जीवन का सत्य

जीवन सत्यार्थ

  • जीवन सत्यार्थ
  • दैनिक सुविचार
  • Youtube
  • संपर्क करें

अध्यात्मिकता

June 29, 2014 By Amit Leave a Comment

aadhyatmik

संसार में प्रत्येक इन्सान प्रत्येक प्रकार के तथा अधिक से अधिक सुख प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है एंव सुखों की प्राप्ति के लिए सभी प्रकार के कर्मों के लिए कार्यरत रहता है । इन्सान के लिए सर्वप्रथम व उत्तम शरीरिक सुख है । शरीर बलिष्ठ व स्वास्थ से परिपूर्ण हो तो सभी कार्य सरलता पूर्वक हो जाते हैं क्योंकि बीमार शरीर इन्सान को कभी कोई सुख नहीं दे सकता । शरीर की शक्ति के बल पर ही इन्सान दबंगई कर सकता है तथा अपनी कामनाओं को शांत कर सकता है । दूसरा सुख इन्सान के लिए भौतिक सुख है जिसमें मुद्रा, साजो सामान, संसाधन, वाहन, अन्न भंडार वगैरह की प्राप्ति होती है और जो आवश्यकता अनुसार सुख प्रदान करते हैं जैसे स्वादिष्ट भोजन, सभी प्रकार की सुविधाओं से सुसज्जित घर, घूमने के लिए अच्छे वाहन, महंगे वस्त्र एंव विभिन्न प्रकार की सुख सुविधाएँ । तीसरा सुख संतुलित परिवार होता है जिसमे पति पत्नी की अच्छी ग्रहस्थी व गुणवान सन्तान तथा प्रिय बन्धु बांधव होते हैं जो अच्छे बुरे समय पर इन्सान का भरपूर साथ निभाते हैं । ये तीनों सुख इंसानी द्रष्टि में जीवन को पूर्ण सुख की प्राप्ति व संतुष्टि प्रदान करते हैं परन्तु इन सुखों से उत्तम व महान सुख अध्यात्मिक सुख होता है ।

जो अध्याय आत्मिक हो अर्थात आत्मा से सम्बन्धित हो उसे अध्यात्मिक कहा जाता है । अध्यात्मिकता के पाँच विषय महत्वपूर्ण होते हैं सत्य, सम्मान, समानता, सेवा एवं सत्कार । आत्मा का पोषण सत्य से है तथा झूट आत्मा को सिर्फ कष्ट पहुँचाता है । आत्मा की प्रसन्ता सम्मान से है अपमान आत्मा के लिए सिर्फ दुःख का कारण होता है । आत्मा के लिए सभी समान हैं छुआछूत या असहिष्णुता आत्मा का नाशक है । आत्मा का कार्य सेवा है जो वह शरीर को जीवन प्रदान करके सम्पूर्ण जीवन उसका बोझ ढोती है । आत्मा का प्रेम सत्कार से है क्योंकि सत्कार शुभ कर्मों द्वारा प्राप्त होता है इसलिए आत्मा सदैव शुभ कर्मों के लिए प्रेरित करती है । यह पाँचों विषय मिलकर अध्यात्मिकता को पूर्ण करते हैं । जो इन्सान अध्यात्मिकता की अभिलाषा करते हैं उनके लिए सदा सत्य बोलना, सब का सम्मान करना, सब को समान समझना, सब की सेवा करना तथा सब का सत्कार करना अनिवार्य है ।

तीनों सुख शरीर व मन की एक सीमा तक ही संतुष्टि कर सकते हैं ये सुख नश्वर हैं जो समयनुसार समाप्त होते रहते हैं जैसे शरीर वृद्ध होकर धीरे धीरे मरता है, भौतिक सामान पुराना होकर समाप्त हो जाता है, परिवार के सदस्य धीरे धीरे साथ छोड़ जाते हैं । परन्तु अध्यात्मिक सुख सदैव अमर रहता है तथा यह प्राप्त करने से नहीं मिलता यह त्याग करने से प्राप्त होता है तथा इससे मन, मस्तिक और आत्मा की पूर्ण संतुष्टि होती है । अध्यात्मिक सुख कैसे प्राप्त होता है इसके लिए अनेक प्रकार की भ्रान्तियाँ हैं था समाज में पाखंडी इंसानों ने इसे लूटने का साधन भी बना लिया है । कोई मन्दिर में धन व अन्न भेंट करके इसे अध्यात्मिकता कहता है तो कोई दान व भीख बाँट कर अध्यात्मिकता बतलाता है । यह महज अफवाहें हैं दान, भीख, चढ़ावा, भण्डारा जैसे कार्य अध्यात्मिकता से कोई सम्बन्ध नहीं रखते इन कार्यों से पाखंडी इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिए समाज में धर्म और शास्त्रों का वास्ता देकर इन्सान को भ्रमित किया है ।

इन्सान को अध्यात्मिक सुख पाने के लिए सर्वप्रथम इसकी सत्यता अवश्य परखनी चाहिए सही जानकारी होने पर ही सुख की अनुभूति होती है जैसे हम भोजन करने बैठे हों और हमारे पास सिर्फ पर्याप्त मात्रा में भोजन हो तथा उस समय कोई इन्सान या जीव आ जाये और वह हमसे अधिक भूखा हो तब हम अपने भोजन का कुछ भाग उसे प्रदान कर देते हैं जिससे उसकी व हमारी भूख थोड़ी थोड़ी शांत हो सके । भोजन करने के पश्चात हमारी भूख से अधिक हमारे मन व आत्मा की तृप्ति हो जाती है क्योंकि हमने अपनी भूख के अतिरिक्त दूसरे प्राणी की भूख भी शांत करी है इससे हमे जो सुख की अनुभूति होती है वह सच्चा अध्यात्मिक सुख होता है ।

लम्बी दूरी तय करते समय गर्मी व थकावट से परेशान होने पर भी राह में किसी वृद्ध अथवा मजबूर के बोझ को उठाने में सहायता करने पर बढ़ी हुई थकावट भी शांति का अनुभव देती है उसे अध्यात्मिक सुख कहते हैं । किसी मजबूर या लाचार का कार्य करने में अपना कीमती समय नष्ट करने से होने वाली परेशानी भी शांति व सकून प्रदान करती है किसी अंधे इन्सान का हाथ पकड़ कर उसे रास्ता तय कराने से ही अध्यात्मिक सुख प्राप्त हो जाता है । अध्यात्मिक सुख प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला इन्सान यदि किसी से अपने कार्य का वर्णन करके वाहवाही लूटना चाहता है तो वह अहंकारी यह नहीं समझता कि उसके कार्य की महत्वता किसी से बखान करते ही नष्ट हो चुकी होती है क्योंकि अध्यात्मिक सुख निश्छल व निस्वार्थ सेवा करने से प्राप्त होता है जो कार्य प्रशंसा के लिए किया गया हो वह कार्य स्वार्थपूर्ण होता है ।

दान या भीख देकर किसी मनुष्य को नाकारा बनाया जाता है इसलिए दान या भीख को अध्यात्मिकता से जोड़ना नादानी है यदि किसी मजबूर इन्सान या अपंग इन्सान की सहायता करनी हो तो उसके सामर्थ के अनुसार उसके लायक कार्य का प्रबंध करना ही उसकी सच्ची सहायता है क्योंकि कार्य करके वह अपनी आजीविका सरलता पूर्वक चला लेगा और उसके आत्म सम्मान की रक्षा भी हो जाएगी । भंडारे करने से किसी का भला नहीं होता सिर्फ खाने के सामान की बर्बादी व गंदगी होती है और भण्डारा करने वाला इन्सान अहंकार के नशे में चूर स्वयं को अन्नदाता समझता है । मन्दिरों में धन चढ़ावे के लिए देने से अच्छा है किसी मजबूर के लिए सुविधा जुटाना । सच्चे अध्यात्मिक सुख की प्राप्ति करने के लिए अपनी बुद्धि से जाँच परख कर कार्य करना चाहिए पाखंडियों का पेट भरने से कभी सुख नहीं मिलता । अध्यात्मिक सुख का अर्थ है जिस कार्य से किसी प्राणी की निस्वार्थ सहायता करके मानसिक शांति एवं ख़ुशी प्राप्त हो तथा किसी भी अन्य इन्सान की किसी भी प्रकार की कोई भी हानि ना हो वह ही वास्तविक अध्यात्मिक सुख है ।

Recent Posts

  • सौन्दर्य – saundarya
  • समर्पण – samarpan
  • गुलामी – gulami
  • हीनभावना – hinbhawna
  • संयम – sanyam

जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

Copyright © 2022 jeevankasatya.com

 

Loading Comments...