
मन की प्रेरणा से किसी विषय या वस्तु की सत्यता को परखने की अभिलाषा में बुद्धि की प्राप्त जानकारीयों को एकत्रित कर विचारों का मंथन करने से मानसिकता विवेक के रूप में उस विषय या वस्तु की गहराई से जांच करके उसकी सत्यता को प्रकट करती है वह ज्ञान है । ज्ञान की उत्पत्ति विवेक के द्वारा होती है परन्तु ज्ञान को सरलता पूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता उसके लिए बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की क्षमता व मन पर अधिकार करके इन्द्रीओं को वश में करना और दृढ इच्छा शक्ति एंव भरपूर आत्म विश्वास का होना आवश्यक है । कमजोर मन प्रेरणा या कामना का श्रोत हो सकता है परन्तु इन्द्रीओं के वशीभूत होकर उन्हें आनन्द प्राप्त करवाने की सोच उसे किसी भी कार्य करने में बाधा उत्पन्न करती है यह चंचलता त्याग करने पर ही मन स्थिर होता है तथा विवेक से सहयोग के लिए कार्य करता है ।
आत्म विश्वास की कमी होने पर इन्सान किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकता क्योंकि कमजोर इच्छा शक्ति उसे अपने कार्यों की सफलता में बाधक होती है । बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की भावना से ही इन्सान विद्या के पीछे भागता है जिससे बौधिक स्तर विकास करता है जिसके लिए इच्छा शक्ति का दृढ होना अनिवार्य है जिससे ज्ञान प्राप्त करना सरल हो जाता है । संसार का निर्माण और उसकी साज सज्जा एंव सभी प्रकार की सुख सुविधाएं इन्सान के ज्ञान द्वारा ही उपलब्ध हुई हैं । संसार को आदिकाल से निकाल कर उसे आधुनिक बनाने का कार्य इन्सान के ज्ञान से ही संभव हुआ है ।
इन्सान ने प्रथ्वी का सीना चीर कर उसमे से अनेक धातुओं को प्राप्त किया तथा सभी प्रकार के पदार्थ एंव रसायन प्राप्त किए जिनके द्वारा वह विभिन्न प्रकार के अविष्कार करके इस संसार को नया रूप दे सका । एक सदी पूर्व ही इलैक्ट्रानिक उपकरण तथा मोबाईल फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वायुयान, टी वी, वाहन वगैरह सभी परीलोक की कथाओं से अधिक नहीं थे । जिन वस्तुओं का साधारण जीवन में उपयोग करते हैं वे सभी पहले इन्सान की सोच से बाहर थी । इन सभी उपकरणों व संसाधनों को इन्सान ने अपने ज्ञान से प्राप्त किया है । इन वस्तुओं एंव उपकरणों व संसाधनों का प्रकृति से कोई लेना देना नहीं है । इन्सान ने संसार में अपने ज्ञान द्वारा असंभव को संभव कर दिखाया इसलिए इन्सान को संसार का निर्माता कहना गलत नहीं होगा ।
जिस ज्ञान के द्वारा इन्सान सभी कार्यों को अंजाम देता है वह सभी इन्सान प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति ने मस्तिक के निर्माण में किसी भी इन्सान में अंतर नहीं किया । जब दूसरे इन्सान अपने ज्ञान का विस्तार करके आविष्कारों को अंजाम दे सकते हैं तो जो सिर्फ बैठ कर उनकी उपलब्धिओं को देखते हैं या उनका वर्णन करते हैं उन्हें यह ज्ञान प्राप्त क्यों नहीं हो सकता । इसका कारण लाचारी से देख कर खुद को असहाय समझने वाले इंसानों की सोच का है जो ज्ञान को पुस्तकों या शिक्षकों के पास तलाश करते हैं क्योंकि ज्ञान सिर्फ पुस्तक से प्राप्त होने वाला विषय नहीं है यदि पुस्तकों के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता जिसे पढ़कर नए अविष्कार किए जा सकते तो लेखक स्वयं अविष्कार करके संसार में सम्मान प्राप्त कर लेता । पुस्तक अविष्कार के बाद लिखी जाती है तथा पुस्तकों से सिर्फ विद्या प्राप्त होती है जो ज्ञान प्राप्त करने में सहायक की भूमिका निभाती है । ज्ञान प्राप्त करने के लिए मन की प्रेरणा, बुद्धि की जानकारियाँ एंव विवेक का मंथन आवश्यक होता है जितना विश्वास शिक्षकों पर करके ज्ञान की खोज में इन्सान भटकता है यदि अपने विवेक पर विश्वास करे तो परिणाम अच्छे निकलते हैं ।
धर्म शास्त्री या ईश्वर भक्ति से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता विवेक द्वारा विचारों के मंथन से ज्ञान की प्राप्ति होती है ज्ञान किसी भी प्रकार का हो वह सदा निर्माता होता है फिर वह चाहे मशीनों पर हो या जीवों, ग्रहों, ईश्वर या रसायनों वगैरह पर हो । सभी प्रकार का ज्ञान संसार को नई रोशनी प्रदान करता है । ज्ञानी इंसानों ने सृष्टि की खोज करके उसके रहस्यों का पता लगाया । ज्ञान के द्वारा इन्सान सृष्टि के कण कण की खोज में लगा हुआ है तथा उससे प्राप्त पदार्थों का प्रयोग करके नए रास्ते तलाश कर रहा है । इस तलाश और नव निर्माण में सहायक होने वालों को संसार सदा सम्मान देता है यदि कोई अपने ज्ञान से संसार की सेवा करेगा तो इंसानियत उसका सम्मान करेगी और उसे प्रणाम करेगी ।
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