जीवन का सत्य

जीवन सत्यार्थ

  • दैनिक सुविचार
  • जीवन सत्यार्थ
  • Youtube
  • संपर्क करें

आलस्य

July 26, 2014 By Amit Leave a Comment

aalasya

किसी कार्य को करने की आवश्यकता होने पर तथा उस कार्य को करने में सक्षम होने पर भी यदि कोई इन्सान कार्य करने के स्थान पर अलग अलग प्रकार के बहाने बना कर उस कार्य को टालना चाहता है तो वह उसका आलस्य होता है । आलस्य इन्सान के जीवन का ऐसा विकार है जिसे इन्सान जानते हुए भी कि उसके सभी कार्यों के सर्वनाश का कारण उसका आलस्य है फिर भी अपने आलस्य का त्याग नहीं करता । आलस्य करने से सबसे अधिक नुकसान इन्सान का अपना होता है क्योंकि समय किसी का इंतजार नहीं करता और आलस्य से समय व्यतीत होने का ही नुकसान होता है । कभी कभी आलस्य इन्सान के जीवन का कलंक बनकर रह जाता है कोई ऐसा कार्य जिससे उसे जीवन में भरपूर सुख एंव वैभव प्राप्त हो सकता था तथा उसका सम्पूर्ण जीवन खुशियों से भर जाता वह उसके आलसीपन की वजह से होने वाली देरी के कारण सम्पन्न ना हो सका हो वह दुःख आलसी इन्सान को जीवन भर पछताने के लिए छोड़ देता है ।

इन्सान के जीवन में आलस्य से होने वाले नुकसानों में सबसे पहला नुकसान उसके शिक्षा ग्रहण के समय किया गया आलस्य होता है क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही सम्पूर्ण जीवन की प्रगति का आधार होता है । इन्सान जितना अधिक शिक्षित होता है वह जीवन में उतनी ही बुलंदियां प्राप्त कर सकता है । यदि वह अपने आलस्य के कारण शिक्षा का अनादर करता है तो उसके जीवन में प्रगति के सभी रास्ते बंद होते जाते हैं इससे उसका जीवन अभाव पूर्ण एंव कठनाइयों से व्यतीत होता है । कार्य सेवा अथवा व्यापर करते समय आलस्य इन्सान को पतन की ओर ले जाता है क्योंकि व्यापर में ग्राहक किसी व्यापारी का इंतजार नहीं करता व्यापारी को ग्राहक का इंतजार करना पड़ता है आलस्य में व्यापर चौपट होना अथवा उसमे हानि होना तय होता है । आलसी को कार्य सेवा से कार्य प्रबन्धक या मालिक निकाल बाहर करते हैं क्योंकि पगार के बदले में उन्हें अपना कार्य सम्पन्न चाहिए किसी के आलस्य से उनका कोई लेना देना नहीं होता ।

आलस्य किसी भी प्रकार का हो वह सिर्फ हानिकारक ही होता है परिवार के कार्यों एंव सदस्यों के प्रति आलस्य के कारण उदासीनता से परिवार के सदस्य धीरे धीरे साथ छोड़ने लगते हैं । इन्सान के मित्र सम्बन्धी एंव रिश्तेदार भी मेल मिलाप तथा उनके कार्यों के प्रति जागरूक होने पर ही सम्बन्ध रखते हैं रिश्तों में आलस्य खटास उत्पन्न करता है तथा रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच जाते हैं । पड़ोसी व समाज के प्रति उदासीनता से सम्बन्ध समाप्त होना स्वभाविक प्रकिर्या है क्योंकि किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को बनाए रखने के लिए उसमे गर्मजोशी रखना आवश्यक है । स्वास्थ्य के प्रति आलस्य से बीमारियाँ स्वयं आकर शरीर को पकड़ लेती हैं जो जीवन भर साथ निभाती हैं और मृत्यु होने तक पीछा नहीं छोडती सिर्फ जागरूक इन्सान ही स्वास्थ्य पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं क्योंकि आलसी इंसानों का जीवन दवाइयों के सहारे व्यतीत होता है ।

aalasya

इन्सान में आलस्य होने के कई कारण होते हैं जिनकी वजह से वह प्रभावित होता है जैसे भोजन में कठोर आहार की वस्तुएँ जिन्हें पचाने के लिए पाचन तंत्र को अधिक परिश्रम करना पड़ता है और अधिक समय में पचाने के कारण शरीर शिथिल हो जाता है । भोजन में अधिक वसा की मात्रा शरीर का वज़न बढाती है जिससे शरीर भारी व आलसी होता है । भोजन की अधिक मात्रा अर्थात ठूंस ठूंस कर खाना पाचन तंत्र पर प्रहार होता है जिससे पाचन तंत्र का अधिक परिश्रम शरीर के बाकि अंगों को प्रभावित करता है इसलिए भोजन में शीघ्र पचाने वाले संतुलित वसा के पदार्थ एंव उनकी संतुलित मात्रा होने से शरीर स्वस्थ्य एंव फुर्तीला रहता है । अधिक भूख लगने से अधिक बार भोजन करना ठूंस ठूंस कर खाने से उचित निर्णय होता है । इसी प्रकार शरीर पर अधिक कसे हुए वस्त्र भी शरीर की रक्त वाहिनी नसों पर अधिक दबाव बना कर उनके कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं जिसकी वजह से शरीर अस्वस्थ व शिथिल रहता है और इन्सान थकावट महसूस करके आलसी हो जाता है ।

इन्सान का ऐसे स्थान पर रहना जहाँ शुद्ध वायु एंव प्रकाश की कमी और वातावरण में सीलन हो तो उसका स्वास्थ्य प्रभावित होता है अथवा कार्यालय में अधिक गर्मी या अधिक शीतलता उसे अस्वस्थ एंव आलसी बनाती है । प्राकृति के नियमों के विरुद्ध रात्रि में देर से सोना व सुबह देर से जागना प्राकृतिक रश्मियों की उर्जा से वंचित होकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता की हानि व स्वास्थ्य की हानि एंव आलस्य की अधिकता होती है । इन्सान के आलस्य का सबसे बड़ा कारण उसके मन की कमजोरी है जो अपने भविष्य को अनदेखा करके अपने आप से शत्रुता करता हो वह संसार का सबसे बड़ा मूर्ख होता है । इन्सान कार्य करने से नहीं थकता बल्कि मन से थकता है और मन का थका संसार का सबसे बड़ा आलसी होता है जो इन्सान अपने मन पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता वह जीवन की मुश्किलों से कैसे लड सकता है । अपने मन पर अधिकार करके दृढ इच्छा शक्ति से संसार पर विजय प्राप्त की जा सकती है जिसे संसार के अनेकों इंसानों ने प्रमाणित किया है । समय की गति बहुत तीव्र है तथा जो समय का सम्मान नहीं करता वह अभाव पूर्ण एंव संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत करता है समय का सम्मान करने से समय इन्सान का सम्मान खंडित नहीं होने देता और उसे प्रगति प्रदान करता है ।

Recent Posts

  • सुधार करने पर सुविचार
  • समझदारी पर सुव्चार
  • स्वार्थ पर सुविचार
  • परिवर्तन पर सुविचार
  • संस्कार पर सुविचार

जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

Copyright © 2021 jeevankasatya.com