
तपस्या पर सुविचार

जीवन सत्यार्थ
By Amit 2 Comments
किसी मनोहर, शांत, स्वच्छ वातावरण में एकाग्रचित विराजमान होकर तथा संसार के सभी कार्यों तथा समय व्यतीत होने की चिंता से मुक्त होकर बुद्धि द्वारा प्राप्त जानकारियों को एकत्रित करके विवेक द्वारा मंथन द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास को तपस्या कहा जाता है । तपस्या पद्धति के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति सरलता पूर्वक संभव हो पाती है परन्तु उसके लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का ध्यान रखना आवश्यक होता है । सर्व प्रथम तपस्या के लिए मन पर नियन्त्रण एवं एकाग्रता होना परम आवश्यक है क्योंकि मन की चंचलता तपस्या को प्रभावित करती है जिससे तपस्या में विघ्न उत्पन्न होता है । मन को कल्पनाओं तथा भावनाओं में बहने से रोकना अर्थात मन को भटकने से रोकने पर ही ध्यान लगाना संभव होता है जो तपस्या करने में सबसे अधिक आवश्यक कार्य होता है क्योंकि मन सदैव इन्सान को पथ भ्रष्ट करता है ।
मन की एकाग्रता के पश्चात दृढ इच्छा शक्ति का होना भी परम आवश्यक है क्योंकि इच्छा शक्ति कमजोर होने से भी तपस्या में विघ्न उत्पन्न होता है । तपस्या में लीन होने पर समय व्यतीत होते होते शरीर शिथिल तथा आलस्य पूर्ण हो जाता है जिससे इच्छा शक्ति कमजोर होने पर इन्सान तपस्या का दामन त्याग कर आराम करने का विचार करते ही उसकी तंद्रा भंग होकर ध्यान बधित हो जाता है जिससे तपस्या करना कठिन होता है । बुद्धि की जानकारियों का अभाव भी तपस्या को प्रभावित करता है क्योंकि अधूरी जानकारी सम्पूर्ण ज्ञान जुटाने में सक्षम नहीं होती । सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्ति के लिए उस विषय की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध होना भी आवश्यक है । तपस्या करने में भोजन के पदार्थ और मात्रा का ध्यान रखना भी आवश्यक है क्योंकि कम मात्रा से भूख परेशान करती है तथा अधिक मात्रा से आलस्य प्रभावित करता है । हल्के पदार्थ शीघ्र पचते हैं जिससे आलस्य भी कम आता है जितने समय प्रतिदिन तपस्या करनी हो उसके हिसाब से भोजन करना उचित रहता है ।
तपस्या इन्सान ज्ञान प्राप्ति के अतिरिक्त सृष्टि के रहस्यों की जानकारी के लिए भी करता है जिसमे वह संसार के निर्माण कार्यों और निर्माता के रहस्य खोजना चाहता है । जो इन्सान ज्ञान प्राप्त करके संसार के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करते रहे हैं वें सभी निर्माता के रूप में संसार को आदिकाल से आधुनिक वर्तमान काल तक लाने वाले आविष्कारक महापुरुष कहलाए । ऐसे महापुरुषों के प्रयासों से ही इन्सान वर्तमान में इतने प्रकार की सुख सुविधाएँ जुटा पाया है । वायु, जल, उर्जा व जीवन के अतिरिक्त संसार की प्रत्येक वस्तु इन्सान द्वारा निर्मित है जिसे इन्सान ने कठोर तपस्या से ज्ञान प्राप्त करके प्राप्त किया जिससे संसार प्रगति की ओर अग्रसर है ।
ज्ञान धार्मिक हो या भौतिक आविष्कारक ज्ञान को तपस्या पद्धति के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि विवेक मंथन और एकाग्रता रहित कोई भी पद्धति ज्ञान प्राप्ति में सक्षम नहीं होती इसलिए तपस्या करके ज्ञान प्राप्त करना इन्सान का उचित निर्णय होता है । ईश्वर या परमात्मा कही जाने वाली शक्ति की प्राप्ति या उसमे लीन होने के लिए तपस्या करने से पहले उसकी सत्यता का ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक है । परमात्मा अर्थात परम + आत्मा का अर्थ है कि परम अर्थात जिससे अधिक या विशाल व महान कोई न हो आत्मा अर्थात जीवन = वह महानतम जीवन या जीव आत्मा जो संसार में महानतम स्थान रखती हो या महानतम कार्य करती हो । परमात्मा के सानिध्य से परम सुख की अनुभूति होती है तथा उसी सुख को प्राप्त करने के लिए तपस्या द्वारा ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है ।
अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए करी गई तपस्या से ज्ञान प्राप्त होने पर सृष्टि के रहस्य उजागर होते हैं तथा जीव का जीवन मृत्यु का रहस्यमयी चक्र स्पष्ट हो जाता है । तपस्या से प्राप्त ज्ञान इन्सान का मतिभ्रम, दृष्टिभ्रम वगैरह सभी भ्रम समाप्त कर देता है तथा जीवन की सच्चाई व मंजिल मृत्यु के रहस्यों के ज्ञान से इन्सान में जीवन के प्रति मोह भंग होना स्वभाविक है । मोह के भंग होने से इन्सान के सभी विकार समाप्त होने लगते हैं क्योंकि मोह सभी विकारों की जड़ है । तपस्या द्वारा प्राप्त ज्ञान इन्सान को परम सुख की अनुभूति प्रदान करता है यह आत्मा द्वारा परमात्मा में लीन होने की किर्या है । संसार में अनेकों इंसानों ने अध्यात्मिक ज्ञान के लिए तपस्या करी परन्तु ज्ञान की प्राप्ति कुछ महान इंसानों को प्राप्त हुई जिनके ज्ञान से धर्मों की स्थापना हुई तथा उनके अनुयाइयों ने उन्हें ईश्वर समान सम्मान प्रदान किया ।
तपो सो राजा – राजा सो नर्क: अर्थात तपस्या करने पर इन्सान राजा बनता है तथा राजा बनकर नर्क को जाता है यह कहावत उन इंसानों के लिए है जिन्होंने अधूरी जानकारियों या भटकते मन के ध्यान से तपस्या करने की कोशिश करी तथा प्राप्त अधूरे ज्ञान से समाज को प्रभावित करने का प्रयास किया । जिन इंसानों ने उनके अधूरे ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें सम्मान प्रदान किया अधूरे ज्ञानी ने खुद को राजा के समान समझकर अहंकार में उन्हें आज्ञा देकर उसका पालन करने पर मजबूर करने या शोषण करने की कोशिश करी जिससे सम्मान देने वाले इंसानों ने उनका अहंकार देखकर बहिष्कार किया तथा कोई कोई तो जेल तक भी पहुंच गया जो उन्हें नर्क समान भोग्य हुई ।
तपस्या कोई भी इन्सान किसी भी स्थान पर करके ज्ञान प्राप्त कर सकता है ज्ञान का जाति, धर्म, स्थान से कोई लेना देना नहीं होता तथा तपस्या ज्ञान प्राप्ति या ज्ञान वृद्धि के लिए होती है । तपस्या को साधू संतों का कार्य समझना नादानी है क्योंकि तपस्या एक पद्धति है कोई आश्चर्य जनक कार्य नहीं । ध्यानमग्न होकर ईश्वर ईश्वर रटने को तपस्या समझना मूर्खता है तपस्या का उचित अर्थ ध्यानमग्न होकर बुद्धि द्वारा प्राप्त जानकारियों का विवेक द्वारा वैचारिक मंथन होता है तथा यह सभी इंसानों के वश का कार्य है ।