किसी की विचारधारा से प्रभावित होकर उसके संग विचारों का गठन करने से संगठन (sangthan) बनता है | संगठन इन्सान के जीवन के लिए बहुत लाभदायक एवं प्रगतिशील विषय है क्योंकि संगठन करने से जीवन सरल एवं प्रगतिशील बन जाता है | संगठन (group) अनेक प्रकार के होते हैं | परन्तु प्रत्येक इन्सान के जीवन में मुख्य पाँच प्रकार के संगठन (community) सबसे अधिब महत्वपूर्ण होते हैं जिनके कारण जीवन सबसे अधिक प्रभावित होता है | सर्वप्रथम संगठन (sangthan) की कार्य शैली को समझना आवश्यक है ताकि संगठन (group) करने का सर्वाधिक लाभ प्राप्त हो सके |
तीन प्रकार के बल इन्सान के जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यक होते हैं | एक = (बौधिक बल) दूसरा = (बाहुबल) तीसरा = (आर्थिक बल) अर्थात बुद्धि, परिश्रम एवं धन | बुद्धि बलवान हो तो अविष्कार तक किए जा सकते हैं जो सामान्य बुद्धि से नहीं हो सकते | परिश्रम द्वारा ही कार्य सम्पन्न होते हैं आलस्य करने या मनोरंजन में लिप्त रहने से कोई कार्य सफल नहीं होता | धन अधिक हो तो उद्योग भी लगाए जा सकते हैं सामान्य धन से मात्र जीवन का निर्वाह होता है | इसी प्रकार संगठन (sangthan) इन्सान के जीवन में चौथा एवं सबसे प्रभावशाली संख्या बल होता है जिसके कारण इन्सान दूसरे इंसानों की सहायता से कोई भी कार्य करने में सक्षम होता है |
एक अकेला इन्सान कितना भी बुद्धिमान, बलवान या धनवान हो दूसरे इन्सान उसका सरलता से शोषण कर सकते हैं परन्तु जब उसे अनेक इंसानों का साथ प्राप्त हो तो उसके शोषण का विचार करना भी असंभव हो जाता है | यह संगठन की शक्ति ही होती है जो इन्सान को संख्या बल प्रदान करके समाज में बाहुबली बना देती है | संगठन (organization) मात्र इंसानों का समूह नहीं होता उनके विचारों में किसी प्रकार के मतभेद होने से वह सिर्फ एक झुंड अथवा इंसानों की भीड़ कही जा सकती है | कुछ इन्सान मिलकर किसी वाहन को एक दिशा में धकेल रहे हों तो वह वाहन सरलता से धकेला जाता है परन्तु यदि कुछ इन्सान विपरीत दिशा में भी धकेलने लगे तो धकेलना कठिन हो जाता है | विचारों की समानता होने से सभी एक दिशा में कार्य करते हैं जिससे कार्य में प्रगति आ जाती है मतभेद सदैव हानिकारक होता है इसलिए संगठन (organization) विचारों की समानता से ही बनता है |
पहला संगठन :
इन्सान को पहला संगठन (gtroup) सर्वप्रथम खुद को संगठित करना है जो देखने में अजीब अवश्य लगता है परन्तु सर्वाधिक अनिवार्य है | इन्सान का संचालन उसकी मानसिकता करती है जो सात अलग-अलग किर्याओं से निर्मित होती है | बुद्धि, स्मरणशक्ति, मन, भावना, विवेक, कल्पना एवं इच्छाशक्ति यह सातों मानसिक शक्तियाँ स्वतंत्र होकर जब कार्य करती हैं तो अलग-अलग दिशा में जीवन को धकेलने का प्रयास करती है जिसके कारण इन्सान का जीवन बिखर जाता है यह एक कमजोर मानसिकता होती है | सभी मानसिक शक्तियों को संगठित करके एकाग्रचित होकर उनसे कार्य लेने से कोई भी कार्य करना सरल हो जाता है इसलिए पहला संगठन (company) खुद का करना अनिवार्य है |
दूसरा संगठन :
दूसरा संगठन (company) परिवार का होता है क्योंकि जब तक परिवार में संगठन ना हो समाज में वह परिवार ओछा समझा जाता है | संगठित परिवार समाज में प्रतिष्ठित समझा जाता है जिसके कारण उस परिवार को सम्मान, सहायता एवं सहयोग सरलता से प्राप्त हो जाता है | मतभेद के कारण बिखरा हुआ परिवार समाज में ओछा समझा जाता है जिसके कारण उसे किसी भी प्रकार की सहायता मिलना कठिन हो जाता है | जब इन्सान के पास परिवार का साथ होता है तो वह कोई भी कार्य सरलता से कर लेता है |
तीसरा संगठन :
तीसरा संगठन (sangthan) इन्सान के सबंधों का होता है सबंध परिवारिक, मित्रता, व्यापारिक अथवा पडोस के हों जब सभी संगठित होते हैं तो इन्सान को भरपूर सहयोग प्राप्त होता है जिसके कारण जीवन में प्रगति आती है | चौथा संगठन समाज का होता है एक संगठित समाज सदैव उन्नति करता है जो बिखरा हुआ समाज कभी नहीं कर सकता है | पांचवा संगठन देश का होता है क्योंकि यदि देश में जाति, धर्म या प्रान्तों के नाम पर मतभेद हों तो वह देश सदैव अपने झगड़ों में उलझा रहता है | मतभेद के जाल में फंसा देश कभी विकसित नहीं होता जिसके प्रभाव से देश की जनता भी सदैव लड़ाई झगड़ों में उलझी रहती है |
संगठन (sangthan) की शक्ति को समझने एवं उसका उपयोग करने से इन्सान का जीवन प्रगतिशील बन जाता है | संगठन में किसी भी प्रकार का कोई मतभेद होने पर उसे अतिशीघ्र समाप्त करना आवश्यक होता है क्योंकि छोटे से छोटा मतभेद कभी-कभी संगठन के विनाश का कारण बन जाता है | मतभेद होने पर लड़ना मूर्खों का कार्य है बुद्धिमानी समझने एवं समझाने में होती है क्योंकि मतभेद पर करी गई लड़ाई सदैव मतभेद में वृद्धि करती है संयम से ही मतभेद का अंत किया जा सकता है | इन्सान के जीवन में जब तक संगठन सुरक्षित रहते हैं वह कभी पराजित नहीं हो सकता |