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अनुभव

October 9, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार 2 Comments

किसी समस्या या कार्य का सफल समाधान करने की प्रकिर्या की प्राप्त जानकारी को अनुभव कहा जाता है । अनुभव ऐसा ज्ञान है जिससे भविष्य में अनुभव से संबधित कोई समस्या या कार्य का समाधान करना हो तो उसका प्राप्त अनुभव द्वारा सरलता से निवारण किया जा सकता है । सभी इंसानों के जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याएँ समय-समय पर उत्पन्न होकर पीड़ित करती हैं जिनका अनुभव द्वारा समाधान करना सरल हो जाता है । कर्म के विषय से संबधित अनुभव इन्सान के जीवन में सर्वाधिक सहायक सिद्ध होते हैं क्योंकि अनुभवशाली इन्सान के अनुभव उसके जीवन निर्वाह को सरल एवं खुशहाल बना देते हैं ।

अनुभव एकत्रित करने के लिए उनके विषय में जानकारी होना भी आवश्यक है । अनुभवों की उत्पत्ति मुख्य दो प्रकार से होती है समस्याओं के समाधान करने पर तथा कर्म करने पर । अनुभव मुख्य दो प्रकार के होते हैं सामान्य अनुभव एवं महत्वपूर्ण अनुभव । अनुभव की प्राप्ति मुख्य तीन प्रकार से होती है = पुस्तकों एवं शिक्षा द्वारा, स्वयं किए गए संघर्षों द्वारा तथा समाज के अन्य अनुभवशाली इंसानों द्वारा समझाए जाने से ।

समस्या एवं कर्म दोनों ही अनुभव उत्पत्ति के आधार हैं परन्तु दोनों से उत्पन्न अनुभवों में बहुत अंतर होता है । जो अनुभव कर्म करने से उत्पन्न होते हैं वह शिक्षा के निरंतर अभ्यास एवं अपने विषय पर निरंतर कार्य करने अथवा कार्यों में कोई अतिरिक्त विशेषता उत्पन्न करने से प्राप्त होते हैं । कर्म से प्राप्त अनुभव अभ्यास करने से प्राप्त हों अथवा विशेषता या कोई अविष्कार करने से प्राप्त हों सभी जीवन में उन्नति एवं सम्मान प्रदान करते हैं । जो अनुभव समस्या निवारण से उत्पन्न होते हैं वह जीवन में किसी प्रकार की उन्नति नहीं करते परन्तु दोबारा वैसी समस्या उत्पन्न होने पर शीघ्र समाधान करने का कार्य करते हैं । जिस प्रकार की समस्या से अनुभव उत्पन्न होता है वह अनुभव दुबारा ऐसी समस्या उत्पन्न हो उसके लिए सतर्क भी करते हैं ।

जो अनुभव दैनिक कार्यों अथवा समस्याओं की घटनाओं से प्राप्त होते हैं वह सामान्य अनुभव होते हैं । सामान्य अनुभव दैनिक जीवन को सरल बनाने एवं सामान्य समस्याओं से संघर्ष करने के लिए आवश्यक होते हैं । महत्वपूर्ण घटना अथवा महत्वपूर्ण कार्यों द्वारा प्राप्त अनुभव महत्वपूर्ण अनुभव कहलाते हैं । महत्वपूर्ण अनुभव विशेष समस्याओं का निवारण करने तथा कर्म करने की विशेषता से प्राप्त अनुभव जीवन को प्रगतिशील करने में सक्षम होते हैं । सामान्य हों या महत्वपूर्ण अनुभव इनका सभी इंसानों के जीवन में महत्व होता है क्योंकि अनुभव इन्सान के लिए सदैव लाभदायक होते हैं इनसे हानि का कोई आधार नहीं होता ।

इन्सान के लिए अनुभव प्राप्त करने का प्रथम आधार पुस्तकें एवं शिक्षा है । पुस्तकें एवं शिक्षा इन्सान के बचपन से ही उसे अनुभव प्रदान करना आरम्भ कर देते हैं । महान दार्शनिकों एवं बुद्धिमानों के असंख्य अनुभव दोहे, मुहावरे एवं कहावतों के रूप में पुस्तकों द्वारा पढाए जाते हैं । पुस्तकों से प्राप्त अनुभव व्यर्थ की शिक्षा समझकर भुला दिए जाते हैं क्योंकि जिस आयु में यह अनुभव पढाए जाते हैं उस समय समस्या तथा कर्म से संघर्ष करने की आवश्यकता ही नहीं होती । अनुभव प्राप्ति का दूसरा आधार परिवार एवं समाज के बुजुर्ग एवं अनुभवशाली इन्सान होते हैं परन्तु उनके अनुभव व्यर्थ के प्रवचन समझकर ग्रहण नहीं किए जाते । अनुभव प्राप्ति का तीसरा एवं मुख्य आधार इन्सान स्वयं होता है जब वह संघर्ष करता है तो उसे जो भी अनुभव प्राप्त होते हैं वह सदैव स्मरण रखे जाते हैं इसीलिए उन्हें मुख्य माना जाता है ।

अनुभव इन्सान के जीवन की अमूल्य निधि है क्योंकि जिस समय अपने, मित्र, धन एवं समाज भी साथ नहीं देते केवल अपने अनुभव काम आते हैं । अनुभव अच्छाई एवं बुराई दोनों प्रकार के होते हैं तथा दोनों ही आवश्यक होते हैं । अच्छाई के अनुभव जीवन की प्रगति एवं समाज से जोड़ने का कार्य करते हैं तथा बुराई के अनुभव बुराई एवं बुरे इंसानों से रक्षा करने का कार्य करते हैं । अनुभव जीवन में समस्याओं से बचने एवं समाधान करने तथा धूर्त एवं शातिर इंसानों से रक्षा करने सभी के लिए आवश्यक होते हैं । धूर्त एवं शातिरों को पहचानने का अनुभव होने पर ही उनसे बचा जा सकता है । अनुभवशाली इन्सान किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने में पूर्ण सक्षम होता है ।

जीवन के लिए इतने उपयोगी होने पर भी अनुभव ग्रहण ना करना अथवा उन्हें व्यर्थ के दृष्टांत समझना मूर्खता होती है । कर्म एवं अपने कार्यों के विषय में अनुभव ना हों या कम हों तो अभाव एवं तिरस्कार का कारण बनते हैं । समस्याओं से रक्षा करने के अनुभव ना हों तो समस्याएँ घेर लेती हैं । इंसानों की परख करने के अनुभव अच्छे एवं बुरे इन्सान की परख करने के साथ धोखे एवं लूट से रक्षा करते हैं । जीवन समस्याग्रस्त होने पर मुसीबत सहन करने अथवा दूसरों से सलाह लेने से उत्तम अनुभव जब भी एवं जहाँ भी तथा जैसे भी प्राप्त हों ग्रहण करना एवं स्मरण रखना सुरक्षित तथा खुशहाल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं ।

ज्ञान

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

gyan

मन की प्रेरणा से किसी विषय या वस्तु की सत्यता को परखने की अभिलाषा में बुद्धि की प्राप्त जानकारीयों को एकत्रित कर विचारों का मंथन करने से मानसिकता विवेक के रूप में उस विषय या वस्तु की गहराई से जांच करके उसकी सत्यता को प्रकट करती है वह ज्ञान है । ज्ञान की उत्पत्ति विवेक के द्वारा होती है परन्तु ज्ञान को सरलता पूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता उसके लिए बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की क्षमता व मन पर अधिकार करके इन्द्रीओं को वश में करना और दृढ इच्छा शक्ति एंव भरपूर आत्म विश्वास का होना आवश्यक है । कमजोर मन प्रेरणा या कामना का श्रोत हो सकता है परन्तु इन्द्रीओं के वशीभूत होकर उन्हें आनन्द प्राप्त करवाने की सोच उसे किसी भी कार्य करने में बाधा उत्पन्न करती है यह चंचलता त्याग करने पर ही मन स्थिर होता है तथा विवेक से सहयोग के लिए कार्य करता है ।

आत्म विश्वास की कमी होने पर इन्सान किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकता क्योंकि कमजोर इच्छा शक्ति उसे अपने कार्यों की सफलता में बाधक होती है । बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की भावना से ही इन्सान विद्या के पीछे भागता है जिससे बौधिक स्तर विकास करता है जिसके लिए इच्छा शक्ति का दृढ होना अनिवार्य है जिससे ज्ञान प्राप्त करना सरल हो जाता है । संसार का निर्माण और उसकी साज सज्जा एंव सभी प्रकार की सुख सुविधाएं इन्सान के ज्ञान द्वारा ही उपलब्ध हुई हैं । संसार को आदिकाल से निकाल कर उसे आधुनिक बनाने का कार्य इन्सान के ज्ञान से ही संभव हुआ है ।

इन्सान ने प्रथ्वी का सीना चीर कर उसमे से अनेक धातुओं को प्राप्त किया तथा सभी प्रकार के पदार्थ एंव रसायन प्राप्त किए जिनके द्वारा वह विभिन्न प्रकार के अविष्कार करके इस संसार को नया रूप दे सका । एक सदी पूर्व ही इलैक्ट्रानिक उपकरण तथा मोबाईल फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वायुयान, टी वी, वाहन वगैरह सभी परीलोक की कथाओं से अधिक नहीं थे । जिन वस्तुओं का साधारण जीवन में उपयोग करते हैं वे सभी पहले इन्सान की सोच से बाहर थी । इन सभी उपकरणों व संसाधनों को इन्सान ने अपने ज्ञान से प्राप्त किया है । इन वस्तुओं एंव उपकरणों व संसाधनों का प्रकृति से कोई लेना देना नहीं है । इन्सान ने संसार में अपने ज्ञान द्वारा असंभव को संभव कर दिखाया इसलिए इन्सान को संसार का निर्माता कहना गलत नहीं होगा ।

जिस ज्ञान के द्वारा इन्सान सभी कार्यों को अंजाम देता है वह सभी इन्सान प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति ने मस्तिक के निर्माण में किसी भी इन्सान में अंतर नहीं किया । जब दूसरे इन्सान अपने ज्ञान का विस्तार करके आविष्कारों को अंजाम दे सकते हैं तो जो सिर्फ बैठ कर उनकी उपलब्धिओं को देखते हैं या उनका वर्णन करते हैं उन्हें यह ज्ञान प्राप्त क्यों नहीं हो सकता । इसका कारण लाचारी से देख कर खुद को असहाय समझने वाले इंसानों की सोच का है जो ज्ञान को पुस्तकों या शिक्षकों के पास तलाश करते हैं क्योंकि ज्ञान सिर्फ पुस्तक से प्राप्त होने वाला विषय नहीं है यदि पुस्तकों के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता जिसे पढ़कर नए अविष्कार किए जा सकते तो लेखक स्वयं अविष्कार करके संसार में सम्मान प्राप्त कर लेता । पुस्तक अविष्कार के बाद लिखी जाती है तथा पुस्तकों से सिर्फ विद्या प्राप्त होती है जो ज्ञान प्राप्त करने में सहायक की भूमिका निभाती है । ज्ञान प्राप्त करने के लिए मन की प्रेरणा, बुद्धि की जानकारियाँ एंव विवेक का मंथन आवश्यक होता है जितना विश्वास शिक्षकों पर करके ज्ञान की खोज में इन्सान भटकता है यदि अपने विवेक पर विश्वास करे तो परिणाम अच्छे निकलते हैं ।

धर्म शास्त्री या ईश्वर भक्ति से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता विवेक द्वारा विचारों के मंथन से ज्ञान की प्राप्ति होती है ज्ञान किसी भी प्रकार का हो वह सदा निर्माता होता है फिर वह चाहे मशीनों पर हो या जीवों, ग्रहों, ईश्वर या रसायनों वगैरह पर हो । सभी प्रकार का ज्ञान संसार को नई रोशनी प्रदान करता है । ज्ञानी इंसानों ने सृष्टि की खोज करके उसके रहस्यों का पता लगाया । ज्ञान के द्वारा इन्सान सृष्टि के कण कण की खोज में लगा हुआ है तथा उससे प्राप्त पदार्थों का प्रयोग करके नए रास्ते तलाश कर रहा है । इस तलाश और नव निर्माण में सहायक होने वालों को संसार सदा सम्मान देता है यदि कोई अपने ज्ञान से संसार की सेवा करेगा तो इंसानियत उसका सम्मान करेगी और उसे प्रणाम करेगी ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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