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संगति – sangati

October 20, 2018 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी के साथ निरंतर अधिक समय व्यतीत करते हुए उसके विचारों एवं स्वभाव का अनुसरण करना संगति (sangati) कहलाती है । संगति (sangati) अति संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह इन्सान की मानसिकता को सबसे अधिक प्रभावित करने में सक्षम होती है । सोहबत (sohabat) में श्रेष्ठ एवं ओछे विचार तथा स्वभाव सभी प्रकार के इन्सान मिलते हैं परन्तु अधिकतर इन्सान पर ओछी संगति (sangati) का प्रभाव अधिक तीव्रता से होता है ।

सबसे आश्चर्यजनक यह वास्तविकता है कि संसार का प्रत्येक बुरा कार्य इन्सान सदैव संगति (sangati) से ही सीखता है । नशा, जुआ, सट्टा, चोरी, जेब काटना, लूट, डकैती, बेईमानी, धोखाधड़ी सभी बुरे कार्य इन्सान सोहबत में ही सीखता है क्योंकि परिवार या शिक्षा ऐसे कार्य कदापि नहीं सिखाती । संगति (sangati) की कार्य प्रणाली को पूर्णतया समझना बहुत आवश्यक है ताकि अपनी एवं अपनों की सोहबत से सुरक्षा करी जा सके तथा सोहबत (sohabat) से हानि के स्थान पर लाभ प्राप्त किया जा सके ।

इन्सान की मानसिकता का निर्माण तथा उसे प्रभावित करने के मुख्य तीन आधार होते हैं । संस्कार, शिक्षा तथा सोहबत । इन्सान के जन्म के साथ ही उसकी परवरिश में उस पर अपने माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों की प्रत्येक किर्या, कार्य प्रणाली, वार्तालाप, विचारों एवं उनके स्वभाव का सीधा प्रभाव पड़ता है । परिवार के सदस्यों के स्वभाव अनुसार ही इन्सान के स्वभाव का निर्माण होता है । परिवार क्लेशी हो तो इन्सान भी क्लेशी बनता है यदि परिवार शांत स्वभाव के सदस्यों का हो तो इन्सान भी शांत स्वभाव का ही होता है । एक दबंग परिवार का सदस्य कितना भी शांत स्वभाव का हो समय पर धमकी देना कभी नहीं भूलता । इन्सान के विचार परिवार की मानसिकता के अनुसार ही होते हैं । परिवार से इन्सान विचार हों या स्वभाव जो भी सीखता है वह उसके संस्कार कहलाते हैं जिनको देखकर समाज अनुमान लगा लेता है कि उसका परिवार किस मानसिकता का हो सकता है एक प्रकार से इन्सान के संस्कार उसके परिवार की पहचान होते हैं । इन्सान की मानसिकता को क्षमता एवं गति प्रदान करने का कार्य उसके परिवार की कार्य प्रणाली पर ही आधारित होता है ।

शिक्षा इन्सान की मानसिकता को दिशा प्रदान करती है तथा उसे सक्षम बनाती है । इन्सान जिस भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है वह उसी प्रकार के कार्यों द्वारा अपना जीवन निर्वाह करता है । अल्प शिक्षित अथवा अशिक्षित इन्सान किसी शिक्षित इन्सान से भी अधिक बुद्धिमान हो सकते हैं परन्तु शिक्षित इन्सान की तरह किसी विषय के ज्ञाता बनकर जीविकापार्जन करने में सक्षम नहीं हो सकते । शिक्षा इन्सान को धन के साथ सम्मान प्रदान करने का कार्य भी करती है परन्तु उसे शिक्षा का उचित उपयोग करने का अभ्यास एवं अनुभव होना आवश्यक है ।

संगति (sangati) इन्सान को किसी भी आयु में तथा किसी भी प्रकार की एवं किसी भी इन्सान की प्राप्त हो सकती है । इन्सान की मानसिकता को जिस भी इन्सान के विचार अथवा उसका स्वभाव या उसके कार्य प्रभावित करने लगते हैं वह उसकी सोहबत में समय व्यतीत करना पसंद करने लगता है । जब इन्सान निरंतर अधिक समय किसी की भी सोहबत में व्यतीत करता है तो वह उसके विचारों, स्वभाव एवं कार्यों का अनुसरण करने लगता है यह एक स्वभाविक किर्या है । इन्सान के संस्कारों तथा उसकी शिक्षा को भी संगति (sangati) सरलता से प्रभावित करके उसे अपने प्रभाव के नियन्त्रण में समेट लेती है ।

इन्सान के संस्कारों तथा उसकी शिक्षा को सोहबत (sohabat) द्वारा प्रभावित करने के वास्तव में दो कारण होते हैं । मर्यादा का उलंघन एवं जिज्ञासा का अनियंत्रित होना इन्सान को संगति (sangati) के जाल में सरलता से फंसा देता है । संस्कार एवं शिक्षा प्राप्त करते समय इन्सान सदैव मर्यादों का पालन करता है यदि वह किसी प्रकार की मर्यादा का उलंघन करता है तो उसे परिवार अथवा शिक्षक मर्यादा में रहने पर विवश कर देते हैं । संगति (sangati) इन्सान को किसी भी प्रकार की मर्यादा का उलंघन करने के लिए प्रोत्साहित करती है । हास्य अथवा मनोरंजन में इन्सान परिवार अथवा शिक्षा के समय सदैव मर्यादा का पालन अवश्य करता है ।

हास्य में परिवार अथवा शिक्षा के समय किसी भी प्रकार की अश्लीलता पर नियन्त्रण रखना इन्सान की मर्यादा है । सोहबत के समय इन्सान हास्य में सभी प्रकार की मर्यादाओं का उलंघन करके कितनी भी अश्लीलता का उपयोग सरलता से कर सकता है । मनोरंजन में इन्सान को परिवार या शिक्षा किसी भी प्रकार की अय्याशी करने की स्वीकृति प्रदान नहीं करते । सोहबत (sohabat) इन्सान को अय्याशी के विषय में समझाने तथा उसे अय्याशी करने के लिए प्रेरित करती है । सोहबत में इन्सान सभी प्रकार की मर्यादाओं का उलंघन करने के लिए स्वतंत्र होता है इसीलिए उसे सोहबत प्रिय लगती है तथा संस्कारों एवं शिक्षा से अधिक प्रभावित करती है ।

इन्सान जिज्ञासा प्रवृति का प्राणी है प्रत्येक नई वस्तु अथवा विषय इन्सान के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करने का कार्य करते हैं । सोहबत में इन्सान को जब नशे, अय्याशी अथवा धन प्राप्त करने के जुआ, सट्टा, चोरी, लूट, डकैती, बेईमानी, धोखाधड़ी जैसे सरल परन्तु अनुचित रास्ते प्राप्त होते हैं तो उनके प्रति उसके मन में जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न होती है । सोहबत में अधिकतर इन्सान को नशे, अय्याशी अथवा सरलता से धन प्राप्ति के प्रलोभन दिए जाते हैं । प्रलोभन प्राप्त होते ही इन्सान को सोहबत प्रिय लगने लगती है तथा उसे सोहबत के इन्सान सच्चे हमदर्द दिखाई पड़ने लगते हैं । वास्तव में प्रलोभन देने का कारण उसे अपनी आसामी बनाने एवं वक्त पर सहायक के रूप में उपयोग करने के लिए होता है ।

सोहबत से रक्षा करने में शिक्षा इसलिए असफल है क्योंकि शिक्षा में किसी भी बुराई के विषय में जानकारी ना के बराबर होती है जिसके कारण इन्सान के मन में बुराई के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होने से रोकने में शिक्षा सक्षम नहीं होती । परिवार इन्सान को बुराई से बचाने के लिए उसे बुराई के विषय में अधिक जानकारी नहीं देता जिसके कारण इन्सान सोहबत (sohabat) में सरलता से फंस जाता है । परिवार द्वारा सभी बुराइयों के विषय में विस्तार पूर्वक समझाने तथा बुराई के परिणाम से परिचित करवाने से इन्सान के मन में बुरे कार्यों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न नहीं  होती । परिणाम की चिंता इन्सान को अपराध के प्रति आकर्षित होने से रोकती है जिसके कारण उसपर सोहबत का प्रभाव अधिक नहीं होता ।    

परिवार द्वारा मर्यादा के विषय में समझाना कि किसी भी प्रकार की मर्यादा का उलंघन करना सदैव हानिकारक एवं समस्या का आरम्भ होता है इन्सान को मर्यादा पालन के प्रति जागरूक करता है । जब इन्सान मर्यादाओं का पालन करने में सक्षम हो तथा उसके मन में अधिक जिज्ञासा उत्पन्न ना हो तो वह किसी भी सोहबत में सरलता से नहीं फंस सकता । इन्सान का विवेक उसकी सभी प्रकार की बुराइयों से रक्षा करने में सक्षम होता है इसलिए विवेक से कार्य लेना सबसे उत्तम होता है । इन्सान के विवेक को जागरूक बनाना सबसे आवश्यक कार्य है परिवार का कर्तव्य  है कि इन्सान के विवेक में जाग्रति उत्पन्न करके उसे विवेक से कार्य लेने की क्षमता प्रदान करे ।

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Filed Under: अंतरिम ज्ञान Tagged With: संगति, सोहबत, sangati, sohabat

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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