
किसी इन्सान के द्वारा किया गया कोई ऐसा कार्य जिसके प्रभाव से दूसरे इंसानों को कष्ट पहुँचे तथा वें उसके कार्य से घृणा करें वह कार्य अपराध कहलाता है । जो इन्सान जीवन में संघर्ष करने से घबराते हैं उनकी कायरता अपराधिक कार्यों को अंजाम देने के लिए उकसाती है । मेहनत द्वारा प्राप्त करने से घबराना एवं अनुचित रास्ता तय करके मंजिल प्राप्त करने की इच्छा इन्सान की कायरता प्रदर्शित करती है । कुछ समय पूर्व तक यह समझा जाता था कि अपराध कोई इन्सान बेरोजगारी व बेकारी से तंग आकर जीने के लिए करता है परन्तु वर्तमान स्थिति में बहुत परिवर्तन आया है जिसमें यह प्रमाणित हुआ है कि अधिक सुख प्राप्त करने की कामना एवं अति शीघ्र प्राप्त करने की भावना अपराध करने के लिए उकसाती है । अधिकतर जघन्य एवं घिनौने अपराध इन्सान द्वारा अधिक से अधिक व शीघ्र आनन्द प्राप्ति की कामना के कारण ही होते हैं ।
इन्सान की मानसिकता का विकृत रूप जिसके कारण वर्तमान में अपराधों में आश्चर्य जनक बढ़ोतरी हुई है । इन्सान के जीवन में होने वाले पाँचों मुख्य विकार मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की बढ़ोतरी तथा उनका अत्यधिक असंतुलन इन्सान में घृणा, कुंठा, निराशा, आक्रोश, भय, शंका, ढीटता, फरेब वगैरह सभी विकारों को उत्पन्न करता है । सभी विकारों के असंतुलन अथवा तालमेल के कारण इन्सान के मस्तिक में होने वाली विकृति उसे अपराध की तरफ ले जाती है । अपराध करने वाले इन्सान को पकड़े जाने पर अपने परिवार की मान मर्यादा में होने वाली हानि एवं अपने जीवन पर अपराधी होने का कलंक लगने पर समाज द्वारा घृणित दृष्टि से देखा जाना जिससे उसका जीवन बर्बाद हो सकता है इस सत्यता को जानते हुए भी अनभिज्ञता जाहिर करना विकृत मानसिकता का प्रमाण है ।
किसी इन्सान के अपराधी बनने में अधिकतर उसके माता पिता तथा परिवार के सदस्यों के द्वारा बढ़ावा देना या अपराध करने पर रोक ना लगाना बहुत बड़ा कारण होता है । अपराध करने की शुरुआत इन्सान में बचपन से ही उत्पन्न होना आरम्भ हो जाती है जो परिवर्तित समय के अनुसार विस्तृत होकर इन्सान को पूर्ण अपराधी बना देती है । बचपन में होने वाली छोटी छोटी अपराधिक त्रुटियों को बच्चा समझकर माता पिता और परिवार के सदस्य अनदेखा कर देते हैं जिससे बच्चे में अपराध करने का साहस बढ़ता है तथा वह अपराध के रास्ते पर चल पड़ता है । पहली बार होने वाली अपराधिक त्रुटी पर रोक लगाने तथा दंड देने से भविष्य में उसको अपराध करने से रोकना है इससे किसी प्रकार के दुलार एंव ममता का कोई नुकसान नहीं होता बल्कि अपराध मुक्त जीवन सुनहरे भविष्य की निशानी है ।

कोई इन्सान जब पहली बार किसी अपराध को अंजाम देता है तो वह बहुत आक्रांतित होता है क्योंकि अपराध के असफल होने की आशंका एंव पकड़े जाने का भय उसके मन को कचोटता है । अपराधी से अधिक वह इन्सान भी गुनाहगार होता है जो उसे अपराध करते हुए देखकर उसका विरोध नहीं करता तथा चुपचाप दूर हट जाता है । अत्याचार करने वाले का विरोध ना करके अत्याचार सहन करना इंसानी कायरता का प्रमाण होता है जिसके कारण अत्याचार करने वाले का हौसला बुलंद हो जाता है । कुछ इंसानों की इसी कायरता के कारण अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं जिसका नुकसान सारे समाज को उठाना पड़ता है । किसी अपराधी का पहला अपराध सफल होने से वह पूर्णतया अपराध के रास्ते पर चल पड़ता है । कानूनी तंत्र का ढीलापन तथा कानूनी सलाहकारों द्वारा अपराधी की रक्षा करना भी अपराध बढ़ाने में मददगार साबित होता है ।
कुछ इन्सान भूख और बेकारी से तंग आकर जीवन यापन के लिए छोटे मोटे अपराध करते हैं तथा धीरे धीरे स्वभाविक अपराधी बन जाते हैं परन्तु ऐसे अपराधी समाज के लिए कभी भी अधिक खतरनाक प्रमाणित नहीं होते । कुछ इन्सान सताए जाने पर प्रतिशोध के लिए अपराध कर बैठते हैं वें भी अधिक खतरनाक नहीं होते । सबसे खतरनाक वें अपराधी होते हैं जो अपने मन की तृप्ति करने के लिए या मानसिक विकृति के कारण अपराध करते हैं क्योंकि ऐसे अपराधियों के अपराध की कोई सीमा नहीं होती वें किसी पर भी कब कहर बनकर टूट पड़ें इसका कोई प्रमाण नहीं होता । ऐसे अपराधियों को पहचानना बहुत कठिन कार्य है रोज मर्रा के जीवन में होने वाले बलात्कार एंव हत्याएं इसका परिणाम हैं क्योंकि बलात्कार कभी भी मजबूरी में नहीं किया जाता यह विकृत मानसिकता का परिणाम होता है ।
प्रत्येक अपराधी अपराध करने से पूर्व अपने कार्य की रुपरेखा तैयार करता है तथा अपने आप को सबसे बुद्धिमान समझकर अपराध करता है । इस विषय को गम्भीरता से समझने की आवश्यकता है क्योंकि अपराधी की यह सोच मूर्खता की निशानी होती है । अपराधी अपनी बुद्धि का प्रयोग करके अपराध करता है या अपने कुछ साथियों की सहायता लेता है परन्तु उसके विरुद्ध पूरा कानूनी तन्त्र तथा सरकारी मशीनरी कार्य करती है जिसकी पकड़ से छूटना सरल कार्य नहीं होता । जो अपराध करके बच निकलते हैं उनके बचने का कारण कानूनी तन्त्र का ढीलापन है जो सदा नहीं रहता और अपराधी कभी ना कभी शिकंजे में जरुर फंसता है ।