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संतान

May 22, 2014 By Amit Leave a Comment

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सन्तान अर्थात इन्सान के जीवन की सबसे जटिल पहेली जिसे सुलझाते सुलझाते इन्सान का सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है परन्तु पहेली सुलझाने में इन्सान स्वयं उलझकर रह जाता है । सन्तान उत्पन्न करना अत्यंत सरल कार्य है परन्तु सन्तान का उचित प्रकार से शारीरिक तथा मानसिक पोषण करके उन्हें सफल एवं सुखी जीवन निर्वाह करने लायक बनाना इन्सान के जीवन का सबसे कठिन कार्य होता है । शिशु जन्म के समय अत्यंत अल्प बुद्धि होता है परन्तु उसकी विकासशील बुद्धि पर आस पास की सभी वस्तुओं की पहचान करना एवं वातावरण में होने वाली सभी प्रकार की हरकतों का प्रभाव बहुत तीव्रता से होता है । सन्तान जो शिक्षा प्राप्त करती है तथा उसके आचरण व व्यवहार एवं संस्कार सभी का मुख्य श्रेय माँ बाप को जाता है वैसे सन्तान पर माँ का प्रभाव अधिक होता है क्योंकि माँ के साथ सन्तान का सर्वाधिक समय व्यतीत होता है । माँ बाप के प्रत्येक आचरण तथा व्यवहार को संतान शीघ्रता पूर्वक धारण करती है तथा माँ बाप के द्वारा कहे गए प्रत्येक वाक्य सन्तान के मस्तिक पर सीधा असर करते हैं ।

संतान की परवरिश कोई साधारण कार्य नहीं है इसके लिए कुछ तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है । इन्सान में मोह, लोभ, काम, क्रोध व अहंकार के अतिरिक्त अन्य विकार जैसे घृणा, डर, कायरता, कुंठा, अस्थिर आत्म विश्वास, असत्य वाणी, कटु वचन, ईर्षा, हिंसकता वगैरह सभी विकार उत्पन्न होने का कारण माँ बाप तथा परिवार होता है । बाल्यकाल में दुलार वश हाथापाई करने से हिंसकता उत्पन्न होती है एवं भोजन करने व दुग्ध पान अथवा किसी प्रकार का कार्य कराने के लिए किसी प्रकार के डरावने वाक्यों तथा हाव भाव बच्चों में डर तथा कायरता उत्पन्न करते हैं । किसी प्रकार की खाने की वस्तु का लालच देकर कार्य कराने की कोशिश लोभ में वृद्धि तथा रिश्वत प्राप्त करने की शिक्षा देती है ।

किसी के समक्ष सन्तान के कार्यों की प्रशंसा करने से उनमें अहंकार की वृद्धि होती है तथा किसी के समक्ष सन्तान की त्रुटियाँ प्रदर्शित करने से उनमें घृणा तथा कुंठा उत्पन्न होती है । सन्तान के समक्ष किसी अन्य इन्सान की बुराई करने या प्रशंसा करने से उनमें ईर्षा की भावना उत्पन्न होती है । सन्तान के समक्ष असत्य कथन से सन्तान भी असत्य बोलने की शिकार होती है क्योंकि उन्हें माँ बाप को असत्य बोलते देखकर असत्य कथन में कोई बुराई नजर नहीं आती । सन्तान के प्रश्नों के उत्तर देने के स्थान पर उन्हें डांटकर चुप कराने से उनमें जिज्ञासा प्रवृति का अंत तथा क्रोध करने का स्वभाव पनपता है तथा बार बार डांटने से कटु वचन एवं जिद करने का स्वभाव बन जाता है ।

बच्चे के कोमल अंगों से छेड़खानी करने से उनमें कामुकता पनपती है इस कारण सदैव ध्यान रखना आवश्यक है कि कोई उनके साथ इस प्रकार की शरारत ना कर सके । बाल्यावस्था से ही भगवान के मन्दिर में हाथ जोड़ने तथा पूजा करवाने से बच्चों के आत्म विश्वास में कमी आती है क्योंकि बच्चे समझते हैं कि भगवान के समक्ष हाथ जोड़ने से सभी कार्य सम्पन्न हो जाते हैं इसलिए उन्हें किसी प्रकार के परिश्रम की आवश्यकता नहीं है । सन्तान के समक्ष किसी प्रकार का दुर्व्यवहार अथवा त्रुटिपूर्ण व्यवहार करने से सन्तान के व्यवहार में भी उसी प्रकार की स्वाभाविकता उत्पन्न होती है ।

अभिभावक सन्तान की शिक्षा प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं परन्तु सन्तान को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के स्थान पर उनके कोमल तथा चंचल मन को भटकाने का कार्य भी करते हैं । बाल्यकाल में जिज्ञासु प्रवृति होने के कारण प्रत्येक रंग बिरंगी तथा आकर्षक वस्तु बच्चों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती है तथा अभिभावकों द्वारा टी वी कार्यक्रम देखते हुए उनका ध्यान भी शिक्षा पर ना होकर टी वी पर ही होता है । घर में टी वी कार्यक्रमों के प्रति अपने मन को वश में करने के स्थान पर सन्तान को पढाई के लिए डांटना अभिभावकों की दोहरी तथा कमजोर मानसिकता को प्रमाणित करता है सन्तान को डांटने से उचित है कि स्वयं भी उनकी शिक्षा में जुड़ना और उनकी मदद करना तथा उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करना जो उन्हें शिक्षा का महत्व समझाने पर ही आकर्षण उत्पन्न करती है ।

सन्तान माँ बाप के आचरण एवं व्यवहार का आईना होती है जिस प्रकार का आचरण तथा व्यवहार माँ बाप द्वारा किया जाता है सन्तान वैसा ही स्वभाव समाज के समक्ष प्रदर्शित करती है । जैसा स्वभाव सन्तान से अपेक्षित हो वैसा ही व्यवहार घर में एवं संतान के समक्ष करना उचित होता है । संतान की अपराधिक गतिविधियों का कारण भी परिवार होता है क्योंकि समय के अभाव में सन्तान का उचित मार्गदर्शन ना करने तथा उनकी जिज्ञासा शांत ना करने पर वें बाहर का रास्ता तलाश कर लेते हैं जहाँ पर किसी की सोहबत उन्हें किसी भी प्रकार के अपराधिक कार्य की तरफ आकर्षित कर सकती है । सन्तान को बाहरी सोहबत से दूर रखने के लिए उन्हें समय तथा मार्गदर्शन देना एवं उनकी जिज्ञासा शांत करना तथा उनके प्रश्नों के उचित समाधान करना अत्यंत आवश्यक कार्य है ।

सन्तान उत्पन्न करने से कार्य पूर्ण नहीं हो जाता उनका उचित पोषण तथा मार्गदर्शन ही उन्हें सम्मानित तथा सफल इन्सान बना सकता है । संतान को शिक्षा प्राप्ति के साथ उन्हें सामाजिक बुराइयों, छल, कपट व धोखे जैसे विषयों का ज्ञान देना भी आवश्यक है जिससे वें अपराधिक प्रवृति के इंसानों से अपनी रक्षा करने में सक्षम बन सकें । संतान समाज में माँ बाप की छवि प्रस्तुत करती है इसलिए समाज में अपना सम्मान कायम रखने के लिए संतान को व्यवहारिक बनाना भी आवश्यक है क्योंकि संतान को मिलने वाला सम्मान वास्तव में माँ बाप का सम्मान ही होता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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