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मन

April 11, 2014 By Amit 2 Comments

mann

इन्सान के शरीर में मुख्य अंगों के संग पाँच मुख्य इन्द्रियां भी हैं जिनके द्वारा इन्सान को विभिन्न प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है तथा इन सभी को इंसानी मस्तिक के तंत्रिका तंत्र द्वारा संचालित किया जाता है एवं जब इन्सान का मानसिक तंत्र शरीर के अंगों तथा इन्द्रियों के आनन्द प्राप्ति अथवा इनसे प्रेरित होकर सक्रिय होता है वह मानसिक किर्या इन्सान का मन कहलाती है । मन मानसिक तंत्र की दूसरी किर्या है तथा मन के रूप में कार्य करते समय मानसिक तन्त्र बुद्धि द्वारा जानकारियां एकत्रित करने के स्थान पर इन्द्रियों तथा शरीर के लिए आनन्द प्राप्ति की किर्या में लिप्त रहता है । मन इन्सान के जीवन की सबसे जटिल पहेली होती है क्योंकि इन्सान को जीवन में सफलता एंव असफलता प्राप्त होने में मन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा मन की कार्यशैली को समझकर व उसपर अधिकार करके उचित संचालन द्वारा ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है ।

मन बाल्यावस्था में धीमी गति से किर्याशील होता है तथा समय के साथ मन की गति में तीव्रता उत्पन्न होती रहती है इसलिए अधिक तीव्र गति होने पर मन की गति को चंचलता का नाम दिया जाता है । मन की किर्या बुद्धि के विपरीत होती है क्योंकि बुद्धि का आरम्भ तीव्रता से होता है तथा समय के साथ गति धीमी होती रहती है क्योंकि मन की गति बुद्धि की तीव्र गति को मुख्य रूप से प्रभावित करती है अर्थात मन जितना अधिक तीव्र गति से दौड़ता है बुद्धि उतनी ही धीमी गति प्राप्त कर लेती है तथा मन की गति शांत होने पर बुद्धि की गति तीव्र हो जाती है । बुद्धि को गतिशील रखने के लिए मन पर अधिकार करके उसे शांत रखना आवश्यक है जिसे आरम्भ से ही अधिकार में करने से सफलता प्राप्त होती है यदि आरम्भ में ना रोका जाए व गति प्राप्त होने पर रोकने का प्रयास किया जाए तो मन पर अधिकार नहीं किया जा सकता अथवा मन हमेशा के लिए कुंठित अवस्था में पहुंच जाता है ।

मन सदैव एक जैसा प्रभाव नहीं रखता एवं सदा एक जैसा कार्य नहीं करता क्योंकि मन की अन्य किसी मानसिक शक्ति से युति होने पर मन का कार्य तथा प्रभाव दोनों में अंतर आ जाता है किसी भी मानसिक शक्ति की सकारात्मक तथा नकारात्मकता का प्रभाव भी मन के कार्यों में विभिन्न परिवर्तन उत्पन्न कर देता है । मन की स्थिति इन्द्रियों के साथ कार्यरत होने पर भी सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है जिनका परिणाम भी पृथक होता है । सकारात्मक प्रभाव में मन इन्द्रियों का उपयोग इस प्रकार करता है कानों द्वारा सत्संग सुनना, नासा द्वारा सुगंध, नेत्रों द्वारा मनोहर दृश्य, मुख द्वारा धार्मिक कथन तथा काम इन्द्रियों के वशीभूत किसी से प्रेम प्रदर्शित करना । मन का नकारात्मक प्रभाव कानों से अश्लील वाक्य सुनना पसंद करता है तथा नासा द्वारा नशे की दुर्गन्ध, नेत्रों द्वारा अश्लील दृश्य, मुख द्वारा अपशब्द तथा काम इंद्री के लिए बलात्कार जैसा घृणित कार्य होता है ।

मन का कल्पना शक्ति से सम्बन्ध यदि नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है तो इन्सान अन्य इंसानों को लूटने तथा भयंकर अपराधिक षडयंत्र की रुपरेखा अपनी कल्पनाओं द्वारा सक्रिय करता है । मन का प्रभाव सकारात्मक होने पर किसी अध्यात्मिक कार्य अथवा किसी अविष्कार को उत्पन्न करने की कल्पना को साकार करके समाज की भलाई करके समाज में प्रतिष्ठित होकर सम्मानित होने के कार्य करता है । भावना से नकारात्मक होने पर मन किसी के प्रति द्वेष रखना तथा उसका सर्वनाश करना एंव अपने प्रति भी किसी प्रकार का सम्मान प्राप्त करने के स्थान पर सदैव गलत कार्यों को अंजाम देता है । मन का भावना से सकारात्मक सम्बन्ध किसी को सुख प्रदान करने के लिए तन, मन, धन से उसपर न्यौछावर हो जाना जैसे कार्य करता है जिसका प्रमाण देश पर शहीद होने वाले जवानों ने प्रस्तुत किया है ।

बुद्धि से मन का सकारात्मक सम्बन्ध इन्सान को उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है तथा जीवन में बुलंदी प्राप्त करके समाज में सम्मानित तथा प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना तथा अपने परिवार को सम्मान प्राप्त करवाता है । नकारात्मक प्रभाव बुद्धि को भ्रमित करना मन का सर्वप्रथम कार्य है तथा मन के वशीभूत इन्सान अपना जीवन बर्बाद कर लेता है क्योंकि बुद्धि जीवन में प्रगति का द्वार है जिसके बंद होने पर जीवन का सर्वनाश निश्चित है । स्मरण शक्ति बुद्धि की जानकारियों को एकत्रित करती है जिस पर मन का नकारात्मक प्रभाव कोई भी जानकारी एकत्रित करने से वंचित करता है तथा सकारात्मक प्रभाव स्मरण शक्ति को एकाग्रचित होकर भंडारण में सहयोग प्रस्तुत करता है ।

मन का सबसे अधिक प्रभाव विवेक पर होता है क्योंकि मन के नकारात्मक प्रभाव में इन्सान अहंकारी हो जाता है तथा उसका विवेक जागृत नहीं होता व इन्सान अज्ञान के अँधेरे में जीवन व्यतीत करता है । मन की सकारात्मक उर्जा तथा एकाग्रता विवेक को जागृत करके उससे ज्ञान प्राप्ति का कार्य करवाती है । विवेक का मन के साथ सार्थक सम्बन्ध रखने वाले इंसानों ने ही संसार का निर्माण किया है जिसमे मन का इच्छा शक्ति के साथ सकारात्मक सम्बन्ध होना आवश्यक है क्योंकि इच्छा शक्ति कमजोर हो तो इन्सान ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लेता है परन्तु ज्ञान से उत्पन्न अविष्कारों को सार्थक करने के प्रयास नहीं कर सकता ।

मन इन्सान के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानसिक तंत्र है जिसके द्वारा इन्सान किसी भी प्रकार का कार्य करने में सक्षम हो सकता है क्योंकि मन यदि चंचल हो तो सम्पूर्ण मानसिक तंत्र किसी भी प्रकार के कार्य नहीं कर सकता तथा मन प्रेरणा श्रोत बनकर इन्सान से किसी भी प्रकार का तथा कैसा भी कार्य करवाने की क्षमता रखता है । जिन इंसानों ने संसार के महत्वपूर्ण अविष्कार किए वें सभी मन की प्रेरणा द्वारा ही सम्पन्न कर सके इसलिए मन को अधिकार में करके सार्थक प्रयास किये जा सकते हैं इसके लिए एकाग्रचित होना आवश्यक है । एक संतुलित तथा सकारात्मक किर्या का मन इन्सान को किसी भी बुलंदी पर पहुंचा सकता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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