इन्सान की भावनाओं में गिरावट उत्पन्न होकर जब वह निम्न स्तर पर पहुँच जाती हैं तो वह हीनभावना (hinbhawna) कहलाती हैं | अर्थात तुच्छ या ओछी भावनाएं | हीनभावना (hinbhawna) इन्सान की मानसिकता में उत्पन्न बहुत हानिकारक विकार होता है | जब इन्सान की मानसिकता में नफरत (nafrat) उत्पन्न होती है तो वह खुद को अन्य इंसानों से तुच्छ समझने लगता है | हीनभावना (hinbhawna) के कारण इन्सान खुद को असक्षम समझने लगता है एवं उसके हौसले पस्त हो जाते हैं जिसके कारण उसके जीवन में उन्नति समाप्त हो जाती है क्योंकि उन्नति सदैव इन्सान को हौसले के बल ही पर प्राप्त होती है |
हीनभावना ((hinbhawna)) अहंकार का बिलकुल विपरीत विकार है | अहंकार के मद में इन्सान खुद को श्रेष्ठ समझता है | परन्तु नफरत (nafrat) के कारण इन्सान खुद को तुच्छ समझने लगता है | उसे लगता है वह दूसरे इंसानों से कमजोर है | अहंकार के कारण इन्सान खुद को किसी भी कार्य में सक्षम समझता है परन्तु हीनभावना के कारण इन्सान खुद को असहाय एवं असक्षम समझता है | हीनभावना के प्रभाव से साहस समाप्त होने से उन्नति ना करने के कारण इन्सान का जीवन स्थिर हो जाता है तथा उसका जीवन अभावग्रस्त होने लगता है |
नफरत (nafrat) के प्रभाव से बचने के लिए इस विषय की समीक्षा करना बहुत आवश्यक है | हीनभावना (hinbhawna) उत्पन्न होने का मुख्य कारण इन्सान के जीवन में निरंतर असफलताएँ होना है | जब भी इन्सान किसी कार्य में असफल होता है तो उसे लगता है वह सफल इंसानों से बुद्धि या प्रतिभा में कमजोर है | हीनभावना से पीड़ित इन्सान यदि अपनी बुद्धि या प्रतिभा पर विश्वास करता है तो उसे अपनी किस्मत खराब लगती है जिसके कारण वह असफल होता है उसे लगता है उसकी खराब किस्मत के कारण वह कभी सफल नहीं हो सकता | यह हीनभावना उत्पन्न होने के प्रभाव के कारण इन्सान अपने जीवन में उन्नति के प्रयास त्याग कर प्रत्येक असफलता पर सिर्फ अफ़सोस करता है |
नफरत (nafrat) के कारण अपनी किस्मत पर अफ़सोस करना मूर्खता है क्योंकि खराब इन्सान की किस्मत नहीं उसकी आदत होती है जिसके कारण वह असफल होता है | जब कोई अल्प बुद्धि या बिना प्रतिभा के भी इन्सान उन्नति करता है तो उसे उन्नति करते देखकर ही हीनभावना उत्पन्न होती है समझा जाता है कि उनकी उन्नति उनकी किस्मत के कारण हो रही है | जिनको किस्मत के कारण उन्नति प्राप्त होना समझा जाता है उनके सबंध अन्य इंसानों से बहुत अच्छे एवं विस्तृत होते हैं परन्तु असफल होने वाले इंसानों के सबंधों का दायरा सीमित होता है | वास्तव में उन्नति प्राप्त करने के लिए इन्सान को सबंधों की आवश्यकता होती है जिनके सहयोग एवं सहायता से वह आगे बढ़ता है |
सफल जीवन के लिए कुछ तथ्यों को समझना बहुत आवश्यक है कि किस कारण उसके जीवन में असफलताएँ प्रवेश करती हैं | सर्वप्रथम इन्सान का व्यवहार उसके सबंधों का मुख्य कारण होता है | इन्सान का व्यवहार कितना भी श्रेष्ठ हो यदि दूसरे इंसानों से व्यवहार का आरम्भ ही ना हो तो उसके सबंध कभी स्थापित नहीं हो सकते | हीनभावना (heenbhawna) से ग्रस्त इन्सान अधिकतर अन्य इंसानों से सबंध स्थापित नहीं कर पाते क्योंकि वह दूसरे इंसानों के द्वारा पहल करने का इंतजार करते रहते हैं | अल्प सबंध असफलता का मुख्य कारण होते हैं इसलिए स्वयं आरम्भ करके सबंधों का विस्तार करना बहुत आवश्यक कार्य है ताकि असफल होकर हीनभावना (heenbhawna) का शिकार ना होना पड़े |
इन्सान के व्यवहार में दूसरा अनिवार्य काम उसमें गर्मजोशी होना बहुत आवश्यक है क्योंकि सबंध जितने अधिक जोशीले होते हैं उनसे उतना ही अधिक लाभ भी प्राप्त होता है | जब अपने व्यवहार में गर्मजोशी होती है तो दूसरे इन्सान के व्यवहार में भी उत्साह में वृद्धि हो जाती है तथा सबंध प्रगाढ़ हो जाते हैं | व्यवहार में तीसरा कार्य सबंधों में ताजगी बनाए रखना है | अधिकतर इन्सान सबंध बनाने के पश्चात आवश्यकता होने पर ही सबंधों का उपयोग करता है इससे सबंध बासी होने लगते हैं | सबंध में ताजगी बनाए रखने के लिए समय-समय पर मिलना तथा वार्तालाप करते रहना बहुत आवश्यक है ताकि आपसी सहयोग एवं सहायता का कार्य सुचारू रूप से चलता रहे |
व्यवहार के पश्चात दूसरा असफल होने का मुख्य कारण है संकोच के कारण अपनी एवं अपने कार्यों की प्रस्तुति ना करना | जब तक दूसरे इंसानों को अपने एवं अपने कार्यों के विषय में सम्पूर्ण जानकारी ना प्रदान की जाए उनसे सबंध होने के पश्चात भी कार्यों का लाभ नहीं मिल सकता क्योंकि वह हमारे कार्यों से अनजान होते हैं | अपने विषय की जानकारी देने के साथ अपनी विशेषताओं का वर्णन करना भी बहुत आवश्यक होता है ताकि दूसरे आकर्षित होकर हमारे कार्यों को लाभ ले सकें एवं हमें उनसे लाभ प्राप्त हो सके | जिन्हें किस्मत के कारण सफल समझा जाता है वह वास्तव में अपने एवं अपने कार्यों के विषय में सभी को जानकारी उपलब्ध करवाकर उनसे लाभ प्राप्त करके सफल होते हैं |
असफल होने का तीसरा मुख्य कारण है उचित प्रकार से आवश्यकता पूर्ति ना करना | अधिकतर इन्सान अपनी आवश्यकता को उचित प्रकार से नहीं समझा पाते जिसके कारण उनकी आवश्यकता पूर्ति में कुछ त्रुटियाँ हो जाती हैं | खुद गलती करके भी दूसरों पर दोष थोपना इन्सान का स्वभाव है यदि आवश्यकता पूर्ति में किसी भी प्रकार की त्रुटी हो दोष सदैव पूर्ति करने वाले का माना जाता है | कोई भी वस्तु, विषय हो या कार्य दूसरे की आवश्यकता को उचित प्रकार से समझकर अच्छे विकल्प के साथ उसकी आवश्यकता पूर्ति करने से सफलता एवं सम्मान सरलता से प्राप्त होते हैं |
बुद्धिमान होना, बुद्धिमान बताना एवं बुद्धिमान प्रमाणित करना सभी में बहुत अंतर होता है | बुद्धिमान प्रमाणित करने के लिए बुद्धिमानी के कार्य करने से ही प्रमाणित होता है ना कि बखान करने से कोई इन्सान बुद्धिमान बन जाता | अच्छा व्यवहार जिसमें गर्मजोशी हो तथा सदैव ताजगी बनी रहे इन्सान की सफलता का आधार बनता है | अपने कार्यों का वर्णन स्वयं करना पड़ता है इसलिए अपने विषय में उत्तम प्रस्तुति एवं अपनी विशेषताओं का सम्पूर्ण वर्णन सफलता का कारण बनता है | दूसरों की जरूरतों को समझकर उत्तम विकल्प के साथ आवश्यकता पूर्ति करना कार्य को सफल बनाता है |
इन्सान नीति द्वारा ही उन्नति कर सकता है एवं उन्नति करने से कभी हीनभावना (heenbhawna) उत्पन्न नहीं होती | जीवन में असफल होने पर इन्सान का सर्वप्रथम हौसला टूटता है जिसके कारण उसका आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है तथा हीनभावना उत्पन्न होने लगती है | जब भी जीवन में असफलता हो तो इन्सान को अपनी असफलताओं की समीक्षा करके उन असफलताओं के कारण का समाधान करना आवश्यक होता है | इन्सान अपनी किस्मत का स्वयं निर्माता है अपनी असफलताओं को किस्मत समझकर हीनभावना से ग्रस्त होना मूर्खता है | खुद को कमजोर समझकर हीनभावना पालने से उत्तम खुद को बदल कर किस्मत का निर्माण करके सफल होना है |
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