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सद उपयोग -sad upyog

October 1, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी कार्य में स्वयं संलिप्त होना अथवा किसी वस्तु, विषय या प्राणी को कार्य में लगाना अथवा कार्य करवाना उसका उपयोग कहलाता है । जब किसी की पूर्ण क्षमता एवं प्रतिभा का उपयोग किया जाए अथवा जिस कार्य के लिए वह निर्मित हो या उपयुक्त हो उस कार्य में उपयोग किया जाए | अथवा उसका किसी प्रकार से बेहतर उपयोग किया जाए तो वह सद उपयोग (sad upyog) कहलाता है । उपयोग करना संसार का सामान्य कार्य है परन्तु सद उपयोग (sad upyog) करना श्रेष्ठ कार्य होता है ।

सामान्य कार्य के परिणाम भी सामान्य होते हैं तथा जब कार्य श्रेष्ठ होता है तो परिणाम भी श्रेष्ठ ही होते हैं अर्थात सद उपयोग (sad upyog) के परिणाम सदैव उत्तम एवं अतिरिक्त लाभकारी होते हैं । किसी वस्तु, विषय, प्राणी तथा स्वयं अपना भी उपयोग करना सभी साधारण इंसानों का कार्य है परन्तु महत्वाकांक्षी एवं बुद्धिमान सदैव सद उपयोग (sad upyog)  द्वारा अतिरिक्त लाभ लेते हैं तथा अपने कार्यों की श्रेष्ठता के कारण सम्मान भी प्राप्त करते हैं ।

जीवन में उन्नति एवं सफलता प्राप्त करने के लिए सदुपयोग (sad upyog) करने के तरीकों एवं उसके विषयों का ज्ञान होना भी आवश्यक है । सर्वप्रथम इन्सान को स्वयं अपना सदुपयोग करना आवश्यक है क्योंकि अपना सदुपयोग करना महत्वपूर्ण एवं सबसे सरल होता है । अपना सदुपयोग करने में मुख्य हैं अपना मानसिक सदुपयोग करना, अपने समय का सदुपयोग करना, अपनी शारीरिक क्षमता का सदुपयोग करना । स्वयं अपने सदुपयोग के साथ अपने धन, संसाधन एवं अपनी वस्तुओं का सदुपयोग करना भी आवश्यक होता है । अपना सदुपयोग (sad upyog) करने के पश्चात इन्सान जब अपनों एवं मित्रों से किसी प्रकार की सहायता की अपेक्षा करता है तो वह अवश्य सफल होता है क्योंकि अपना सदुपयोग करने वाले इन्सान से प्रभावित होकर सभी उसका साथ देने के लिए तत्पर रहते हैं । संसार में कोई भी इन्सान किसी आलसी, नाकारा अथवा असफल इन्सान की सहायता करना कदापि पसंद नहीं करता ।

इन्सान के लिए सर्वाधिक श्रेष्ठ सदुपयोग मानसिक सदुपयोग (sad upyog) होता है क्योंकि मानसिकता के बल पर इन्सान संसार का कोई भी कार्य करने में सक्षम होता है । मानसिक सदुपयोग करने के लिए बौद्धिक विकास होना भी आवश्यक है क्योंकि जितनी अधिक विकसित मानसिकता होगी उससे कार्य भी उतना ही श्रेष्ठ लिया जा सकता है । इन्सान जिस भी विषय में शिक्षित हो एवं कार्यरत हो उस विषय की ताजा जानकारियों को समय-समय पर ग्रहण करते रहने से ही विषय में अग्रणी बना जा सकता है । जानकारियां एकत्रित करके विवेक मंथन द्वारा गहराई ज्ञात करने एवं शोध करने से ही उन्नति संभव होती  है । मनोरंजन मानसिक एवं शारीरिक स्फूर्ति के लिए आवश्यक है परन्तु अधिक मनोरंजन बौद्धिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है इसलिए अवकाश में ही सीमित मनोरंजन करना उचित है । अन्य विषयों पर बहस करने से उत्तम अपने विषय पर जानकारियां जुटाने में बुद्धि का सदुपयोग करना ही सफलता प्रदान करता है ।

मानसिक सदुपयोग के साथ समय का सदुपयोग करना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि समय की बर्बादी जीवन की बर्बादी के समान होती है । जो समय व्यर्थ के विषयों पर बहस करके अथवा टेलीविजन या मोबाईल पर मनोरंजन करके बर्बाद किया जाता है उस समय का सदुपयोग अपने संबधित कार्य पर करने से अतिरिक्त लाभ एवं सफलता प्राप्त हो जाती है । अवकाश या रिक्त समय में अपने घरेलू कार्य निपटने से कार्य के समय बाधा उत्पन्न नहीं होती तथा समय का सदुपयोग भी हो जाता है । अन्य विषयों पर वार्तालाप करने से जानकारियां अवश्य प्राप्त होती हैं परन्तु उनका लाभ ना के बराबर होता है इसलिए अन्य विषयों पर अधिक समय बर्बाद करना नादानी होती है । समय का सदुपयोग करना समय का सम्मान करना है समय भी ऐसे इंसानों को कभी निराश नहीं करता उनका सम्मान एवं भविष्य सदैव उज्ज्वल रखता है ।

मानसिक एवं समय के साथ शारीरिक क्षमता का सदुपयोग करना भी आवश्यक है । शारीरिक क्षमता का अर्थ बलवान होना नहीं होता क्योंकि शारीरिक बल के कार्य बुद्धि द्वारा सरलता से निपट जाते हैं । शारीरिक क्षमता के लिए चुस्ती एवं फुर्ती होना आवश्यक है | क्योंकि इन्सान जितना अधिक चुस्त एवं फुर्तीला होता है वह अपने कार्य उतनी ही शीघ्रता से सम्पूर्ण कर सकता है । आलसी या लापरवाह इन्सान अपने जीवन में कभी सफल नहीं होता | क्योंकि वह अपनी बुद्धि, समय एवं शारीरिक क्षमता का सदुपयोग नहीं कर सकता । शारीरिक क्षमता में वृद्धि करने के लिए समय पर सोना, प्रातः जागना, टहलना, कसरत करना जैसे कार्य आवश्यक हैं तथा भोजन स्वाद अनुसार त्याग कर स्वास्थ्य अनुसार ग्रहण करने से शारीरिक क्षमताओं में सरलता से वृद्धि करी जा सकती है ।

संसार की किसी भी वस्तु का सदुपयोग करना कठिन नहीं है सिर्फ इच्छाशक्ति एवं बौद्धिक क्षमता होना आवश्यक है । सुई से लेकर हवाई जहाज तक अविष्कार करके श्रेष्ठ इंसानों ने सदुपयोग कैसे किया जाता है प्रमाणित किया है । घर के आंगन में फूल व घास लगाकर आंगन का उपयोग करने वाला यदि फल के वृक्ष एवं सब्जी की बेल लगा ले तो ताजे फल एवं सब्जी मुफ्त प्राप्त हो सकते हैं यह आंगन का सदुपयोग है । कूड़े कचरे का सदुपयोग (sad upyog) करके बुद्धिमानों ने खाद बनाकर प्रमाणित किया है कि कचरे का भी सदुपयोग हो सकता है । कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं होती आवश्यकता सिर्फ सदुपयोग करने की है । धन की बर्बादी हानिकारक है तो कंजूसी भी अनुचित है धन का सदुपयोग करना ही सुखी एवं सम्मानित जीवन देता है ।

जीवन में अपना एवं अपनी वस्तुओं तथा धन का सदुपयोग करके साधारण इंसानों की श्रेणी से बाहर आकर जो इन्सान सदुपयोग का महत्व समझकर सदुपयोग करता है वह संसार में सुखी एवं सम्मानित जीवन निर्वाह करता है तथा श्रेष्ठ कहलाता है । अपने जीवन की कमियों पर अफ़सोस करने से उत्तम विचारों एवं समय का सदुपयोग करके उन कमियों को समाप्त करना है । जो कार्य दूसरे इन्सान कर सकते हैं वह कार्य हम भी कर सकते हैं यह इच्छाशक्ति रखने पर सभी कार्य सरल हो जाते हैं तथा इन्सान सफल भी अवश्य हो जाता है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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