
जिनसे जीवन प्राप्त होता है वें माँ बाप कहलाते हैं जो अपनी सन्तान के जीवन को सुखी तथा सफल बनाने के प्रयासों में अपने जीवन का प्रत्येक क्षण न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं । माँ बाप अपने जीवन का प्रत्येक कार्य अपनी सन्तान की भलाई तथा सफलता प्राप्ति के लिए करते हैं एंव अपनी सन्तान को आशीष तथा शुभ कामनाएँ प्रदान करते हुए उनकी तरफ सदैव दयानीय दृष्टि से देखते रहते हैं । इन्सान के अतिरिक्त संसार का प्रत्येक जीव सन्तान उत्पन्न करने के पश्चात उसका साथ उस समय तक देता है जब तक उसकी सन्तान अपनी रक्षा करने तथा अपना जीवन निर्वाह करने लायक ना हो जाए और जीवन निर्वाह करने के लायक होते ही सभी जीव अपनी सन्तान का त्याग कर देते हैं । परन्तु इन्सान अपनी सन्तान के जन्म से लेकर अपनी या उनकी मृत्यु होने तक साथ निभाता है ।
आरम्भ में अपनी माँ के आंचल की छाँव में सन्तान सभी विपदाओं से सुरक्षा महसूस करती है तथा उसे लगता है कि किसी भी प्रकार की भयंकर से भयंकर आफत उसकी माँ के आंचल से टकराते ही चकनाचूर हो जाएगी । बाप के साये में संसार की सभी कामनाओं की पूर्ति होने की आशा सन्तान को आत्मविभोर कर देती है । बाल्यावस्था से युवा अवस्था होने तक सन्तान को अपने माँ बाप जीवन रक्षक दिखाई पड़ते हैं परन्तु युवा होते होते समय के साथ सन्तान को जीवन रक्षक नजर आने वाले माँ बाप भक्षक दिखाई पड़ने लगते हैं क्योंकि उनकी भुजाएं कुछ सबल होकर किसी प्रकार के कार्य करने में सक्षम होने लगती हैं ।
समय के साथ थकते शरीर के कारण माँ बाप द्वारा किसी कार्य के लिए सन्तान को पुकारे जाने पर सन्तान आक्रोशित होकर भडक जाती है क्योंकि उन्हें लगता है कि माँ बाप उनके आराम या कार्य में विघ्न उत्पन्न करने की अनावश्यक कोशिश करते हैं । जीविका उपार्जन के कार्यों में सक्षम होते ही सन्तान की दृष्टि में माँ बाप लोभी व कपटी दिखाई पड़ने लगते हैं जैसे उनकी आमदनी को हडपकर स्वयं उस पर ऐश करेंगे । सन्तान को समय के साथ माँ बाप सुखों में बाधक नजर आने लगते हैं जैसे उनके रहते ना सुख प्राप्त होगा तथा ना शांति प्राप्त होगी । माँ बाप से बिछड़ने की सोच से कांप उठने वाली सन्तान उनसे छुटकारा पाने एंव उन्हें प्रतिपल दूर करने के प्रयास करने लगती है ।
प्रत्येक दम्पत्ति जीवन भर मेहनत करके जमा करा हुआ धन अपनी सन्तान की भलाई व सुखों के लिए खर्च करने को तत्पर रहते हैं । सन्तान की परवरिश तथा शिक्षा प्राप्ति एंव सेवा कार्य अथवा व्यवसाय तथा सन्तान का विवाह करने के लिए जमा किया हुआ एक एक पैसा खर्च करने पर भी उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं उभरती । अपने मुँह तक निवाला ले जाने से पूर्व सन्तान की भूख का ध्यान रखना प्रत्येक माँ बाप का कर्तव्य होता है तथा सन्तान की खुशियों के लिए अपनी इच्छाओं का दमन करना माँ बाप का स्वभाविक कार्य होता है । सन्तान की इतनी सेवा करने के पश्चात भी उनसे सिर्फ सम्मान तथा सहानभूति की अपेक्षा होती है तथा सम्पूर्ण सम्पदा उन्हें प्रदान करके वृद्धावस्था में जीवन निर्वाह के लिए भोजन की आवश्यकता होती है ।
माँ बाप वृद्धावस्था में भी सन्तान की घरेलू कार्यों में सहायता तथा घर की देख रेख एंव उनकी सन्तान की परवरिश के कार्य करते हैं तथा सदैव सन्तान के सुखों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना एवं उन्हें शुभ आशीष देना उनका दैनिक कार्य होता है । वृद्ध माँ बाप की किसी त्रुटी पर उन्हें प्रताड़ित करने से पूर्व सन्तान यह भी ध्यान रखना आवश्यक नहीं समझती कि उनकी कितनी ही त्रुटियों को नादान समझकर क्षमा किया गया होगा तथा उनकी अपनी सन्तान भी भविष्य में उसे इस प्रकार प्रताड़ित करेगी तो कितनी पीड़ा होगी । कुछ इस प्रकार की नालायक सन्तान भी होती हैं जो सम्पत्ति हडपने के लिए अपने जन्मदाता एंव पालनहार माँ बाप की मृत्यु की कामना करते हैं परन्तु अपनी सन्तान द्वारा इसी प्रकार की कामनाएँ करने की कल्पना तक नहीं करते ।
संसार में माँ बाप एक मात्र ऐसा सम्बन्ध है जो अपनी सन्तान की किसी भी प्रकार की भयंकर से भयंकर त्रुटी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तथा कभी सन्तान के अनिष्ट की कल्पना तक नहीं करते , जीवन में अध्यात्मिक सुख तथा आत्मिक शांति की कामना हो तो कम से कम माँ बाप के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यहवार करने से बचना आवश्यक होता है ।
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