विचारों की उलझन या वैचारिक मंथन करने से जब मस्तिक की नसें तनकर मानसिक कष्ट प्रदान करने लगती हैं वह कष्ट तनाव कहलाता है । तनाव उत्पन्न होने का मुख्य कारण ऐसी समस्याएँ एवं विचार होते हैं जिनके प्रति इन्सान अत्यंत संवेदनशील होता है अथवा वह उसके जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं तथा उनकी उलझन एवं नाकामी इन्सान की मानसिकता में भय उत्पन्न करती हैं । एक प्रकार से जो विचार या समस्याएँ इन्सान की मानसिकता को भयभीत करने की क्षमता रखते हैं उनके कारण ही इन्सान के मस्तिक में तनाव उत्पन्न होता है । मानसिक रूप से तनाव इन्सान के विवेक एवं आत्म विश्वास को कमजोर करता है तथा शारीरिक रूप से उच्च रक्तचाप एवं मधुमेह जैसी बीमारी उत्पन्न करने तथा हृदय एवं कार्य क्षमता को क्षीण करने का कार्य भी तनाव द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है । तनाव से बचने के लिए तनाव के कारण ज्ञात करने एवं कारणों का निवारण करने से ही मुक्ति मिल सकती है अन्यथा तनाव पोषित होकर भयंकर बीमारी का रूप धारण कर लेता है जो कभी-कभी इन्सान की मृत्यु का कारण भी बन जाता है ।
तनाव मोह, लोभ, अहंकार जैसे कई विकारों से उत्पन्न भय मिश्रित विकार है जो अन्य विकारों से अधिक हानिकारक भी है । अन्य विकार दूसरों को प्रभावित करते हैं परन्तु तनाव सिर्फ खुद को ही प्रभावित करता है तथा खुद को हानि व कष्ट प्रदान करता है । इन्सान को सर्वाधिक चिंता जीवन निर्वाह की होती है यदि जीवन निर्वाह में अभाव उत्पन्न हो जाता है अथवा किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न हो जाती है तो तनाव उत्पन्न होना स्वभाविक है । जीवन निर्वाह के प्रति तनाव साधारण श्रेणी में आता है जिसे इन्सान परिश्रम, कर्म, साहस व लगन से दूर कर सकता है एवं अधिक समस्या हो तो किसी बुद्धिमान एवं अनुभवी इन्सान का मार्गदर्शन लेकर सफलता प्राप्त कर सकता है । सामान्य श्रेणी का तनाव अधिकांश सभी इंसानों के जीवन में होता है । सामान्य तनाव विकारों के प्रभाव से हानिकारक बन जाता है इसलिए विकारों को समझना आवश्यक है ।
इन्सान के जीवन में सर्वप्रथम विकार मोह है जो इन्सान को अपने जीवन से लेकर परिवार, सन्तान, पत्नी, मित्र या किसी सम्बन्धी अथवा अन्य किसी इन्सान के प्रति एवं किसी जानवर या भौतिक वस्तु से भी हो जाता है । इन्सान में जब मोह की अधिकता उत्पन्न हो जाती है तो साथ-साथ अपने प्रिय इन्सान, जानवर या वस्तु के प्रति भय भी उत्पन्न होने लगता है । अपने प्रिय को खो देने या बिछड़ जाने का भय तथा उनके अनिष्ट की आशंका इन्सान के मस्तिक को तनावग्रस्त बना देता है जिसके लिए इन्सान को यह समझना आवश्यक है कि संसार नश्वर है यहाँ सभी जीवों तथा भौतिक वस्तुओं का अंत निश्चित है अत: मोह के भय से उबरकर ही तनाव से मुक्ति प्राप्त हो सकती है ।
लोभ की अधिकता इन्सान को सदैव तनावग्रस्त रखती है क्योंकि अधिक से अधिक प्राप्त करने की इच्छा तथा प्राप्त करके जमा किए हुए धन या जमीन जायदाद एवं बहुमूल्य वस्तुओं की रक्षा करने की चिंता भय बनकर तनाव उत्पन्न करती है । लोभ इन्सान के जीवन में सिर्फ भटकाव है क्योंकि लोभ का कोई अंत नहीं है तथा लोभी इन्सान यह भी समझ नहीं पाता कि वह इतना सब किसके लिए जमा कर रहा है क्योंकि जीवन का तो किसी भी प्रकार का भरोसा नहीं है कि कब समाप्त हो जाए । इन्सान लोभ के विषय में सब्र करने से ही तनाव मुक्त हो सकता है अन्यथा उसका जीवन भटकता हुआ एवं तनावग्रस्त बनकर रह जाता है ।
अहंकार इन्सान के जीवन में सर्वाधिक तनाव उत्पन्न करता है क्योंकि अहंकार के नशे में चूर इन्सान खुद को सबसे महत्वपूर्ण समझता है तथा अन्य इन्सान से अपनी तुलना करने एवं दूसरों को नीचा दिखाने के लिए सदैव प्रयासरत रहता है । अपनी हार अथवा दूसरों से पिछड़ जाने का भय अहंकारी इन्सान को तनावग्रस्त बना देता है यदि किसी प्रकार का आघात उसके अहंकार को लगता है तो उसे तनाव की पीड़ा मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान करती है । अहंकार इन्सान का भ्रम होता है क्योंकि इन्सान भ्रमित होकर ही खुद को महत्वपूर्ण समझने की भूल करता है । वास्तव में इन्सान महत्वपूर्ण अपने कर्मों से होता है तथा अहंकारी इन्सान को यह समझना आवश्यक है कि महत्वपूर्ण खुद को समझने से नहीं बना जाता अपितु दूसरों के मानने से इन्सान महत्वपूर्ण होता है तथा संसार अहंकारी को कभी महत्व नहीं देता । अहंकार का त्याग करते ही इन्सान तनाव मुक्त हो जाता है क्योंकि उसे किसी से हारने या पिछड़ जाने का भय नहीं रहता ।
शक इन्सान का ऐसा विकार है जो उसे सदैव भयभीत एवं तनावग्रस्त रखता है क्योंकि जिसके प्रति शक हो जब तक उसका स्पष्टीकरण न हो जाए इन्सान तनावग्रस्त रहता है । शक का अंत सत्य से होता है परन्तु जब तक शक करने वाला स्वयं सत्य से भागता है वह तनाव मुक्त नहीं हो सकता । ईर्षा व घृणा इन्सान दूसरों से करता है कारण कोई भी हो परन्तु खुद को तनावग्रस्त बना लेता है क्योंकि ईर्षा व घृणा जिससे भी हो उसकी खुशियाँ एवं उसका सुख तथा उसकी सफलता तनाव उत्पन्न करते हैं । ईर्षा व घृणा इन्सान की नकारात्मक मानसिकता है जिसे प्यार एवं विश्वास से ही समाप्त किया जा सकता है तथा ईर्षा व घृणा का कारण ज्ञात करने तथा निवारण करने से ही इन्सान तनाव मुक्त होता है ।
अभिलाषा करना तथा अभिलाषाएं पूर्ण करना इन्सान का स्वभाव है परन्तु अधिक अभिलाषाएं इन्सान में ना समाप्त होने वाली भूख उत्पन्न कर देती है जिन्हें पूर्ण करने की तडफ इन्सान को तनावग्रस्त बना देती है । इन्सान के मन में जब सब्र उत्पन्न हो जाता है तो वह खुद में पूर्ण तृप्ति एवं सफलता का अहसास करता है तथा तृप्ति एवं सफलता किसी भी तनाव का अंत करने में सक्षम होती हैं ।
जीवन में तनाव उत्पन्न होने के अनेकों कारण होते हैं परन्तु कारण कोई भी हो भय की मानसिकता अथवा नकारात्मक मानसिकता तनाव में वृद्धि करके उसे पीड़ादायक बना देती है । झूट तनाव उत्पन्न करता है तथा तनाव में वृद्धि भी करता है इसलिए तनाव मुक्त होने के लिए झूट का सहारा लेना सदैव हानिकारक होता है । इन्सान को तनाव मुक्त होने के लिए सत्य व सब्र का सहारा लेना आवश्यक होता है । सत्य को समझने एवं सत्य मान लेने से ही तनाव से मुक्ति संभव होती है तथा जब तक तनावग्रस्त इन्सान सब्र करना नहीं सीखता तनाव पीछा नहीं छोड़ सकता ।