इन्सान द्वारा की गई कोशिश के बाद भी उसके कार्यों में बाधा उत्पन्न होना अथवा बगैर मेहनत किए कार्य का सम्पन्न हो जाना तथा किसी वस्तु व धन की प्राप्ति के लिए करी गई पुरजोर मेहनत का व्यर्थ हो जाना अथवा अकस्मात मुफ्त या अल्प मेहनत से अधिक वस्तु या अधिक धन की प्राप्ति हो जाना इन्सान की किस्मत कहलाती है । संसार के अधिकतर इंसानों द्वारा करे गए कार्यों के परिणाम को सफल अथवा असफल होने पर करी गई काल्पनिक सोच का परिणाम किस्मत होती है तथा संसार के अधिकतर इन्सान किस्मत पर विश्वास करके उसके भरोसे अपना जीवन व्यतीत करते हैं । किसी वस्तु की प्राप्ति या लाभ की काल्पनिक सोच को किस्मत बनना तथा कार्यों में या इच्छित वस्तु में हानि या बाधा आने पर नकारात्मक सोच को बद किस्मत अर्थात किस्मत बिगड़ना कहा जाता है । अधिकतर इन्सान अपने जीवन के सभी कार्यों की सफलताओं और असफलताओं का जिम्मेदार किस्मत को मानते है ।
संसार के सभी इन्सान किस्मत को महत्व देते हैं परन्तु कुछ प्रतिशत इन्सान किस्मत के अतिरिक्त कर्मठता अर्थात मेहनत को महत्वपूर्ण मानकर जीवन में निरंतर कार्यरत रहते हैं । वें किस्मत से होने वाले चमत्कार के भरोसे बैठकर जीवन सफल होने का इंतजार नहीं करते और अपने कार्यों को सफल बनाकर ही दम लेते हैं । ऐसे इंसानों की मेहनत से ही संसार के सभी कार्य सुचारू रूप से किर्यशील रहते हैं । ऐसे इंसानों से विपरीत स्वभाव के इन्सान किस्मत को सर्वोपरी मानते हैं तथा किस्मत को अत्याधिक महत्वपूर्ण मानकर अपने सभी कार्यों का श्रेय किस्मत को देते हैं । ऐसे इन्सान कर्मठता पर विश्वास नहीं करते तथा यह समझते हैं कि किस्मत द्वारा कोई चमत्कार होगा और उनका जीवन सफल करके उन्हें सभी सुखों से परिपूर्ण कर देगा । ऐसे इन्सान सम्पूर्ण जीवन किस्मत चमकने का इंतजार करते हैं तथा किसी चमत्कार के ना होने पर अपनी बदकिस्मत का रोना रोते रहते हैं ।
किस्मत पर अत्याधिक विश्वास करने वाले इंसानों की मानसिकता में व्यतीत समय के अनुसार विकार उत्पन्न होने लगते हैं जिसके कारण उनका बोद्धिक विकास रुक जाता है । सर्व प्रथम विकार के रूप में वहम उत्पन्न होकर शगुन अपशगुन या शुभ अशुभ का विचार करके कार्यों में विघ्न और विलम्ब होना आरम्भ होता है जिससे कार्य सफलता में बाधा उत्पन्न होती है और परिणाम स्वरूप हानि होती है । शगुन अपशगुन के चक्कर में वहम करके हानि को भी इन्सान बद किस्मत कहकर किस्मत को ही दोष देता है । किस्मत भरोसे जीवन व्यतीत करने वालों में वहम के साथ अंध विश्वास पनपता है जिसके प्रभाव से वह ज्योतिषियों और मन्दिरों के चक्कर लगाकर किस्मत चमकाने की कोशिश करता है । ज्योतिषियों और पंडितों के फंदे में फंसकर समय और धन की हानि होने पर भी उन्हें लगता है कि जल्द किस्मत चमक जाएगी । अंध विश्वास में फंसे इन्सान अजीब प्रकार के साधू संत व तांत्रिकों से चुपचाप अपना शोषण करवाते हैं जिसको समाज में मूर्ख साबित होने के भय से किसी को बतलाने में शर्म महसूस करके चुप रहते हैं ।
कुछ किस्मत प्रेमी इन्सान अतिशीघ्र धनाढ्य बनने के लिए अपराधिक कार्यों को भी अंजाम देकर अपने जीवन का सर्वनाश कर लेते हैं । लाटरी, जुआ, सट्टा, शेयर बाजार, वायदा बाजार जैसे समाज के कलंक रूपी कार्य किस्मत प्रेमी इंसानों के बलबूते पर ही फलफूल रहे हैं । जुए, सट्टे जैसे कार्यों में लिप्त होने पर कर्मठता का दामन छूटना स्वभाविक होता है और इसी से इन्सान की बद किस्मत उसका दामन पकड़ लेती है । जुए से अमीर बनने की चाह रखने वालों ने कभी यह सोचना गवारा नहीं किया कि यह कोई उत्पाद या सेवा कार्य की आय नहीं है बस जीत हार है जिससे एक जुआरी का धन दूसरे की जेब में जाता है फिर घूमकर वापस आता है और इसी प्रकार खिलाने वाले मुनाफा कमाकर उन्हें लूटते रहते हैं ।
मेहनत पर भरोसा करने वाले कर्मठ इन्सान का जीवन सदा सफल होता है जैसे मंजिल पर पहुंचने के लिए रास्ता तय करना आवश्यक होता है और जो रास्ते पर निकल पड़ता है उसे मंजिल अवश्य प्राप्त होती है इसी प्रकार कर्मठ इन्सान मेहनत के बलपर सफलता प्राप्त करता है । परन्तु जो इन्सान किस्मत के भरोसे मंजिल प्राप्त करना चाहते हैं और रास्ता तय करने से परहेज करते हैं तो उनको जीवन में मंजिल प्राप्त करना असंभव होता है । किस्मत की कोई भयंकर आंधी इन्सान को उड़ाकर मंजिल पर पहुंचाए या मंजिल उड़कर उनके पास आए ऐसे कार्य संसार में कभी कभी होते हैं । किस्मत पर भरोसा करना कोई गलत कार्य नहीं है परन्तु किस्मत के भरोसे जीवन व्यतीत करना इन्सान का सबसे नादानी पूर्ण कार्य है ।
जीवन में सफलता साधन और सोच के बलपर प्राप्त होती है साधन होने पर तथा सोच गलत होने पर साधन भी समाप्त हो जाते हैं परन्तु साधन न होने पर सोच अच्छी होने से साधन प्राप्त किये जा सकते हैं । कर्मठता से किस्मत चमकाई जा सकती है परन्तु किस्मत से कर्मठ नहीं बना जा सकता । परिस्थिति अनुकूल होने से कार्य सफल हो जाए तो उसे किस्मत समझना तथा परिस्थिति विरुद्ध होने से कार्य में विघ्न उत्पन्न हो जाए तो बदकिस्मत समझना इन्सान की नादानी के अतिरिक्त कुछ नहीं है । किस्मत का खेल सिर्फ परिस्थिति पर निर्भर करता है क्योंकि कभी-कभी परिस्थिति अनुकूल होकर किसी कार्य को सफल बना देती है जिसका श्रेय इन्सान अपनी किस्मत को देता है तथा अपना जीवन किस्मत के भरोसे छोड़ देता है । किस्मत इन्सान की सकारात्मक सोच के परिणाम के अतिरिक्त कुछ नहीं है एक कर्मठ इन्सान अपनी किस्मत का निर्माता स्वयं होता है ।
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