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नारी मुक्ति

August 3, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

नारी के अनेकों रूप हैं परन्तु नारी को उचित सम्मान सिर्फ माँ के रूप में ही प्राप्त होता है | इसके अतिरिक्त नारी का सम्मान व स्वाभिमान खंडन एंव तिरस्कार तथा भरपूर शोषण होता रहता है | रूढ़ीवाद की जंजीरों में जकड़ी एंव प्रथाओं के जाल में फंसकर छटपटाती नारी का शोषण करने में नारी वर्ग स्वयं भी सहयोगी रहा है |

नारी के सम्मान व स्वाभिमान की रक्षा एंव तिरस्कार तथा शोषण से सुरक्षा और प्रथा व रूढ़ीवाद के चक्रव्यूह से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए मुक्ति एक प्रयास है | समाज का प्रत्येक इन्सान नारी अथवा पुरुष यदि नारी के सम्मान के प्रति तनिक भी सहानभूति रखता है तो मुक्ति के सम्पूर्ण वर्णन को पढकर एंव समझकर अन्य इंसानों में जागृति उत्पन्न करके नारी के सम्मान की रक्षा करने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान कर सकता है |

शिशु जन्म के समय जब जननी एंव जन्मदाता को ज्ञात होता है कि कन्या उत्पन्न हो गई है तो उनके मुख पर उदासी की कालिमा छा जाती है क्योंकि उन्हें पुत्र रत्न के आगमन का बेसब्री से इंतजार होता है | बेशक वह लोक लाज वश फीकी सी मुस्कान के साथ लक्ष्मी का आगमन हुआ है कहकर अपने मन की पीड़ा को दबाने की कोशिश करें परन्तु कन्या का जन्म मन में कड़वाहट अवश्य उत्पन्न करता है |

जिस नारी के गर्भ से संसार के प्रत्येक इन्सान को जीवन प्राप्त होता है तथा नारी द्वारा गर्भ में सन्तान पलने का कष्ट एंव प्रवस पीड़ा सहन करते हुए जन्म देना तथा सीने से लगाकर अपनी ममता के आंचल में परवरिश करने वाली नारी के प्रति मन में इतनी कड़वाहट उत्पन्न होने का कारण क्या है इसे ज्ञात करना अत्यंत आवश्यक है | सभी दम्पति सिर्फ पुत्र की कामना करते हैं यदि यह संभव हो जाए तो क्या नारी रहित यह संसार इन्सान को उत्पन्न कर सकेगा ?

जन्म के पश्चात ही नारी का तिरस्कार आरम्भ हो जाता है क्योंकि जिस प्रकार पुत्र की परवरिश होती है कन्या को वह सम्मान कदापि प्राप्त नहीं होता | ना पुत्र की तरह परिवार में भव्य स्वागत होता है ना ही भव्य नामकरण एवं प्रतिभोज जैसी प्रथाएँ होती हैं | नारी के प्रति समाज द्वारा भिन्न प्रथाएँ निर्मित करी गई हैं तथा नियम भी पृथक निर्धारित किए गए हैं |

कन्या द्वारा बाल्यावस्था से ही घरेलू कार्यों में सहायता लेना तथा उनके प्रति सुविधाओं में भी सदैव अभाव ही होता है | कन्या की सदैव पराई अमानत बतौर परवरिश करी जाती है माता पिता के घर में नारी का तिरस्कार सीमित अवश्य होता है परन्तु समय समय पर उसके स्वाभिमान पर प्रहार अवश्य होता रहता है | नारी का वास्तविक तिरस्कार तथा शोषण विवाह के समय तथा विवाह के पश्चात होता है जिसका कारण आदिकाल से निर्मित विवाह पद्धति का होना है |

विवाह के समय नारी का मुल्यांकन किया जाता है जिसमे प्रथाओं के नाम पर कन्या पक्ष कितना अधिक धन खर्च करके वर पक्ष के सम्मान में वृद्धि कर सकता है यह निश्चित किया जाता है | आपस में तय होता है कि वर पक्ष को कन्या पक्ष कितने प्रकार की ऐश्वर्य की वस्तुएं वाहन, आभूषन, वस्त्र तथा साजोसामान वगैरह भेंट के रूप में प्रदान कर सकता है | नकदी भी वसूल करी जाती है | यह समाज की दहेज प्रथा कहे जाने वाली शोषण पद्धति होती है .

किसी भी प्रथा का निर्माण करने का कारण अवश्य होता है दहेज प्रथा आदिकाल में आरम्भ करना उस समय की आवश्यकता थी | आदिकाल में जीवन निर्वाह के साधनों का अत्याधिक अभाव था इसलिए इन्सान द्वारा ग्रहस्थ जीवन धारण करना अत्यंत कठिन कार्य था | इस कारण विवाह के समय नवदम्पति को दोनों पक्षों की तरफ से ग्रहस्थी बसाने के लिए घरेलू सामान एंव साधन सहायतार्थ प्रदान किए जाते थे |

नारी के परिवार से प्राप्त होने वाले सामान एंव साधनों को दहेज कहा जाता था | किसी के द्वारा मांगने पर सहायता के लिए प्रदान वस्तु एंव धन भीख कहलाती है तथा बिना मांगे स्वेच्छा से प्रदान वस्तु एंव घन दान कहा जाता है परन्तु वर के सम्मान पर आघात न पहुंचे इसलिए वधु पक्ष द्वारा प्रदान सामान एंव घन को दहेज का नाम दिया गया |

दहेज प्रथा का आरम्भ अभाव ग्रस्त जीवन के लिए सहायतार्थ आरम्भ हुआ था | समय परिवर्तन के साथ लोभी इंसानों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बताकर आवश्यकता निर्धारित कर दिया तथा वर्तमान में दहेज को व्यापर की तरह सौदेबाजी करके वसूला जाता है | आदिकाल में गधे घोड़ों पर सफर करने वाला इन्सान आधुनिक होकर कीमती वाहनों में सफर करके भी रुढ़िवादी मानसिकता को समाप्त नहीं कर सका है यह इन्सान की मानसिकता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है |

विवाह पद्धति में प्रतिभोज एंव सजावट के नाम पर अनावश्यक अत्याधिक धन का सर्वनाश किया जाता है जिसका किसी भी प्रकार का लाभ दोनों पक्षों को नहीं होता | परिवार के अतिरिक्त भोज निमन्त्रण में पधारने वाले सिर्फ भोजन के पश्चात शगुन के नाम पर शुल्क अदा करके चले जाते हैं उन्हें वर व वधु से किसी प्रकार की कोई सहानभूति नहीं होती | जिस विवाह को सिर्फ परिवार के सदस्यों तथा धर्म शास्त्री द्वारा धर्मानुसार किसी प्रकार का धन खर्च किए बगैर सम्पन्न किया जा सकता है उसमे जीवन भर की जमा पूंजी का सर्वनाश सिर्फ दिखावे के लिए खर्च करना मूर्खता है |

विवाह के पश्चात प्रथाओं के नाम पर कन्या के परिवार से जीवन भर धन की वसूली करी जाती है | समाज ने नारी को समान अधिकार प्रदान करना कहा अवश्य है परन्तु नियमों के आधार पर पुरुष पक्ष को उच्च स्तरीय एंव कन्या पक्ष को तुच्छ स्तरीय ही निर्धारित किया हुआ है जिससे नारी का स्तर स्वयं तुच्छ प्रमाणित हो जाता है |

नारी के परिवार के सदस्य सदैव पुरुष के परिवार के सदस्यों के समक्ष हाथ जोड़े खड़े रहते हैं तथा मिलने पर एंव समय समय पर अनेकों प्रकार के शुल्क अदा करते रहते हैं | समाज द्वारा दान का विशेष महत्व बताया जाता है तथा दान देने वाले को उच्च स्तरीय एंव दान लेने वाले को तुच्छ स्तरीय कहा जाता है परन्तु विवाह प्रथा में स्थिति विपरीत हो जाती है जिसमे कन्या दान करने वाला तुच्छ स्तरीय एंव कन्या दान लेने वाला उच्च स्तरीय समझा जाता है |

विवाह प्रथा समाज की सर्वाधिक अद्भुत प्रथा है जिसमे नारी का परिवार अपने घर की इज्जत कही जाने वाली नारी को सम्पूर्ण जीवन के लिए दूसरे के सुपुर्द करते समय अत्याधिक धन दहेज कही जाने वाली प्रथा एंव विवाह पद्धति पर शुल्क के रूप में अदा करता है जैसे यह खर्च नारी का परिवार उससे पीछा छुड़ाने के लिए दे रहा हो |

नारी के लिए उसका जीवन अनोखी विडम्बना है क्योंकि नारी का परिवार उसे पराई अमानत समझता है तथा ससुराल में उसे पराया सदस्य ही समझा जाता है तथा किसी भी त्रुटी पर उसे एंव उसके मायके वालों को प्रताड़ित करना एंव नारी को अपने घर वापस जाने की धमकी देना प्रमाणित करता है कि नारी का समाज में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं होता |

नारी का तिरस्कार तथा भरपूर शोषण विवाह पश्चात वृद्धावस्था तक उसके द्वारा उत्पन्न सन्तान के पूर्ण सक्षम होने तक होता रहता है | नारी के जन्म पर माता पिता की उदासी का कारण भी उसके भविष्य की कल्पना करके ही होता है | समाज द्वारा नारी के शोषण के लिए अनेकों प्रथाओं का निर्माण एंव नियम निर्धारित किए गए है जिनका आरम्भ आदिकाल में ही सभ्यता एंव समाज स्थापना के समय ही कर दिया गया था |

पुरुष प्रधान समाज के नियम निर्धारित किए गए तथा नारी शोषण के लिए बाल विवाह, सती प्रथा एंव विधवा प्रथा जैसी घृणित प्रथाओं का निर्माण करके नारी का भरपूर शोषण होता रहा है |

बाल विवाह प्रथा में कन्या को शिक्षा से दूर रखा जाता तथा बाल्यावस्था में ही गृह कार्यों का प्रशिक्षण देकर विवाह करके विदा कर दिया जाता जहाँ पर ससुराल पक्ष द्वारा उससे दासी की तरह कार्य करवाए जाते थे | सती प्रथा में पति की मृत्यु के समय नारी को भी जीवित अग्नि में पति के शव के साथ जला दिया जाता था जिससे ससुराल पक्ष को विधवा नारी की आजीविका के भार से मुक्ति प्राप्त हो जाती थी |

सती प्रथा श्रीमान राजाराम मोहनराय के अथक प्रयास के कारण अंग्रेजी हुकुमत के द्वारा धर्म शास्त्रियों के भरपूर विरोद्ध के पश्चात भी समाप्त कर दी गई . जिन स्त्रियों को पति के शव के साथ अग्नि दाह करने में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती थी उनके लिए विधवा प्रथा थी जिसके नियमों में नारी का सिर मुंडवाना, सफेद सूती वस्त्र धारण करना, पृथ्वी पर सोना, सादा एंव सीमित मात्रा में भोजन करना तथा समाज द्वारा बहिष्कार करने की सजा थी |

विधवा नारी को किसी के समक्ष दिखाई पड़ने पर अपशगुन मानकर अपशब्दों द्वारा प्रताड़ित करने जैसे अत्याचार किए जाते रहे हैं | प्रथाओं की अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट के प्रथा एंव रूढ़ीवाद लेख अवश्य पढ़ें जिसमें समाज का चेहरा तनिक स्पष्ट होता है |

रुढ़िवादी विवाह पद्धति नारी वर्ग के लिए सर्वाधिक कलंकित प्रथा है क्योंकि विवाह के समय प्रथाओं के नाम पर अनावश्यक धन खर्च करवाकर वर पक्ष द्वारा खुद को समाज में धनाढ्य एंव महत्वपूर्ण प्रमाणित करने के प्रयास में वधु पक्ष को बर्बाद किया जाता है जिसके कारण नारी का परिवार उसके जन्म से ही उसे जीवन पर भार समझकर उसकी परवरिश करता है |

सास द्वारा बहु अथवा बहु द्वारा सास एंव ननद द्वारा भाभी अथवा भाभी द्वारा ननद का तिरस्कार एंव शोषण का नारी का नारी के प्रति अत्याचार सिर्फ समाज द्वारा प्रथा के नाम पर स्तर घोषित करना है जिसमें नारी को सम्बन्ध के आधार पर सम्मान करना निर्धारित है | पुरुष वर्ग द्वारा नारी को प्रताड़ित करने का कारण धन अथवा उसका व्यहवार एंव आचरण होता है परन्तु नारी द्वारा नारी का शोषण धन के अतिरिक्त खुद को सर्वाधिक महत्वपूर्ण एंव प्रभावशाली प्रमाणित करने के लिए होता है |

प्रत्येक परिवार में एक नारी का शोषण दूसरी नारी अपना वर्चस्व कायम करने के लिए भी करती है | इन प्रथाओं द्वारा नारी शोषण के कारण समाज को अनेक प्रकार से हानि होती है जिनकी समीक्षा आवश्यक है .

1. जीवन साथी का चयन बौद्धिक, व्यहवारिक, आचरणों, स्वभाव एंव गुणों के आधार पर ना करते हुए अपनी प्रतिष्ठा एंव धन के आधार पर अयोग्य जीवन साथी से विवाह जीवन में असंतुलन उत्पन्न करता है जिसमे ग्रहस्थी सदैव कष्टदायक रहती है |

2. कन्या के विवाह हेतु सुयोग्य वर के लायक अधिक धन एकत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार के अवैध कार्य को अंजाम देने के कारण समाज में भ्रष्टाचार एंव अपराधिक कार्यों में वृद्धि होती है |

3 . दहेज तथा नारी शोषण से आक्रांतित दम्पति कन्या की गर्भ में ही हत्या कर देते हैं जिसके कारण स्त्री पुरुष की संख्या में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है जिसके परिणाम स्वरूप वेश्यावृति एवं बलात्कार जैसी घटनाओं में बेतहासा वृद्धि हो रही है |

4.वर पक्ष एवं वधु पक्ष के आमने-सामने मिलने पर सामाजिक प्रथाओं के कारण शगुन में उपहार एंव राशी प्रदान करने की प्रथा मन में मधुरता के स्थान पर कटुता उत्पन्न करती है |

5. दहेज एंव उपहार प्रथा लोभ में वृद्धि करती है तथा अनैतिक कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है जिसके परिणाम स्वरूप ग्रहस्थ जीवन का सर्वनाश तथा न्यायालयों में न्याय के लिए भीड़ बढ़ रही है|

6. नारी शोषण के विरुद्ध बनाए गए कानूनी नियमों का लाभ उठाकर स्त्री पक्ष के शातिर इन्सान दहेज के असत्य मुकदमे दर्ज कराकर समाज में शोषण प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं |

7 . नारी शोषण से आक्रोशित होकर उसकी सन्तान सक्षम होने पर अथवा नारी का परिवार प्रतिशोध लेने पर उतारू हो जाता है जिसके कारण समाज में अपराधों में वृद्धि हो रही है |

8. दहेज का लोभ तथा नारी का शोषण समाजिक प्रतिष्ठा को कलंकित करता है जिसके कारण परिवार का सम्मान समाप्त एंव उनका समाजिक पतन हो जाता है |

9. खुद को प्रतिष्ठित प्रमाणित करने की भावना में बहकर अत्याधिक दिखावा अपनी ही आर्थिक बर्बादी का कारण बन जाता है जिसका प्रभाव दोनों पक्षों पर होता है |

10. नारी शोषण बीमार एंव विकृत मानसिकता है जिसका मरीज जीवन में कभी वास्तविक ख़ुशी एंव शांति का अनुभव नहीं कर पाता तथा वह वास्तविक प्रेम का अनुभव करने से भी वंचित रहता है कुंठित होकर ऐसे इन्सान समाज में घृणा फैलाते हैं |

नारी शोषण के कारण समाज में उत्पन्न हो रहे असंतुलन को संतुलित करने एंव नारी शोषण को समाप्त करने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं |

1. दहेज प्रथा पूर्णतया समाप्त कर दी जाए |

2. रुढ़िवादी विवाह प्रथा समाप्त कर आदर्श विवाह पद्धति प्रचिलित करी जाए जिसमे वर वधु एंव परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त सिर्फ धर्म शास्त्री हो तथा धर्मानुसार विवाह सम्पन्न कराकर न्यायालय में पंजीकृत करवाया जाए ताकि साक्ष्य प्रमाणित हो सके |

3. शगुन के नाम पर धन राशी का प्रचलन समाप्त किया जाए

4. आभूषण का प्रचलन सीमित मात्रा में हो क्योंकि कीमती आभूषण अन्य इंसानों के मन में जलन तथा चोरों के मन में आकर्षण उत्पन्न करते हैं |

विवाह के नाम पर सभी प्रकार के आडम्बरों पर प्रतिबन्ध लागू हो | प्रस्तावित उपायों को अपनाने से जो लाभ प्राप्त होंगे वें इस प्रकार हैं .

1. कन्या के विवाह पर किसी प्रकार के धन की आवश्यकता ना होने से कन्या को परिवार में उचित सम्मान प्राप्त होगा एंव उसकी परवरिश भार समझकर नहीं की जाएगी |

2. दहेज मुक्त होने से विशेष धन की आवश्यकता ना होने से अवैध रूप से धन एकत्रित करने की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगी जिससे भ्रष्टाचार एंव अपराधों में कमी अवश्य आएगी |

3. दहेज के भार से मुक्ति एंव कन्या शोषण के भय से मुक्ति होने पर गर्भ में हत्याओं का सिलसिला समाप्त हो जाएगा जिससे समाज में संतुलन स्थापित होगा |

4. आदर्श विवाह पद्धति के कारण सुयोग्य जीवन साथी से ही विवाह सम्पन्न होगा जिससे ग्रहस्थी सुखी एंव परिवार खुशहाल होंगे |

5. शगुन में धन प्रदान करने की प्रथा समाप्त होने पर आपसी प्रेम व सद्भावना में वृद्धि होगी .

6. समाज में जो सम्मान धन खर्च करके भी प्राप्त नहीं होता वह आदर्श विवाह पद्धति द्वारा दहेज रहित विवाह करने से सरलता पूर्वक प्राप्त हो जाएगा |

7. दहेज प्रथा समाप्त होने पर दहेज सम्बन्धित मुकदमों की समाप्ति होगी तथा न्यायालयों में भीड़ कम होगी |

8. दहेज एंव नारी शोषण समाप्त होने पर आपसी रंजिश भी समाप्त होगी एंव प्रेम व सद्भावना में वृद्धि होगी |

9. विवाह के समय प्रतिष्ठित प्रमाणित करने की दिखावा प्रथा समाप्त होने पर दोनों पक्षों के धन का सर्वनाश समाप्त होगा तथा समृद्धि बढ़ेगी |

10. दहेज के धन का लोभ समाप्त होने से नारी शोषण से मुक्त होगी एंव समाज में नारी के सम्मान में वृद्धि होगी जिससे समाज में संतुलन उत्पन्न होगा | प्रत्येक इन्सान के जीवन में नारी का तिरस्कार एंव शोषण किसी ना किसी रूप में उसे प्रभावित अवश्य करता है इसलिए नारी के सम्मान एंव स्वाभिमान की रक्षा तथा तिरस्कार एंव शोषण से मुक्ति अभियान में प्रत्येक इन्सान को शामिल चाहिए |

संकल्प लेकर अभियान चलाने से सम्पूर्ण समाज द्वारा दृढ संकल्प लेने पर इस अभियान की आवश्यकता स्वयं समाप्त हो जाएगी |

1. मेरे द्वारा जीवन में किसी भी रूप में नारी का तिरस्कार अथवा शोषण नहीं होगा तथा किसी के द्वारा होने पर पुरजोर विरोध अवश्य करूंगा या करूंगी |

2. मेरे द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं होगा जिससे नारी के सम्मान व स्वाभिमान को किसी प्रकार का आघात पहुंचे |

3. ऊपर दिए गए उपायों के प्रति मेरा विश्वास है तथा मै वचनबद्ध हूं कि इन उपायों को मानने एंव मनवाने के प्रयास जीवन भर करूंगा या करूंगी .

नोट = यह कार्य सरकार, कानून, समाज अथवा संस्थाओं के वश का नहीं है नारी शोषण मुक्ति अभियान सम्पूर्ण मानवता को एकत्रित होकर करना पड़ेगा जिसके लिए सभी का सहयोग आवश्यक है | कार्य आरम्भ होने से ही मंजिल प्राप्त होती है इसलिए शुभ कार्य का आरम्भ करने का प्र्रयास करना आवश्यक है |

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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