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chinta – चिंता | चिंता मुक्त होने के समाधान क्या है ?

July 22, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

इन्सान जब गम्भीरता पूर्वक किसी विषय के प्रति अति संवेदनशील होकर उसकी परिस्थिति को समझने एवं उसका समाधान करने का गहन प्रयास करता है तो वह उसकी उस विषय के प्रति चिंता (chinta) कहलाती है | चिंता (chinta) इन्सान के जीवन का अद्भुत विषय है | चिंता (chinta) करना भी अनुचित है और चिंता ना करना भी अनुचित है | क्योंकि चिंता ना करो तो सभी कहते हैं | इसे किसी काम की चिंता (worry) ही नहीं है अर्थात यह लापरवाह है और चिंता (care) करो तो कहते हैं अरे चिंता (worry) मत करो हम आपके साथ हैं अर्थात आप दुःख मत करो क्यों है ना अद्भुत विषय |

चिंता पर सुविचार

chinta ke types – चिंता के प्रकार :

  • चिंता (chinta) वास्तव में दो प्रकार की होती है | अर्थात चिंता (chinta) करने के दो मुख्य आधार हैं |
  • एक फिक्र (chinta) वह है जो इन्सान कर्म करने से पूर्व करता है | यह चिंता (worry) कार्य के प्रति इन्सान की संवेदना है कि यह कार्य कैसे समाप्त होगा इसलिए यह इन्सान को कार्य के प्रति जागरूक करती है |
  • दूसरी चिंता (chinta) वह है जो कर्म करने के पश्चात स्वयं उत्पन्न हो जाती है यह चिंता कार्य के परिणाम के प्रति होती है कि किए गए कार्य का परिणाम क्या होगा इसलिए यह इन्सान को तनावग्रस्त करती है |
  • कार्य के प्रति जागरूक होना उत्तम है इसलिए कार्य से पूर्व करी गई चिंता (chinta) आवश्यक होती है परन्तु परिणाम के लिए तनावग्रस्त होना अनुचित है | इसलिए कार्य के पश्चात करी गई चिंता अनावश्यक होती है |

कर्म करने से पूर्व चिंता (chinta) करना वास्तव में विषय की परिस्थिति को समझने एवं उसका समाधान करने के प्रयास का अंश है | यह इन्सान को भविष्य के प्रति जागरूक एवं सावधान करने का कार्य करती है इसलिए वह अच्छी एवं लाभदायक चिंता होती है ताकि कर्म का परिणाम उत्तम आए | जो चिंता कर्म करने के पश्चात स्वयं उत्पन्न होती है वह कर्म के परिणाम का भय होता है | यह इन्सान को भयभीत करने एवं तनावग्रस्त करने का कार्य करती है इसलिए वह बुरी एवं हानिकारक चिंता होती है क्योंकि कर्म को बदला नहीं जा सकता इसलिए अब जो भी परिणाम आएगा भुगतना ही पड़ेगा | अच्छी चिंता (chinta) इन्सान को सावधान करती है तो बुरी चिंता मानसिक पीड़ा उत्पन्न करती है |

इन्सान जब लाभ, उन्नति, कामयाबी या वर्तमान समस्याओं के विषय में chinta करके परिणाम के प्रति समाधान एवं जागरूक होकर कर्म करता है तो परिणाम भी श्रेष्ठ आते हैं | जिसके कारण उसे कर्म के पश्चात chinta करने की आवश्यकता नहीं रहती यदि इन्सान chinta रहित होकर कर्म करे तो परिणाम गलत हो सकते हैं तब उसे बुरी चिंताओं से जूझने की आवश्यकता पडती है | इन्सान जब असावधान होकर कर्म करके अपनी गलतियां, भूल, अपराध या करी गई हानि के विषय में सोचता है तब परिणाम की चिंता उसे भयभीत करके तनावग्रस्त कर देती है | यह ऐसी बुरी चिंता है जब तक उससे छुटकारा ना प्राप्त हो जाए इन्सान भयंकर मानसिक पीड़ा से गुजरता है |

चिंता मुक्त होने के समाधान क्या है ?

जीवन में व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त रहने के लिए चिंताओं का कारण ज्ञात करना तथा उनका उचित समाधान करना आवश्यक है | यह भी दो प्रकार से ही संभव होता है एक समस्या से पूर्व चिंता करके समस्या के परिणाम की चिंता से मुक्त होना दूसरे समस्या के बाद चिंताग्रस्त होकर समाधान तलाश  करना | दोनों तरीकों में पहला समाधान श्रेष्ठ है क्योंकि इससे समस्या से पूर्व चिंता करके परिणाम की chinta से मुक्त होना है क्योंकि दूसरे उपाय में इन्सान समस्या से ग्रस्त होकर चिंता ग्रस्त हो ही जाता है इसलिए उसे मजबूरन समाधान तलाश करना ही होता है यदि समाधान पहले किया जाए तो समस्या से जूझना ही नहीं पड़ता तथा समाज भी किसी समस्याग्रस्त, पीड़ित या मजबूर की सहायता करने से भागता है |

जब किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके अंतिम परिणाम का अनुमान लगा लिया जाए तो कार्य करने की रुपरेखा ही बदल जाती  है | अंतिम परिणाम की समीक्षा करने से कार्य करने में गलतियों के प्रति सावधानी एवं बुरे या गलत कार्य के प्रति भय उत्पन्न हो जाता है | अच्छे कार्य के प्रति उत्साह एवं जागरूकता उत्पन्न होती है | इस विषय में प्रमाण हैं जैसे मृत्यु का भय इन्सान को बुरे कर्म करने से रोकता है | जब इन्सान किसी के जनाजे या श्मशान यात्रा में शामिल होता है और अंतिम संस्कार होते हुए देखता है तब वह बुरे कर्मों के प्रति घृणा करता है क्योंकि चिता की अग्नि उसकी मानसिकता को शुद्ध बना देती है | ऐसी भावना मन्दिर या ईश्वर की आराधना करते हुए भी उत्पन्न नहीं होती क्योंकि जीवन का अंतिम परिणाम मन्दिर में नहीं श्मशान में मिलता है |

जो विद्यार्थी सम्पूर्ण वर्ष फेल को याद रखता है वह पढाई के प्रति जागरूक होकर शिक्षा ग्रहण करता है | यह सावधानी फेल होने के भय से उत्पन्न होती है क्योंकि उसे अपने आलस्य का अंतिम परिणाम फेल होने के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है इसलिए वह पढाई के प्रति जागरूक हो जाता है | यह स्थिति स्पष्ट प्रमाणित करती है कि कार्य करने से पूर्व अंतिम परिणाम की समीक्षा करके उसे याद रखने से इन्सान कर्म करने के पश्चात होने वाले परिणामों की फिक्र(chinta) से मुक्त हो सकता है क्योंकि अंतिम परिणाम की समीक्षा उसके कर्मों को सुधार देती है | अंतिम परिणाम यदि लाभदायक दिखाई दे तो इन्सान उत्साहित होकर कर्म करता है अर्थात अंतिम परिणाम से उत्साह भी उत्पन्न होता है |

अपने कार्यों के अतिरिक्त अन्य चिंताएं वह होती हैं | जो अपनों के प्रति अथवा अपने भविष्य के प्रति होती है | परिवार का सदस्य घर वापस कब आएगा , यह कार्य कब निपटेगा, हमारा अपना घर कब बनेगा, सन्तान का विवाह कब होगा, सन्तान को नौकरी कब मिलेगी वगैरह | इन्सान को ऐसी चिंताएं होना स्वभाविक हैं परन्तु इस प्रकार की चिंताएं सिर्फ इन्सान को चिंतित करती हैं एवं बैचेनी उत्पन्न करती हैं परन्तु उसे मानसिक पीड़ा नहीं देती क्योंकि इनमें इन्सान का अपना कर्म शामिल नहीं होता | चिंताओं से मुक्त रहने का यह सर्वोतम उपाय है कि कार्य करने से पूर्व कार्य के अंतिम परिणाम की फिक्र(chinta) करने से कार्य के पश्चात उसके परिणाम से होने वाली बुरी चिंता से मुक्ति मिल जाती है | जब कार्य  ही उचित एवं उत्तम होंगे तो फिक्र(chinta) या भय करने की आवश्यकता ही नहीं पडती क्योंकि उचित एवं उत्तम कार्यों के परिणाम भी उचित एवं उत्तम हो मिलते हैं |

विचार

December 11, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

vichar

किसी भी विषय पर अपनी मानसिकता के आधार पर कथन या निर्णय प्रस्तुत करना इन्सान के विचार कहलाते हैं। विचार संसार का सबसे महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि इन्सान के विचारों द्वारा ही संसार के सभी कार्य सम्पन्न होते हैं। किसी भी प्रकार की शिक्षा, तकनीक अथवा अविष्कार इंसानों के विचारों द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं। संसार की सभी पुस्तकें वास्तव में बुद्धिमान एंव महान इंसानों के विचारों का संग्रह होती हैं। संसार का आदिकाल से वर्तमान आधुनिक युग तक की प्रगति का सफर इंसानों के विचारों द्वारा ही सम्पन्न ही सका है। विषय अथवा वस्तु की उत्पत्ति, प्रगति तथा भविष्य सभी इंसानों के विचारों पर निर्भर करते हैं। इन्सान के विचार ही उसकी महानता अथवा ओछापन प्रस्तुत करते हैं।

विचार मुख्य सकारात्मक, साधारण एंव नकारात्मक होते हैं। किसी भी विषय, वस्तु या प्राणी के विषय की अच्छाईयों एंव महानता तथा उनके कार्यों की समीक्षा एंव उनसे होने वाले लाभ का वर्णन करने वाले विचार सकारात्मक होते हैं। सकारात्मक विचार इन्सान का मार्गदर्शन करने तथा प्रगति एंव लक्ष्य पूर्ति करने का कार्य करते हैं। इन्सान के दैनिक जीवन को संचालित करने वाले विचार साधारण होते हैं। किसी विषय, वस्तु या प्राणी की त्रुटियों को तलाशते एंव उनसे अपना स्वार्थ पूर्ति करने वाले विचार नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचार इन्सान की बुरी मानसिकता का परिणाम होते हैं जो अपने लाभ के लिए समाज में अपराधिक कार्यों को अंजाम देते हैं। विचार सकारात्मक, साधारण अथवा नकारात्मक कोई भी हो सभी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सकारात्मक प्रगति के मार्गदर्शक हैं तो साधारण जीवन निर्वाह के मार्गदर्शक हैं। नकारात्मक विचारों के विषय में जानकारी होना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बुराईयों एंव बुरे इंसानों से सावधान नकारात्मक विचारों का ज्ञान ही करवाता है।

एक पुरानी कहावत है ( बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए ) अर्थात बिना विचार किए कोई भी कार्य करने से बाद में पछताना पड़ता है क्योंकि बिना विचार किए गए कार्य करने से परिणाम हानिकारक होते हैं। किसी भी कार्य अथवा समस्या का समाधान करने के लिए सर्वप्रथम विचार करना आवश्यक है ताकि समाधान के सरल तरीके प्राप्त हो सकें अन्यथा कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। विचार करने से अनेक प्रकार के लक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं तथा उन लक्ष्यों की प्राप्ति के साधन भी उपलब्ध हो जाते हैं। विचारों द्वारा किसी भी प्रकार के आपसी मतभेद सरलता पूर्वक समाप्त किए जा सकते हैं। जीवन में उन्नति के मार्ग विचार करके ही तलाशे जाते हैं बिना विचार के सिर्फ मुसीबतें प्राप्त होती हैं। जो इन्सान विचारवान नहीं होते अथवा विचार नहीं करते वह सिर्फ परिश्रम से जीवन निर्वाह अवश्य करते हैं परन्तु उन्नति नहीं कर पाते क्योंकि नई राहें बिना विचार किए तलाश करना संभव नहीं है।

idea

विचारों की उत्पत्ति इन्सान की मानसिकता पर निर्भर करती है क्योंकि मानसिकता जितनी अधिक सशक्त होगी इन्सान विचार भी उतने ही अधिक एंव श्रेष्ठ उत्पन्न कर सकता है। विचारों के निर्माण के लिए सक्रिय बुद्धि, उत्तम स्मरण शक्ति एंव विवेकशील होना आवश्यक है। भावनाओं से उत्पन्न विचार जीवन एंव रिश्तों से सबंधित होते हैं। नये आविष्कार एंव नये विषयों पर आधारित विचार करने की क्षमता इन्सान की कल्पना शक्ति में होती है। अप्रत्यक्ष को साकार करने एंव बिना आकार की वस्तु को आकार देकर नई रुपरेखा तैयार करने की क्षमता सिर्फ इन्सान की कल्पना शक्ति पर निर्भर करती है। विचार करने के लिए इन्सान का अपने मन पर अधिकार होना भी आवश्यक है क्योंकि चंचल मन इन्सान को सदैव लक्ष्य से भटकाता है। जब तक मन शांत होकर इन्सान को विचार करने के लिए प्रेरित नहीं करता वह सिर्फ बहस, आलोचनाओं, तानाकशी, मनोरंजन अथवा चिन्ताओं में उलझा रहता है।

नकारात्मक एंव साधारण विचार समय के साथ समाप्त होते रहते हैं परन्तु सकारात्मक विचार जो इन्सान के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं सदैव अमर रहते हैं। संसार के महान दार्शनिकों के श्रेष्ठ विचार सदियों एंव हजारों वर्ष पश्चात भी अमर हैं। संसार के जितने भी धर्म हैं सभी महान संतों के विचारों पर ही आधारित हैं अर्थात इन्सान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है परन्तु उसके विचार यदि श्रेष्ठ हैं जो दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं सदैव अमर रहते हैं। ज्ञान जीवन का मार्गदर्शक है एंव ज्ञान इन्सान के विचारों से उत्पन्न होता है इसलिए विचार यदि शत्रु के भी हों उन्हें सुनना तथा समझना आवश्यक एंव उत्तम होता है ताकि अच्छे विचारों के ज्ञान को ग्रहण करके अपना जीवन संवारा जा सके।

उत्तम विचारों के लिए इन्सान की आयु सीमा निर्धारित नहीं होती बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक किसी भी आयु के इन्सान के विचार श्रेष्ठ हो सकते हैं। विचारों का जाति अथवा धर्म से कोई सबंध नहीं होता इसलिए उत्तम विचारों को ग्रहण करने में आयु, जाति या धर्म का भेदभाव करना अपने जीवन से शत्रुता है। अपने विचारों को श्रेष्ठ मानकर उनके आधार पर जीवन निर्वाह करने वाला इन्सान ईर्षालू एंव अहंकारी होता है जिसका जीवन किस्मत के भरोसे चलता है वह विचारों के आधार पर उन्नति नहीं कर सकता। उत्तम विचारों को अपने तक सीमित रखना ईर्षा एंव अहंकार है उत्तम विचारों को दूसरों में बाँटना ही श्रेष्ठ होता है। दूसरों के उत्तम विचार ग्रहण करना ही श्रेष्ठता है तथा ग्रहण करने में पक्षपात करना भी ईर्षा एंव अहंकार ही होता है। जीवन में उन्नति करने के लिए यदि अपनी बौद्धिक क्षमता से अच्छे विचार उत्पन्न नहीं होते तो दूसरों के श्रेष्ठ विचारों द्वारा उन्नति करना ही उचित निर्णय एंव बुद्धिमानी होती है।

मन

April 11, 2014 By Amit 2 Comments

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इन्सान के शरीर में मुख्य अंगों के संग पाँच मुख्य इन्द्रियां भी हैं जिनके द्वारा इन्सान को विभिन्न प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है तथा इन सभी को इंसानी मस्तिक के तंत्रिका तंत्र द्वारा संचालित किया जाता है एवं जब इन्सान का मानसिक तंत्र शरीर के अंगों तथा इन्द्रियों के आनन्द प्राप्ति अथवा इनसे प्रेरित होकर सक्रिय होता है वह मानसिक किर्या इन्सान का मन कहलाती है । मन मानसिक तंत्र की दूसरी किर्या है तथा मन के रूप में कार्य करते समय मानसिक तन्त्र बुद्धि द्वारा जानकारियां एकत्रित करने के स्थान पर इन्द्रियों तथा शरीर के लिए आनन्द प्राप्ति की किर्या में लिप्त रहता है । मन इन्सान के जीवन की सबसे जटिल पहेली होती है क्योंकि इन्सान को जीवन में सफलता एंव असफलता प्राप्त होने में मन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा मन की कार्यशैली को समझकर व उसपर अधिकार करके उचित संचालन द्वारा ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है ।

मन बाल्यावस्था में धीमी गति से किर्याशील होता है तथा समय के साथ मन की गति में तीव्रता उत्पन्न होती रहती है इसलिए अधिक तीव्र गति होने पर मन की गति को चंचलता का नाम दिया जाता है । मन की किर्या बुद्धि के विपरीत होती है क्योंकि बुद्धि का आरम्भ तीव्रता से होता है तथा समय के साथ गति धीमी होती रहती है क्योंकि मन की गति बुद्धि की तीव्र गति को मुख्य रूप से प्रभावित करती है अर्थात मन जितना अधिक तीव्र गति से दौड़ता है बुद्धि उतनी ही धीमी गति प्राप्त कर लेती है तथा मन की गति शांत होने पर बुद्धि की गति तीव्र हो जाती है । बुद्धि को गतिशील रखने के लिए मन पर अधिकार करके उसे शांत रखना आवश्यक है जिसे आरम्भ से ही अधिकार में करने से सफलता प्राप्त होती है यदि आरम्भ में ना रोका जाए व गति प्राप्त होने पर रोकने का प्रयास किया जाए तो मन पर अधिकार नहीं किया जा सकता अथवा मन हमेशा के लिए कुंठित अवस्था में पहुंच जाता है ।

मन सदैव एक जैसा प्रभाव नहीं रखता एवं सदा एक जैसा कार्य नहीं करता क्योंकि मन की अन्य किसी मानसिक शक्ति से युति होने पर मन का कार्य तथा प्रभाव दोनों में अंतर आ जाता है किसी भी मानसिक शक्ति की सकारात्मक तथा नकारात्मकता का प्रभाव भी मन के कार्यों में विभिन्न परिवर्तन उत्पन्न कर देता है । मन की स्थिति इन्द्रियों के साथ कार्यरत होने पर भी सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है जिनका परिणाम भी पृथक होता है । सकारात्मक प्रभाव में मन इन्द्रियों का उपयोग इस प्रकार करता है कानों द्वारा सत्संग सुनना, नासा द्वारा सुगंध, नेत्रों द्वारा मनोहर दृश्य, मुख द्वारा धार्मिक कथन तथा काम इन्द्रियों के वशीभूत किसी से प्रेम प्रदर्शित करना । मन का नकारात्मक प्रभाव कानों से अश्लील वाक्य सुनना पसंद करता है तथा नासा द्वारा नशे की दुर्गन्ध, नेत्रों द्वारा अश्लील दृश्य, मुख द्वारा अपशब्द तथा काम इंद्री के लिए बलात्कार जैसा घृणित कार्य होता है ।

मन का कल्पना शक्ति से सम्बन्ध यदि नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है तो इन्सान अन्य इंसानों को लूटने तथा भयंकर अपराधिक षडयंत्र की रुपरेखा अपनी कल्पनाओं द्वारा सक्रिय करता है । मन का प्रभाव सकारात्मक होने पर किसी अध्यात्मिक कार्य अथवा किसी अविष्कार को उत्पन्न करने की कल्पना को साकार करके समाज की भलाई करके समाज में प्रतिष्ठित होकर सम्मानित होने के कार्य करता है । भावना से नकारात्मक होने पर मन किसी के प्रति द्वेष रखना तथा उसका सर्वनाश करना एंव अपने प्रति भी किसी प्रकार का सम्मान प्राप्त करने के स्थान पर सदैव गलत कार्यों को अंजाम देता है । मन का भावना से सकारात्मक सम्बन्ध किसी को सुख प्रदान करने के लिए तन, मन, धन से उसपर न्यौछावर हो जाना जैसे कार्य करता है जिसका प्रमाण देश पर शहीद होने वाले जवानों ने प्रस्तुत किया है ।

बुद्धि से मन का सकारात्मक सम्बन्ध इन्सान को उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है तथा जीवन में बुलंदी प्राप्त करके समाज में सम्मानित तथा प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना तथा अपने परिवार को सम्मान प्राप्त करवाता है । नकारात्मक प्रभाव बुद्धि को भ्रमित करना मन का सर्वप्रथम कार्य है तथा मन के वशीभूत इन्सान अपना जीवन बर्बाद कर लेता है क्योंकि बुद्धि जीवन में प्रगति का द्वार है जिसके बंद होने पर जीवन का सर्वनाश निश्चित है । स्मरण शक्ति बुद्धि की जानकारियों को एकत्रित करती है जिस पर मन का नकारात्मक प्रभाव कोई भी जानकारी एकत्रित करने से वंचित करता है तथा सकारात्मक प्रभाव स्मरण शक्ति को एकाग्रचित होकर भंडारण में सहयोग प्रस्तुत करता है ।

मन का सबसे अधिक प्रभाव विवेक पर होता है क्योंकि मन के नकारात्मक प्रभाव में इन्सान अहंकारी हो जाता है तथा उसका विवेक जागृत नहीं होता व इन्सान अज्ञान के अँधेरे में जीवन व्यतीत करता है । मन की सकारात्मक उर्जा तथा एकाग्रता विवेक को जागृत करके उससे ज्ञान प्राप्ति का कार्य करवाती है । विवेक का मन के साथ सार्थक सम्बन्ध रखने वाले इंसानों ने ही संसार का निर्माण किया है जिसमे मन का इच्छा शक्ति के साथ सकारात्मक सम्बन्ध होना आवश्यक है क्योंकि इच्छा शक्ति कमजोर हो तो इन्सान ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लेता है परन्तु ज्ञान से उत्पन्न अविष्कारों को सार्थक करने के प्रयास नहीं कर सकता ।

मन इन्सान के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानसिक तंत्र है जिसके द्वारा इन्सान किसी भी प्रकार का कार्य करने में सक्षम हो सकता है क्योंकि मन यदि चंचल हो तो सम्पूर्ण मानसिक तंत्र किसी भी प्रकार के कार्य नहीं कर सकता तथा मन प्रेरणा श्रोत बनकर इन्सान से किसी भी प्रकार का तथा कैसा भी कार्य करवाने की क्षमता रखता है । जिन इंसानों ने संसार के महत्वपूर्ण अविष्कार किए वें सभी मन की प्रेरणा द्वारा ही सम्पन्न कर सके इसलिए मन को अधिकार में करके सार्थक प्रयास किये जा सकते हैं इसके लिए एकाग्रचित होना आवश्यक है । एक संतुलित तथा सकारात्मक किर्या का मन इन्सान को किसी भी बुलंदी पर पहुंचा सकता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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