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बुराई-Burai | क्या आप बुरे है ?

July 22, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

कोई भी कार्य सामाजिक, क़ानूनी, अथवा इंसानियत की दृष्टि में अनुचित होता है तो वह बुराई (burai) की श्रेणी में आता है | बुराई ((burai)) की श्रेणी का कोई भी कार्य इन्सान को किसी भी प्रकार का लाभ प्रदान करे परन्तु उसके सम्मान एवं स्वाभिमान की हानि अवश्य करता है | इस विषय को समझना बहुत आवश्यक है ताकि इन्सान अपने सम्मान एवं स्वाभिमान को सुरक्षित रख सके | बुराई एवं अच्छाई एक दूसरे के बिलकुल विपरीत विषय हैं | बुराई (burai) बहुत ही विचित्र विषय है क्योंकि बुराई के विषय में अनेक प्रकार के रोचक तथ्य हैं |

बुराई

बुराई के कुछ रोचक तथ्य –

1.बुराई (burai) के विषय में सबसे पहला तथ्य है कि बुराई स्वयं उत्पन्न होती है इसे अच्छाई की तरह उत्पन्न करने की आवश्यकता कदापि नहीं होती | अनाज उत्पन्न करने के लिए फसल उगाना आवश्यक है परन्तु खर पतवार स्वयं उग जाती है तथा इसे समाप्त ना किया जाए तो यह फसल न नाश करना आरम्भ कर देती है | इसी प्रकार किसी भी प्रकार की बुराई (burai) हो वह स्वयं उत्पन्न होकर अच्छाई का विनाश करना आरम्भ कर देती है |

2.ये (burai) सदैव आकर्षक होती है जबकि अच्छाई बिलकुल साधारण होती है इसीलिए इन्सान बुराई के आकर्षण में फंस कर खुद को बर्बाद कर लेता है | पौष्टिक भोजन साधारण दिखाई देता है जैसे दाल रोटी सब्जी वगैरह परन्तु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तले  हुए पदार्थ, फ़ास्ट फ़ूड व मांसाहार वगैरह इन्सान को सदैव आकर्षित कर उसे हानि पहुँचाने का कार्य करते हैं | सूती एवं खादी वस्त्र स्वास्थ्य के लिए उत्तम हैं परन्तु रसायन के धागों से बने वस्त्र इन्सान को इतना आकर्षित करते हैं कि वह सदैव उनके पीछे ही भागता है | अच्छाई के कार्य शारीरिक एवं बौद्धिक परिश्रम दवारा सम्पन्न होते हैं | इन्सान सदैव बुरापन(burai) के कार्यों को पसंद करता है क्योंकि बुराई के कार्य जैसे जुआ, सट्टा, बेईमानी, चोरी, लूट, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, वगैरह सभी बिना परिश्रम अधिक से अधिक एवं शीघ्र प्राप्ति के साधन हैं |

3. ये वृद्धिकारक एवं अमर होती  है जो कभी नहीं मरती तथा अच्छाई घटनेवाली एवं नश्वर होती है जिसकी देखभाल ना की जाए तो समाप्त हो जाती है | इन्सान जुए, सट्टे, रिश्वतखोरी हो या चोरी या बेईमानी सदैव अधिक की तरफ बढ़ता है परन्तु परिश्रम करने में सदैव थकावट का अहसास करके परिश्रम में कमी करना तथा आलस्य करना इन्सान का स्वभाव है | इन्सान को जब भी बुराई का साथ मिलता है वह अच्छाई का त्याग सरलता से कर देता है |

4.संसार में जितने भी विनाशक हथियार हैं | वह इन्सान की बुद्धि की अधिकता का ही प्रमाण प्रस्तुत करते हैं | इन्सान अधिक धन होने पर अधिकतर अय्याशी करना आरम्भ कर देता है | कोई भी विषय या वस्तु अधिक होने पर भी उसका उचित उपयोग करना ही इन्सान की महानता को प्रमाणित करते हैं | बुरापन(burai) के श्रेणी में अन्य कार्य भी हैं जैसे इन्सान जब किसी कार्य को करते समय मानसिक रूप से विचलित अथवा भ्रमित होता है या उसके मन में भय उत्पन्न होता है वह कार्य बुरापन(burai) ही होता है |

बुराई से कैसे बचे –

अच्छाई को पकड़ कर रखना आवश्यक है क्योंकि अच्छाई कभी भी साथ छोड़ कर चली जाती है परन्तु बुराई इन्सान को स्वयं पकड़ कर रखती है जो छुड़ाने पर भी साथ नहीं छोडती | जहाँ पर बुराई प्रवेश करती है अच्छाई स्वयं वह स्थान छोड़ कर चली जाती है | अच्छाई के स्थान पर बुराई सरलता से प्रवेश कर सकती है परन्तु बुराई के स्थान पर अच्छाई को प्रवेश करवाना लगभग असंभव हो जाता है | अच्छाई एवं बुराई के मध्य सब्र होता है अच्छाई सब्र का क्षेत्र है तथा बुराई बेसब्री का क्षेत्र है इसलिए सब्र का अंत होते ही बुराई का जन्म हो जाता है | बुराई (burai) उत्पन्न होने का कारण इन्सान के मानसिक विकार होते हैं |

मोह से उत्पन्न अभिलाषाओं में वृद्धि, लोभ में वृद्धि, काम में वृद्धि, अहंकार में वृद्धि, क्रोध में वृद्धि तथा सह विकार ईर्षा, घृणा, शक जैसे अनेकों विकार बुरापन(burai) को जन्म देते हैं | इन्सान जब तक अपने विकारों पर नियन्त्रण रखता है बुराई से सुरक्षित रहता है तथा नियन्त्रण समाप्त होते ही बुराई स्वयं उसके जीवन में प्रवेश कर जाती है | अधिकता किसी भी प्रकार की हो वह इन्सान को बुराई की तरफ आकर्षित अवश्य करती है | वह इन्सान श्रेष्ठ होते हैं जो अधिक होने पर भी उसका अनुचित उपयोग नहीं करते अन्यथा इन्सान अधिक बुद्धि का भी अनुचित उपयोग करना आरम्भ कर देता है |

अच्छाई –

अच्छाई का किसी भी प्रकार का कार्य इन्सान को कभी विचलित या भयभीत नहीं करता ना ही उसके मन में संशय उत्पन्न करता है | जो कार्य इन्सान के सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं वह भी बुरे ही होते हैं वह चाहे कितने भी साधारण दिखाई देते हों | बहस करने, आलोचना करने, कटाक्ष करने, जैसे कार्यों के अतिरिक्त यदि किसी प्रकार का परिहास भी दूसरों के मन को पीड़ा देता है तो वह भी बुराई का कार्य ही होता है | अच्छाई का कार्य सदैव स्पष्ट एवं साधारण होता है तथा बुरापन(burai) का कार्य अस्पष्ट एवं आकर्षक होता है |

अच्छापन(achhaai) वफादार होती है | जब तक इन्सान के साथ रहती है किसी भी मुसीबत में उसे सम्पूर्ण समाज से सहायता एवं सहयोग सरलता से प्राप्त हो जाता है | बुरापन(burai) बेवफा होती है किसी भी मुसीबत में समाज तो क्या अपने भी साथ देने से इंकार कर देते हैं | अच्छाई का त्याग इन्सान कभी भी कर सकता है परन्तु बुरापन(burai) का त्याग करना असंभव होता है | इन्सान शराब पीने, धुम्रपान करने, जुआ खेलने, सट्टा खेलने, रिश्वत लेने, बेईमानी करने जैसे बुरे कार्यों का क्या त्याग करेगा वह तो साधारण चाय पीने की आदत का भी त्याग नहीं कर सकता | इन्सान वह ही श्रेष्ठ होता है जो किसी भी स्थिति में अपने सम्मान एवं स्वाभिमान की सुरक्षा हेतू बुराई से खुद को बचा कर रखता है | बुराई को गले लगाना साधारण कार्य है | परन्तु यदि कोई इन्सान इसका त्याग कर देता है तो वह भी श्रेष्ठ होता है |

अभाव

June 18, 2016 By Amit Leave a Comment

किसी भी प्रकार की आवश्यकता पूर्ण करने वाली सामग्री या धन यदि कम रह जाता है ,तो उसे कमी अथवा अभाव कहा जाता है । अभाव के कारण जीवन की अनेकों आवश्यकताएँ अधूरी रह जाती हैं । अभाव इन्सान के जीवन की सबसे बड़ी समस्या हैं ,क्योंकि किसी ना किसी कार्य में ,किसी ना किसी प्रकार का अभाव सदैव इन्सान को समस्याग्रस्त रखता है । एक प्रकार से अभाव इन्सान को सम्पूर्ण जीवन प्रभावित करता है, जिससे जूझते हुए जीवन समाप्त हो जाता है, परन्तु अभाव समाप्त नहीं होते । इन्सान के जीवन को प्रभावित करने वाले अनेकों प्रकार के अभाव होते हैं ,परन्तु मुख्य चार प्रकार के अभाव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं । धन का अभाव, शिक्षा का अभाव, शारीरिक सक्षमता का अभाव, परिवार के सदस्यों व रिश्तों का अभाव यह चारों अभाव जीवन को पूर्ण अभावग्रस्त बनाते हैं । मुख्य चारों अभाव ना होने से अन्य किसी भी प्रकार के अभाव को सरलता से समाप्त किया जा सकता है ।

धन का अभाव जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला अभाव होता है, जो अधिकतर पैत्रिक समस्या है । गरीब अथवा साधारण परिवार का इन्सान आरम्भ से ही अभावग्रस्त जीवन निर्वाह करता है । धन के अभाव को परिश्रम, लगन, साहस एवं व्यवहार के बल पर समाप्त किया जा सकता है । धन अर्जित करने के लिए बड़ा व्यापार या उच्च श्रेणी की नौकरी आवश्यक नहीं होती । इन्सान परिश्रमी हो तो वह अपने साहस एवं लगन से छोटे व्यापार ,छोटी नौकरी से भी आरम्भ करके सफलता प्राप्त कर सकता है । निरंतर कार्य इन्सान को अनुभवी बना देता है ,इसलिए निरंतर कार्य करते रहना आवश्यक होता है । अभाव से जूझते समय मन से भय का त्याग करके उत्साह उत्पन्न करना आवश्यक होता है । इन्सान अपने व्यवहार से दूसरों को प्रभावित करके समाज में ,अनेकों सहायक बना सकता है जो उसे सफलता प्राप्ति में सहायता प्रदान कर सकते हैं, तथा उसका मार्गदर्शन कर सकते हैं । संसार इन्सान की सहायता उसकी सम्पदा देखकर नहीं उसका व्यवहार देखकर करता है ।

शिक्षा का अभाव जीवन को कठिन एवं संघर्षशील बना देता है ,क्योंकि शिक्षा बुद्धि की निर्माणकर्ता है ,संकुचित बुद्धि से सफलताएँ प्राप्त नहीं होती । शिक्षा के अभाव का कारण परिवारिक समस्या , खुद का आलस्य या शिक्षा के प्रति विमुखता होती है । उच्च श्रेणी के विद्यालय महंगा शिक्षक होना आवश्यक नहीं होता, शिक्षा की अभिलाषा रखने वाले इंसानों ने गरीबी एवं अनेक कठिनाइयों के पश्चात पुस्तकें मांगकर पढने पर भी सफलता प्राप्त करके प्रमाणित कर दिखाया है । जब इन्सान शिक्षा के प्रति आकर्षित होकर पूर्ण समर्पित हो जाता है तो उसे शिक्षा अवश्य प्राप्त होती है । वह अपने बुद्धि बल से अपने जीवन के सभी प्रकार के अभाव एवं समस्याएँ समाप्त करके खुशहाल जीवन का निर्माण कर लेता है । सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षा ग्रहण करके प्रतिभा का विकास करने की कोई उम्र सीमा तय नहीं होती क्योंकि इन्सान सम्पूर्ण जीवन कुछ ना कुछ अवश्य सीखता है । शिक्षा को सिर्फ प्रमाण पत्र प्राप्त करने का माध्यम समझना मूर्खता है क्योंकि शिक्षा खुद को काबिल एवं प्रतिभाशाली बनाने का माध्यम है ।

शारीरिक सक्षमता का अभाव इन्सान के जीवन को कुछ प्रतिशत तक अभावग्रस्त अवश्य बना सकता है । अनेकों अपाहिज इंसानों ने अपने बुलंद हौसले एवं उत्साह के बल पर निरंतर अभ्यास से अनेकों आश्चर्य चकित करने वाले कार्य कर दिखाए हैं । इन्सान शारीरिक बल से कमजोर होने पर ऐसे कार्य कर सकता है जिसमें शरीर से अधिक बुद्धि की आवश्यकता होती है । शारीरिक कमजोरी का अफ़सोस करना सिर्फ परिश्रम से भागना है अनेकों शारीरिक असक्षम इंसानों ने अनेकों प्रकार के आविष्कारों से इस आधुनिक संसार के निर्माण भरपूर सहयोग प्रदान किया है । जब हौसले बुलंद हों एवं मन में उत्साह हो तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता ।

परिवार के सदस्यों एवं रिश्तों का अभाव भी इन्सान के जीवन को बहुत प्रभावित करता है । परिवार के सदस्य साथ ना हों अथवा साथ देने के लायक ना हों तो अभाव से लड़ना कठिन हो जाता है । इसी प्रकार रिश्तों की कमी से भी सहायता का अभाव बना रहता है । किसी भी अभाव से जूझने के लिए इन्सान को सहायकों की आवश्यकता अवश्य होती है जिसे इन्सान अपने श्रेष्ठ व्यवहार से परायों को मित्र बनाकर भी सहायता प्राप्त कर सकता है । अभाव को दर्शाना अथवा अभाव के विषय में दूसरों को बताना नादानी होती है क्योंकि समाज अभावग्रस्त इन्सान की कभी सहायता करने को तत्पर नहीं होता । अभावग्रस्त इन्सान के मित्र भी उधार मांगने के भय से साथ छोड़ जाते हैं । अपने अभाव को अपने तक ही सिमित रखकर अन्य कारण बताकर ही सहायता प्राप्त करी जा सकती है ।

समाज में सर्वाधिक शोषण अभावग्रस्त इंसानों का होता है । अभावग्रस्त इन्सान की सहयता पाने की जिज्ञासु मानसिकता का लाभ शातिर एवं धूर्त इन्सान उठाते हैं । किसी प्रकार का लालच देकर या किस्मत बदल देने का झांसा देकर अभावग्रस्त इन्सान को लूटना बहुत सरल होता है । किस्मत चमकाने के चक्कर में अभावग्रस्त इन्सान मन्दिरों के चक्कर काटता रहता है । किस्मत के चक्कर में अपना समय बर्बाद करने से उचित परिश्रम, लगन व साहस द्वारा कर्म करके अभाव दूर करना है ।

अभाव इन्सान के लिए कसौटी की तरह होता है जिसमें अपने पराये व अच्छे बुरे की परख सरलता से हो जाती है । अभाव के समय अपनेपन का दिखावा करने वाले धीरे-धीरे साथ छोड़ जाते हैं । मुसीबत में शातिर व धूर्त इन्सान गलतियाँ गिनवाने लगते हैं, स्वार्थी व लोभी बहाना बनाकर खिसक जाते हैं, सभ्य सांत्वना देकर काम चला लेते हैं सिर्फ वास्तविक सहायक साथ निभाते हैं । अभाव से हार कर जीवन से समझौता करना कायरता है । अभाव से जंग करना ही इन्सान के साहस का परिचय होता है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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