | नीति (neeti) उत्तम हो तो कम परिश्रम से भी उत्तम परिणाम आते हैं | यदि नीति (neeti) कमजोर हो अथवा ना हो तो अधिक परिश्रम करने पर भी परिणाम ओछे रह जाते हैं |

जैसे देश में प्रशासन चलाने के लिए राजनीती एवं विदेशों से सम्बन्ध बनाने के लिए कूटनीति का उपयोग होता है | यदि राजनीती या कूटनीति कमजोर हो तो देश की समृद्धि एवं प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है उसी प्रकार इन्सान के जीवन में किसी भी कार्य में नीति कमजोर होती है तो वह सदैव असफल होता है | एक सफल जीवन के लिए इन्सान को नीतिवान होना आवश्यक है|

इन्सान को जीवन में प्रत्येक कार्य में नीति अपनाने की आवश्यकता होती है | शिक्षा, कर्म, विवाह, सम्बन्ध, परवरिश, समाज, परिवार सभी जगह नीति आवश्यक होती है | शिक्षा में शीर्ष पर रहने वाले विद्यार्थी कर्म क्षेत्र में जब अपने से कम अंक प्राप्त करने वालों को उन्नति प्राप्त करते हुए देखते हैं तो उन्हें लगता है यह किस्मत, सिफारिश या चापलूसी द्वारा सफल हो रहे हैं | सबसे अधिक अंक प्राप्त करने पर कर्म क्षेत्र में पिछड़ना वास्तव में उनकी कमजोर शिक्षा नीति (planning) होती है |

जो विद्यार्थी पुस्तकों को इतना अधिक रटते हैं कि जैसा पुस्तक में लिखा होता है | बिलकुल वैसा ही परीक्षा में लिखकर शत -प्रतिशत अंक अवश्य प्राप्त कर लेते हैं | परन्तु शिक्षा का वास्तविक अर्थ ना समझने के कारण कर्म क्षेत्र में उपयोग करने पर असफल होते हैं | शिक्षा नीति (neeti) के अनुसार विषय का अर्थ समझना तथा उसके मर्म एवं गहराई को समझने से विद्यार्थी विद्वान् बनता है | जो कम अंक प्राप्त करने पर भी किसी भी कर्म क्षेत्र में कभी विफल नहीं होता |

इन्सान जब कर्म करना आरम्भ करता है वह नौकरी, व्यापार, कृषि, उद्योग, कला, खेल, शिक्षक या अन्य किसी भी प्रकार का कार्य करे उसके लिए एक अच्छी नीति (neeti) अपनाना आवश्यक है | कर्म क्षेत्र की सबसे पहली नीति है ईमानदारी जो इन्सान अपना कार्य ईमानदारी से करता है तथा वह कार्य के प्रति पूर्ण निष्ठावान एवं समर्पित होता है उसकी सफलता को कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती |

कर्म क्षेत्र की दूसरी नीति इन्सान का व्यवहार होता है जो दूसरे इंसानों को प्रभावित करके अपना कार्य सम्पन्न करने में सफलता प्रदान करता है | समय का सम्मान करना अर्थात सदैव समय पर कार्य करना इन्सान की सफल नीति (neeti) होती है | इन्सान की वाणी, आचरण, भाषा, शब्द, परिश्रम सभी नीति अनुसार उपयोग करने पर वह सदैव सफलता की सीढियाँ चढ़ता है |

वैवाहिक जीवन अपनाते समय अधिकतर स्त्री की सुन्दरता एवं शिक्षा तथा पुरुष की आमदनी एवं शिक्षा देखी जाती है | जिसके कारण विवाह के कुछ समय के पश्चात ही घरेलू झगड़े आरम्भ हो जाते हैं | सफल गृहस्थ जीवन के लिए वैवाहिक नीति (neeti) के तहत स्त्री पुरुष का व्यवहार, आचरण, कर्म, प्रतिष्ठा, मानसिकता, सभी में समानता होना आवश्यक है | सभी प्रकार के सम्बन्ध सुरक्षित रखने के लिए इन्सान को उनमें गर्मजोशी बनाए रखना तथा किसी प्रकार की आलोचनाओं, बहस, तानाकशी, भेदभाव से बचना आवश्यक होता है | आवश्यकता से अधिक हास्य भी सम्बन्धों को क्षीण करता है सम्बन्ध नीति के अनुसार इन्सान को अपनी मर्यादा का सदैव पालन करना अनिवार्य होता है |

सन्तान की अच्छी परवरिश करने पर भी जब सन्तान आवारा अथवा नाकारा बन जाए तो दोष किस्मत को दिया जाता है | सन्तान के आवारा या नाकारा होने का कारण परवरिश में गलत नीति (neeti) अपनाना होता है | सन्तान को आवश्यकता से अधिक सुविधाएं प्रदान करना उन्हें आलसी एवं नाकारा बनाना है | सन्तान को अधिक धन प्रदान करने का अर्थ है उन्हें आवारा बनाना | जब तक सन्तान समझदार ना हो उन पर दृष्टि बनाए रखना तथा उनका मार्गदर्शन करना बहुत आवश्यक होता है | परवरिश की सबसे अधिक गलत planning (neeti) है | जब माँ बाप सन्तान को समय ना देकर सुविधाओं द्वारा अपना पीछा छुड़ाने का प्रयास करते हैं तो सन्तान का मार्गदर्शन सोहबत करती है जो उन्हें किसी भी अनुचित मार्ग पर पहुंचा देती है |

समाज हो या परिवार दूसरों के कार्यों में दखल देना, मर्यादाओं का पालन ना करना, बिना मांगें सलाह देना, दूसरों का समय बर्बाद करना ऐसी गलत नीतियाँ हैं | जो इन्सान के जीवन में तकरार एवं कलह का मुख्य कारण बन जाती हैं | विश्वास सदैव मर्यादा में ही करना उत्तम होता है क्योंकि मर्यादा भंग होते ही विश्वासघात का आरम्भ हो जाता है | इन्सान जितना अधिक स्पष्ट जीवन व्यतीत करता है वह उतना ही अधिक सुखी भी रहता है यह जीवन की सबसे उत्तम नीति (planning) है | जीवन में कोई भी कार्य जब नीति अनुसार किया जाता है तो जीवन सरल हो जाता है बिना नीति या कमजोर नीति द्वारा किया गया कार्य सदैव इन्सान के लिए समस्या का कारण बनता है |

unnati – उन्नति

May 31, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी भी प्रकार के कार्य, विषय, वस्तु, सबंध, सम्मान अथवा इन्सान की आमदनी में वृद्धि होना उसकी उन्नति (unnati) कहलाता है | उन्नति इन्सान के लिए सबसे मनमोहक विषय है | उन्नति (unnati) किसी भी प्रकार की हो वृद्धि ही होती है | वह उत्पाद में हो या आमदनी में हो अथवा पद में हो उन्नति (unnati) का परिणाम सदैव वृद्धि  ही होता है |

संसार में कोई भी इन्सान ऐसा नहीं है जिसे उन्नति (unnati) की अभिलाषा ना हो | उन्नति (unnati) करने की अभिलाषा सिर्फ अभिलाषा हो तो उन्नति करना कठिन होता है | इन्सान जब अभिलाषा के साथ प्रयास भी करता है तथा उन्नत कार्य करता है तो उन्नति (unnati) करना संभव हो जाता है | उन्नति (unnati) करने की अभिलाषा यदि इन्सान का लक्ष्य बन जाए तो उन्नति (unnati) होना निश्चित हो जाता है |

इन्सान जब किसी प्रकार का कार्य करते हुए उसे पूर्णयता स्वीकार कर जीवन से समझौता कर लेता है तथा वह उन्नति की अभिलाषा रखते हुए भी प्रयास करना बंद कर देता है तब उसकी उन्नति सामान्य रूप से समय अनुसार ही होती है |

जो इन्सान उन्नति की अभिलाषा करने के साथ-साथ प्रयास भी करते रहते हैं एवं संघर्ष भी करते हैं उनके लिए उन्नति करना सरल हो जाता है | कुछ इन्सान अपनी उन्नति को लेकर अति संवेदनशील होते हैं उनके लिए उनकी उन्नति जूनून की तरह होती है वह वास्तव में शीघ्र उन्नति भी कर लेते हैं |

जिन इंसानों को प्रयास करने के पश्चात भी उन्नति प्राप्त नहीं हुई उन्हें कुछ आवश्यक कारणों पर ध्यान देने, समीक्षा करने एवं समाधान करने की आवश्यकता है | ताकि उनके परिश्रम अनुसार उन्हें उचित उन्नति प्राप्त हो सके | उन्नति ना प्राप्त होने में इन्सान से स्वयं भी अनेकों प्रकार की त्रुटियाँ होती हैं | जिनका उसे स्वयं भी अहसास तक नहीं होता जिनका समाधान करने से उन्नति का मार्ग सरल हो जाता है | सर्वप्रथम इन्सान को खुद को समझना एवं समझाना आवश्यक है यह इन्सान के लिए सबसे सरल कार्य के साथ सबसे कठिन कार्य भी है |

इन्सान के कर्म कितने भी उच्च कोटि के हों परन्तु उसका व्यवहार एवं स्वभाव समाज की दृष्टि में उत्तम ना हो तो उसके समीप का वातावरण उसके विरुद्ध हो जाता है | जिसके कारण उसकी उन्नति में अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं | व्यापार, नौकरी, खेल, अभिनय, अविष्कार या अन्य किसी भी प्रकार का कार्य सभी स्थान पर सबंध सदैव एक दूसरे के काम आते हैं जो इन्सान की उन्नति को भी प्रभावित करते हैं |

दूसरों से कटु वचन बोलना उनका परिहास करना या उनपर आक्रोशित होना इन्सान की अव्यवहारिकता होती है | जिसके प्रभाव से दिखावटी संबध कितने भी अच्छे हों | परन्तु अंदर से विषैले होते हैं | व्यवहार ना करना भी इन्सान के लिए अव्यवहारिकता ही है | क्योंकि जहाँ पर व्यवहार नहीं होता वहाँ सबंधों में खोखलापन होता है |

इन्सान को अपना स्वभाव सबसे अच्छा लगता है | परन्तु उसके स्वभाव में गलत विकार कब शामिल हो गए उसे अहसास तक नहीं होता | बात-बात पर बहस करना, छोटी-छोटी बातों की आलोचना करना, तानाकशी या व्यंग करना इन्सान का ऐसा स्वभाव है जिस पर वह कभी संदेह तक नहीं करता |

बहस, आलोचना, तानाकशी या व्यंग ऐसी ही कोई गलती कब हमारे सबंधों को प्रभावित कर दे | और हमारी उन्नति में अवरोध उत्पन्न कर दे इन गलतियों की तरफ से सावधान रहना आवश्यक है | अपने स्वभाव एवं व्यवहार को सामाजिक रूप से उत्तम बनाने से समाज का साथ एवं उन्नति प्राप्त करना सरल हो जाता है |

पुरानी तकनीक, संसाधनों, सामान, अभिनय, अविष्कार में उलझे रहना इन्सान के पिछड़ेपन की निशानी है तथा पिछड़ कर कभी उन्नति नहीं होती | कोई भी नया एवं उन्नत कार्य, वस्तु, अविष्कार, सामान, फैशन जो भी समाज में नया हो इन्सान को आश्चर्यजनक उन्नति (unnati) प्रदान करता है |

इसको हम चीन जैसे देश से सीख सकते हैं जिसने चंद समय में अद्भुत उन्नति करी है | भारत की जनता के घरेलू सामान से लेकर उनके खेल के सामान, त्यौहार, पूजा सामग्री, दैनिक कार्यों में काम आने वाली वस्तुएं, नई तकनीक के संसाधन एवं सामान उपलब्ध करवाकर भरपूर धन कमा रहा है|

खुद को बुद्धिमान एवं परिश्रमी समझने वाले भारतवासी चुपचाप तमाशा देख रहे हैं | परन्तु कभी चीन की तरह खुद प्रयास नहीं करते क्योंकि भारतवासियों की दृष्टि में उन्नति का अर्थ सिर्फ धनवान बनना है | उन्नति का अर्थ वास्तव में कार्यों को उन्नत बनाकर उनमें वृद्धि करना है वह वृद्धि सिर्फ धन की नहीं होती सम्मान में भी वृद्धि होना आवश्यक है तब इन्सान की वास्तविक उन्नति होती है | धन के साथ सम्मान में वृद्धि तब होती है जब वह कुछ नया करता है |

जो इन्सान वास्तव में उन्नति करना चाहता है उसे सबसे पूर्व अपने परिवार के साथ समाज, व देश की उन्नति के विषय में भी सोचना पड़ेगा | क्योंकि जब तक देश व समाज उन्नति नहीं करता इन्सान की अपनी उन्नति अधूरी होती है | उन्नति का अर्थ सिर्फ धन कमाना नहीं है | क्योंकि धन अधिक हो जाए तो लुटेरे पीछे लग जाते हैं उन्नति का अर्थ खुद को उन्नत बनाना है | अर्थात बुलंदियां छूना है और जब इन्सान बुलंदियां छू लेता है तो वह उन्नत होकर उन्नति (unnati) कर ही लेता है |

akarshan – आकर्षण

July 20, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी के प्रति मानसिकता प्रभावित होकर जब जिज्ञासा उत्पन्न करती है तो वह आकर्षण (akarshan) होता है । आकर्षण (akarshan) एक प्रकार का गुण है | जो किसी भी वस्तु, विषय अथवा इन्सान को महत्वपूर्ण बना सकता है । कोई इन्सान कितना भी प्रतिभाशाली या श्रेष्ठ हो तथा कोई वस्तु अथवा विषय कितना भी उत्तम हो वह जब तक दूसरों की दृष्टि में अपने लिए आकर्षण (akarshan) उत्पन्न नहीं करता महत्वहीन होता है ।

जो किसी को भी आकर्षित करके उसे प्रभावित कर देता है | उसकी दृष्टि में महत्वपूर्ण हो जाता है अर्थात आकर्षित करने वाला आकर्षित होने वाले के लिए मूल्यवान बन जाता है । इन्सान की सफलता या असफलता सदैव उसके आकर्षण (akarshan) पर निर्भर करती है कि वह किसी को कितना अधिक आकर्षित (attract) कर सकता है ।

aakarshan par suvichar - आकर्षण पर सुविचार

जब कोई इन्सान बाजार में किसी भी वस्तु की तरफ आकर्षित होता है तब ही वह उसके लिए उपयोगी होती है । बिना आकर्षित हुए इन्सान किसी भी वस्तु की तरफ देखना भी पसंद नहीं करता । वस्तु का प्रथम आकर्षण उसका आवरण (पैकिंग) होता है । आवरण उतारने के पश्चात वस्तु की चमक एवं उसका सौन्दर्य इन्सान को आकर्षित करता है । वस्तु की बनावट तथा उसे उपयोग के लिए उपयुक्त समझकर ही इन्सान उसका मूल्य पूछता है । इन्सान वस्तु के लिए जितना अधिक आकर्षित होता है उसका उतना ही अधिक मूल्य देकर भी उसे प्राप्त कर लेता है । आकर्षित ना होने पर कोई भी इन्सान किसी भी वस्तु को खरीदना पसंद नहीं करता । इन्सान सब्जी लेते समय भी उसकी ताजगी, बनावट एवं चमक से आकर्षित होकर ही उसे खरीदता है ।

इन्सान जब किसी के समक्ष प्रस्तुत होता है तब सर्वप्रथम उसका व्यवहार उसे आकर्षित करता है । व्यवहार एक प्रकार से इन्सान का आवरण होता है जिसमें उसका व्यक्तित्व छुपा होता है । आवरण का आकर्षण अर्थात इन्सान का व्यवहार जितना अधिक आकर्षक होता है उतना ही अधिक वह दूसरों को प्रभावित करता है । इन्सान की भाषा, उसके शब्द, उसकी वाणी की मधुरता तथा स्वागत की गर्मजोशी सभी उसके व्यवहार का आकर्षण होता है जिससे दूसरे प्रभावित होते हैं । जब कोई इन्सान हमारे व्यवहार से आकर्षित होता है तब वह हमसे वार्तालाप करना एवं हमारे विचार समझना पसंद करता है ।

विचार इन्सान की मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं इसलिए विचार सदैव सोच समझकर प्रस्तुत करना श्रेष्ठ होता है । विचार प्रस्तुत करना भी एक कला है क्योंकि इन्सान के विचार कितने भी श्रेष्ठ हों यदि उन्हें अनुचित प्रकार से प्रस्तुत किया जाए तो वह दूसरों को प्रभावित नहीं करते जिसके कारण वह महत्वहीन हो जाते हैं । जो विचार किसी को सरलता से समझ आ जाएँ तथा उसे अपने लिए उपयोगी लगते हों तब ही वह उन विचारों की तरफ आकर्षित होता है । इन्सान के विचार उसकी मानसिकता का सौन्दर्य होते हैं जिनसे प्रभावित होकर दूसरे इन्सान सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करते हैं ।

इन्सान का स्वभाव उसके व्यक्तित्व का दर्पण होता है यदि स्वभाव में आकर्षण ना हो तो इन्सान का व्यवहार एवं विचार तथा उसकी प्रतिभा सभी महत्वहीन हो जाते हैं । स्वभाव की छोटी-छोटी त्रुटियाँ जैसे वार्तालाप के मध्य टोकना, एक ही बात को बार-बार दोहराना, बिना पूछे बतलाने का प्रयास करना, बहस करने का प्रयास करना, किसी प्रकार की आलोचना करना इन्सान को महत्वहीन बनाते हैं । इधर-उधर ताक-झांक करना, किसी सामान को उल्ट-पलट कर देखना या किसी प्रकार की छेड़खानी करना सभी ऐसे छोटे-छोटे कार्य इन्सान के स्वभाव को ओछा बनाते हैं ।

इन्सान के व्यवहार का आकर्षण (akarshan), उसके आकर्षक विचारों का सौन्दर्य एवं आकर्षक स्वभाव के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही उसे उपयोगी समझा जाता है । आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही दूसरे इन्सान सरलता से प्रतिभाशाली इन्सान की प्रतिभा को देखना एवं उसका लाभ उठाना पसंद करते हैं तब इन्सान को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होता है ।

एक बार इन्सान को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का उचित अवसर प्राप्त हो जाए तो वह अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके खुद को प्रमाणित कर सकता है तथा सफलता प्राप्त कर सकता है । एक बार सफल होने के पश्चात इन्सान सदा के लिए संसार में प्रतिभाशाली बन जाता है परन्तु उसे अवसर सदैव उसके व्यवहार, विचार एवं स्वभाव का आकर्षण ही प्रदान करवा सकता है ।

आकर्षण (akarshan) स्वयं एक प्रतिभा है जो किसी भी इन्सान को प्रभावित करने की क्षमता रखता है । इन्सान को प्रतिभाशाली होने के साथ प्रभावशाली होना भी आवश्यक है क्योंकि प्रभाव के बगैर प्रतिभा व्यर्थ होकर रह जाती है और प्रभाव आकर्षण (akarsan) से उत्पन्न होता है । इन्सान जितना अधिक खुद को आकर्षक बना लेता है वह उतना ही शीघ्र सफलता भी प्राप्त कर लेता है ।

kamyabi – कामयाबी

July 22, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

इन्सान द्वारा किसी निर्धारित किए हुए लक्ष्य को प्राप्त करके ,जब उस इन्सान को पूर्ण मानसिक संतुष्टि का अहसास होता है | वह उसकी कामयाबी (kamyabi) कहलाती है |अपने जीवन में कामयाबी (kamyabi) प्राप्त करना प्रत्येक इन्सान की प्रथम अभिलाषा होती है | सभी इन्सान अपने जीवन में खुद को एक कामयाब (kamyabi) इन्सान के रूप में देखना पसंद करते हैं |

अब कामयाबी कैसे प्राप्त हो यह एक विचारणीय विषय है, क्योंकि कामयाबी (kamyabi) यदि सरलता से मिलने वाला विषय होता तो सभी इन्सान कामयाब हो जाते ,तथा कोई भी इन्सान अपने जीवन में संघर्ष करने का प्रयास ही नहीं करता | इस विषय पर कुछ सरल उपाय प्रस्तुत हैं जिनसे कामयाबी (kamyabi) का मार्ग किसी हद तक सरल हो सकता है |

कामयाबी पर सुविचार

कामयाब (sucess) होने के लिए पहले किसी प्रकार का लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है | फिर उस लक्ष्य को प्राप्त करना आवश्यक है | क्योंकि यदि लक्ष्य ही नहीं होगा तो प्राप्त क्या करना है | इससे बुद्धि भ्रमित होकर रह जाएगी | तथा भ्रमित बुद्धि से कामयाबी (sucess) कैसे प्राप्त हो सकती है | यह इस प्रकार होगा जैसे इन्सान घर से कंही जाने के लिए निकलता है | परन्तु उसे पता ही नहीं है कि पंहुचना कहाँ है| अर्थात उसकी मंजिल क्या है तो वह पंहुचेगा कहाँ और कैसे वह भटककर किसी भी गलत स्थान पर पंहुच जाएगा | या निरर्थक घूम कर वापस आ जाएगा |

इसलिए सबसे पहले अपना कोई अच्छा सा लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है | यह कामयाबी (kamyabi) की प्रथम सीढ़ी या प्रथम पायदान है | अनेकों इन्सान बिना लक्ष्य कामयाब होने के प्रयास में लगे रहते हैं | परन्तु जब कामयाबी (kamyabi) नहीं प्राप्त होती तो हताश या निराश होकर अपनी किस्मत को कोसने लग जाते हैं | यह उनके लिए प्रथम अध्याय है |

लक्ष्य निर्धारित करना कोई खेल या मजाक नहीं है यह एक महत्वपूर्ण विषय है | लक्ष्य निर्धारित करने के लिए तीन मुख्य नियम याद रखना अनिवार्य है | इन्सान को अपने आर्थिक बल, शारीरिक बल, एवं बौद्धिक बल के अनुसार ही अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए ताकि वह अपने लक्ष्य को सरलता से प्राप्त करके कामयाब इन्सान बन सके|

क्योंकि जल्दबाजी अथवा अहंकार वश निर्धारित किए हुए लक्ष्य जब प्राप्त नहीं होते तो इन्सान हताशा एवं पिछड़ेपन का शिकार होकर तनाव ग्रस्त हो जाता है | गलत लक्ष्य निर्धारित करना या बार-बार लक्ष्य बदलते रहना भी इन्सान को असफल बना देता है जो सिर्फ समय एवं धन की बर्बादी होती है |

व्यापार, उद्धोग, नौकरी, अविष्कार, खेल, अभिनय या अन्य किसी प्रकार का कार्य सभी के लिए धन की आवश्यकता होती है | नौकरी प्राप्त करने में भी जो समय व्यतीत होता है उसके लिए भी कुछ ना कुछ खर्चा अवश्य चाहिए यदि लम्बे समय तक मनचाही नौकरी ना प्राप्त हो तो इन्सान को अपना खर्चा चलाना अनिवार्य है अर्थात कोई भी लक्ष्य बगैर आर्थिक सहायता के पूर्ण नहीं हो सकता इसलिए अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार लक्ष्य निर्धारित करना उत्तम रहता है|

अन्यथा यह इस प्रकार होगा जैसे इन्सान कंही जाने के लिए घर से निकले परन्तु जिस भी वाहन से जाना हो धन की कमी के कारण रस्ते में ही अटककर रह जाए फिर घर का ना घाट का इससे उत्तम है ना जाना | यदि आर्थिक बल कम हो तो इन्सान पहले एक छोटा लक्ष्य निर्धारित करके खुद को आर्थिक मजबूत बनाए और फिर अपने मनचाहे लक्ष्य के लिए प्रयास करे यह तरीका ही मनचाहे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्तम उपाय है |

आर्थिक बल की तरह ही शारीरिक बल की सक्षमता प्रत्येक कार्य में अनिवार्य है | प्रत्येक इन्सान की शारीरिक क्षमता में अंतर होता है | कोई इन्सान घूमता फिरता अधिक है | कोई कंही पर टिककर बैठा रहता है | कोई बोलता अधिक है | कोई चुप रहना पसंद करता है | कोई आलसी है | जो अधिक समय तक कार्य नहीं कर सकता | कोई लम्बे समय तक कार्य करने में सक्षम होता है| कोई वजन अधिक उठा सकता है | कोई वजन उठाने में सक्षम नहीं होता | इसलिए अपनी क्षमता का आकलन करके ही कार्य किया जाए तो सफलता अवश्य प्राप्त होती है | अन्यथा कार्य अधूरा व इन्सान हताश हो जाता है | जैसे इन्सान घर से कंही जाने के लिए निकले परन्तु रस्ते में थककर बैठ जाए | यदि धीरे-धीरे मंजिल पर पंहुच भी गया | परन्तु अधिक देरी हो गई तो जाने का लाभ ही नहीं होता |

घूमने फिरने व अधिक बोलने वाला इन्सान मार्किटिंग के कार्य में सफल हो सकता है | परन्तु किसी सीट पर बैठकर लम्बे समय तक कार्य नहीं कर सकता | जो इन्सान सीट पर बैठकर चुपचाप घंटों कार्य कर सकते हैं | उन्हें मार्किटिंग के कार्य में कभी अच्छी सफलता नहीं मिल सकती इसलिए सर्वप्रथम अपनी शारीरिक क्षमता की समीक्षा करके ही अपना लक्ष्य निर्धारित करना श्रेष्ठ होता है |

बुद्धि इन्सान की उन्नति का मुख्य आधार है तथा इन्सान की बर्बादी का भी मुख्य आधार भी बुद्धि ही है क्योंकि जो इन्सान स्वयं अपनी बुद्धि की क्षमता एवं कार्य प्रणाली को पूर्ण रूप से नहीं समझता और सदैव उलटे-सीधे कार्य करता रहता है वह खुद को बर्बाद कर लेता है इसका कारण इन्सान का अहंकार एवं लोभ होता है |

जो इन्सान अपनी बुद्धि की कार्य क्षमता को पहचान कर उससे उचित कार्य लेते हैं वह सदैव उन्नति करते हैं | बुद्धि अच्छी या बुरी के अतिरिक्त भ्रमित बुद्धि भी होती है जो इन्सान को सदैव भ्रमित कर भटकाती रहती  है | जीवन में कमयाबी प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम अपनी बौद्धिक क्षमता का आकलन करके ही किसी प्रकार के लक्ष्य को निर्धारित करने का निर्णय लेना उत्तम होता है बौद्धिक क्षमता की समीक्षा करते समय अपने अहंकार एवं लोभ का त्याग करना अनिवार्य है|

क्योंकि इन्सान अहंकार के कारण अपनी बुद्धि को सदैव श्रेष्ठ समझता है | इसलिए अहंकार एवं लोभ के रहते बुद्धि की उचित समीक्षा करना असंभव है | गलत समीक्षा से गलत लक्ष्य निर्धारित होगा जिसके प्रभाव से कामयाबी (kamyabi) यदि आधी-अधूरी प्राप्त भी हो जाए तो संतुष्टि प्राप्त नहीं होगी जिसे कामयाबी (kamyabi) कहना कामयाबी (kamyabi) का अपमान करना ही  है | 

जीवन में किसी भी प्रकार के लक्ष्य को निर्धारित करने के पश्चात उस लक्ष्य को अपने तक ही सिमित रखना उत्तम होता है क्योंकि इसके दो मुख्य कारण हैं एक तो लक्ष्य सार्वजनिक करने से यदि लक्ष्य प्राप्त ना हो तो इन्सान को दूसरों के तानों का सामना करना पड़ता है एवं वह उपहास का पात्र बन जाता है जिससे हताशा एवं तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है |

दूसरा कारण है कि ईर्षा के कारण बहुत से इन्सान लक्ष्य से ध्यान भटकाने का प्रयास करते हैं तथा कोई-कोई तो अडचनें उत्पन्न करना या टांग खींचने का कार्य भी करते हैं इसलिए अपने लक्ष्य को राज रखने से ऐसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता | इन्सान को भटकाने या अडचनें डालने अथवा उपहास करने का कार्य परिवार के सदस्य भी करते हैं इसलिए जब तक लक्ष्य के समीप ना पंहुचा जाए परिवार से भी गुप्त रखने में ही भलाई है | यदि माँ बाप को भी लक्ष्य बताना हो तो उन्हें भी सार्वजनिक करने से मना करना उत्तम है क्योंकि माँ बाप उत्साह में सार्वजनिक कर देते हैं | इसलिए लक्ष्य अपने तक सीमित रखना ही उत्तम होता है |

लक्ष्य निर्धारित करने के पश्चात लक्ष्य तक पंहुचने की अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित करना अनिवार्य है यह कामयाबी की सीढ़ी का दूसरा पायदान है | क्योंकि जानकारी ना हो तो लक्ष्य तक पंहुचना कठिन हो जाता है जैसे घर से निकल कर जहाँ जाना है इसके विषय में उचित जानकारी ना होने से इन्सान का समय रास्ता तलाश करने एवं दूसरों से पूछने में ही व्यतीत हो जाता है यदि किसी ने गलत रास्ता बता दिया तो इन्सान भटककर गलत स्थान पर पंहुच जाता है |

इन्सान के पास अपने लक्ष्य तक पंहुचने के विषय में जितनी अधिक व उत्तम जानकारियां होंगी उसके लिए पंहुचने का मार्ग उतना ही सरल हो जाता है जानकारियां एकत्रित करके उनकी समीक्षा करने से मार्ग में आने वाली समस्याएँ एवं रुकावटें स्पष्ट हो जाती हैं इससे इन्सान का आत्मविश्वास भी प्रबल होता है |

    जानकारियों की समीक्षा के पश्चात कामयाबी की सीढ़ी का तीसरा पायदान है अपने कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार करना जिससे मार्ग में आने वाली रुकावटों एवं समस्याओं का सरलता से समाधान किया जा सके क्योंकि आने वाली किसी भी प्रकार की रुकावट या समस्या का जब पूर्व अनुमान हो तथा इन्सान की उससे निपटने की पूरी तयारी हो तो वह रुकावट या समस्या सरलता से निपट जाती है|

जैसे इन्सान प्रथम बार किसी स्थान पर जाए परन्तु उस के मार्ग की सम्पूर्ण जानकारी व साधनों सहित समस्याओं का पूर्ण ज्ञान हो तो वह अपने इंतजाम से जाता है जिससे वह मार्ग तनाव पूर्ण ना होकर सैर गाह बन जाता है | यदि इन्सान परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार ना हो तो छोटी सी समस्या भी मुसीबत बन जाती है जैसे परीक्षा में कंही पर काली पेंसिल से डाट लगाने हों तथा पेंसिल ना हो तो उसका स्थान आपका कीमती पैन भी नहीं ले सकता उस समय मामूली पेंसिल बड़ी सी मुसीबत बन जाती है|

जैसे अपने पहचान पत्र की फोटो कापी जमा करनी हो वहां पर फोटो कापी करने का साधन ना हो तो मामूली सी फोटोकापी मुसीबत बन जाती है इसलिए कार्यक्रम पहले से तैयार रखना सुविधाजनक होता है ताकि छोटी सी भूल पश्चाताप का कारण ना बन जाए |

 कामयाबी (sucess) की सीढ़ी का चौथा पायदान है लक्ष्य प्राप्ति में होने वाले संघर्ष के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना | कोई भी कार्य आवश्यक नहीं है कि प्रयास करते ही सफल हो जाए जैसे व्यापार करते ही लाभ हो जाए, अविष्कार करते ही सफल हो जाए, खिलाडी को खेलते ही पदक मिल जाए, अभिनय करते ही कलाकार प्रुस्कृत हो जाए, नौकरी का आवेदन करते ही चुन लिया जाए ऐसा असंभव होता है |

कभी किसी को किस्मत के प्रभाव से या किसी प्रकार का तुक्का लग जाए और वह सफल हो जाए तो उससे अपनी तुलना करना मूर्खता है | लक्ष्य प्राप्ति के संघर्ष में गलतियाँ भी होती हैं या बिना गलती के भी असफलता मिल सकती है उस स्थिति में हताश या निराश होना अथवा तनाव ग्रस्त होना नादानी है क्योंकि जीत उसी की होती है जिसके हौसले बुलंद होते हैं |

असफलता इन्सान को सदा भयभीत करती है तथा भयभीत होकर जो भी कार्य किया जाए सफलता मिलना कठिन होता है जीत के लिए खेलने वाले को हार का भय होता है परन्तु सीखने वाला कभी भयभीत नहीं होता क्योंकि उसे हार जीत की चिंता नहीं  होती इसलिए जो  इन्सान अपने लक्ष्य के मार्ग को सबक या अनुभव प्राप्त करने का साधन समझकर आगे बढ़ता है वह कभी हार नहीं मानता और अंत में जीत भी उसी की होती है | इसलिए हार को अनुभव व सबक समझने तथा गलतियां सुधारने का साधन समझना उत्तम होता है इससे ना तनाव होता है ना इन्सान हताश या निराश होता है और संघर्ष करते-करते कामयाब भी हो जाता है |

 कामयाबी का अगला व सबसे महत्वपूर्ण पायदान है अपने विषय में नियमित होना अर्थात (अप टू डेट) होना सभी विषयों में सदैव नई तकनीक विकसित होती रहती है इन्सान जब तक उस तकनीक पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं करता वह पिछड़ जाता है तथा पिछड़ा हुआ इन्सान कामयाब कैसे हो सकता है |

खिलाडी के लिए नित नए नियम बनते हैं, नौकरी में नए विषय निकल जाते हैं, व्यापार में नए फैशन या ब्रांड उत्पन्न हो जाते हैं, अभिनय में नई तकनीक का उपयोग होने लगता है, अविष्कार के नए उपकरण उपलब्ध हो जाते हैं  जब तक इन्सान उन सबकी जानकारी से जुडकर खुद को नवीनतम साधनों या विषयों से तैयार नहीं कर लेता वह कामयाब नहीं हो सकता विद्यार्थी जिन किताबों को पढ़कर परीक्षा देता है वह एक वर्ष पूर्व की छपी होती हैं तथा उनका पाठ्यक्रम कितने वर्ष पुराना होगा|

यह प्रमाणित नहीं होता इसलिए उच्च कोटि में पास होने वाला विद्यार्थी जब अपनी बुद्धि पर अहंकार करता है तो वह भी मूर्ख ही होता है क्योंकि वर्तमान में सब कुछ नया विकसित हो चुका होता है इसलिए खुद को नियमित करना आवश्यक है |

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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