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ख़ुशी

September 25, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

जब इन्सान किसी भी कारण वश सभी चिंताओं को त्यागकर मानसिक शांति एवं आनन्द का अनुभव करता है तथा आनन्द विभोर होकर मुस्कराता या हंसता है उसे ख़ुशी कहा जाता है । ख़ुशी ऐसा मानसिक अहसास है जो इन्सान के मन को प्रुफ्फलित कर देता है । ख़ुशी इन्सान के जीवन का सबसे सुखद पहलू है जिसकी तलाश में वह सम्पूर्ण जीवन प्रयासरत रहता है । ख़ुशी के कुछ पल भी जीवन के अनेक दुःख एवं समस्याओं की पीड़ा को भुलाने में सक्षम होते हैं अर्थात ख़ुशी इन्सान के जीवन में अमृत समान संजीवनी होती है । इन्सान अपने जीवन का प्रत्येक कर्म अधिक से अधिक खुशियाँ बटोरने के लिए करता है । अपनी ख़ुशी के लिए इन्सान किसी भी प्रकार का बुरा एवं अपराधिक कार्य करने से भी नहीं चूकते हैं । अपनी खुशियों के लिए दूसरों को सताना या उनका शोषण करना अथवा उन्हें धन या जीवन की हानि पहुँचाना इन्सान का सामान्य कर्म बन चुका है ।

ख़ुशी मुख्य दो प्रकार की होती है सांसारिक एवं मानसिक । सांसारिक अर्थात जो ख़ुशी इन्सान की जीवन शैली से संबधित होती है उन्हें सांसारिक ख़ुशी कहा जाता है । सांसारिक ख़ुशी संसार के सभी इंसानों की अभिलाषा में एक समान होती है जैसे धन, मकान, जायदाद, समृद्धि पाना एवं आमदनी के साधन बनाना तथा परिवार एवं समाज में सम्मान प्राप्त करना वगैरह । मानसिक ख़ुशी अधिकांश इंसानों में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है इनमें समानता होना कठिन है । इंसानों की भिन्न मानसिकता के कारण उनकी मानसिक शांति एवं आनन्द के आधार भी भिन्न होते हैं इसी कारण मानसिक ख़ुशी में विभिन्नता होना सामान्य कार्य है ।

इन्सान के भौतिक जीवन की आवश्यकताएँ अर्थात भोजन, वस्त्र, घर एवं घरेलू वस्तुएँ जमा करना सभी इंसानों के जीवन का लक्ष्य होता है । जब यह संसाधन आवश्यकता पूर्ति से अधिक जमा हो जाते हैं तो इन्सान अभिमान वश ख़ुशी का अनुभव करता है । संसार में इन्सान के जीवन निर्वाह से संबधित होने के कारण यह सांसारिक ख़ुशी कहलाती है । सांसारिक खुशियों का संबध इन्सान के कर्म से जुड़ा हुआ है इसलिए इन्सान कर्म एवं परिश्रम द्वारा इन्हें सफलता से प्राप्त कर सकता है । कभी-कभी इन्सान बहुत अधिक संसाधन जमा करने के पश्चात भी ख़ुशी का अनुभव नहीं कर पाता क्योंकि उसकी बेसब्र दृष्टि में सभी संसाधन अल्प दिखाई देते हैं । ऐसी स्थिति होने का कारण दूसरों के संसाधनों से अपनी तुलना करना है । सांसारिक ख़ुशी प्राप्त करने का मूलमंत्र सब्र करना है । जब तक अपनी वस्तुओं एवं संसाधनों को श्रेष्ठ ना समझा जाए तथा उनपर सब्र ना किया जाए वह सदा अल्प दिखाई देते रहेंगे एवं इन्सान अतृप्त रहेगा । अतृप्त इन्सान जीवन में कभी ख़ुशी का अनुभव नहीं कर सकता यह ही जीवन की वास्तविकता है ।

किसी भी कार्य से जब इन्सान मानसिक शांति एवं आनन्द का अनुभव करता है वह मानसिक ख़ुशी कहलाती है । मानसिक ख़ुशी प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार के संसाधन अथवा धन की आवश्यकता नहीं होती इन्सान अभाव में भी इस ख़ुशी का अनुभव कर सकता है । मानसिक ख़ुशी का मुख्य आधार मनोरंजन है जो किसी भी प्रकार के मनोरंजन के साधन द्वारा प्राप्त हो सकती है । मनोरंजन के अतिरिक्त मनोहर दृश्य, रमणीक स्थल, कोई सुंदर वस्तु अथवा किसी प्राणी की भाव भंगिमा भी मानसिक ख़ुशी प्रदान कर सकती है । कभी-कभी किसी इन्सान का सानिध्य अथवा उसकी वार्ता भी मानसिक ख़ुशी का श्रोत बन जाते हैं । इन्सान की मानसिकता जिस प्रकार की होती है उसे मानसिक ख़ुशी भी उसी प्रकार के कार्यों द्वारा प्राप्त होती है । शांत प्राकृति का इन्सान शांत वातावरण में, चंचल प्राकृति का इन्सान परिहास में तथा क्रूर प्रकृति का इन्सान क्रूरता के कार्यों से मानसिक ख़ुशी का अनुभव करता है ।

ख़ुशी प्राप्त करने के लिए उनका आधार एवं प्रकार समझना भी आवश्यक है क्योंकि कभी-कभी खुशियाँ हमारे समीप होती हैं परन्तु हम इन खुशियों से अनजान होते हैं । हम जीवन में अधिक से अधिक खुशियाँ अपने लिए एवं अपनों के लिए प्राप्त करना चाहते हैं परन्तु बड़ी ख़ुशी प्राप्त करने की चाह में छोटी-छोटी खुशियों को अनदेखा कर देते हैं । छोटी-छोटी खुशियों का आनन्द लेने से बड़ी ख़ुशी जैसी तृप्ति का अनुभव होता है । खुशियाँ समेटने में समय का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि कभी-कभी इन्सान बहुत सा धन जमा करने के चक्कर में इतनी आयु व्यतीत कर देता है कि उस धन का उपयोग ही समाप्त हो जाता है । अपनों को खुशियाँ प्रदान करने के प्रयास में कभी-कभी अपनों से इतना दूर हो जाते हैं कि अपने भी पराये समान हो जाते हैं । अपनों के साथ समय बिताने से वह अपने होते हैं परन्तु अपनों के साथ समय व्यतीत ना करने अथवा उनसे वार्तालाप ना करने या सिर्फ आवश्यक बातें करने से वह धीरे-धीरे अपनत्व खोकर पराये समान हो जाते हैं ।

ख़ुशी जिस प्रकार प्राप्त करी जाती है वह आनन्द भी उसी प्रकार का देती है । जो खुशियाँ अपने कर्म एवं परिश्रम द्वारा प्राप्त होती हैं वह सबसे श्रेष्ठ एवं स्थिर होती हैं । जो खुशियाँ विरासत में अथवा बिना परिश्रम भाग्य द्वारा प्राप्त होती हैं वह साधारण तथा अस्थिर होती हैं जो समय के साथ फीकी पड़ जाती हैं । दूसरों से छीनकर अथवा किसी प्रकार के अनुचित कार्य द्वारा प्राप्त ख़ुशी क्षणिक एवं भ्रमित करने वाली होती हैं । इन्सान जब किसी प्रकार के भ्रष्ट अथवा अपराधिक कार्यों द्वारा अपने लिए खुशियाँ समेटता है उन खुशियों के साथ भय भी चला आता है जो ख़ुशी से अधिक इन्सान को भयभीत रखता है । स्वयं खुश रहने के लिए दूसरों को खुश रखना आवश्यक है क्योंकि हम जो भी दूसरों को देते हैं वह ही हमें वापस प्राप्त होता है यही संसार का नियम है । सम्मान के बदले में सम्मान एवं गाली के बदले में गाली की वापसी करना इन्सान की मानसिकता है इसलिए अपने लिए जैसी वापसी चाहिए वैसा ही बाँटना श्रेष्ठ होता है । संसार में वास्तविक ख़ुशी वह है जो शुभ एवं श्रेष्ठ कार्यों द्वारा प्राप्त होती है क्योंकि इन्सान सबसे अधिक खुश उस समय होता है जब दूसरे उसके कार्यों की प्रशंसा करते हैं । संसार में श्रेष्ठ ख़ुशी वह है जो दूसरों को खुश रखकर प्राप्त होती है अन्यथा दूसरों से छुपाकर या उन्हें दुखी करके खुशियाँ मनाना ख़ुशी नहीं भ्रम होता है।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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