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कल्पना

July 20, 2014 By Amit Leave a Comment

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मानसिक तन्त्र जब किसी अप्रत्यक्ष एंव उपलब्ध ना हो सकने वाली वस्तु या किसी विषय का स्वयं चित्रण करके उसमे भ्रमण करता है और उसमे किर्या शील हो जाता है तो उसे इन्सान की कल्पना कहते हैं । कल्पना शक्ति इन्सान के मानसिक तन्त्र की सबसे अद्भुत एंव आलोकिक शक्ति है जो संसार के सभी जीव जन्तुओं से इन्सान को पृथक करती है । संसार के सभी जीव जन्तु किसी प्रत्यक्ष वस्तु को देख व समझ सकते हैं परन्तु उनकी बुद्धि किसी अप्रत्यक्ष वस्तु के विषय में समझने एवं कार्य करने की क्षमता नहीं रखती है । इन्सान कल्पना शक्ति के बल पर किसी भी प्रकार की वस्तु का चित्र अपने मस्तिक में तैयार कर सकता है तथा वह चाहे तो अपनी कल्पनाओं में परीलोक बना कर उसमे भ्रमण कर सकता है । इन्सान अपनी कल्पनाओं में संसार की किसी भी वस्तु को पल भर में बना व मिटा सकता है ।

इन्सान में कल्पना शक्ति दो प्रकार से कार्यरत होती है प्रथम = इन्सान अपनी इच्छा अनुसार कल्पनाएँ करके उनमे रंग भरता है तथा अपने मन की कामनाएँ अपनी कल्पनाओं में साकार करके शांति का अनुभव करता है परन्तु करी गई कल्पनाओं को जीवन में साकार करने का प्रयास नहीं करता । द्वितीय = इन्सान अपनी कल्पनाओं में किसी प्रकार का जीवन चित्र तैयार करता है तथा उसे जीवन में प्रत्यक्ष साकार करने का पूर्ण प्रयास करता है जिससे वह संसार में अपने लिए मन की कामनाओं के अनुसार अपना जीवन सक्रिय करने में सफल हो सके । यदि इन्सान की कल्पना किसी परीलोक में भ्रमण करने जैसी ना हो तो कल्पनाओं को साकार करने के प्रयास अधिकतर सफल होते हैं क्योंकि कल्पना इन्सान को प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करती है । बहुत से इंसानों ने अपनी कल्पनाओं को साकार करने के प्रयास में संसार को नये से नये अविष्कार प्रदान किए जिससे यह संसार आदिकाल से अपना सफर तय करते हुए वर्तमान आधुनिक काल में पहुंच सका है ।

kalpana

संसार को आधुनिक काल में लाने का श्रेय इन्सान की कल्पना को जाता है जिसमे बुद्धि, मन और विवेक का पूर्ण सहयोग भी शामिल है । बुद्धि, मन और विवेक किसी प्रत्यक्ष वस्तु को देख कर उसपर अपनी प्रकिर्या जाहिर कर सकते हैं तथा उसपर कार्य कर सकते हैं परन्तु किसी अप्रत्यक्ष तथा संसार में ना उपलब्ध हो सकने वाली वस्तु का चित्रण एंव उसका उपयोग कल्पना शक्ति द्वारा ही संभव है जिसे इन्सान ने आदिकाल में प्रयोग करना शुरू किया था । इन्सान आदिकाल में जंगलों में भटकने वाला प्राणी था जब उसे सबसे पहले अग्नि की प्राप्ति हुई और इन्सान ने अग्नि का उपयोग भोजन की वस्तुओं को भूनकर खाने के लिए किया तब उसे अनोखे स्वाद का अनुभव प्राप्त हुआ । स्वाद प्राप्ति की अभिलाषा ने इन्सान में कल्पना शक्ति को जन्म दिया तथा इन्सान ने स्वादिष्ट भोजन प्राप्ति की कल्पना को अंजाम देना आरम्भ किया । भोजन की वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए इन्सान द्वारा खेती करने की शुरुआत हुई तथा इन्सान ने अपनी कल्पनाओं से खेती के औजार के रूप में कुल्हाड़ी का अविष्कार किया। फसल ढ़ोने के लिए इन्सान द्वारा करी गई कल्पना से उसने पहिए बनाने और फसल रखने के लिए घर बनाने जैसे कार्य साकार करे तथा इंसानी कल्पनाओं को नए पंख लगते गए तत:पश्चात उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा एंव परिणाम में वह आधुनिक काल तक पहुंच सका ।

जैसे इन्सान की आकाश में उडान भरने की कल्पना को साकार करने का प्रमाण वायु यान है । घर बैठे संसार भ्रमण तथा पलभर में कहीं की जानकारी प्राप्त करने एंव किसी से पलभर में वार्तालाप जैसी कल्पनाओं का परिणाम टी वी, कम्प्यूटर, मोबाईल फोन, इंटरनेट जैसे उपकरण की प्राप्ति इन्सान की कल्पनाओं द्वारा संभव हो सकी है । उसी प्रकार इन्सान की दुष्टता पूर्ण कल्पनाओं का परिणाम भयंकर तथा जघन्य अपराध हैं जो इन्सान को किसी दरिन्दे के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनमे इन्सान चोरी, लूट, अपहरण, हत्या, बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम देता है । इन्सान की सबसे घिनौनी कल्पना समलैंगिक सम्बन्ध हैं जो प्राकृति के नियमों के विरुद्ध है तथा जिसे इन्सान समाज में नियमित करना चाहता है । बलात्कार एंव समलैंगिक सम्बन्ध इन्सान को संसार में सबसे नीच प्राणी होने का प्रमाण पत्र प्रदान करते हैं क्योंकि संसार के किसी भी जीव द्वारा यह कार्य नहीं किया जाता ।

इन्सान की कल्पना शक्ति इन्सान के जीवन को सभी प्रकार के रास्ते तय करने में सहायक होती है वह किसी भी ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है और जीवन को नर्क समान भी बना सकता है क्योंकि कल्पना किसी भी प्रकार की करी जा सकती है तथा उसे साकार भी किया जा सकता है । इन्सान कल्पना साकार करते समय अपने विवेक का प्रयोग करे तो वह उसे ऊंचाईयों को छूने में सहायता करता है तथा विवेक का त्याग कर सिर्फ मन पर आधारित होने से जीवन भटक कर कहीं भी जा सकता है । कल्पना करने में कोई खतरा नहीं होता साकार करने में सभी प्रकार की हानि या लाभ हो सकते हैं इसलिए साकार करने में विवेक की सबसे अधिक आवश्यकता होती है । कल्पनाओं में खोकर जीवन व्यतीत करना जीवन का सर्वनाश करना है क्योंकि कल्पना असत्य है और यथार्थ सत्य है । संतुलन होने से कल्पना इन्सान को कामयाब जीवन प्रदान करती है परन्तु जो इन्सान कल्पना नहीं करते या अपनी कल्पना को साकार करने का प्रयास नहीं करते वें संसार में पिछड़ कर रह जाते हैं ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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