
पृथ्वी पर उपलब्ध जीवों तथा वनस्पति के जीवन के लिए वायु, जल तथा भोजन के अतिरिक्त प्राकृतिक उर्जा की अत्यंत आवश्यकता होती है । प्राकृतिक उर्जा संसार का सबसे रहस्यमय विषय है क्योंकि प्राकृतिक उर्जा का उपयोग करने के उपरांत भी इन्सान उर्जा के रहस्यों की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने से अनभिज्ञ है । उर्जा के रहस्य ज्ञात ना कर सकने का कारण प्राकृतिक उर्जा के अनेकों प्रकार के श्रोत तथा प्रतिपल उनमे होने वाला परिवर्तन और उनका विभिन्न प्रभाव । जीवों तथा वनस्पति द्वारा प्राकृतिक उर्जा ग्रहण करने तथा विसर्जन करने से उर्जा में परिवर्तन भी वातावरण को प्रभावित करता है ।
सौर मंडल में सूर्य उर्जा का मुख्य श्रोत है तथा सूर्य की किरणें पृथ्वी पर सबसे अधिक रोशनी तथा ऊष्मा उत्पन्न करती हैं । परन्तु चन्द्रमा से टकराकर सूर्य की किरणें चांदनी के रूप में पृथ्वी पर समुद्रों में ज्वार भाटा उत्पन्न करने तथा वर्षा करने का कार्य करती हैं । इसी प्रकार अन्य ग्रहों से टकराकर सूर्य की किरणों के परिवर्तन को रश्मि कहा जाता है तथा सभी ग्रहों की रश्मियाँ विभिन्न प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करती हैं । सूर्य की किरणें, चन्द्रमा की चांदनी तथा ग्रहों की रश्मियाँ सभी प्राकृतिक उर्जा का श्रोत हैं जिनकी प्रबलता को कम नहीं आँका जा सकता । जिस प्रकार सूर्य की किरणों में चन्द्रमा से टकराकर चांदनी के रूप में समुद्रों में ज्वार भाटा उत्पन्न करने तथा वर्षा करने की प्रबलता आ जाती है वह कार्य किरणों द्वारा सूर्य से सीधे पृथ्वी पर आकर नहीं किया जा सकता । जिस प्रकार वायु, साधारण विद्धुत तथा चुम्बक की तरंग को दृष्टि गोचर ना होने पर भी उनकी शक्ति से इंकार नहीं किया जा सकता उसी प्रकार रश्मियों की महत्वता भी सर्वोपरी होती है ।
ग्रहों की दूरी व गति और वायु वेग तथा अवरोध एंव पृथ्वी पर उतरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव की ओर चलने वाली चुम्बकीय तरंगों के कारण रश्मियों व किरणों का प्रभाव तथा प्रबलता सदा एक समान नहीं होती तथा प्रत्येक स्थान पर भी एक समान प्रभाव उत्पन्न नहीं होता । इनकी प्रबलता तथा प्रभाव में प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है । सूर्य, चन्द्रमा सहित सभी ग्रहों की रश्मियों का प्राकृतिक उर्जा के रूप में जीवों के शरीर तथा मस्तिक पर प्रभाव होता है विभिन्न स्थान पर विभिन्न प्रभाव तथा विभिन्न समय पर विभिन्न प्रभाव के कारण जीवों के शरीर व मानसिकता पर प्रभाव भी पृथक होता है । सभी इंसानों की मानसिकता में अंतर का कारण भी उर्जा का परिवर्तन ही है जिसकी जानकारी नक्षत्र ज्ञान द्वारा सरलता पूर्वक प्राप्त की जा सकती है ।

जिस प्रकार आकाश में बादलों के आपसी घर्षण से अत्यंत शक्तिशाली बिजली उत्पन्न होकर वातावरण को चकाचौंध कर देती है उसी प्रकार किसी स्थान पर चुम्बकीय तरंगों व पृथ्वी से उत्पन्न ऊष्मा तथा प्राकृतिक उर्जा की सकारात्मक एंव नकारात्मक रश्मियों का आपसी घर्षण दृष्टि भ्रम उत्पन्न करता है । वायु में अवरोध व टकराहट से उत्पन्न ध्वनी तथा दृष्टि भ्रम के कारण इन्सान उस स्थान पर भूत प्रेत होने जैसी अफवाहों का वर्णन करके भयावह वातावरण प्रदर्शित करने लगता है ।
प्राकृतिक उर्जा में नकारात्मक तथा सकारात्मक सभी प्रकार का प्रभाव होता है जो प्रत्येक स्थान पर तथा प्रत्येक जीव पर भिन्न होता है । जिस स्थान पर मन में असंतुलन उत्पन्न हो उस स्थान को तुरंत त्याग देना ही उचित होता है । तथा किसी जीव या इन्सान की समीपता से मन में अप्रसन्नता उत्पन्न हो तो उसका साथ भी त्याग देना ही उचित होता है । प्राकृतिक उर्जाओं का जीवन में संतुलन स्थापित करने के लिए वास्तु शास्त्र की रचना हुई परन्तु जिस स्थान की उर्जा के प्रभाव से जीवन में भरपूर कोशिश करने पर भी सफलता प्राप्त नहीं होती उस स्थान का त्याग करना ही उचित है क्योंकि उस स्थान की उर्जा का अपनी उर्जा पर विपरीत प्रभाव ही रहता है ।
इन्सान के अतिरिक्त सभी जीव प्राकृतिक उर्जा का ज्ञान रखते हैं तथा प्राकृतिक उर्जा का सार्थक उपयोग भी करते हैं । संध्या के पश्चात सभी दिनचर जानवर सोते हैं तथा प्रभात की अमृत बेला होते ही जागकर सक्रिय हो जाते हैं जिसके कारण वातावरण में उपलब्ध रश्मियों का संचय उनकी प्रतिरोधक क्षमता में भरपूर वृद्धि करता है जिसके कारण वें स्वस्थ जीवन निर्वाह करते हैं । प्राकृतिक उर्जा का जानवर की भांति उपयोग करके इन्सान भी स्वस्थ रह सकता है परन्तु स्वयं को अधिक बुद्धिमान समझने वाला इन्सान अहंकार वश तथा आलस्य के कारण सदा नादानी के कार्य करता है ।