संसार में किसी भी विषय, वस्तु, प्राणी, पदार्थ को नाम प्रदान करके उसकी पहचान प्रस्तुत करने एवं इन्सान के विचार प्रस्तुत करने का एकमात्र साधन शब्द (shabd) होते हैं । संसार में असंख्य भाषाएँ हैं | परन्तु किसी भी भाषा में शब्दों (shabd) के बगैर किसी को पुकारने अथवा विचार प्रस्तुत करने का कार्य असंभव होता है | इसलिए सभी भाषाओँ में शब्द (shabd) अवश्य होते हैं । शब्द (shabd) देखने में अवश्य साधारण सा विषय है | परन्तु वास्तव में यह इन्सान के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील विषय है ।
संसार की सभी उपलब्धियां शब्दों के कारण ही होती हैं धन, दौलत, जमीन, जायदाद, सम्मान, अपमान, मित्रता, शत्रुता सभी का मुख्य आधार शब्द होतें हैं । इन्सान को प्रेम, विश्वास भी शब्दों के कारण ही मिलता है तो कलह या तकरार भी शब्दों (words) के कारण ही होती है । शब्दों (words) द्वारा ही बहस, आलोचनाएँ, कटाक्ष, व्यंग अथवा तानाकशी होकर इंसानों के मध्य मतभेद उत्पन्न होते हैं ।
किसी इन्सान के नाम को पुकारने में शब्दों (words) का अंतर उसके सम्मान को प्रभावित करता है जैसे परसू, परसे, परसराम, परसराम जी, श्रीमान परसराम जी यह सभी सम्बोधन एक इन्सान के लिए होते हुए भी बहुत अंतर लिए हुए हैं । किसी को ओ, अबे, तू, तुम, आप एवं जी जैसे किसी भी सम्बोधन से पुकारा जा सकता है | परन्तु प्रत्येक सम्बोधन उसके लिए अलग मानसिकता प्रस्तुत करता है । शब्दों (word) के उच्चारण करने के तरीके तथा शब्दों (word) की श्रेष्ठता या ओछेपन से किसी भी इन्सान की मानसिकता का अनुमान सरलता से लगाया जा सकता है । इन्सान अपने वार्तालाप में सरल, अपशब्द, ओछे, सभ्य अथवा जटिल जिस भी प्रकार के शब्द (shabd) उपयोग करता है | वह उसकी मानसिकता का दर्पण होते हैं ।
सरल शब्दों (words) का उपयोग सामान्य इन्सान करते हैं जिनकी मानसिकता भी सरल होती है । वार्तालाप में कभी-कभी अपशब्दों का उयोग करने वाला इन्सान लापरवाह होता है | जिसके लिए अपना अथवा दूसरे का सम्मान या अपमान कोई महत्व नहीं रखता । ओछे एवं अपशब्दों में वार्तालाप करने वाले ओछी मानसिकता के अपराधिक प्रवृति के इन्सान होते हैं । सभ्य शब्दों द्वारा वार्तालाप करने वाले सभ्य तथा म्ह्त्वाकांशी शालीन प्रवृति के इन्सान होते हैं जिनके लिए अपना एवं दूसरे इन्सान का सम्मान महत्वपूर्ण होता है । वार्तालाप में जटिल शब्दों का उपयोग करना अहंकारी इन्सान का कार्य है जो खुद को बुद्धिमान होने का दिखावा करते हैं ।
कुछ इन्सान हिंदी के वार्तालाप में जटिल अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग करना आरम्भ कर देते हैं इसका मुख्य कारण वह खुद को बुद्धिमान प्रमाणित करना चाहते हैं । हिंदी के वार्तालाप में जटिल अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग करना अहंकार एवं दिखावा करने की मानसिकता होती है । बहुत से इन्सान हिंदी में पूछे गए प्रश्नों का अंग्रेजी में उत्तर देते हैं | जबकि हिंदी के प्रश्न को भलीभांति समझना प्रमाणित करता है कि वह हिंदी का पूर्ण जानकार है । हिंदी के प्रश्न का अंग्रेजी में उत्तर देने वाले इन्सान अहंकारी एवं दिखावा करने के साथ मूर्ख मानसिकता के शिकार भी होते हैं | क्योंकि उत्तर में जो विचार प्रस्तुत किए जाते हैं | उन्हें यदि प्रश्न करने वाले ना समझ सकें तो उत्तर देना ही मूर्खता है । विचार वह उत्तम होते हैं | जिन्हें दूसरे सरलता से समझ सकें क्योंकि समझ ना आने पर विचार व्यर्थ हो जाते हैं ।
बहुत से इन्सान अधिकतर मित्रों के मध्य अपशब्दों का उपयोग करते हैं | जिसे वह अपनापन एवं मित्रता कहते हैं । उनके कथन अनुसार सभ्य शब्दों का उपयोग करने वाले कदापि प्रगाढ़ मित्र नहीं होते यह मूर्खता पूर्ण मानसिकता है । कभी-कभी ऐसे प्रगाढ़ मित्र दूर रहने का प्रयास करने लगते हैं जिसका कारण पूछे जाने पर बहाना बना देते हैं । ऐसे मित्रों के मध्य मतभेद उत्पन्न होने का कारण अपशब्दों का उपयोग होता है क्योंकि अपशब्द कभी भी किसी के मन एवं मानसिकता को घायल कर सकते हैं । सभ्य शब्दों का उपयोग करने पर मतभेद होने की स्थिति कभी उत्पन्न नहीं होती क्योंकि सभ्य शब्द कभी किसी की मानसिकता पर आघात करने का कार्य नहीं करते ।
इन्सान के विचारों का महत्व शब्दों पर भी निर्भर करता है | क्योंकि उत्तम विचार ओछे शब्दों के कारण साधारण बन कर रह जाते हैं । साधारण विचारों को यदि सभ्य एवं शालीन शब्दों में प्रस्तुत किया जाए तो उन्हें भी श्रेष्ठता प्राप्त हो जाती है अर्थात विचार भी शब्दों से श्रेष्ठ बनते हैं । व्यवहारिक इन्सान सदैव सभ्य एवं शालीन शब्दों का उपयोग करते हैं इसीलिए उन्हें व्यवहारिकता का सम्मान प्राप्त होता है । प्रचारक एवं प्रवक्ता सदैव उत्तम शब्दों का उपयोग करने के कारण ही अपने पदों पर आसीन होते हैं यदि वह ओछे शब्दों (word) का उपयोग करना आरम्भ कर दें तो उनके व्यक्तव्य को सुनने कोई नहीं आ सकता ।
सभ्य शब्दों के साथ जटिल शब्दों (shabdo) का उपयोग करने वाले इन्सान वास्तव में धूर्त होते हैं | क्योंकि उनका कथन स्पष्ट ना होने के कारण सदैव भ्रमित करता है । अनेकों धूर्त धर्म प्रचारक बनकर अत्यंत जटिल शब्दों का उपयोग करके साधारण इंसानों को सरलता से मूर्ख बना लेते हैं | क्योंकि जटिल शब्दों के समझ ना आने पर उन्हें धर्म शास्त्री एवं प्रगाढ़ विद्वान् समझकर वह मूर्ख बन जाते हैं । वास्तव में विद्वान् वह होता है जो अपने व्यक्तव्य को सरलता से सभी को समझा देता है क्योंकि जो बात इन्सान की समझ ना आए वह उसके लिए बकवास होती है । जो इन्सान जटिल शब्दों के साथ दो अर्थ वाले शब्दों का उपयोग करते हैं वह महा धूर्त एवं पाखंडी होते हैं । अर्थ समझकर आरोप लगने पर वह गलत अर्थ समझने का बहाना बना कर दूसरा अर्थ बताकर बचने का रास्ता अपनाते हैं ।
शीघ्रता पूर्वक या आक्रोश में बोलते समय इन्सान के मुख से मनसिकता में जमा किए हुए अपशब्दों का उच्चारण अवश्य होता है | जिसके कारण वह अपमानित होता है । इन्सान कितना भी नियन्त्रण करे मानसिकता में जमा किए हुए अपशब्द एवं ओछे शब्द (shabd) कभी ना कभी उसके अपमान का कारण अवश्य बनते हैं । खुद को श्रेष्ठ इंसानों की श्रेणी में बनाए रखने के लिए सदैव शब्दों का चयन करके ही वार्तालाप करना आवश्यक होता है । जब इन्सान सदैव सभ्य एवं शालीन शब्दों का उपयोग करता है तो उसे समाज में सम्मान, सहयोग एवं सहायता सरलता से प्राप्त हो जाती है । शब्द इन्सान को श्रेष्ठ या ओछा कुछ भी बना सकते हैं | इसलिए अपने शब्दों पर सदैव नियन्त्रण बनाए रखना ही इन्सान की श्रेष्ठता होती है ।
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