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समर्पण – samarpan

April 6, 2020 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

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किसी को अपने लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानकर उसके प्रति पूर्ण निष्ठा से कर्तव्यों का पालन करना इन्सान का समर्पण (samarpan) होता है | इन्सान का दूसरे इंसानों, विषय, वस्तु या प्राणी के साथ जो सबंध होता है | उसके सबंध की प्रगाढ़ता का माप दंड समर्पण (samarpan) द्वारा ही स्पष्ट होता है | समर्पण (dedication) इन्सान के जीवन के लिए बहुत ही संवेदनशील, आकर्षक एवं आवश्यक विषय है | क्योंकि समर्पण (samarpan) से ही इन्सान के जीवन में प्रगति आती है | इन्सान जन्म से लेकर मृत्यु तक असंख्य अभिलाषाएं करता है | परन्तु उन्हें सार्थक करने के लिए इन्सान को उनके प्रति समर्पण (dedication) करना बहुत आवश्यक है | जीवन में प्रगति के लिए इस विषय को समझना एवं समीक्षा करना अनिवार्य है |

इन्सान अपने जीवन के लिए जितनी भी अभिलाषाएं करता है | उनमें से अधिकतर सिर्फ अभिलाषाएं बनकर रह जाती हैं | जो अभिलाषाएं सार्थक होती हैं | वह भी अधिकतर अधूरी ही रहती हैं | अभिलाषा की सम्पूर्ण उपलब्धी अत्यंत कठिन अवश्य है परन्तु असंभव कदापि नहीं होती | अभिलाषा एवं उपलब्धी के मध्य इन्सान का समर्पण ((samarpan)) होता है | जो अभिलाषा को उपलब्धी में परिवर्तित करता है | इन्सान अभिलाषा करके जब तक उसके प्रति समर्पित नहीं होता उपलब्धी आरम्भ नहीं होती | इन्सान अपनी अभिलाषा के प्रति जितना अधिक समर्पित होता है उपलब्धी भी उतनी ही अधिक होती है |

इन्सान की अभिलाषाओं का मुख्य सार यह है कि वह खुद को प्रत्येक विषय में सर्वश्रेष्ठ बनाने, दिखाने एवं प्रमाणित करने की अभिलाषा करता है | इन्सान चाहता है कि वह धन, बल, बुद्धि, प्रतिभा, प्रतिष्ठा, सम्मान, प्रेम, विश्वास जैसे सभी विषयों में दूसरों से श्रेष्ठ बने | श्रेष्ठता प्राप्त करना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि किसी भी विषय में श्रेष्ठ बनने के लिए अथक परिश्रम की आवश्यकता होती है | इन्सान अभिलाषा के साथ यदि पूर्ण प्रयास एवं परिश्रम भी करता है तो उपलब्धी अवश्य होती है यह प्रयास एवं परिश्रम ही इन्सान का कार्य के प्रति समर्पण होता है |

इन्सान का जीवन शिक्षा से आरम्भ होता है | परिवार द्वारा सन्तान को शिक्षित करके उसे सक्षम एवं समझदार बनाने का प्रयास किया जाता है | बाल्यावस्था में सन्तान शिक्षा को उपयुक्त ना मानकर सिर्फ परिवार द्वारा दी गई एक जिम्मेदारी समझती है तथा वह मानसिक रूप से मनोरंजन के प्रति समर्पित होती है | सन्तान समय के साथ शिक्षा का महत्व समझती है तब वह शिक्षा के प्रति समर्पित होकर अधिक से अधिक उपलब्धी प्राप्त करने के प्रयास करना आरम्भ करती है | आरम्भ में शिक्षा को समर्पण (devotion) ना देने के कारण आरम्भिक शिक्षा का पिछडापन आगे की शिक्षा को कठिन बना देता है |

 कर्म के समय इन्सान नौकरी, व्यापार या कोई अन्य क्षेत्र यदि आरम्भ में कार्य को अभिलाषाओं के अनुकूल नहीं समझता तो उस कार्य में अपना पूर्ण समर्पण कदापि नहीं देता | कर्म को पूर्ण समर्पण (samarpan) देने वाले जीवन में शीघ्र प्रगति प्राप्त कर लेते हैं | कर्म के प्रति समर्पित ना होने वाले या कम समर्पित होने वाले इंसानों को प्रगति के लिए बहुत संघर्ष भी करना पड़ता है | पूर्ण समर्पण (devotion) के बिना इन्सान कर्म में पूर्ण परिश्रम भी नहीं करता जिसके कारण उसकी उपलब्धी भी कर्म के अनुसार अधूरी ही होती है |

 गृहस्थ जीवन आरम्भ करते ही स्त्री हो या पुरुष अपने जीवन साथी से प्रेम एवं विश्वास के साथ पूर्ण समर्पण की अभिलाषा अवश्य करता है | जीवन साथी के भूतकाल में झाँकने का प्रयास करने या उसपर किसी प्रकार का शक करने के कारण इन्सान जीवन साथी को अपना पूर्ण समर्पण कदापि नहीं दे सकता | जीवन साथी की अन्य इंसानों से तुलना करना अथवा अन्य किसी से प्रेम की अभिलाषा करना भी अधूरा समर्पण होता है | जीवन साथी के प्रति पूर्ण समर्पित ना होकर उससे पूर्ण समर्पण की अभिलाषा करने वाले इन्सान मूर्ख होते हैं क्योंकि इन्सान की अधूरे समर्पण की हरकतें जीवन साथी को अधूरेपन का अहसास अवश्य करवा देती हैं जिसके प्रभाव से वह भी पूर्ण समर्पित कदापि नहीं  हो सकता | पूर्ण समर्पण (devotion) के लिए पूर्ण समर्पित होना भी आवश्यक है |

माँ बाप सन्तान के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं इसलिए वह सन्तान पर अपनी सम्पूर्ण जीवन की जमापूंजी खर्च करने के लिए तत्पर रहते हैं | माँ बाप जब सन्तान को अपने प्रति समर्पित ना देखकर उन्हें सोहबत या अन्य किसी के प्रति समर्पित देखते हैं तो सन्तान के प्रति मायूस हो जाते हैं | सन्तान के अधूरे समर्पण के कारण माँ बाप भयभीत होकर ही अपनी सम्पत्ति को अपने अधिकार में रखने का प्रयास करते हैं | माँ बाप से पूर्ण समर्पण ((samarpan)) की अभिलाषा रखने वाली सन्तान जब तक उनके प्रति पूर्ण समर्पित नहीं होती उनका समर्पण भी अधूरा ही रहता है |

इन्सान मित्र हो या रिश्ते अपने सभी सबंधों को अपने प्रति वफादार, ईमानदार एवं पूर्ण समर्पित देखने की अभिलाषा करता है | ऐसी अभिलाषा करने से पूर्व उनके प्रति स्वयं भी पूर्ण समर्पित होना आवश्यक है | स्वयं अधूरा समर्पण देकर दूसरों से पूर्ण समर्पण की अभिलाषा रखना मूर्खता है क्योंकि इन्सान जितना किसी को उधार देता है उतना ही वापस भी मिलता है | संसार का नियम है कि परिश्रम के अनुसार ही मूल्य दिया जाता है क्योंकि परिश्रम करने वाला कम नहीं लेता तथा कार्य करवाने वाला अधिक नहीं देता | इन्सान को जिस भी इन्सान, विषय, वस्तु या प्राणी से जैसी भी अभिलाषा हो उसे वैसा ही समर्पण देना भी आवश्यक है |

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Filed Under: संशोधन Tagged With: समर्पण, dedication, devotion, samarpan

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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