किसी भी विषय या वस्तु के अनेक कोण, भाग, हिस्से अथवा पहलू होते हैं। इन्सान की दृष्टि में जो भी कोण, भाग, हिस्सा अथवा पहलू स्पष्ट हो जाए अथवा उसे समझ आ जाए जिस पर वह विचार एंव टिप्पणी कर सकता है वह उसका दृष्टिकोण कहलाता है। दृष्टिकोण अर्थात इन्सान के देखने एंव समझने का नजरिया। दृष्टिकोण इन्सान के जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि इन्सान के दृष्टिकोण पर ही उसके जीवन की प्रगति एंव सम्मान निर्भर करते हैं। एक ही विषय पर अलग-अलग इंसानों के अलग-अलग दृष्टिकोण होते हैं जिसके कारण सभी अपने दृष्टिकोण अनुसार उस विषय के प्रति गंभीर एंव किर्याशील होते हैं। दृष्टिकोण विषय को महत्व प्रदान करता है इसलिए इन्सान अपने दृष्टिकोण अनुसार आकर्षित होकर विषय को महत्व देता है या उसका विरोध करता है।
किसी भी विषय के अनेक दृष्टिकोण होते हैं जिनमें प्रनुख हैं सकारात्मक दृष्टिकोण, नकारात्मक दृष्टिकोण एंव साधारण दृष्टिकोण। सकारात्मक एंव नकारात्मक भी प्रतिशत अनुसार विभिन्न होते जाते हैं जैसे अत्यंत, सामान्य अथवा अल्प। उदाहरण हेतुः अत्यंत सकारात्मक दृष्टिकोण वाले इन्सान की दृष्टि में धन संसार की सबसे अनमोल वस्तु है वह धन को ईश्वर की तरह पूजता है यह लोभ की पराकाष्ठा होती है। सामान्य सकारात्मक दृष्टिकोण में धन जीवन का आधार है। अल्प सकारात्मक दृष्टिकोण में धन मात्र जीवन की आवश्यकता पूर्ति का साधन है। साधारण दृष्टिकोण में धन वस्तुएं आदान-प्रदान करने का माध्यम है। अल्प नकारात्मक दृष्टिकोण में धन आपसी मन-मुटाव का कारण होता है। सामान्य नकारात्मक दृष्टिकोण में धन आपसी फूट एंव लड़ाई का कारण हो जाता है। अत्यंत नकारात्मक दृष्टिकोण अनुसार धन बर्बादी का कारण भी होता है जिसके कारण लूट, हत्याएं, डकैती एंव विश्वासघात होते हैं यह वैराग्य प्राप्त संतो का दृष्टिकोण होता है। लोभ से वैराग्य तक धन के प्रति सभी का दृष्टिकोण परिवर्तित हो जाता है इसमें धन का कोई कसूर नहीं है यह मात्र दृष्टिकोण परिवर्तन है।
इन्सान के जीवन में अनेकों विषय हैं परन्तु जो विषय जीवन से सबंधित होते हैं जिनके प्रभावित होने से इन्सान का जीवन प्रभावित होता है वह अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं जैसे शिक्षा, कर्म, परिवार, रिश्ते इत्यादि। सामान्य महत्वपूर्ण विषय जो इन्सान के जीवन से जुड़े होते हैं जिनके प्रभावित होने से इन्सान के जीवन पर सामान्य प्रभाव पड़ता है जैसे मित्र, धर्म, समाज, देश इत्यादि। साधारण विषय जिनके प्रभावित होने से इन्सान के जीवन पर ना के बराबर प्रभाव पड़ता है जैसे खेल, मनोरंजन के अन्य साधन, राजनीती, अपराध इत्यादि। जैसा महत्वपूर्ण विषय हो उस पर इन्सान के दृष्टिकोण का वैसा ही प्रभाव पड़ता है क्योंकि इन्सान दृष्टिकोण के अनुसार ही विषय के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होता है।
सकारात्मक दृष्टिकोण में शिक्षा, कर्म, परिवार, रिश्ते जीवन का आधार हैं जिनके प्रति इन्सान कर्तव्य समझकर पूर्ण निष्ठा से समर्पित हो जाता है। साधारण दृष्टिकोण में शिक्षा, कर्म, परिवार, रिश्ते जीवन की आवश्यकता हैं जिन्हें इन्सान आवश्यकता अनुसार निभाता है। नकारात्मक दृष्टिकोण में शिक्षा, कर्म, परिवार, रिश्ते निभाना इन्सान की मजबूरी है यदि इनके बगैर जीवन निर्वाह हो जाए तो वह इनका त्याग भी कर देते हैं। खिलाडी के लिए खेल महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि खेल पर ही उसका भविष्य निर्भर करता है इसलिए उसका दृष्टिकोण खेल के प्रति सकारात्मक होता है। जो इन्सान खेल को मनोरंजन एंव समय व्यतीत करने का साधन समझते हैं उनका दृष्टिकोण खेल के प्रति साधारण होता है। जो इन्सान खेल को समय की बर्बादी समझते हैं उनका दृष्टिकोण खेल के प्रति नकारात्मक होता है। खिलाडी के लिए खेल कर्म है, दर्शक के लिए खेल मनोरंजन है एंव अन्य के लिए समय की बर्बादी है यह विभिन्नता आवश्यकता तथा दृष्टिकोण के कारण ही होती है।
एक बार पांच दृष्टिहीन इंसानों को एक हाथी के समीप उसका आकार समझने के लिए ले जाया गया जब उनसे हाथी के विषय में पूछा गया तो सबका उत्तर अलग-अलग था। एक ने हाथी को पाईप के समान बताया क्योंकि उसके हाथ हाथी की सूंड पर पहूँचे थे। दूसरे ने हाथी को खम्बे जैसा बताया क्योंकि उसके हाथों में हाथी का पैर आया था। तीसरे ने हाथी का आकार रस्सी के समान बताया क्योंकि उसके हाथों में पूँछ आई थी। चौथे ने हाथी का आकार दीवार जैसा बताया क्योंकि उसके हाथ हाथी के विशाल पेट सहला रहे थे। पाँचवे ने हाथी को पत्ते जैसा बताया क्योंकि उसके हाथों में हाथी का कान आया था। यह विभिन्नता दृष्टिहीनता के कारण अवश्य थी परन्तु उन दृष्टिहीन इंसानों ने आपस में विचार विमर्श करके हाथी की पूर्ण समीक्षा करी होती तो उन्हें उचित आकार का ज्ञान अवश्य हो जाता। इस कहानी से स्पष्ट होता है कि जब खुद समझ ना आए तो दूसरों से विचार करके तथा विषय की पूर्ण समीक्षा करके ही अपना दृष्टिकोण निर्धारित करना श्रेष्ठ होता है।
कोई भी इन्सान किसी भी विषय, वस्तु या इन्सान के प्रति जब बिना विचार किए अपना दृष्टिकोण निश्चित कर लेता है तो वह दृष्टिहीन की तरह निर्णय लेता है। किसी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण निश्चित होने पर उसकी सभी अच्छाईयाँ दिखाई देना समाप्त हो जाती हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण जिस के प्रति हो जाए इन्सान उस पर पूर्ण विश्वास करता है जिसके कारण विश्वासघात होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। परिवर्तन प्राकृति का नियम है इसलिए इन्सान के विचार आवश्यकता अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं। बुरा इन्सान अच्छा बनना कठिन है परन्तु अच्छा इन्सान किसी भी समय बुरा बन सकता है क्योंकि अच्छे कार्यों से परिश्रम द्वारा प्राप्ति है तथा बुरे कार्यों से सरल, शीघ्र एंव बिना परिश्रम प्राप्ति हो जाती है। इन्सान के लोभ में जब भी वृद्धि हो जाती है वह अच्छाई का त्याग करके बुराई के रास्ते पर चल देता है।
किसी विषय या वस्तु के प्रति विचार करके तथा सोच-समझ कर अपना दृष्टिकोण निश्चित करना अनुचित नहीं है क्योंकि विषय या वस्तु स्थिर होते हैं। इन्सान चंचल प्रवृति है जिसका मन एंव विचार सदैव चलायमान रहते हैं इसलिए इन्सान के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन की गुंजाइश रखना आवश्यक है अन्यथा हानि होने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अच्छे इन्सान में भी कुछ बुराईयाँ अवश्य होती हैं तथा बुरे इन्सान में भी कुछ अच्छाईयाँ अवश्य होती हैं इसलिए सभी दृष्टिकोणों से अवलोकन करने के पश्चात ही निर्णय लेना श्रेष्ठ होता है।