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लोभ

April 26, 2014 By Amit 1 Comment

lalach

लोभ इन्सान में उत्पन्न होने वाला दूसरा विकार है जो मोह के कारण ही उत्पन्न होता है । कहा जाए तो लोभ मोह का दूसरा रूप होता है यह किसी भी भौतिक वस्तु, धन, भोजन, जमीन जायदाद के प्रति मोह हो जाने पर अधिक से अधिक प्राप्त करने की मन की कामना को लोभ कहा जाता है । लोभ ऐसी तृष्णा है जिससे जीवन में सर्वप्रथम सब्र करने की शक्ति का अंत हो जाता है तथा जिस इन्सान का सब्र समाप्त हो जाता है उसके जीवन में सुख और शांति नहीं रहती क्योंकि लोभी इन्सान हमेशा अधिक प्राप्ति की इच्छा में भटकता रहता है । लोभ करने की आदत से इन्सान की समाजिक प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है क्योंकि समाज सदा त्याग करने एंव सेवा करने वाले इन्सान को सम्मान देता है किसी लोभी मनुष्य को कदापि नहीं ।

इन्सान का समाजिक पतन उसके आने वाले जीवन में कितना हानिकारक होगा उसका अनुमान लोभी इन्सान कभी नहीं लगाता । लोभ के कारण इन्सान की बुद्धि कुंठित हो जाती है तथा विवेक या तो होता ही नहीं यदि होता है तो कार्य नहीं करता क्योंकि लोभी इन्सान सदा मन के द्वारा ही जीवन के प्रत्येक निर्णय लेता है एवं मन सदैव इन्द्रीयों के वशीभूत कार्य करता है । लोभ इन्सान को कब बेईमान बना देता है उसे स्वयं भी अहसास तक नहीं होता । वह कब भ्रष्टाचारी एंव चोर बना तथा उसने कब किसी के मन को ठेस पहुंचाई इन सब बातों को सोचने और समझने की शक्ति लोभी इन्सान में नहीं रहती । बचपन से ही लोभी इन्सान को अपनी प्रिय वस्तुओं को छुपा कर रखना तथा किसी की वस्तु पसंद आने पर उसे चुरा लेना जैसी आदतें हो जाती हैं जो समय के साथ प्रगति करके उसे अपराधी भी बना सकती हैं ।

लोभ किसी भी प्रकार का हो जीवन को कष्टदायक ही बनाता है जैसे भोजन के लोभी मनुष्य स्वाद के चक्कर में भोजन अधिक मात्रा में खाकर पेट दर्द की पीड़ा से गुजरते हैं एंव अधिक व वसा युक्त एंव नुकसानदायक पदार्थों के सेवन से शरीर में वसा की अधिक मात्रा से अपना वजन बढ़ा लेते हैं जिससे भयंकर बीमारियाँ उनके जीवन को नर्क समान बना देती हैं । बिमारियों की पीड़ा और इलाज पर होने वाला खर्च एंव शरीर की कार्य क्षमता का नष्ट होना सभी इन्सान की समझदारी से रोका जा सकता है इन्सान यदि भोजन को स्वास्थ्य के लिए प्रयोग करे और स्वाद से दूर रहे तो उसका जीवन सुखमय होता है ।

जिस इन्सान में धन या जमीन जायदाद अधिक प्राप्त करने के लालच में वृद्धि हो जाती है वह खुद को किसी भी कष्ट में फंसा लेता है । अधिक प्राप्ति का लोभ इन्सान को भ्रष्ट और कपटी बना देता है जिससे वह अपने पराये की समझ खो देता है । धन का लोभी इन्सान किसी अपने को ही ठगने की कोशिश करता है क्योंकि पराया इन्सान किसी के जाल में तुरंत नहीं फंसता अपने को फंसाना सरल कार्य होता है । किसी को ठगने से शत्रुता होना स्वभाविक है और शत्रुता का अंजाम सदा बुरा होता है । जो इन्सान लोभ वश रिश्वत लेने जैसे कार्य करते हैं उनका जीवन सदा तलवार की धार पर चलने जैसा होता है क्योंकि जरा सी चूक होते ही नौकरी जाने के अतिरिक्त जीवन कारागार में कटता है तथा परिवार की मर्यादा को ठेस पहुंचती है जिसके कारण परिवार की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो जाती है ।

लोभ के कारण अपराधिक कार्य करने वाले इन्सान के जीवन में शादी विवाह एंव रिश्ते सभी समस्या बनकर रह जाते हैं क्योंकि किसी अपराधी से समाज कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता । कभी कभी लोभी इन्सान अधिक प्राप्त करने के चक्कर में खुद किसी जाल में फंस जाता है जब कोई असमाजिक तत्व किसी लोभी को पहचान लेता है तो उसे कोई मोटा लालच देकर फंसा लेता है तथा उसे भरपूर लूटता है । लोभ के कारण इन्सान धन, जमीन, आभूषन वगैरह जमा करने में लगा रहता है एवं उसका परिवार ऐश करता है परन्तु लोभी इन्सान का समाज द्वारा अपमान करने पर उसका परिवार स्वयं उसे प्रताड़ित करता है क्योंकि खुद को धनाड्य समझने वाला परिवार लोभी को ही अपने अपमान का कारण मानता है ।

लोभ इन्सान में भय उत्पन्न करता है क्योंकि धन और आभूषनों की चोरी या जमीन जायदाद को किसी के द्वारा हडपने का भय सदा उसे सताता रहता है । बेईमानी से प्राप्त किए धन या जायदाद को कानून से छुपाना भी आवश्यक होता है इसलिए कानून व समाज का भय होना लोभी इन्सान की स्वभाविक प्रक्रिया है । जिस जीवन के लिए लोभ वश इन्सान अपने अंक में दुनिया समेटना चाहता है उस जीवन का कोई विश्वास नहीं है । मृत्यु कब किसे अपने आगोश में समा ले इसकी जानकारी प्रकृति के अतिरिक्त किसी इन्सान को नहीं है । लोभ इन्सान के जीवन का कलंक है परन्तु लोभ का होना भी आवश्यक है क्योकि लोभ इन्सान को प्राप्त करने की प्रेरणा देता है जिससे इन्सान कार्य करने की ओर अग्रसर होता है परन्तु लोभ का संतुलन होने से वह अपराध से नहीं मेहनत द्वारा प्राप्त करने पर विश्वास करता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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