
इस दौर में प्रत्येक इन्सान स्वयं को एंव अपनी वस्तुओं को, अपनी पसंद को, अपने द्वारा किये गए कार्यों को समाज में महत्वपूर्ण प्रमाणित करने की दौड़ में लगा हुआ है । प्रत्येक इन्सान अपनी बुद्धि, अपना परिवार, अपनी जाति, अपना धर्म, अपना कर्म सभी को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा समाज में मनवाना चाहता है और इन सभी को प्रमाणित करने के लिए हर तरह के आडम्बर अर्थात दिखावा करता है । इस दिखावे के लिए श्रेष्ठतम भोजन व उसका बखान, श्रेष्ठतम वस्त्र, श्रेष्ठतम वाहन, श्रेष्ठतम आभूषन, व श्रेष्ठतम घरेलू साजो सामान सभी उपयोग में लाया जाता है । इस महत्वता प्रमाणित करने की दौड़ में खर्च होने वाली धन राशि या तो पैत्रिक सम्पत्ति को खा जाती है अथवा प्राप्त आमदनी को समेट देती है । कभी कभी तो उधार व बैंक लोन जैसी समस्याओं से भी गुजरना पड़ता है ।
अधिकतर इन्सान अधिक दिखावे के कारण बर्बादी के रास्ते पर चल पड़ते हैं म्ह्त्वाक्षाओं को पूर्ण करने के लिए बेईमानी व भ्रष्टाचार का रास्ता अपना लेते हैं तथा परिणाम स्वरूप परेशानी की हालत में पहुंच जाते हैं और अपराध में पकड़े जाने पर समाज में अपमानित होते हैं । जिस समाज में सम्मान पाने के लिए आडम्बर किया जाता है वही समाज उनके सम्मान की धज्जियां बिखेर देता है । जिनके पास आवश्यकता से अधिक धन हो वह अपने रुतबे को कायम रखने के लिए महंगे संसाधनों का उपयोग करते हैं तो उनकी रीस में अपने आप को बर्बाद करना अक्लमंदी नहीं होती । मध्यम वर्गीय परिवार सबसे अधिक इस दौड़ में शामिल हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी कार्यों में दिखावा ही दिखावा समाज की प्राथमिकता है ।
खाना, शिक्षा, वस्त्र, त्यौहार, शादी, घरेलू साजो सामान, वाहन, आभूषण वगैरह सभी कार्य दिखावे के आधार पर किये जाते हैं । भोजन स्वास्थ के लिए आवश्यक है परन्तु इन्सान स्वास्थ को त्याग कर स्वाद व दिखावे के आधार पर प्रयोग कर रहा है । ज्ञात होने पर भी की फास्ट फ़ूड कहे जाने वाले पदार्थ स्वास्थ के लिए हानिकारक हैं परन्तु जब दूसरे मनुष्य प्रयोग कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते । वस्त्र शरीर की धूल व धूप से रक्षा के लिए पहने जाते थे परन्तु अब दिखावे के तरीके से पहने जाते हैं जो ना तो शरीर को सही प्रकार से ढंक पाते हैं या शरीर पर इतने जकड़े हुए होते हैं कि शरीर की कमजोर नसों को नुकसान पहुंचाते हैं एवं महंगे वस्त्र प्राक्रतिक कपास के धागों से नहीं बने होते वे रसायन से बने धागे से बने हुए होते हैं जो स्वास्थ के लिए हानिकारक होते हैं ।
शिक्षा उस स्कूल में कराई जाती है जहाँ फ़ीस व फैशन अधिक होता है शिक्षा की प्रणाली व श्रेष्ठता देखना अनिवार्य नहीं होता । त्योहारों पर दिखावे की इतनी अधिक धूल जमी हुई है कि त्यौहार मुसीबत नजर आने लगे हैं । शादी, विवाह के मौके पर दिखावे के कारण समाज में कन्या को हीनभावना की द्रष्टि से देखा जाता है । समाज में जननी होने के पश्चात भी स्त्री को पुरुष से तुच्छ समझा जाता है । यदि विवाह के समय होने वाला आडम्बर बंद कर दिया जाये तो स्त्री का स्थान समाज में महत्वपूर्ण होगा । वाहन, आभूषण, घरेलू साजो सामान देखकर समाज में स्वयं को महत्वपूर्ण समझना नादानी है । हमारे संसाधनों से किसी दूसरे का कोई लाभ नहीं होता तो उसके लिए हमारे संसाधन व हमारा धन कबाड़े के समान है फिर वह क्यों हमें महत्वपूर्ण समझेगा । यदि कीमती सामान को देख कर कोई हमारी तरफ आकर्षित होता है तो वह चोर या लुटेरा हो सकता है ।
समाज में यदि खुद को महत्वपूर्ण बनाना है तो समाज व इंसानियत के लिए निस्वार्थ सेवा भाव से महत्वपूर्ण कार्य करने आवश्यक होते हैं तभी समाज महत्वता प्रदान करता है । समाज किसी धनवान को देखकर सम्मान नहीं देता वह समाज सेवी, सभ्य व भद्र मनुष्य, ईमानदार व कर्मठ, उच्च व्यहवारिक इंसानों को सम्मान की द्रष्टि से देखता है । धर्म व जाति के आधार पर स्वयं को श्रेष्ठ समझने वाला कभी अपने अंतःकरण में झांक कर यह नहीं देखता कि वह सिर्फ एक प्राणी है जो संसार में ईश्वर की दया पर जीवित है और उसने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जिससे वह श्रेष्ठ इंसानों की लाइन में खड़ा हो सके । अपनी बुद्धि को श्रेष्ठ समझकर बहस करने वाला मनुष्य स्वयं बुद्धिहीनता का परिचय देता है क्योंकि संसार की सम्पूर्ण जानकारी व ज्ञान सिर्फ ईश्वर के पास है । ज्ञानी मनुष्य बहस नहीं करते वे तर्क प्रस्तुत करते हैं ।