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बीमारी

July 10, 2014 By Amit Leave a Comment

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शरीर की क्षमता में अवरोध उत्पन्न होने एंव शरीर में पीड़ा उत्पन्न होने को बीमारी का नाम दिया गया है । बीमारियाँ दो प्रकार से इन्सान के जीवन को प्रभावित करती हैं अनियमित तथा नियमित । अनियमित बीमारी स्वस्थ शरीर को कभी भी प्रभावशाली होकर परेशान करती है एंव कुछ समय बाद सही इलाज होने पर दूर हो जाती है । अनियमित बीमारियाँ बदलते मौसम तथा इन्सान की लापरवाही का परिणाम होती हैं जिसका स्वास्थ पर अधिक प्रभाव नहीं होता । नियमित बीमारी इन्सान को जीवन भर परेशान करती है वह चाहे साधारण बीमारी हो या असाधारण । नियमित बीमारी का इन्सान पर समय के साथ प्रभाव बढ़ता जाता है तथा बढ़ते प्रभाव के साथ बीमारी अपना भयंकर रूप लेकर इन्सान की जीवन लीला समाप्त होने तक उसे तडपाती है कभी कभी तो इन्सान अपनी बीमारी से इतनी बुरी तरह त्रस्त हो जाता है कि आत्म हत्या करने पर भी उतारू हो जाता है ।

किसी भी बीमारी का होना अधिकांश इन्सान की अपनी गलती का परिणाम होता है वह चाहे साधारण हो या असाधारण बीमारी । उसके इलाज में होने वाली लापरवाही उसे भयंकर रूप देती है । अनियमित बीमारी के इलाज की लापरवाही या मरीज का चिकित्सक द्वारा गलत मार्ग दर्शन भी उसे नियमित बना देता है जो भयंकर रूप लेकर मरीज का जीवन बर्बाद कर देती है । अधिकतर भयंकर बीमारियाँ जैसे हृदय घात, मस्तिक घात, लकवा आदि जो रक्त से सम्बन्धित हैं वें सभी साधारण रूप से आरम्भ होती हैं जो सर्व प्रथम उच्च रक्तचाप के रूप में उजागर होती है । उच्च रक्तचाप को इन्सान साधारण सी बीमारी समझकर लापरवाही करता है जिसके भयंकर नतीजे उसकी बर्बादी का कारण बनते हैं जबकि उच्च रक्तचाप इन्सान के लिए बिमारियों का सूचक होता है । शरीर की नसों में वसा का जमाव बढकर नसों में रक्त बहाव के कार्य में बाधा उत्पन्न करता है जिसका परिणाम उच्च रक्तचाप होता है जो आगे चलकर हृदय घात के रूप में प्रकट होता है तथा वही मस्तिक घात एंव लकवा जैसी बीमारी का कारण होता है ।

किसी भी प्रकार की बीमारी जब तक किसी इन्सान को नहीं होती वह खुद को पूर्णतया स्वस्थ समझकर लापरवाह जीवन व्यतीत करता है । किसी बीमारी के आरम्भ में ही इन्सान की यह मानसिकता कि अच्छे से अच्छा चिकित्सक उपलब्ध है वह भ्रमित होता है क्योंकि चिकित्सक वर्तमान में व्यापारी बन कर रह गए हैं जो बीमारी के इलाज से अधिक इन्सान के धन को ठिकाने लगाते हैं । वैसे भी जब तक इन्सान अपनी बीमारी को लेकर स्वयं संवेदनशील नहीं होता उसका पूर्णतया इलाज संभव नहीं होता । जैसे किसी मशीन की खराबी दूर करने से पहले उसकी खराबी का कारण जानना आवश्यक होता है क्योंकि ज्ञात होने पर तथा उसका निवारण होने पर उसमे दोबारा वह खराबी उत्पन्न नहीं होती है । उसी प्रकार इंसानी बीमारी का कारण ज्ञात होने पर उसका निवारण उचित प्रकार होता है तथा उस बीमारी के दोबारा होने का खतरा भी समाप्त हो जाता है ।

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इन्सान की सभी बिमारियों में से कुछ बीमारी जैसे बदलते मौसम या मच्छरों के काटने था चोट लगने को छोडकर सभी बीमारी इन्सान की स्वयं उत्पन्न करी हुई होती हैं । इन्सान चार पदार्थों पर जीवित है वायु, जल, भोजन व उर्जा इनके गलत प्रयोग से ही सभी बिमारियो का आरम्भ होता है । प्रदूषित वायु या प्रदूषित जल व नकारात्मक उर्जा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है एंव भोजन के द्वारा बिमारियों का शरीर में प्रवेश होता है । रक्त से सम्बन्धित तथा पेट की सभी बीमारियाँ अधिक वसा युक्त, तला हुआ, फास्टफूड तथा अधिक मात्रा में भोजन करने से आरम्भ होती हैं । अधिक मात्रा में तथा अनुचित तरीके से बनाई हुई चाय, काफी एवं आधुनिक पेय पदार्थों का सेवन तथा नशीले पदार्थों जैसे शराब, सिगरेट, तम्बाखू, गुटखे वगैरह का सेवन भी बिमारियों की जड है जिनसे बीमारी पोषण प्राप्त कर अपना भयंकर रूप प्रकट करती है ।

इन्सान को बिमारियों से दूरी बनाए रखने के लिए समय पर सोना तथा भोर में जागना कुछ समय खुले वातावरण में घूमना तथा अधिक पानी का प्रयोग करना एंव प्राणायाम द्वारा शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाना व संतुलित मात्रा में एवं स्वास्थ्य के लिए वसा रहित भोजन करना जैसे उपाय करे तो बेहतर परिणाम आता है । लेखक स्वयं ग्यारह वर्ष पूर्व हृदय घात का शिकार होकर बगैर किसी चिकित्सक द्वारा इलाज करे इन्ही उपायों द्वारा स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहा है तथा दावा करता है कि हृदय घात जैसी बीमारी उसे छू भी नहीं सकती । बीमारी होने पर मानसिक तौर पर घबराने से उसमे बढ़ोतरी हो जाती है इसलिए घबराहट त्याग कर स्वयं प्रयास करने से बीमारी दूर हो जाती है तथा किसी चिकित्सक की आवश्यकता भी नहीं होती ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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