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शोषण

October 9, 2016 By Amit Leave a Comment

कोई भी ऐसा कार्य जिससे कष्ट या दुःख उत्पन्न हो अथवा हानिकारक हो वह शोषण कहलाता है । शोषण मुख्य चार प्रकार के होते हैं शारीरिक शोषण, मानसिक शोषण, आर्थिक शोषण एवं सामाजिक शोषण । शोषण पीड़ादायक एवं अनुचित कार्य है इसलिए यह अपराध की श्रेणी में आता है । शोषण अपराध की श्रेणी में होने के पश्चात भी सबसे अधिक किया जाने वाला कृत्य है । शोषण अपराध की ईकाई है क्योंकि, शोषण करने की प्रवृति ही इन्सान की मानसिकता में अपराध को बढ़ावा देती है । शोषण करने के अनेक कारण हैं मुख्यतः स्वार्थ व लोभ के कारण, ईर्षा या घृणा के कारण, अभिलाषा पूर्ति के कारण, क्रोध व आक्रोश के कारण, अहंकार के वशीभूत अथवा मानसिक विकृति के कारण । कारण कोई भी हो शोषण करना सिर्फ अपराधिक कार्य है, तथा शोषण करना नकारात्मक मानसिकता एवं मनोविकृति है ।

किसी के साथ किसी भी प्रकार का हिंसात्मक कार्य अथवा, उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट प्रदान करना शारीरिक शोषण की श्रेणी में आता है । शारीरिक शोषण सर्वप्रथम घरों से ही आरम्भ हो जाता है ,जिसमें शारीरिक आघात तथा बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य शामिल होते हैं । परिवार में खुद को महत्वपूर्ण समझने एवं दिखने के लिए तथा अपना वर्चस्व कायम करने के लिए परिवार, के किसी सदस्य द्वारा दूसरे सदस्यों का शोषण करना साधारण कार्य है । घरों में सर्वाधिक शोषण नारी वर्ग का होता है, तथा शोषण करने वालों में परिवार के अतिरिक्त रिश्तेदार एवं परिवार के नजदीकी मित्र अथवा सम्बन्धी होते हैं । कभी-कभी घरेलू नौकर या पड़ोसी भी बच्चों ,स्त्री को आक्रांतित करके या लोभ देकर अथवा, किसी कमजोरी का लाभ उठाकर उनका शारीरिक शोषण कर देते हैं ।

शारीरक शोषण से पीड़ित इन्सान आक्रांतित मानसिकता में जीवन व्यतीत करता है, या कभी-कभी विक्षिप्त मानसिकता के कारण चिडचिडा या हिंसात्मक हो जाता है ।किसी को उसके मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न करना, मानसिक कष्ट देना, हताशा उत्पन्न करना, आक्रांतित करना अथवा किसी अनुचित कार्य के लिए बाध्य करना मानसिक शोषण की श्रेणी में आते हैं । इन्सान का मानसिक शोषण करने वाला अधिकतर उसका कोई अपना ही होता है , अपना बनकर करता है जो अपने लोभ, स्वार्थ या ईर्षा के कारण मानसिक शोषण करने पर उतारू हो जाता है । मानसिक शोषण करने के तरीके भी शोषण के प्रकार पर निर्भर करते हैं ,जिसका अनुमान भी शोषण के शिकार को नहीं होता ।

शोषण करने वाला अपने शिकार के मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न करने के लिए उसे मनोरंजन, नशे अथवा अय्याशी के साधनों में उलझा देता है । मानसिक कष्ट देने के लिए कार्य में बाधा उत्पन्न करना या कार्य से भटकाना, हौसला पस्त करके हताशा उत्पन्न करना या भ्रम उत्पन्न करके आक्रांतित करना । आपसी झगड़े करवाना या अनुचित कार्य के लिए उकसाना , बाध्य करके फँसाना शोषण करने के तरीके होते हैं । गलत मार्ग दर्शन धीमे जहर की तरह मस्तिक पर अपनी पकड़ बनाकर मानसिकता का विनाश कर देता है ।किसी के धन या सम्पत्ति को किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाना आर्थिक शोषण कहलाता है । आर्थिक शोषण संसार में सर्वाधिक होने वाला अपराध है ।

आर्थिक शोषण करने के लिए इन्सान से किसी प्रकार का सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं है, सिर्फ अवसर प्राप्त होते ही कोई भी हानि पहुँचा देता है, आर्थिक शोषण के लिए अपने हों या पराये सदैव अवसर की तलाश में रहते हैं । आर्थिक शोषण के मुख्य तरीके हैं मजबूरी या जरूरत का लाभ उठाना, लत लगाकर फंसाना, धोखे से ठगना वगैरह । मजबूरी या जरूरत का लाभ अपने पराये सभी उठाते हैं, जो सहायता के नाम पर जाल में फंसा कर लूटते हैं जिसमे अपने दूसरों का नाम लेकर व पराये खुलकर लूटते हैं, कार्य करवाने के बदले रिश्वत वसूलना मजबूरी का लाभ उठाना ही है । नशे, जुए या अय्याशी की लत लगाकर मनचाहे तरीके से शोषण करना शोषण करने वालों का सुदृढ़ जाल है । धन या सम्पत्ति का आकर्षण इन्सान की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है ,जिसके लिए वह अपनों को भी धोखा देने से परहेज नहीं करता ।

जो इन्सान आर्थिक शोषण नहीं कर पाते उसका कारण अवसर प्राप्त ना होना है ,या तरीका उपलब्ध ना होने अथवा साहस ना होने पर । जो इन्सान अपने सम्मान एवं स्वाभिमान को महत्व देते हैं वह कभी किसी का शोषण नहीं कर पाते ।

किसी को समाज में बदनाम करना तथा उसके सम्मान पर आघात करना सामाजिक शोषण होता है । सामाजिक शोषण वास्तव में कोई अपना ही नजदीकी ईर्षा के कारण करता है, जिससे समाजिक कार्यों में बाधा उत्पन्न हो तथा सामाजिक बहिष्कार हो जाए । इन्सान का समाज में बदनाम होने से प्रभाव समाप्त हो जाता है, जिसके कारण उसे समाज से किसी भी प्रकार की सहायता प्राप्त नहीं होती । मुसीबत के समय जो सहायता समाज से प्राप्त हो सकती थी वह बदनामी के पश्चात कभी प्राप्त नहीं होती । सामाजिक बदनामी से परिवार के विवाह सम्बन्धों पर भी बहुत गहरा असर पड़ता है, क्योंकि बदनाम से कोई भी अपने सम्बन्ध बनाना नहीं चाहता ।शोषण किसी भी प्रकार का हो उसके मुख्य कारण अधिक विश्वास या अन्धविश्वास, असावधानी, लाचारी अथवा किसी प्रकार की कमजोरी का होना है । जीवन में विश्वास करना आवश्यक है क्योंकि सम्बन्ध विश्वास की नींव पर ही टिके होते हैं, परन्तु जब विश्वास अधिक बढ़ जाता है तो वह अन्धविश्वास बन जाता है ,तथा अंधेपन का सभी लाभ उठाते हैं ।

अपना हो या पराया विश्वास करना श्रेष्ठ है परन्तु सावधानी की मर्यादा में रहकर ही विश्वास श्रेष्ठ होता है, अन्यथा विश्वास का विश्वासघात बन जाता है । कितना भी प्रिय सम्बन्ध हो असावधानी हानिकारक होती है ,क्योंकि सावधानी हटी दुर्घटना घटी अटूट सत्य है । लाचारी हो या किसी प्रकार की कमजोरी किसी के समक्ष प्रकट करना मूर्खता है, क्योंकि वह सहायता करे या ना करे अवसर प्राप्त होते ही लाभ अवश्य उठाता है । शोषण से बचने का सर्वोतम उपाय है शोषण को अतिशीघ्र सार्वजनिक करना, तथा शोषण करने वालों की वास्विकता सार्वजनिक प्रकट करना ।

रिश्तों,सम्बन्धों, परिवार की मर्यादा या अपमान से डरकर चुप रहना मूर्खता होती है क्योंकि ,अनुचित कार्य शोषण करने वाला कर रहा है और हमारी चुप्पी उसकी रक्षा कर रही है । शोषण के प्रति चुप रहकर इन्सान शोषण करने वाले का हौसला बढाता है ,इस प्रकार अपराधी का साथ देने से पीड़ित स्वयं अपराधी बन जाता है ।रिश्ता खून का भी हो यदि वह खून चूसने लगे, या खून बहाने का प्रयास करे उसका त्याग करना ही बुद्धिमानी होती है, क्योंकि जीवन सर्वोपरी है और जीवन की रक्षा करना प्रथम कर्तव्य है ।

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Filed Under: समाज Tagged With: शोषण, exploitation, shoshan

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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