किसी को सर्वश्रेष्ठ मानकर उसकी श्रेष्ठता को स्वीकार करके अपना रक्षक, मार्गदर्शक, पालनहार अथवा सर्वोपरी होने का विश्वास करके उसके प्रति समर्पित होना इन्सान की भक्ति कहलाती है | इन्सान के प्रेम एंव विश्वास की पराकाष्ठा भक्ति होती है जिसके वशीभूत वह अपने श्रेष्ठतम के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाता है | ईश्वर, देवी देवता, साधू संत, माँ बाप, गुरु अथवा किसी भी महान इन्सान के प्रति जिसका इन्सान पूर्ण आदर तथा विश्वास करता हो उसका भक्त बनकर उसकी भक्ति करता है | भक्ति इन्सान मुख्य दो प्रकार से करता है | प्रथम = अपने श्रेष्ठतम के प्रति प्रेम एंव आदर प्रकट करना परन्तु किसी प्रकार की अभिलाषा ना रखना यह भक्ति का आदर्श रूप है | द्वितीय = अपने श्रेष्ठतम से अपनी समस्याओं एंव विपदाओं का समाधान तथा अपने जीवन निर्वाह को सुखी एंव सरल बनाने की अभिलाषा करना यह भक्ति का व्यापारिक रूप है जिसमें आदान-प्रदान होता है |
इन्सान द्वारा भक्ति प्रकट करने के अनेक प्रकार हैं जिनसे ही उत्तम, साधारण एंव हानिकारक पद्धति निश्चित होती है | जिस भक्ति को करने में इन्सान सिर्फ प्रेम, आदर एंव विश्वास के श्रद्धा सुमन अर्पित करता है वह उत्तम भक्ति है क्योंकि उसमें किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती | जिस भक्ति को करने में इन्सान अपने श्रेष्ठतम के पीछे भटकता रहता है अथवा तीर्थ स्थलों की यात्रा करता रहता है वह साधारण भक्ति है क्योंकि इसमें वह अपना अमूल्य समय एंव अल्प धन नष्ट करता है | जिस प्रकार की भक्ति में इन्सान प्रसाद या चढ़ावे अथवा दान के रूप में अपना धन भी न्यौछावर करता है वह भक्ति धन लुटाने के अनुसार हानिकारक होती जाती है क्योंकि इन्सान समय एंव धन लुटाकर स्वयं अभावग्रस्त होता जाता है | भक्ति अधिक हानिकारक ना बन जाए इसके लिए भक्ति के गूढ़ रहस्यों को भलीभांति समझना भी अनिवार्य है |
भक्ति इन्सान जिसकी भी करता है उसके विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने तथा उसकी शक्तियाँ एंव अधिकारों को समझने की बहुत आवश्यकता होती है | ईश्वर से साधारण इन्सान तक सभी के अधिकारों, शक्तियों एंव कार्यों की सीमाएं एंव मर्यादाएं निर्धारित होती हैं जिससे अधिक की अभिलाषा करना नादानी बन जाती है | सीमा एंव अधिकार से अधिक की अभिलाषा रखने से कोई लाभ नहीं हो सकता बल्कि लाभ ना होने के कष्ट की पीड़ा अवश्य होती है | सीमाओं एंव अधिकारों के मध्य ही अभिलाषा करने तथा उनके आचरण एंव नियम पालन करने से सदैव उत्तम एंव सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं |
संसार में ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि सृष्टि रचियता एंव जीवनदाता परम दयालु है परन्तु किसी भी सांसारिक कार्य में दखल नहीं देता | ईश्वर से सद्बुद्धि की अभिलाषा करने के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार की अभिलाषा रखना व्यर्थ है क्योंकि भौतिक वस्तुओं का निर्माता इन्सान स्वयं है जिन्हें बुद्धि एंव परिश्रम से ही प्राप्त किया जा सकता है | सभी देवी देवता किसी एक वस्तु या शक्ति के अधिकारी एंव संचालन कर्ता माने जाते हैं | जिस भी वस्तु या शक्ति के विषय की उपलब्धी की अभिलाषा हो उससे संबधित देवी या देवता की भक्ति करना लाभदायक हो सकता है किसी अन्य की भक्ति करना व्यर्थ समय बर्बाद करना है | ईश्वर या देवी देवता किसी से भी उनकी सीमा एंव मर्यादा से पृथक अभिलाषा करना व्यर्थ है क्योंकि ईश्वर या देवी देवता इन्सान की तरह अपनी मर्यादा नहीं तोड़ते इसीलिए सभी महान माने जाते हैं |
साधू या संत सांसारिक सुखों का त्याग करके वैराग्य जीवन अपनाने वाले इन्सान होते हैं | साधू वैराग्य जीवन में परमार्थ की तलाश करने वाला इन्सान होता है तथा संत अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करके समाज का अध्यात्मिक मार्गदर्शन करने वाला इन्सान होता है | साधू से परमार्थ के ज्ञान एंव संत से अध्यात्मिक ज्ञान के मार्गदर्शन की अभिलाषा करना उचित है | जो इन्सान सुखों की अभिलाषा में साधू संतों की भक्ति करते हैं वह वास्तव में मूर्ख होते हैं क्योंकि जो स्वयं भौतिक सुखों का त्याग कर चुका है उससे इस प्रकार की अभिलाषा मूर्ख ही कर सकते हैं | साधू या संत यदि भौतिक सुखों का भोग करता है तो वह वास्तव में रंगे सियार की भांति पाखंडी एंव ढोंगी धूर्त इन्सान होता है जो समाज को मूर्ख बना कर लूट रहा है |
सांसारिक जीवन में माँ बाप का मार्गदर्शन सर्वश्रेष्ठ होता है क्योंकि माँ बाप से मिलने वाले अनुभव एंव मार्गदर्शन निस्वार्थ एंव निश्छल होते हैं | संसार में इन्सान के माँ बाप उसके सच्चे हितैषी होते हैं जो अपना सर्वस्य लुटाकर भी सन्तान की अभिलाषाएं पूर्ण करने का प्रयास करते हैं | जो इन्सान माँ बाप को अपना श्रेष्ठतम मानकर उनकी श्रेष्ठता स्वीकार कर पूर्ण रूप से समर्पित होकर उनकी भक्ति करता है तथा उनके मार्गदर्शन पर चलता है सदैव सुखी रहता है | गुरु या अन्य कोई महान इन्सान यदि वास्तव में श्रेष्ठ है तो उन्हें अपना आदर्श मानकर उनका मार्गदर्शन लेना वास्तव में उत्तम भक्ति होती है | समाज में गुरु अथवा शिक्षक या मार्गदर्शक के नाम पर मिलने वाले लुटेरों से सावधान रहना बहुत आवश्यक है क्योंकि गलत मार्गदर्शन इन्सान को बर्बादी के साथ जेल दर्शन भी करवा सकता है |
भक्ति इन्सान की सकारात्मक मानसिकता है जिसके कारण उसकी भावनाओं में प्रेम एंव विश्वास की आश्चर्यजनक वृद्धि होती है | भक्ति में जब तक प्रेम एंव विश्वास सामान्य रूप में होते हैं वह उत्तम रहती है परन्तु जब अंधापन उत्पन्न होने लगता है तो वह विनाशकारी बन जाती है | भक्ति के अंधविश्वास का लाभ सदैव धूर्त, शातिर एंव ढोंगी इन्सान उठाते हैं जो ऐसे मूर्खों की इंतजार में ताकते रहते हैं | धूर्तों के जाल में फंसते ही भक्त का मानसिक, आर्थिक अथवा शारीरिक शोषण भी आरम्भ हो जाता है | भक्ति उत्तम है परन्तु अंधभक्ति सदैव लूटने का साधन रही है जिसके कारण समाज में पाखंडी इन्सान पनपते रहे हैं | भक्ति ईश्वर, देवी देवता, साधू संत, माँ बाप, गुरु अथवा कोई अन्य महान इन्सान किसी को भी अपना श्रेष्ठतम बनाया जाए उसके विषय में पूर्ण जानकरी रखने के साथ अपने नेत्र खुले रखना एंव मस्तिक सक्रिय रखना भी परम आवश्यक है क्योंकि कभी-कभी श्रेष्ठ भी भ्रष्ट बन जाते हैं |