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अंधविश्वास

October 30, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी इन्सान पशु, वस्तु या विषय को अपने उपयोग अथवा कार्य हेतु पूर्ण सक्षम समझना विश्वास कहलाता है । विश्वास करते समय उसकी त्रुटियाँ ना दिखाई देने अथवा अनदेखा कर देने को अंधविश्वास कहा जाता है । अंधविश्वास अर्थात आँखें बंद करके सत्यता पर विश्वास करना होता है । अंधविश्वास करने वाला इन्सान एक प्रकार से बंद आँखों से देखा हुआ दृश्य सत्य समझता है उसने जो भी दृश्य आँखें बंद करने से पूर्व देखा उसे वह दृश्य ही दिखाई देता रहता है और इन्सान भ्रमित होकर उसे ही सत्य मान लेता है । अंधविश्वास ऐसा भ्रम है जो इन्सान की बुद्धि को भ्रमित करता है जिसके प्रभाव के कारण इन्सान आँखें होने पर भी दृष्टिविहीन हो जाता है तथा उसे वह दिखाई देता है जो उसकी बुद्धि देखना पसंद करती है ।

अंधविश्वास का सबसे अधिक प्रभाव इन्सान के विवेक पर होता है । अंधविश्वास के कारण इन्सान की जिस विषय में भी बुद्धि भ्रमित हो जाती है वह उसमें विवेकशून्य हो जाता है । इन्सान अंधविश्वास अनेक विषयों पर करता है परन्तु सर्वाधिक अंधविश्वास भावनाओं से सम्बन्धित विषयों पर होता है जिनमें श्रद्धा भक्ति एवं प्रेम मुख्य विषय हैं । श्रद्धा भक्ति में ईश्वर, देवी देवता, दिव्य शक्तियाँ एवं साधू संत मुख्य हैं परन्तु धर्म से संबधित इन्सान, तांत्रिक, पंडित, ज्योतिषी वगैरह भी इसी श्रेणी के पात्र हैं । प्रेम के विषय में परिवार एवं गृहस्थी के सदस्य, संबधी एवं मित्रगण तथा ऐसे पराये इन्सान भी जिस से अधिक प्रेम हो जाए इन्सान के अंधविश्वास का कारण बन जाते हैं ।

श्रद्धा भक्ति की श्रेणी में प्रथम ईश्वर, देवी देवता, दिव्य शक्तियाँ एवं साधू संत होते हैं । श्रद्धा भक्ति के दो मुख्य आधार हैं भय एवं स्वार्थ । भय का कारण ईश्वर, देवी देवता, दिव्य शक्तियाँ एवं साधू संतों के नाराज होने पर अनिष्ट होने का भय तथा स्वार्थ का कारण इनकी कृपा दृष्टि से सम्पूर्ण स्वार्थ सिद्ध होने की अभिलाषा होती है । ईश्वर, देवी देवताओं एवं साधू संतों पर अंधविश्वास का कारण इन्सान को जन्म से ही इनकी शक्तियों से भयभीत करना तथा इनकी शक्तियों का महिमा मंडन करना है जिसके कारण इन्सान इन्हें जीवन का आधार एवं स्वार्थ पूर्ति का साधन मानकर अंधविश्वास की गर्त में डूब जाता है । इन्सान सभी साधू संतों की वेशभूषा देखकर उनके समक्ष नतमस्तक हो जाता है वह चाहे साधू के वेश में कोई धूर्त या ठग हो सच्चाई ज्ञात करने का प्रयास भी नहीं होता । यह इन्सान के अंधविश्वासी होने का प्रमाण पत्र होता है ।

श्रद्धा भक्ति की दूसरी श्रेणी में तांत्रिक, पंडित, ज्योतिषी वगैरह होते हैं । इन्सान की दृष्टि में तांत्रिक, पंडित एवं ज्योतिषी वगैरह सभी दिव्य शक्तियों के मालिक एवं परम ज्ञानी होते हैं जिनके आशीर्वाद से संसार के सभी कार्य सरलता से सफल हो सकते हैं । अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने एवं स्वार्थ सिद्ध करने का साधन मानकर इन्सान इन धर्म शास्त्रियों के प्रति अंधविश्वासी हो जाता है । जब कोई धूर्त रंगा सियार बनकर साधारण इन्सान को धर्म के नाम पर अंधविश्वास के जाल में फंसाता है उसमें फंसने वाले की गलती अधिक होती है । अंधविश्वास के जाल में फंसने वाला इन्सान वास्तव में अपने लोभ एवं स्वार्थ के जाल में उलझा होता है इसलिए उसे इनकी वास्तविकता लुटने के पश्चात ही समझ आती है ।

प्रेम का इन्सान की भावनाओं में उत्कृष्ट स्थान है क्योंकि प्रेम के कारण इन्सान को मानसिक सुख एवं शांति का अहसास होता है । प्रेम का आधार विश्वास है क्योंकि इन्सान जिससे भी अपने प्रति वफादारी एवं सहायता का विश्वास करता है उसके प्रति समर्पित होकर प्रेम उत्पन्न करने लगता है । प्रेम विश्वास से आरम्भ होकर जब इन्सान को मानसिक सुख एवं शांति प्रदान करता है तो भावनाएँ प्रभावित होकर प्रेम में वृद्धि करती हैं जिसके कारण प्रेम विश्वास को अंधविश्वास में परिवर्तित कर देता है इन्सान में प्रेम का आरम्भ परिवार एवं गृहस्थी के सदस्यों से होता है क्योंकि यह सभी अपने प्रति वफादार एवं सहायक प्रतीत होते हैं । इन्सान संबधी एवं मित्रगण जिसे भी अपने प्रति वफादार एवं सहायक समझता है उसके प्रति समर्पित होकर प्रेम करने लगता है । यदि कोई पराया इन्सान वफादार एवं सहायक लगे अथवा किसी प्रकार का मानसिक सुख एवं शांति का आधार बन जाए तो वह भी प्रेम का पात्र बन जाता है ।

प्रेम एवं विश्वास एक सिक्के के दो पहलु हैं क्योंकि प्रेम वफादारी के विश्वास के कारण होता है तथा प्रेम है तभी विश्वास भी होता है । प्रेम में वृद्धि होने से प्रेम अँधा हो जाता है जो विश्वास को भी अंधविश्वास बना देता है । श्रद्धा भक्ति एवं विश्वास भी प्रेम की तरह एक सिक्के के दो पहलु ही होते हैं । स्वार्थ सिद्ध होने के विश्वास के कारण श्रद्धा एवं भक्ति की भावना प्रबल होती है तथा श्रद्धा भक्ति है तो विश्वास भी अवश्य होता है । श्रद्धा भक्ति की भावना में वृद्धि प्रेम की तरह श्रद्धा को अंध श्रद्धा बना देती है तब अंध श्रद्धा विश्वास को अंधविश्वास बना देती है । विश्वास में धोखा होने की संभावना होती है जिसे विश्वासघात कहा जाता है परन्तु अंधविश्वास स्वयं ही धोखा होता है ।

विश्वास का कारण आवश्यकता होने पर सहायता, स्वार्थ पूर्ति एवं वफादारी की आशा करना है परन्तु अंधविश्वास में आशा के स्थान पर इन्सान अधिकार समझने लगता है । विश्वास करना उचित है क्योंकि विश्वास करने से ही प्राप्ति है परन्तु अंधविश्वास करके अधिकार समझना मूर्खता है । अधिकार सिर्फ खुद पर होता है दूसरों पर अधिकार नहीं हो सकता सिर्फ आशा करी जा सकती है । विश्वास करने में सावधानी होने पर विश्वासघात से बचा जा सकता है परन्तु अंधविश्वास होने पर सावधानी ही समाप्त हो जाती है तो धोखा अवश्य होता है । अंधविश्वास से बचने के लिए सकारात्मक पहलु के साथ-साथ नकारात्मक पहलु की समीक्षा करना आवश्यक है ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके । सुनने, देखने के पश्चात भी विचार करके अथवा दूसरों से सलाह करके स्थिति स्पष्ट करके ही विश्वास करना श्रेष्ठ होता है । परिवर्तन संसार का नियम है कल का वफादार आज बेवफा बन सकता है इसलिए विश्वास पर सावधानी ही श्रेष्ठ होती है ।

विश्वास

May 31, 2014 By Amit Leave a Comment

vishwas

किसी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व अथवा करते समय सफलता पूर्वक सम्पन्न होने की सकारात्मक मानसिकता इन्सान के द्वारा किया जाने वाला विश्वास कहलाता है । विश्वास इस प्रकार की सकारात्मक मानसिकता है जिसके कारण इन्सान का जीवन किर्याशील है तथा जीवन के सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने का मुख्य आधार इन्सान का विश्वास होता है । इन्सान के जीवन में विश्वास की अल्पता अथवा समाप्ति होने पर उसका जीवन स्थिर हो जाता है तथा जीवन में अत्यंत अभाव पूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है क्योंकि इन्सान किसी भी कार्य को सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के विश्वास के कारण ही अंजाम देता है । यदि किसी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उसकी सफलता पर अविश्वास हो तो उस कार्य को कोई भी इन्सान नहीं करता अथवा औपचारिकता वश सम्पन्न करता है जिसके कारण वह कार्य अधिकतर असफल होते हैं या उसका परिणाम साधारण आता है क्योंकि कार्य की उचित सफलता कार्य करने वाले के उत्साह पर निर्भर करती है ।

इन्सान की मानसिकता में विश्वास के विभिन्न प्रकार होते हैं तथा विभिन्नता के अनुसार ही प्रभाव एंव परिणाम होते हैं । सर्वप्रथम इन्सान द्वारा अपनी क्षमता तथा बुद्धि कौशल पर किया गया विश्वास इन्सान का आत्म विश्वास कहलाता है जिसके विवेक तथा इच्छा शक्ति द्वारा उत्पन्न होने पर दृढ आत्म विश्वास होता है तथा मन, भावना एंव कल्पना शक्ति द्वारा उत्पन्न होने पर अंध आत्म विश्वास होता है । दृढ आत्म विश्वास इन्सान को जीवन में अपनी कामनाएँ पूर्ण करने तथा बुलंदी प्राप्त करवाने में सहायक होता है परन्तु अंध आत्म विश्वास के कारण इन्सान को जीवन में शत्रु तलाशने की कोई आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि अंध आत्म विश्वास के नशे में किये गए कार्य उसके पतन का कारण बन जाते हैं । इन्सान को जीवन में किसी भी कार्य के लिए आत्म विश्वास की आवश्यकता होती है इसलिए अपने विवेक द्वारा मंथन करने के पश्चात ही कार्य को अंजाम देना उचित होता है ।

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किसी अन्य इन्सान पर किया गया विश्वास भी इन्सान के जीवन में अत्यंत आवश्यक है क्योंकि विश्वास के बगैर किसी से कोई भी कार्य नहीं करवाया जा सकता परन्तु आत्म विश्वास की तरह अन्य पर विश्वास भी विवेक द्वारा संचालित होना आवश्यक है क्योंकि अन्य इन्सान पर विवेक रहित तथा मन, भावना एंव कल्पना शक्ति के बल पर किया गया विश्वास ही अंधविश्वास होता है । अन्य इन्सान पर विश्वास करने से ही जीवन के कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न होते हैं तथा आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं जो समाज में रहने के लिए आवश्यक हैं । किसी इन्सान पर अंधविश्वास होने का कारण उसके द्वारा आवश्यक सहायता प्रदान करना होता है जिससे जीवन में राहत का अहसास होता है परन्तु अंधविश्वास से ही विश्वास घात उत्पन्न होता है जिसके कारण जीवन बर्बाद हो जाता है । किसी पर अंधविश्वास करना अर्थात अपना जीवन संकट में डालना है क्योंकि कितना भी प्रिय इन्सान हो उसकी मानसिकता में सकारात्मकता कब नकारात्मकता में परिवर्तित हो जाए इसका अनुमान लगाना नामुमकिन होता है । अंधविश्वास की नकारात्मक मानसिकता का परिणाम जब प्रस्तुत होता है तब तक इन्सान का जीवन बर्बाद हो चुका होता है ।

जीवन में सफलता प्राप्ति के विश्वास के कारण ही प्रत्येक कार्य किए जाते हैं यहाँ तक की इन्सान अपनी सन्तान की परवरिश तथा शिक्षा एंव व्यवसाय अथवा सेवा कार्य के लिए अपना धन व्यय तथा परिश्रम उनके वृद्धावस्था के समय सेवा प्राप्ति होने के विश्वास के कारण ही करता है । सन्तान के प्रति अस्थिर विश्वास तथा सन्तान द्वारा त्याग कर पृथक होने का आभाष इन्सान से सन्तान के प्रति कर्तव्य पूर्ण करने में अवरोध उत्पन्न कर उसे औपचारिकता वश परवरिश करने को विवश करता है । स्त्री पुरुष का ग्रहस्थ जीवन विश्वास की डोर से बंधा होता है जिसे अविश्वास की आंधी का हलका सा झोंका भी उनकी ग्रहस्थी का तिनका तिनका बिखेर सकता है । जीवन में मित्र जैसा सम्बन्ध सदैव राहत पूर्ण होता है क्योंकि आवश्यकता के समय परिवार के अतिरिक्त मित्र ही सहायक होते हैं परन्तु मित्रों द्वारा विश्वास घात करने के अनेकों प्रमाण समाज में प्रस्तुत होते रहते हैं ।

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इन्सान अपने जीवन में अधिक समय तक जीवित रहने के विश्वास के कारण कार्यरत रहता है जिसमे उसे मृत्यु का आभाष तक नहीं होता यदि मृत्यु का समय निश्चित हो जाए तो वह संसार में किसी भी कार्य को करने में सक्षम नहीं हो सकता अथवा वह कार्य करना त्याग देगा । संसार विश्वास की बुनियाद पर स्थिर है प्रत्येक इन्सान अपना कार्य सफल परिणाम के विश्वास के कारण ही करता है तथा इन्सान द्वारा आधुनिक संसार का निर्माण उसके दृढ विश्वास का परिणाम है । जो इन्सान अपने जीवन में अपना आत्म विश्वास तथा अन्य इंसानों पर विश्वास दृढ ना करके अस्थिरता के सहारे जीवन व्यतीत करते हैं उनका जीवन दुविधापूर्ण तथा कष्टकारी होता है । संसार में विश्वासघाती इंसानों की कोई कमी नहीं है जिसमे कभी कभी परिवार के सदस्य भी हो सकते हैं परन्तु किसी के द्वारा विश्वास घात करने से सम्पूर्ण समाज पर अविश्वास नहीं किया जा सकता ।

विश्वास इन्सान के जीवन में अत्यंत आवश्यक है परन्तु किसी पर विश्वास करने से पूर्व विवेक द्वारा मंथन करने पर विश्वासघात होने के आसार लगभग समाप्त हो जाते हैं । किसी पर विश्वास करना हो या स्वयं पर आत्म विश्वास उसमे अंधापन नहीं होना चाहिए इसलिए उसमे विवेक का उपयोग करना अनिवार्य है इसलिए किसी भी विषय अथवा वार्ता एंव कार्य करने से पूर्व विवेक द्वारा मंथन करना अत्यंत आवश्यक है जिसका परिणाम सदा उचित प्राप्त होगा ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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