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सौन्दर्य – saundarya

April 6, 2020 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी की निर्मित आकृति अर्थात उसकी बनावट की श्रेष्ठता उसका सौन्दर्य (saundarya) होता है | आकृति जितनी अधिक श्रेष्ठ निर्मित होती है वह उतनी अधिक सुंदर मानी जाती है | सौन्दर्य (saundarya) अर्थात सुंदर या खूबसूरत यह अत्यंत विचित्र एवं जटिल विषय है | क्योंकि प्रत्येक इन्सान की दृष्टि में सौन्दर्य की अपनी अलग परिभाषा होती है | कोई इन्सान रंग या रूप को सुंदर समझता है तो कोई आकृति, प्रतिभा, विशेषता अथवा कद काठी को सुन्दरता (sundarta) से सबंधित समझता है | जैसी इन्सान की मानसिकता होती है वैसा ही उसके लिए सौन्दर्य (saundarya) होता है |

सौन्दर्य (beauty) का आरम्भ, उदय या आधार आकर्षण होता है | क्योंकि जब किसी प्रकार सौन्दर्य (beauty) होता है तब ही आकर्षण उत्पन्न होता है | जो भी उपकरण, विषय, प्राणी, इन्सान, संसाधन, या पृथ्वी एवं सौर मंडल में उपलब्ध कोई भी वस्तु इन्सान को आकर्षित करती है वह उससे प्रभावित होकर उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो जाता है | सौन्दर्य (saundarya) इन्सान की मानसिकता की प्राथमिकता है | क्योंकि इन्सान अपना प्रत्येक कार्य सुन्दरता के आधार पर ही करता है | इन्सान भोजन भी खाद्य पदार्थ की सुन्दरता को देख कर ही ग्रहण करता है | यदि भोजन साधारण या असुन्दर दिखाई देता है तो उसका त्याग भी कर देता है | वस्त्र, घर, उपकरण, संसाधन, घरेलू वस्तुएं यहाँ तक कि जीवन साथी भी प्रतिभा की अनदेखी करके सौन्दर्य के आधार पर ही चुने जाते हैं |

 इन्सान जिसके आकर्षण से प्रभावित होता है वह उसके लिए सौन्दर्य (beauty) होता है | अन्यथा पसंद ना आने पर कैसा भी सौन्दर्य (charm) हो व्यर्थ हो जाता है | सौन्दर्य इन्सान के जीवन का सबसे अधिक आकर्षक परन्तु हानिकारक विषय भी है क्योंकि सबसे अधिक धन इन्सान सौन्दर्य (saundarya) के आकर्षण पर ही खर्च करता है | बहुमूल्य वस्त्र, संसाधन, आकर्षक भोजन, घर सजावट की वस्तुएं, वाहन, बहुमूल्य उपकरण सभी सौन्दर्य के आधार पर ही महंगे से महंगे लिए जाते हैं | इन्सान कर्ज लेकर भी अपने एवं अपनी वस्तुओं या कार्य के सौन्दर्य की प्रशंसा के लिए धन बर्बाद करता है |

सौन्दर्य (saundarya) का निर्माण दो प्रकार से होता है प्राकृतिक अर्थात स्व:निर्मित तथा अप्राकृतिक अर्थात इन्सान द्वारा निर्मित होते हैं | जैसे प्राकृतिक आकर्षक लगते हैं | उसी प्रकार इन्सान द्वारा निर्मित भी आकर्षण उत्पन्न करते हैं | कभी-कभी अप्राकृतिक निर्माण प्राकृतिक से भी अधिक सौन्दर्य प्रस्तुत करता है | इसलिए दोनों ही श्रेष्ठ हैं | पुष्प प्राकृति द्वारा निर्मित हैं जिनके विभिन्न रंग एवं आकार होते हैं परन्तु सभी आकर्षक लगते हैं | फूलों का ढेर मात्र अपनी आकृति के कारण ही सुंदर लगता है अन्यथा उनका कोई अतिरिक्त आकर्षण नहीं  होता | जब फूलों को आकृति प्रदान करते हुए सजाया जाए या तरीके से उनकी माला बने तो वह अतिरिक्त सुंदर दिखाई देते हैं |

किसी इन्सान की वाणी अत्यंत मधुर हो तो वह प्राकृतिक सौन्दर्य है | किसी मधुर वाणी को गायन कला से सजाया जाए तो वह असंख्य इंसानों को आकर्षित करते हुए अपने सौन्दर्य से मुग्ध करती है | इन्सान का बलवान होना प्राकृतिक है | परन्तु बल को जब खेल अथवा पराक्रम की सजावट प्राप्त होती है तो वह प्रतिभा बन जाता है | इन्सान के विचार कितने भी श्रेष्ठ हों परन्तु उन विचारों की प्रस्तुति श्रेष्ठ ना होने से उनका कोई महत्व नहीं  होता | जब इन्सान अपने विचारों को व्यवहार के सौन्दर्य से प्रस्तुत करता है तब वह आकर्षित करते हैं | कोई स्त्री या पुरुष कितना भी सुंदर हो उसे अतिरिक्त सजावट की आवश्यकता अवश्य  होती है अन्यथा उसका सौन्दर्य साधारण बन कर रह जाता है |

सौन्दर्य की श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए उसे प्रस्तुत करते हुए समय एवं स्थान का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है | गलत समय अथवा स्थान पर सौन्दर्य की प्रस्तुति उसके अपमान का कारण भी बन सकती है | हास्य इन्सान के व्यवहार का सौन्दर्य है | परन्तु किसी बीमार अथवा मृत्यु स्थल पर प्रस्तुत किया जाए तो अपमान का कारण  बन जाता है | दुःख के समय अथवा आलस्य के समय उत्तम विचार भी प्रस्तुत करने मूर्खता का कारण  बन जाते हैं | किसी दुखी इन्सान के समीप सज-धज कर जाना सौन्दर्य नहीं तुच्छ मानसिकता की प्रस्तुति होती है | सौन्दर्य सदैव उत्तम समय एवं स्थान पर ही आकर्षित कर सकता है | काला रंग बालों में सुंदर है परन्तु चेहरे को बदसूरत बना देता है | इसी प्रकार सफेदी चेहरे पर सुंदर परन्तु बालों पर खराब लगती है |

सौन्दर्य (beauty) की पोषक स्वच्छता एवं विनाशक गंदगी है | जो गंदगी स्पष्ट हो उसे इन्सान साफ कर देता है परन्तु जो गंदगी अस्पष्ट होती है वह सौन्दर्य के लिए अधिक हानिकारक होती है | ना दिखाई देने वाली गंदगी से सावधान रहने की अधिक आवश्यकता होती है अन्यथा सौन्दर्य की अंत निश्चित होता है | इन्सान का अहंकार उसके सौन्दर्य की सबसे हानिकारक गंदगी होती है क्योंकि अहंकार के कारण कब उसका आकर्षण समाप्त हो गया उसे सौन्दर्य का पतन होने के पश्चात ही पता चलता है | इन्सान के श्रेष्ठ व्यवहार के सौन्दर्य की गंदगी उसके द्वारा उपयोग किए गए अपशब्द होते हैं जो वह वार्तालाप के समय अचानक बोल देता है | इन्सान बहस, आलोचना, कटाक्ष, तानाकशी करके खुद को तुच्छ प्रमाणित कर देता है यह सभी इन्सान की मानसिक गंदगी प्रस्तुत करते हैं |

इन्सान अपने आकर्षित करने वाले सौन्दर्य से दूसरों को आकर्षित करके उनसे सरलता से लाभ प्राप्त कर लेता है | दूसरों को आकर्षित करके लाभ मिलता है इसी प्रकार दूसरों के आकर्षण में फंसने से हानि भी होती है | इन्सान को धोखा सदैव आकर्षित करने वाले सौन्दर्य से ही मिलता है वह चेहरे को हो या व्यवहार का शब्दों का हो या लोभ का धोखे का कारण किसी भी प्रकार के सौन्दर्य का आकर्षण ही होता है | भोजन में पौष्टिकता की अनदेखी करके स्वाद एवं सजावट का सौन्दर्य इन्सान के जीवन में अनेक बिमारियों का प्रवेश कर देता है | वस्त्र इन्सान के सम्मान एवं शरीर की रक्षा करने का कार्य करते हैं परन्तु फैशन के सौन्दर्य में फंसकर इन्सान शरीर एवं सम्मान के लिए हानिकारक वस्त्रों को ग्रहण कर लेता है |

सौन्दर्य इन्सान के लिए सबसे अधिक आकर्षित करने वाला विषय है | इसलिए सबसे अधिक सावधान रहने वाला विषय भी है | इन्सान जीवन में जब भी किसी बड़ी समस्या या मुसीबत में फंसता है उसका कारण मोह, लोभ, काम जैसे विकार के कारण किसी सौन्दर्य से आकर्षित करने वाला षड्यंत्र ही होता है | चोरी, लूट, धोखा सभी अपराध लोभ में धन के प्रति आकर्षित करने वाले सौन्दर्य के कारण होते हैं | किसी के सौन्दर्य में फंसा इन्सान बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करके अपना जीवन एवं अपने परिवार का सम्मान संकट में डाल देता है | सौन्दर्य से आकर्षित होने से पूर्व अपने विवेक  का उपयोग करना सर्वोतम उपाय है ताकि सौन्दर्य का लाभ मिले परन्तु हानि से बचा  जा सके |

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Filed Under: संशोधन Tagged With: सुन्दरता, सौन्दर्य, beauty, charms, khoobsurti, saundarya, sundarta

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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