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पाखंड

June 18, 2014 By Amit Leave a Comment

pakhand

किसी निर्माण का आधार जिस पर वह स्थिर होता है पांव कहलाता है जैसे इन्सान का पैर जिस पर वह खड़ा होता है पांव यदि खंडित हो तो निर्माण का भविष्य निश्चित नहीं होता कि वह कब गिर जाएगा मात्र धोखा रह जाता है ऐसे विषय को पाखंड का नाम दिया गया है । पाखंड अर्थात जिसका पांव खंडित हो अर्थात झूट व धोखे की नींव पर विषय का निर्माण करना । समाज ने धर्म के विषय में या धर्म से सम्बन्धित विषय के झूटे, बेबुनियादी एवं धोखाधड़ी के प्रपंचों को पाखंड का नाम दिया है । धोखेबाजी का कार्य तो अनेक विषयों पर होता है जैसे रिश्तों में, मित्रता में, व्यापार वगैरह में परन्तु अनजानों से सर्वाधिक धोखा खाने का कारण धार्मिक विषयों में ही होता है । धर्म इन्सान की भावनाओं से सम्बन्धित विषय है जिसे इन्सान श्रद्धा व भक्ति से मानता है तथा भावनाओं से सम्बन्धित विषयों में इन्सान अधिकतर अपने विवेक का उपयोग नहीं करता सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लेता है जिसके कारण उसे धोखा देना सरल हो जाता है ।

संसार में शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा जिसके जीवन में कोई समस्या न हो । इन्सान के जीवन में अधिकतर समस्याओं के अम्बार लगे होते हैं । तरह तरह की समस्याएँ जैसे धन दौलत, शिक्षा, नौकरी, शादी, मकान, व्यापार, बीमारी, निसंतान होना, झगड़े, मुकदमे, वाहन तथा न जाने कितने प्रकार की समस्या इन्सान को घेर कर रखती हैं । समस्या निवारण के लिए कुछ इन्सान भरपूर संघर्ष करते हैं तथा अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त करते हैं । परन्तु कुछ इन्सान अपनी समस्याओं को हल करने का सरल व अद्भुत तरीका खोज लेते हैं जो उन्हें सीधा पाखंड की दुनिया में ले जाता है । जहाँ उपलब्ध पाखंडी दिव्य एवं चमत्कारिक मनघडंत किस्से सुनाकर तथा अपने चेलों द्वारा प्रमाणित करवाकर सरलता से मूर्ख बना लेते हैं । साधू संतों एवं तांत्रिकों के वेश में अद्भुत वस्तुओं एवं हाथ की सफाई द्वारा पाखंड रचने का कार्य धूर्त करते हैं ।

इन्सान सर्व प्रथम ईश्वर से सम्पर्क साध कर उसके आशीर्वाद द्वारा अपनी समस्याओं का निवारण करने का प्रयास करता है क्योंकि इन्सान अपनी समस्याओं का कारण भी ईश्वर को ही समझता है जिसके लिए वह मन्दिरों में पहुंचता है जहाँ ईश्वर के विभिन्न विभागों के अध्यक्ष मूर्ति के रूप में उपस्थित होते हैं । कोई धन का तो कोई शक्ति का तथा कोई वरदान देने का ईश्वरीय अध्यक्ष भिन्न भिन्न प्रकार के तथा अनोखे प्रकार के कार्य करने वाले होते हैं । जहाँ पर उन्हें पटाने के लिए दीपक जलाना, धूपबत्ती व अगरबत्ती जलाना, फूल चढ़ाना, भोग के लिए मीठा पदार्थ मुहं को लगाना, एवं कुछ रूपये या पैसे भी ब्याने के तौर पर देना तथा मन में अपनी समस्या का वर्णन कर उसके निवारण के लिए प्रार्थना करना । वैसे तो मन्दिरों में जाने से किसी की समस्याओं का समाधान नहीं होता यदि किसी की समस्या का अकस्मात कोई निवारण हो गया तो वह समाज में बखान करके आत्म विभोर होता है एवं अपनी बहुत सी दूसरी समस्याओं का बयाना अपने प्रिय देव के चरणों में समर्पित कर देता है तथा ईश्वरीय गुण गान कर पटाने में लग जाता है । पाखंड का आरम्भ धर्म स्थलों से ही होता है जहाँ धर्म शास्त्रियों के मध्य अनेकों धूर्त शिकार की ताक में घात लगाए बैठे रहते हैं । उसकी इस नादानी का वहाँ मौजूद धूर्त पूरा लाभ उठाते हैं एवं उसे भरपूर लूटते हैं ।

मन्दिरों में समस्या का समाधान ना होने पर इन्सान सीधा ईश्वर के दूत कहे जाने वाले तथा खुद को सिद्ध पुरुष बताने वाले पाखंडी इंसानों के पास पहुंच जाता है । महान व सिद्ध पुरुष कहलवाने वाले अपने चारों ओर के वातावरण में अपने खास साथियों के साथ मिल कर इस प्रकार का जाल बुनते हैं जिसमे आने वाला इन्सान फंसता चला जाता है और उसके निकलने की राह सरल नहीं होती । ये पाखंडी समस्याओं का समाधान करने के नाम पर उसका व उसके परिवार का पूर्ण शोषण करते हैं तथा उसकी बुद्धि के कपाट बंद करके उस पर अपनी छाप लगा देते हैं जिससे वह इन्सान उन पाखंडियों का गुण गान करता रहे । ईश्वरीय शक्ति एवं देवी देवताओं के प्रकोप का भय दिखाकर किसी भी साधारण एवं नादान इन्सान को लूटना सबसे सरल कार्य है । ईश्वरीय शक्ति एवं देवी देवताओं के प्रकोप से इन्सान सदैव आक्रांतित एवं भ्रमित रहा है इसलिए वह ऐसे प्रकोपों का भय दिखाकर यह पाखंडी सरलता से लूट लेते हैं । पाखंड की दुकान चलाने वाले लूट लूट कर इतने धनवान हो चुके हैं कि उनके विरुद्ध समाज में कोई जाने की हिम्मत नहीं करता । ये इन्सान को अजीब प्रकार से ईश्वरीय अफसाने सुना कर अलग अलग प्रकार के तंत्र मंत्र के चक्कर में उलझा देते हैं । ऐसे-ऐसे प्रलोभन शिकार को दिए जाते हैं ताकि लुटने वाले इन्सान को धैर्य बना रहे कि उसका कार्य सम्पन्न हने वाला है । इनके आशीर्वाद देने के तरीके भी अनोखे होते हैं जैसे कोई फूंक मार कर, कोई पीठ पर धोल जमा कर, कोई सिर पर चपत लगाकर तथा कोई सिर्फ हाथ उठा कर आशीर्वाद देता है । ये अपने मुख से कभी किसी से धन की मांग नहीं करते इनके चमचे गोदान, गौ ग्रास दान, भंडारा, सत्संग का सामान और भवन निर्माण के नाम पर चंदे के रूप में बहुत सा धन ऐंठ लेते हैं । यदि कोई इन्सान इनके चंगुल से बच निकलता है तो भी वह अपनी मूर्खता का वर्णन कभी समाज में नहीं करता ।

कुछ इन्सान ज्योतिष के चक्कर में पड जाते हैं टी वी चैनलों पर सुबह ज्योतिषी जी आकर बारह राशियों में करोड़ों इंसानों का भविष्य तय कर देते हैं जिनसे प्रभावित मनुष्य ज्योतिषियों के चक्कर लगाता है तथा नक्षत्र ज्ञान की जानकारी न होते हुए भी पाखंडी अच्छी प्रकार लूटते हैं । इन्सान के भविष्य वक्ता अपने भविष्य को सुधार कर मजे करते हैं और प्रार्थी हिसाब लगाता रहता है कि कब उसकी समस्याओं का निवारण होगा । कुछ इन्सान तांत्रिकों के चक्कर में उलझकर अपना समय एंव धन बर्बाद कर देते हैं इस विषय पर कुछ बाते इन्सान को समझनी अति आवश्यक हैं ।

१ = पाखंड का मूल आधार लोभ एवं स्वार्थ होता है क्योंकि पाखंड की रचना करने वाले लोभ एवं स्वार्थ वश पाखंड की व्यूह रचना करते हैं तथा पाखंड के शिकार भी सर्वाधिक लोभ एवं स्वार्थ के कारण फंसते हैं । दोनों पक्षों के लोभ एवं स्वार्थ में मात्र मानसिकता का अंतर होता है पाखंड रचने वाले धूर्त मानसिकता के होते हैं तथा पाखंड में फंसने वाले मूर्ख मानसिकता के होते हैं परन्तु लोभी एवं स्वार्थी दोनों पक्ष होते हैं । श्रद्धा एवं विश्वास इन्सान की धार्मिक प्रवृति का मूल आधार है परन्तु जब श्रद्धा अंधश्रद्धा एवं विश्वास अन्धविश्वास बन जाता है तो इन्सान सरलता से पाखंड का शिकार बन जाता है । अंधश्रद्धा एवं अन्धविश्वास इन्सान के विवेक को शून्य बना देते हैं जिसके कारण इन्सान पूर्ण रूप से असावधान हो जाता है तथा असावधानी सदैव धोखा खाने का कारण ही बनती है ।

२ = ईश्वर संसार में जीवन निर्माण तथा उसका पोषण व जीवन की समाप्ति के अतिरिक्त किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता तथा किसी का कार्य करना या बिगाड़ना एवं किसी को सताना यह ईश्वर के कार्य नहीं हैं । जिसका प्रमाण है कि संसार में इतना अनर्थ और पाप हो रहा है जिसमे प्राणियों की हत्या भी शामिल है यदि ईश्वर संसार के कार्य में हस्तक्षेप करता तो सर्वप्रथम हत्या पर रोक लगाता क्योंकि यह उसके दिए हुए जीवन को खंडित करना है जो ईश्वर से बगावत व उसका अपमान है । ईश्वर के अधिकार क्षेत्र से बाहर की वस्तुओं को माँगना व्यर्थ है क्योंकि धन, नौकरी, मकान, वाहन, संसाधन, मुकदमे, शिक्षा वगेरह ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है जो ईश्वर उन्हें प्रदान करेगा । ईश्वर से सद्बुद्धि मांगने से शायद लाभ हो सकता है ।

३ = निसंतान यह समझ कर ईश्वर की आराधना करता है कि उसके आशीर्वाद से संतान उत्पन्न होगी तो गलत सोच है क्योंकि यदि ईश्वर प्रसन्न होकर आशीर्वाद से सन्तान देता है तो दरिद्र पर कुछ अधिक प्रसन्न होता है । दरिद्र के घर में सन्तान की लाइन लगी होती है परन्तु खाने के लिए मासूम बच्चे तरसते हैं । यह कैसी ईश्वरीय प्रसन्नता व आशीर्वाद है जो जन्म का आशीर्वाद देगा परन्तु भोजन नहीं देगा ? खा-खाकर बढाई गई चर्बी के कारण सन्तान उत्पन्न नहीं होती इसका ईश्वर से कोई लेना देना नहीं है ।

४= महान व सिद्ध पुरुष कहलाने वालों के पास यदि कोई अद्भुत शक्ति होती तो वह नन्ही मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार होने और भूख से तरसते बच्चों को भोजन की प्राप्ति के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करता व आशीर्वाद देता । यदि यें सिद्ध पुरुष सामने पेश होकर गिडगिडाने से ही कार्य करते हैं तो यें अति अहंकारी हैं और अहंकारी कभी महान व सिद्ध पुरुष नहीं होता ।

५= तांत्रिकों के वेश में सिर्फ शातिर एंव कपटी इन्सान धूमते हैं जो अल्प शिक्षित तथा निष्कर्म व निक्कमे होते हैं जिनका कार्य नादान इंसानों को मूर्ख बना कर लूटना होता है किसी भी प्रकार की तांत्रिक विदध्या किसी भी इन्सान का कोई लाभ नहीं कर सकती अन्यथा तांत्रिक समाज में सबसे समृद्ध होते ।

संसार में अपनी समस्याओं को अपनी बुद्धि और बाहूबल से ही समाप्त किया जा सकता है । इन्सान को पाखंड में फंस कर अपने समय और धन का नाश करने से उचित है कि खुद पर विश्वास करना चाहिए । इन्सान का साहस, लगन और आत्म विस्वास ही सभी समस्याओं का निवारण है ।

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प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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