
किसी कार्य को अन्य इंसानों से अतिशीघ्र करने तथा सर्वाधिक उचित प्रकार से करने की क्षमता को उसका गुण कहा जाता है । किसी भी प्रकार का गुण होने पर जीवन में बहुत सी सफलताएँ सरलता पूर्वक प्राप्त की जा सकती है । संसार में सभी जीवों को जीवन निर्वाह करने के लिए प्राकृति ने कोई ना कोई गुण अवश्य प्रदान किया है जैसे किसी जीव में तीव्र गति से दौड़ने की क्षमता है तो कोई तीव्र गति से उड़ सकता है । कोई जीव निरंतर अधिक दूरी तय करने की क्षमता रखता है कोई तेज दृष्टि का गुणी है तो किसी जीव में श्रवण शक्ति तीव्र होती है किसी की वाणी मधुर है तो किसी की वाणी कर्कश एंव भयंकर होती है किसी में सूंघने की तीव्रता है तो कोई बेहद फुर्तीला होता है । सभी जीव अपने गुण के बल पर अपना जीवन निर्वाह सरलता पूर्वक कर लेते हैं ।
जानवरों को सीमित तथा प्राकृतिक गुण प्राप्त हैं परन्तु इन्सान असीमित एंव विकासशील गुणों की क्षमता रखने वाला प्राणी है तथा इन्सान ने अपनी बुद्धि कौशल से अनेक प्रकार के गुण स्वयं उपलब्ध किए हैं एंव अपनी दृढ इच्छा शक्ति व कार्य क्षमता के बल पर अपने गुणों द्वारा बहुमुखी प्रतिभा प्राप्त करी है । दौड़ने, खेलने, कूदने, भार उठाने, तैरने, निशाना लगाने, कर्मठता, नृत्य कला, गायन, अभिनय, जादूगरी जैसे शारीरिक गुणों के अतिरिक्त अनेक प्रकार के मानसिक गुण भी इन्सान के जीवन निर्वाह के साधन हैं जिनके द्वारा इन्सान ने पृथ्वी पर अपना अधिपत्य कायम किया एंव इस आधुनिक संसार का निर्माण किया । संसार की प्रत्येक वस्तु का निर्माण इन्सान ने अपनी बुद्धि कौशल द्वारा किया है जो इन्सान के मानसिक गुणों को प्रमाणित करता है ।
इन्सान में कार्य करने के अतिरिक्त वाणी का गुण भी होता है जिसके द्वारा वह अनेक प्रकार के कार्यों को बिना मेहनत किए अन्य इंसानों द्वारा सफल करवा लेता है जिसे वह किसी की भावनाओं का लाभ प्राप्त कर सफल करे अथवा किसी को मूर्ख बना कर सफल करे इसे इन्सान का वाणी गुण कहा जा सकता है जिसमे व्यहवारिकता, वाकपटुता एंव मित्रता करने जैसे गुण सफलता का श्रोत होते हैं । इन्सान के वाणी गुण में सकारात्मकता के अतिरिक्त नकारात्मकता भी अवगुण के रूप में इन्सान के जीवन को कष्टदायक बनाती है जैसे सकारात्मक व्यहवार एंव वाणी गुण वाकपटुता द्वारा कार्य सफल करवाता है उसी प्रकार नकारात्मक वाणी अवगुण इन्सान को आलोचना करना, तानाकशी, व्यंग एंव कटाक्ष करने जैसा व्यहवार किसी ना किसी समस्या का कारण बन जाता है ।
गुण अथवा अवगुण प्रत्येक इन्सान में उपलब्ध होते हैं जो इन्सान को प्राकृति की तरफ से उपहार स्वरूप प्रदान होता है जिसमे कुछ इन्सान अपने गुणों को पहचान कर उन्हें विकसित करके उनसे लाभ प्राप्त कर जीवन में सफलता प्राप्त कर लेते हैं परन्तु जो इन्सान मायूस बैठकर सफल इंसानों को निहारते रहते हैं उन्हें आवश्यकता होती है अपने अंत:करण में झांककर अपने गुण पहचानने तथा उन्हें विकसित करने की तभी जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है । प्राकृति ने कितने ही गुण प्रदान किए हों उनका विकास करना अत्यंत आवश्यक होता है जैसे मधुर वाणी होने पर भी अभ्यास किए बगैर गायन कला का अनुभव प्राप्त नहीं हो सकता इसलिए गुण की पहचान एंव अभ्यास द्वारा उसका विकास आवश्यक होता है ।
गुण किसी शिक्षा का मोहताज नहीं होता तथा आवश्यक नहीं है कि शिक्षित इन्सान ही गुणवान होता है संसार में अनेकों बार अशिक्षित अथवा अल्प शिक्षित इंसानों ने अपने गुणों से संसार को आश्चर्य चकित कर दिया तथा ऐसी घटनाएँ संसार में होती रहती हैं जिसका प्रमाण संसार के महान आविष्कारक हैं जिनमे अधिकांश अल्प शिक्षित रहे हैं । शिक्षा जीवन का बहुत महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि संसार की सभी प्रकार की जानकारियां शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त होती हैं जिनके द्वारा बुद्धि में गतिशीलता उत्पन्न होती है । संसार में शिक्षा का निर्माता स्वयं इन्सान ही है जिसने अपने बुद्धि कौशल द्वारा सभी प्रकार की शिक्षा का निर्माण किया है इससे प्रमाणित होता है कि गुण शिक्षा से अधिक अनिवार्य हैं ।
गुणों का विकास करने के लिए प्राकृति का आशीर्वाद प्राप्त होना भी आवश्यक है जैसे कर्कश वाणी का इन्सान कभी गायक नहीं बन सकता इसके लिए वाणी की मधुरता आवश्यक होती है, भारी शरीर फुर्तीला नहीं हो सकता, निर्बल भार नहीं उठा सकता वगैरह । इन्सान की इच्छा शक्ति दृढ हो एंव विवेक जागृत हो तो अवगुण कहलाने वाले स्वभाव को भी गुण में परिवर्तित किया जा सकता है एंव उनसे लाभ प्राप्त किया जा सकता है । जैसे एकांत प्रिय इन्सान कल्पनाओं में समय का नाश करता है वह यदि अपनी कल्पनाओं को किसी विषय पर निर्धारित कर लेता है तो लेखक, साहित्यकार अथवा आविष्कारक भी बन सकता है । आक्रोशी इन्सान व्यर्थ लड़ाई करने से उचित खेलों में अपना जोश उपयोग कर सकता है क्योंकि खेल जोश के बल पर ही खेले जाते हैं । बातूनी इन्सान व्यर्थ समय बर्बाद करने से उचित बच्चों को पढाने में समय व्यतीत कर समय का सदुपयोग कर सकता है ।
इन्सान अपने गुणों के आधार पर ही अपना कार्य क्षेत्र चुनता है तो वह शीघ्र बुलंदियां प्राप्त कर लेता है तथा अनुचित क्षेत्र में कार्य करने से सफलता अधिक कठिनाई से प्राप्त होती है जैसे व्यापार में व्यहवारिक एंव वाकपटु इन्सान अधिक सफल होता है अव्यह्वारिक एंव खामोश रहने वाला इन्सान कितना भी कर्मठ हो कभी सफल व्यापारी नहीं बन सकता इसलिए गुणों का विकास करके उनके आधार पर ही कार्य क्षेत्र सफलता प्राप्त करवाता है । जीवन में सफल वह इन्सान होते हैं जो अपने गुणों को पहचान कर उनका पूर्ण विकास करते हैं तथा समय अनुसार अपने गुणों से भरपूर लाभ उठाते हैं परन्तु जो इन्सान अधूरे गुणों को पूर्ण समझकर प्रत्येक समय गुणगान करने में मग्न रहते हैं उन्हें समाज मूर्ख की उपाधि प्रदान करता है ।