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गुलामी

April 6, 2020 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

    किसी की सभी बुराइयों को स्वीकार करते हुए उसके प्रति पूर्ण समर्पित होना उसकी गुलामी स्वीकार करना होता है | अच्छाई जीवन में समृद्धि व खुशहाली के साथ सम्मान भी प्राप्त करने में सहायक होती है परन्तु बुराई इन्सान का जीवन बर्बाद कर देती है | बुराई के विषय में जानते हुए भी उन्हें स्वीकार करना खुद को बर्बाद करना है यह इन्सान की मानसिक गुलामी को प्रमाणित करती है | गुलामी दो प्रकार की होती है मजबूरी में स्वीकार करी हुई एवं अपनी इच्छा से स्वीकार करी हुई |

    यह विषय तब अद्भुत बन जाता है जब इन्सान अपनी इच्छा से किसी भी प्रकार की गुलामी स्वीकार करता है | सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अधिकतर इन्सान अपनी इच्छा से किसी ना किसी प्रकार की गुलामी के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं | हमारा यह विषय इन्सान की मानसिक गुलामी को प्रकाशित करता है | इस विषय की समीक्षा करने से प्रमाणित होता है कि किस प्रकार गुलामी को समर्पित इन्सान अपना जीवन स्वयं बर्बाद कर लेता है |

    साधारण इन्सान मुख्य तीन प्रकार की गुलामी के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं अपनी बुरी आदतों, बुरी अभिलाषाओं एवं अज्ञानता जिनके कारण उनका जीवन सदैव समस्याग्रस्त रहता है | अहंकार एवं क्रोध जैसे बुरे विकार इन्सान के सामान्य जीवन का हिस्सा बनकर उसे बर्बाद करते हैं परन्तु इन्सान अपना अहंकार एवं क्रोध नियंत्रित ना करके उसकी गुलामी करता है | लोभ, ईर्षा, घृणा, द्वेष, शक, आक्रोश जैसी अनेक बुरी आदतों की गुलामी इन्सान के जीवन का अंग बन जाती हैं | गृहस्थ जीवन होते हुए भी वेश्यावृति अथवा अय्याशी के साधन तलाश करना इन्सान की काम वासना की गुलामी करना प्रमाणित करता है |  

    धनवान इंसानों को गालियाँ देने वाला प्रत्येक दरिद्र खुद धनवान बनने की अभिलाषा रखता है | धनवान को गालियाँ देते समय यह विचार भी नहीं किया जाता कि वह भी धनवान बनने के पश्चात इसी प्रकार बिना कसूर के अन्य दरिद्र इंसानों की गालियों का शिकार बनने वाला है | किसी से ईर्षा या घृणा करने वाला इन्सान कभी यह भी नहीं समझ पाता कि दूसरों से ईर्षा या घृणा करने का वास्तव में कारण क्या है | वास्तव में दूसरों से ईर्षा या घृणा उनकी सफलताओं एवं अपनी असफलताओं के कारण  होती है यह इन्सान की सिर्फ बुरी अभिलाषाओं के प्रति गुलाम मानसिकता होती है |

    अपनी पसंद के इन्सान का गुणगान करना एवं नापसंद इन्सान की बुराई करना मानसिक गुलामी है | पसंद के इन्सान की बुराई एवं नापसंद इन्सान की अच्छाई गुलाम मानसिकता को कभी दिखाई नहीं देती | बहस करना, आलोचना करना, कटाक्ष या तानाकशी करना, परिहास में दूसरों का मजाक उड़ाना इन्सान को अपने लिए कभी बुरा नहीं लगता परन्तु दूसरों के द्वारा करने पर विरोध आरम्भ हो जाता है | बात-बात पर गाली देना, नीचा दिखाने का प्रयास करना, प्रताड़ित करना, अपमान करना अनेक बुरी आदतें इन्सान के जीवन का अभिन्न अंग बन जाती हैं जिन्हें वह कभी बुरा नहीं समझता |

    स्वाद के लिए किसी भी प्रकार के अनावश्यक पदार्थ का भोजन इन्सान द्वारा अपनी जिव्हा की गुलामी बन जाती है | स्वाद की अभिलाषा में इन्सान किसी भी बिमारी को स्वेच्छा से स्वीकार कर लेता है | तम्बाखू, गुटके, बीडी, सिगरेट जैसे हानिकारक पदार्थ अपने गुलाम के स्वास्थ्य का विनाश अवश्य करते हैं कभी उसका पेट नहीं भरते हैं | नशीले पदार्थ इन्सान का जीवन  बर्बाद कर देते हैं परन्तु उनकी गुलामी आरम्भ करने के पश्चात वह कभी उनसे स्वतंत्र होने का प्रयास तक नहीं करता | सब्जी वाले या रिक्शे वाले से चंद रुपयों के लिए बहस करने वाला इन्सान कभी शराब के भाव पर बहस नहीं करता क्योंकि वह उसका गुलाम बन चुका है | जुए, सट्टे, बेईमानी, रिश्वत, तस्करी जैसे अनेक प्रकार के अनुचित तरीके से धन कमाने की अभिलाषा इन्सान को अपराधी बना देती है |

    रुढ़िवादी प्रथाएँ जो इन्सान के जीवन के लिए अत्यंत हानिकारक बन चुकी हैं अज्ञानता के कारण उनका निरंतर पालन इन्सान की मानसिक गुलामी को प्रमाणित करती हैं | आधुनिकता का शोर मचाने वाले इन्सान जब रुढ़िवादी प्रथाओं पर अपना सर्वस्य लुटाते हैं तो उनकी अज्ञानता की गुलाम मानसिकता प्रमाणित हो जाती है | साधू वेश धारण करके कोई भी धूर्त जब किसी बुद्धिमान इन्सान को मूर्ख बनाता है तो प्रमाणित हो जाता है कि वेशभूषा का महत्व इन्सान के लिए ज्ञान से बढकर है | अपनी बुद्धि का उपयोग ना करके सिर्फ सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करना इन्सान की अज्ञानता के कारण बनी गुलाम मानसिकता का प्रमाण्पत्र है |

    किसी भी बुरी आदत की गुलामी से मुक्ति इन्सान को श्रेष्ठ बनाती है | अहंकार, क्रोध, लोभ, अय्याशी, ईर्षा, घृणा, द्वेष, शक करने जैसी बुरी आदतों का त्याग करने से इन्सान को समाज में सम्मान के साथ सहयोग एवं सहायता भी सरलता से प्राप्त हो  जाती है | बकवास, बहस, आलोचना, कटाक्ष, तानाकशी, परिहास करना ऐसी बुरी आदतों का त्याग सबंधों को प्रगाढ़ बनाता है तथा इन्सान को सम्मान प्रदान करवाता है | बात-बात पर गाली देने, किसी को नीचा दिखाने का प्रयास करने, अपमान करने, प्रताड़ित करने जैसी बुरी आदतों का त्याग करने से प्रेम एवं सम्मान में वृद्धि होती है |

    स्वाद के लिए जिव्हा पर नियन्त्रण इन्सान को स्वस्थ जीवन प्रदान करता है | अय्याशी की अभिलाषा का त्याग करने से एड्स जैसी घातक बीमारी के भय के अंत के साथ धन एवं सम्मान की सुरक्षा भी होती है | किसी अपराधिक तरीके से धन कमाने की अभिलाषा से स्वतंत्र होते ही इन्सान को भरपूर मानसिक शांति एवं गर्व का अहसास होत्ता है | बेईमानी तथा झूट बोलकर दूसरों का नाजायज लाभ उठाने की अभिलाषा से मुक्ति प्राप्त करने से इन्सान की मानसिकता से दंड एवं अपमान का भय भी सदा के लिए समाप्त हो जाता है |     रुढ़िवादी प्रथाओं की अज्ञानता से मुक्ति प्राप्त करने से इन्सान के जीवन से अभाव का अंत हो जाता है क्योंकि सबसे अधिक धन इन्सान रुढ़िवादी प्रथाओं को निभाने में लुटा देता है | साधू हो या संत अज्ञानता का त्याग करके उनकी वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त करने से अनेक पाखंडों से पीछा छूट जाता है | किस्मत के पीछे भागने की अज्ञानता से मुक्ति इन्सान को परिश्रम द्वारा जीवन निर्वाह करने की शक्ति प्रदान करती  है | गुलामी किसी भी प्रकार की हो जब भी इन्सान उससे स्वतंत्र होता है उसे किसी ना किसी प्रकार का लाभ अवश्य होता है | स्वतन्त्रता की सूखी रोटी से जो सुख एवं शांति प्राप्त होती है वह सुख गुलामी का हलवा भी प्रदान नहीं कर सकता इसका अहसास गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने पर ही होता है |

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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