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नशा

June 8, 2014 By Amit Leave a Comment

nasha

इन्सान आदिकाल से जिज्ञासा प्रवृति का रहा है । प्रत्येक वस्तु के बारे में गहराई से जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा ने नई खोज करने की कोशिश को जन्म दिया है जिससे नये नये अविष्कार इन्सान के जीवन में आए । इन्सान की करी हुई खोज में अच्छी व बुरी सभी प्रकार की वस्तुएं हैं जहाँ इन्सान चाँद व मंगल पर घूम रहा है वहीं संसार के विनाश के लिए तरह तरह के हथियार भी बनाये गये तथा उन्हीं आविष्कारों में से इन्सान ने अपने जीवन को नुकसान पहुँचाने का फार्मूला खोजा (नशा) । नशे को तरह तरह के अंजाम दिए गये खाकर, पी कर, सूंघकर, सुई द्वारा शरीर में प्रवेश कराकर तरह तरह की वस्तुओं द्वारा जैसे तम्बाकू, भाँग, चरस, अफीम, गांजा, सुलफा, धतूरा, कोकीन, स्मैक और शराब आदी नये से नये तरीके नशे में चूर होकर जीने के ।

सिर्फ सुनी हुई बातों पर विश्वास करना इन्सान का स्वभाव है जैसे ईश्वर, साधू, संत, भूत, प्रेत पर विश्वास करके अमल में लाता है । किसी की झूटी बातों में आकर लड़ाई करता है परन्तु सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करता वही इन्सान पढ़कर, सुनकर, व उससे होने वाले नुकसान को देखकर भी नशा करता है । यह इन्सान की स्वंय को धोखा देने की प्रवृति है जिसे सदियों से समझाने पर भी आज तक समझ नहीं आया । सभी प्रकार की नशे की वस्तुएं शरीरिक, मानसिक व आर्थिक नुकसान ही करती हैं जैसे धूम्रपान करने से खांसी आती है और इन्सान खांसते हुए जीवन व्यतीत करता है । शराब से जायका कडवा तथा उल्टियाँ करता एंव डगमगाता हुआ इंसान समाजिक प्रतिष्ठा भी गवाँ देता है तम्बाकू व गुटखे मुहं का कैंसर जैसी भयंकर बीमारयाँ उत्पन्न करते है तथा दूसरे नशे तो इससे भी बुरे परिणाम देते हैं ।

इन सभी की पूर्ण जानकारी होने के पश्चात भी इसका सबसे ज्यादा उपयोग शिक्षित वर्ग करता है । नशे को समाज का एक वर्ग सोसायटी की शान समझता है सिगरेट के सुट्टे ना लगाने एवं शराब के जाम ना टकराने वालों को पिछड़ा व छोटी सोच माना जाता हैं । नशा धीमे जहर की तरह कार्य करता है तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे धीरे समाप्त कर देता है जिससे इन्सान किसी भयंकर बिमारी की चपेट में आ जाता है । नशे की लत वाला इन्सान बिमारी में अपना जीवन समय से पूर्व ही गवाँ देता है तथा धन भी अवश्य ही गँवाएगा । नशे की लत पर आरम्भ में ही अधिकार प्राप्त किया जा सकता है या दृढ इच्छा शक्ति से काबू किया जा सकता है ।

नशा सबसे अधिक मस्तिक पर असर कारक है जिससे याद रखने की क्षमता, सोचने की क्षमता व तर्क करने की शक्ति प्रभावित होती है तथा जीवन में तरक्की करने के आधार समाप्त हो जाते हैं । इन्सान के जीवन में नशे का आरम्भ बीस वर्ष की आयु से हो जाता है तथा मृत्यु होने तक संचालित रहता है । वैसे इन्सान साठ वर्ष की उम्र तक ही सक्रिय रहता है । चालीस वर्ष अर्थात १४६१० दिन होते हैं कम व सस्ता नशा धुम्रपान ही है जो एक बंडल बीडी व माचिस जिसकी कीमत ११ रुपये प्रतिदिन होती है जो जीवन में चालीस वर्ष प्रयोग करने से (एक लाख साठ हजार)रूपये होते हैं जो ब्याज सहित कितने लाख होंगे इसका हिसाब अल्प बचत योजना ही बता सकती है । शराब धुम्रपान से ५ से १० गुना अधिक महंगा नशा है जो ८ से १६ लाख तक की कीमत का होगा तथा बचत योजना में २० से ४० लाख या अधिक होगा जो मनुष्य यह तर्क देते हैं कि पहले शराब,सिगरेट सस्ती थी तो यह जानना भी जरूरी है कि समय के अनुसार रूपये की कीमत का अंतर ही भाव में वृद्धि करता है पहले यदि शराब सस्ती थी तो आमदनी भी कम थी और रूपये की कीमत अधिक थी ।

नशे की लत आर्थिक रूप से बुद्धि का प्रयोग नहीं करने देती । हमारा कानून व सरकारी तंत्र नशे की वस्तुओं पर उनसे होने वाली बीमारयों के प्रति सावधान करना अपना कर्तव्य समझ कर लिख देते हैं जैसे धुम्रपान से फेफड़ों में कैंसर होता है, तम्बाखू व गुटखे से मुंह का कैंसर होता है और शराब मौत का सामान है वगैरह परन्तु इन नशे की वस्तुओं के उत्पादन को बंद नहीं करते । नशे की वस्तुओं से सरकार को बहुत अधिक आमदनी (कर) के रूप में प्राप्त होती है तथा कारखानों व इससे जुड़े व्यवसायियों को मोटा मुनाफा होता है , नशे को समाज व धर्मशास्त्री और बुद्धिजीवी वर्ग भी बंद करवाने के प्रति जागरूक नहीं है । नशा करने वाले इन्सान जब तक इससे होने वाले शरीरिक, मानसिक, आर्थिक, व समाजिक सम्मान की हानि के परिणाम पर ध्यान नहीं देगा तथा स्वंय को धोखा देना बंद नहीं करेगा तब तक नशा उसका पीछा नहीं छोड़ेगा यदि कोई इन्सान किसी को नशे की लत लगाने की कोशिश करता है तो वह अपना कोई स्वार्थ उससे पूर्ण करना चाहता है अथवा उसका जीवन बर्बाद करना चाहता है ऐसा मनुष्य मित्र तो हो ही नहीं सकता इसलिए ऐसे इंसानों से सावधान रहना आवश्यक है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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