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चरित्रहीन – charitarhin

October 20, 2018 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

इन्सान के द्वारा अपनी काम अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए किए गए कर्म एवं आचरण मिलकर उसका चरित्र निर्माण करते हैं । तथा जब इन्सान की काम अभिलाषाओं में अय्याशी उत्पन्न हो जाती है | तथा वह अश्लील एवं ओछी हरकतें करने लगता है | तब वह चरित्रहीन (charitarhin) कहलाता है । काम की अभिलाषाएं उत्पन्न होना प्रत्येक प्राणी की स्वाभाविक किर्या है जब तक काम अभिलाषाएं सामान्य होती है संतुलित रहती है | परन्तु इनमें होने वाली वृद्धि मानसिकता में विकार उत्पन्न करती है । चरित्रहीनता (charitarhin) इन्सान की मानसिकता का सबसे भयंकर विकार है जो उसके जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करता है | क्योंकि इन्सान अपनी हवस के कारण अपना जीवन भी दांव पर लगा देता है ।

चरित्रहीन

चरित्रहीनता (charitarhin) सदैव इन्सान के अपमान का कारण बन जाती है किसी भी इन्सान के द्वारा किसी भी प्रकार की अश्लील हरकत करना उसे समाज में बदनाम कर देती है । चरित्रहीन (characterless) इन्सान का सम्पूर्ण समाज शत्रु होता है | किसी भी प्रकार की अश्लील हरकत का जवाब उसकी पिटाई करके ही दिया जाता है । यदि किसी चरित्रहीन (characterless) इन्सान की सडक पर पिटाई हो रही है तो सभी राहगीर उसे पीटना अपना कर्तव्य समझते हैं एवं जमकर उसकी पिटाई भी करते हैं । इन्सान की चरित्रहीनता का परिणाम उसके परिवार को भी भुगतना पड़ता है समाज में परिवार की प्रतिष्ठा कलंकित होती है । इन्सान की चरित्रहीनता (charitarhinta) को उसके परिवार में संस्कारों की कमी का परिणाम (result) माना जाता है जिसके कारण उसके परिवार का समाज में सम्मान समाप्त हो जाता है ।

कुछ दशकों से इंसानों के चरित्र में निरंतर ओछापन उत्पन्न हो रहा है जिसके परिणाम स्वरूप समाज में वेश्यावृति, समलैंगिकता, बलात्कार जैसे कुकर्मों में बहुत अधिक वृद्धि हो रही है । वेश्यावृति संसार में हजारों वर्ष पूर्व से होती आई है परन्तु यह सिर्फ वेश्यालयों तक ही सीमित होती थी । वर्तमान समय में वेश्यावृति वेश्यालयों से निकलकर होटलों, मसाज पार्लरों, सडकों से चलकर घरों तक पहुँच चुकी है । इन्सान के चरित्र में निरंतर ओछापन उत्पन्न होकर उसे चरित्रहीन बनाने के कुछ कारण अवश्य हैं क्योंकि बिना कारण कोई भी कार्य नहीं होता प्रत्येक कार्य का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है । चरित्रहीनता (charitarhinta) से सुरक्षा के लिए इसके कारणों की समीक्षा करना आवश्यक है ।

इन्सान को चरित्रहीन (charitarhin) बनाने का एक कारण है नैतिक शिक्षा में कमी होना । शिक्षा के द्वारा इन्सान के चरित्र का निर्माण करने के लिए उसे नैतिक शिक्षा का पाठ पढाया जाता रहा है जो वर्तमान में लगभग समाप्त हो गया है । शिक्षक जिसे ईश्वर के समान स्थान देकर समाज का निर्माता समझा जाता था वर्तमान समय में मात्र शिक्षा का व्यापारी बनकर धन एकत्रित करने का कार्य कर रहा है । शिक्षक द्वारा अपने विद्यार्थी की सम्पूर्ण मानसिकता का निर्माण किया जाता था परन्तु अब विधार्थी के नैतिक जीवन से शिक्षक को कोई सबंध नहीं होता वह सिर्फ अपने विषय की जानकारी देकर धन बटोरने से मतलब रखता है जिसके कारण विद्यार्थी जीवन से ही नैतिक पतन होना आरम्भ हो जाता है ।

चरित्रहीनता (characterless) का दूसरा कारण इन्सान के भोजन में त्रामसी एवं रजोगुणी पदार्थों की वृद्धि है । इन्सान सदैव सात्विक भोजन को प्राथमिकता देता आया है परन्तु वर्तमान समय में मांसाहारी, फ़ास्ट फ़ूड, तले हुए त्रामसी पदार्थों ने प्रथम स्थान प्राप्त करके मानसिकता पर अधिकार प्राप्त कर लिया है । रजोगुणी पदार्थों में शराब, सिगरेट, तम्बाकू एवं नशे के अनेक प्रकार के नशीले पदार्थ इन्सान की मानसिकता पर अधिकार करके उसे सदैव अपना गुलाम बनाए रखते हैं । त्रामसी एवं रजोगुणी पदार्थों के सेवन के कारण इन्सान की मानसिकता में जो उत्तेजना उत्पन्न होती है वह काम में वृद्धि करके अय्याशी एवं अश्लीलता उत्पन्न करती है तथा इन्सान को चरित्रहीन बनाने का कार्य सरलता से करती है ।

चरित्रहीनता (charitarhinta) का तीसरा कारण अश्लील दृश्य देखना है जिसे प्रातकाल से ही घरों में चलने वाले टेलीविजन सुचारू रूप से दिखा देते हैं । टेलीविजन द्वारा निरोध के विज्ञापनों जैसे अनेक प्रकार के अश्लील विज्ञापन जिनमें नारी को अर्धनग्न अवस्था में प्रस्तुत किया जाता है | किशोर आयु के सदस्यों की मानसिकता को प्रभावित करके उसमें अश्लीलता उत्पन्न करने का कार्य करते हैं । सिनेमा जगत द्वारा धन कमाने के लिए अर्ध नग्नता,एवं अश्लीलता का प्रदर्शन करना तथा आशिकी को सच्चे प्रेम प्रमाणित करने का अथक प्रयास करना संस्कृति का सर्वनाश करना है । आशिकी यदि सच्चा प्रेम है तो माँ बाप, दादा दादी, भाई बहनों, परिवार के अन्य सदस्यों का प्रेम क्या झूट का पुलिंदा है ? सामाजिक संस्थाओं एवं सामान्य इन्सान द्वारा इन अश्लील दृश्यों का विरोध ना करना आश्चर्यजनक है अर्थात सभी इस अश्लीलता को स्वीकार कर चुके हैं ।

चरित्रहीनता का चौथा कारण अनुचित मार्गदर्शन है । वर्तमान समय में सम्मलित परिवार का प्रचलन समाप्त हो रहा है । छोटे परिवार में माँ बाप अधिक से अधिक आनन्द प्राप्ति एवं दिखावे की दौड़ में धन एकत्रित करने के लिए कर्म क्षेत्र में बहुत अधिक व्यस्त हो जाते हैं । माँ बाप के पास सन्तान का मार्गदर्शन करने का समय नहीं होता वह धन उपलब्ध करवा कर सन्तान के प्रति अपना कर्तव्य समाप्त समझते हैं । माँ बाप अथवा परिवार द्वारा उचित मार्गदर्शन ना मिलने के कारण आज का युवा वर्ग सोहबत तथा सोशल मीडिया से मिलने वाला मार्गदर्शन अपना लेता है जो उसे पूर्ण रूप से भ्रमित करके चरित्रहीन (charitarhin) बनाने का कार्य करते हैं ।

चरित्रहीनता (charitarhin) से सुरक्षा के लिए समाज को कुछ उपाय करने आवश्यक हैं । सर्वप्रथम शिक्षा में नैतिक शिक्षा का होना बहुत आवश्यक हैं क्योंकि इससे इन्सान अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझता है । भोजन में त्रामसी एवं रजोगुणी पदार्थों में कटौती करके सात्विक पदार्थों को प्राथमिकता देना भी आवश्यक है ताकि मानसिकता में उत्तेजना उत्पन्न ना हो सके । उत्तेजक पदार्थ जब मानसिकता को प्रभावित करते हैं तो मन एवं भावनाएं प्रभावित होकर इन्सान के विवेक का अंत कर देते हैं जिसके प्रभाव से इन्सान विचार करने की स्थिति में नहीं रहता तथा वह कोई भी अनुचित कार्य को अंजाम दे देता है । अश्लील दृश्यों पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगाना भी आवश्यक है ताकि इन्सान की मानसिकता में अश्लीलता की वृद्धि ना हो सके ।

सबसे अनिवार्य है मार्गदर्शन क्योंकि मार्गदर्शन से इन्सान की मानसिकता में उचित परिवर्तन होता है । उचित मार्गदर्शन करना परिवार का कर्तव्य होता है ताकि उनके परिवार का कोई भी सदस्य इस प्रकार का कार्य ना करे जिससे परिवार की मर्यादा भंग हो एवं प्रतिष्ठा को हानि पहुँचे । अश्लीलता, अय्याशी एवं नैतिकता के विषय में उत्तम मार्गदर्शन करने से इन्सान की मानसिकता को परिवर्तित करना सरल होता है । इन्सान अनुचित मार्गदर्शन द्वारा आतंकवादी बनाया जा सकता है तो उचित मार्गदर्शन द्वारा श्रेष्ठ इन्सान भी बनाया जा सकता है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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